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Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 9th November 2024

“प्रश्नः
ज्ञानवान बच्चे किस चिन्तन में सदा रहते हैं?

उत्तर:-
मैं अविनाशी आत्मा हूँ, यह शरीर विनाशी है। मैंने 84 शरीर धारण किये हैं। अब यह अन्तिम जन्म है। आत्मा कभी छोटीबड़ी नहीं होती है। शरीर ही छोटा बड़ा होता है। यह आंखें शरीर में हैं लेकिन इनसे देखने वाली मैं आत्मा हूँ। बाबा आत्माओं को ही ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं। वह भी जब तक शरीर का आधार लें तब तक पढ़ा नहीं सकते। ऐसा चिन्तन ज्ञानवान बच्चे सदा करते हैं।”

 

1.    “आत्मा तो चैतन्य है ना। जब तक आत्मा प्रवेश करे तब तक पुतला कोई काम का नहीं रहता है। कितना फर्क है। बोलने, चालने वाली भी आत्मा ही है। वह इतनी छोटीसी बिन्दी ही है। वह कभी छोटीबड़ी नहीं होती। विनाश को नहीं पाती। अब यह परम आत्मा बाप ने समझाया है कि मैं अविनाशी हूँ और यह शरीर विनाशी है। उनमें मैं प्रवेश कर पार्ट बजाता हूँ।”

 

2.    “आत्मा नैचुरल है शरीर अननैचुरल मिट्टी का बना हुआ है। जब आत्मा है तो बोलती चालती है।”

 

3.    “निराकार शिवबाबा इस संगमयुग पर ही इस शरीर द्वारा आकर सुनाते हैं। यह आंखे तो शरीर में रहती ही हैं। अभी बाप ज्ञान चक्षु देते हैं। आत्मा में ज्ञान नहीं है तो अज्ञान चक्षु है। बाप आते हैं तो आत्मा को ज्ञान चक्षु मिलते हैं। आत्मा ही सब कुछ करती है। आत्मा कर्म करती है शरीर द्वारा।”

 

4.    “बाप ही आकर तुमको ज्ञानी तू आत्मा बनाते हैं। आगे तुम भक्ति तू आत्मा थे। तू आत्मा भक्ति करते थे। अभी तुम आत्मा ज्ञान सुनते हो। भक्ति को कहा जाता है अन्धियारा। ऐसे नहीं कहेंगे भक्ति से भगवान मिलता है। बाप ने समझाया है भक्ति का भी पार्ट है, ज्ञान का भी पार्ट है। तुम जानते हो हम भक्ति करते थे तो कोई सुख नहीं था। भक्ति करते धक्का खाते रहते थे।”

 

5.    “भगवान आकरके तुम पतितों को पावन बनाते हैं और तुम यह शरीर छोड़ देते हो। पावन तो इस तमोप्रधान पतित सृष्टि में रह नहीं सकते।

 

6.    “बाप तुमको पावन बनाकर गुम हो जाते हैं, उनका पार्ट ही ड्रामा में वन्डरफुल है।”

 

7.     “जैसे आत्मा देखने में आती नहीं है। भल साक्षात्कार होता है तो भी समझ सकें। और तो सबको समझ सकते हैं यह फलाना है, यह फलाना है। याद करते हैं। चाहते हैं फलाने का चैतन्य में साक्षात्कार हो और तो कोई मतलब नहीं। अच्छा, चैतन्य में देखते हो फिर क्या? साक्षात्कार हुआ फिर तो गुम हो जायेगा। अल्पकाल क्षण भंगुर सुख की आश पूरी होगी। उसको कहा जायेगा अल्पकाल क्षण भंगुर सुख। साक्षात्कार की चाहना थी वह मिला। बस यहाँ तो मूल बात है पतित से पावन बनने की। पावन बनेंगे तो देवता बन जायेंगे अर्थात् स्वर्ग में चले जायेंगे।”

 

8.    “रावण जब से आता है तो भक्ति भी उनके साथ है और जब बाप आते हैं तो उनके साथ ज्ञान है। बाप से एक ही बार ज्ञान का वर्सा मिलता है। घड़ीघड़ी नहीं मिल सकता।”

 

9.    “रामराज्य में सब निर्विकारी हैं, रावण राज्य में हैं सब विकारी। इनका नाम ही है वेश्यालय। रौरव नर्क है ना। इस समय के मनुष्य विषय वैतरणी नदी में पड़े हैं। मनुष्य, जानवर आदि सब एक समान हैं। मनुष्य की कोई भी महिमा नहीं है।”

 

10. “असुरों की निशानी क्या है? 5 विकार। देवताओं को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी और असुरों को कहा जाता है सम्पूर्ण विकारी। वह हैं 16 कला सम्पूर्ण और यहाँ नो कला। सबकी कला काया चट हो गई है।”

 

11.  “बाप समझाते हैं मैं ही मालिक हूँ। मैं बीजरूप, चैतन्य, ज्ञान का सागर हूँ। मेरे में सारा ज्ञान है और कोई में नहीं। तुम समझ सकते हो इस सृष्टि चक्र के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज बाप में ही है।”

 

12. “तुम भल विलायत में होंगे तो भी कहेंगे ब्रह्मा के तन में शिवबाबा है। तन तो जरूर चाहिए ना। कहाँ भी तुम बैठे होंगे तो जरूर यहाँ याद करेंगे। ब्रह्मा के तन में ही याद करना पड़े। कई बुद्धिहीन ब्रह्मा को नहीं मानते हैं। बाबा ऐसे नहीं कहते ब्रह्मा को याद करो। ब्रह्मा बिगर शिवबाबा कैसे याद पड़ेगा। बाप कहते हैं मैं इस तन में हूँ। इसमें मुझे याद करो इसलिए तुम बाप और दादा दोनों को याद करते हो।”

 

13. “जब भक्ति है तो ज्ञान का अक्षर नहीं। इनको कहा जाता है पुरुषोत्तम संगमयुग जबकि चेन्ज होती है। पुरानी दुनिया में असुर रहते हैं, नई दुनिया में देवतायें रहते हैं तो उनको चेन्ज करने लिए बाप को आना पड़ता है। सतयुग में तुमको कुछ भी पता नहीं रहेगा। अभी तुम कलियुग में हो तो भी कुछ पता नहीं है। जब नई दुनिया में होंगे तो भी इस पुरानी दुनिया का कुछ पता नहीं होगा। अभी पुरानी दुनिया में हो तो नई का मालूम नहीं है। नई दुनिया कब थी, पता नहीं।”

 

14. “पुजारी से पूज्य बनने के लिए सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है। ज्ञानवान बन स्वयं को स्वयं ही चेंज करना है। अल्पकाल सुख के पीछे नहीं जाना है।”

 

15. “नशे का आधार है ही निश्चय। निश्चय कम तो नशा कम इसलिए कहते हैं निश्चयबुद्धि विजयी।”

 

 



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