Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 10th November 2024

 1.     “जहाँ हर संकल्प में, हर कार्य में निश्चय है वहाँ विजय हुई पड़ी है। सफलता जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में स्वत: और सहज प्राप्त है। जन्म सिद्ध अधिकार के लिए मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। सफलता ब्राह्मण जीवन के गले का हार है। ब्राह्मण जीवन है ही सफलता स्वरूप। सफलता होगी वा नहीं होगी यह ब्राह्मण जीवन का क्वेश्चन ही नहीं है। निश्चयबुद्धि सदा बाप के साथ कम्बाइन्ड है, तो जहाँ बाप कम्बाइन्ड है वहाँ सफलता सदा प्राप्त है। तो चेक करोसफलता स्वरूप कहाँ तक बने हैं? अगर सफलता में परसेन्टेज़ है तो उसका कारण निश्चय में परसेन्टेज़ है। निश्चय सिर्फ बाप में है, यह तो बहुत अच्छा है। लेकिन निश्चयबाप में निश्चय, स्व में निश्चय, ड्रामा में निश्चय और साथसाथ परिवार में निश्चय। इन चारों निश्चय के आधार से सफलता सहज और स्वत: है।”

 

2.     “ब्राह्मण जीवन में सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनने के लिए स्व में भी निश्चय आवश्यक है। बापदादा के द्वारा प्राप्त हुए श्रेष्ठ आत्मा के स्वमान सदा स्मृति में रहे कि मैं परमात्मा द्वारा स्वमानधारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ। साधारण आत्मा नहीं, परमात्म स्वमानधारी आत्मा। तो स्वमान हर संकल्प में, हर कर्म में सफलता अवश्य दिलाता है। साधारण कर्म करने वाली आत्मा नहीं, स्वमानधारी आत्मा हूँ। तो हर कर्म में स्वमान आपको सफलता सहज ही दिलायेगा। तो स्व में निश्चयबुद्धि की निशानी हैसफलता वा विजय। ऐसे ही बाप में तो पक्का निश्चय है, उसकी विशेषता हैनिरन्तर मैं बाप का और बाप मेरा।यह निरन्तर विजय का आधार है।मेरा बाबासिर्फ बाबा नहीं, मेरा बाबा। मेरे के ऊपर अधिकार होता है। तो मेरा बाबा, ऐसी निश्चयबुद्धि आत्मा सदा अधिकारी हैसफलता की, विजय की। ऐसे ही ड्रामा में भी पूरापूरा निश्चय चाहिए। सफलता और समस्या दोनों प्रकार की बातें ड्रामा में आती हैं लेकिन समस्या के समय निश्चयबुद्धि की निशानी हैसमाधान स्वरूप। समस्या को सेकण्ड में समाधान स्वरूप द्वारा परिवर्तन कर देना। समस्या का काम है आना, निश्चयबुद्धि आत्मा का काम है समाधान स्वरूप से समस्या को परिवर्तन करना। क्यों? आप हर ब्राह्मण आत्मा ने ब्राह्मण जन्म लेते माया को चैलेन्ज किया है। किया है ना या भूल गये हो? चैलेन्ज है कि हम मायाजीत बनने वाले हैं। तो समस्या का स्वरूप, माया का स्वरूप है। जब चैलेन्ज किया है तो माया सामना तो करेगी ना! वह भिन्नभिन्न समस्याओं के रूप में आपकी चैलेन्ज को पूरा करने के लिए आती है। आपको निश्चयबुद्धि विजयी स्वरूप से पार करना है, क्यों? नथिंग न्यू। कितने बार विजयी बने हो? अभी एक बार संगम पर विजयी बन रहे हो वा अनेक बार बने हुए को रिपीट कर रहे हो? इसलिए समस्या आपके लिए नई बात नहीं है, नथिंग न्यू। अनेक बार विजयी बने हैं, बन रहे हैं और आगे भी बनते रहेंगे। यह है ड्रामा में निश्चयबुद्धि विजयी। और हैब्राह्मण परिवार में निश्चय, क्यों? ब्राह्मण परिवार का अर्थ ही है संगठन। छोटा परिवार नहीं है, ब्रह्मा बाप का ब्राह्मण परिवार सर्व परिवारों से श्रेष्ठ और बड़ा है। तो परिवार के बीच, परिवार के प्रीत की रीति निभाने में भी विजयी। ऐसा नहीं कि बाप मेरा, मैं बाबा का, सब कुछ हो गया, बाबा से काम है, परिवार से क्या काम! लेकिन यह भी निश्चय की विशेषता है। चार ही बातों में निश्चय, विजय आवश्यक है। परिवार भी सभी को कई बातों में मजबूत बनाता है। सिर्फ परिवार में यह स्मृति में रहे कि सब अपनेअपने नम्बरवार धारणा स्वरूप हैं। वैरायटी है। इसका यादगार 108 की माला है। सोचोकहाँ एक नम्बर और कहाँ 108वाँ नम्बर, क्यों बना? सब एक नम्बर क्यों नहीं बने? 16 हजार क्यों बना? कारण? वैरायटी संस्कार को समझ नॉलेजफुल बन चलना, निभाना, यही सक्सेसफुल स्टेज है। चलना तो पड़ता ही है। परिवार को छोड़कर कहाँ जायेंगे। नशा भी है ना कि हमारा इतना बड़ा परिवार है। तो बड़े परिवार में बड़ी दिल से हर एक के संस्कार को जानते हुए चलना, निर्माण होके चलना, शुभ भावना, शुभ कामना की वृत्ति से चलनायही परिवार के निश्चयबुद्धि विजयी की निशानी है। तो सभी विजयी हो ना? विजयी हैं?”

 

3.     “जब बाप समान बनना है तो एक है निराकार और दूसरा है अव्यक्त फरिश्ता। तो जब भी समय मिलता है सेकण्ड में बाप समान निराकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ, बाप समान बनना है तो निराकारी स्थिति बाप समान है। कार्य करते फरिश्ता बनकर कर्म करो, फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। कार्य का बोझ नहीं हो। कार्य का बोझ अव्यक्त फरिश्ता बनने नहीं देगा। तो बीचबीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज़ करो तो थकावट नहीं होगी। जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखाडबल लाइट। सेवा का भी बोझ नहीं। अव्यक्त फरिश्ता रूप। तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे। आत्मा भी निराकार है और आत्मा निराकार स्थिति में स्थित होगी तो निराकार बाप की याद सहज समान बना देगी।”

 

4.     “किसी भी प्रकार का मेरापनमेरा स्वभाव, मेरा संस्कार, मेरी नेचरकुछ भी मेरा है तो बोझ है और बोझ वाला उड़ नहीं सकता। यह मेरामेरा ही मैला बनाने वाला है इसलिए अब तेरातेरा कह स्वच्छ बनो। फरिश्ता माना ही मेरे पन का अंशमात्र नहीं। संकल्प में भी मेरेपन का भान आये तो समझो मैला हुआ। तो इस मैलेपन के बोझ को समाप्त कर, डबल लाइट बनो।”


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

×