Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 8th December 2024

 1.     “आप ब्राह्मणों के ऊपर परमात्म छत्रछाया है। जैसे वाटरप्रूफ कितना भी वाटर हो लेकिन वाटरप्रूफ द्वारा वाटरप्रूफ हो जाते हैं। ऐसे ही कितनी भी हलचल हो लेकिन ब्राह्मण आत्मायें परमात्म छत्रछाया के अन्दर सदा प्रूफ हैं। बेफिकर बादशाह हो ना! कि थोड़ाथोड़ा फिकर है, क्या होगा? नहीं। बेफिकर। स्वराज्य अधिकारी बन, बेफिकर बादशाह बन, अचलअडोल सीट पर सेट रहो। सीट से नीचे नहीं उतरो। अपसेट होना अर्थात् सीट पर सेट नहीं है तो अपसेट हैं। सीट पर सेट जो है वह स्वप्न में भी अपसेट नहीं हो सकता। मातायें क्या समझती हो? सीट पर सेट होना, बैठना आता है? हलचल तो नहीं होती ना! बापदादा कम्बाइन्ड है, जब सर्वशक्तिवान आपके कम्बाइन्ड है तो आपको क्या डर है! अकेले समझेंगे तो हलचल में आयेंगे। कम्बाइन्ड रहेंगे तो कितनी भी हलचल हो लेकिन आप अचल रहेंगे। ठीक है मातायें? ठीक है ना, कम्बाइन्ड हैं ना! अकेले तो नहीं? बाप की जिम्मेवारी है, अगर आप सीट पर सेट हो तो बाप की जिम्मेवारी है, अपसेट हो तो आपकी जिम्मेवारी है।”

 

2.    “चलते फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियां करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं कि मैं तो हूँ ही आत्मा। नहीं, स्मृति में इमर्ज हो। मर्ज रूप में रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलिंग पावर रहती है। मजा भी आता है, क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बारबार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा रही हूँ? जैसे राजा अपने कर्मचारियों को आर्डर में रखते हैं, आर्डर से कराते हैं, ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियां आर्डर में रहेंगी। माया के आर्डर में नहीं रहेंगी, आपके आर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया आर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी मुख की शक्ति माया के आर्डर में चल पड़ती है इसीलिए सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने आर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगेचाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य चलायेंगे। स्वराज्य अधिकारी की सीट से कभी भी नीचे नहीं आओ। अगर कर्मेन्द्रियां आर्डर पर रहेंगी तो हर शक्ति भी आपके आर्डर में रहेगी। जिस शक्ति की जिस समय आवश्यकता है उस समय जी हाजिर हो जायेगी। ऐसे नहीं काम पूरा हो जाए और आप आर्डर करो सहनशक्ति आओ, काम पूरा हो जाये फिर आवे। हर शक्ति आपके आर्डर पर जी हाजिर होगी क्योंकि यह हर शक्ति परमात्म देन है। तो परमात्म देन आपकी चीज़ हो गई। तो अपनी चीज़ को जैसे भी यूज़ करो, जब भी यूज़ करो, ऐसे यह सर्व शक्तियां आपके आर्डर पर रहेंगी, सर्व कर्मेन्द्रियां आपके आर्डर पर रहेंगी, इसको कहा जाता है स्वराज्य अधिकारी, मास्टर सर्वशक्तिवान।”

 

3.    “योग से विकर्म विनाश होंगे, पाप कर्म का बोझ भस्म होगा, सेवा से पुण्य का खाता जमा होगा। तो पुण्य का खाता जमा कर रहे हैं लेकिन पिछले जो कुछ संस्कार का बोझ है, वह भस्म योग ज्वाला से होगा। साधारण योग से नहीं। अभी क्या है, योग तो लगाते हैं लेकिन पाप भस्म होने का ज्वाला रूप नहीं है इसलिए थोड़ा टाइम खत्म होता है फिर निकल आता है इसलिए रावण को देखो, मारते हैं, जलाते हैं फिर हड्डियां भी पानी में डाल देते हैं। बिल्कुल भस्म हो जाए, पिछले संस्कार, कमजोर संस्कार बिल्कुल भस्म हो जाएं, भस्म नहीं हुए हैं। मरते हैं लेकिन भस्म नहीं होते हैं, मरने के बाद फिर जिंदा हो जाते हैं। संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन होगा। अभी संस्कारों की लीला चल रही है। संस्कार बीचबीच में इमर्ज होते हैं ना! नामनिशान खत्म हो जाए, संस्कार परिवर्तनयह है विशेष अण्डरलाइन की बात। संस्कार परिवर्तन नहीं हैं तो व्यर्थ संकल्प भी हैं। व्यर्थ समय भी है, व्यर्थ नुकसान भी है। होना तो है ही। संस्कार मिलन की महारास गाई हुई है। अभी रास होती है, महारास नहीं हुई है। (महारास क्यों नहीं होती हैं?) अण्डरलाइन नहीं है, दृढ़ता नहीं है। अलबेलापन भिन्नभिन्न प्रकार का है।”

 

4.    “कर्मयोगी आत्मा का हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा। अगर कोई भी कर्म युक्तियुक्त नहीं होता तो समझो योगयुक्त नहीं हैं। अगर साधारण वा व्यर्थ कर्म हो जाता है तो निरन्तर योगी नहीं कहेंगे। कर्मयोगी अर्थात् हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ कर्म की निशानी हैस्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसी आत्मा ही निरन्तर योगी बनती है।”


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