Key Points From Daily Murli – 21st January 2025
“प्रश्नः–
सारा दिन खुशी–खुशी में बीते, उसके लिए कौन–सी युक्ति रचनी चाहिए?
उत्तर:-
रोज़ अमृतवेले उठकर ज्ञान की बातों में रमण करो। अपने आपसे बातें करो। सारे ड्रामा के आदि–मध्य–अन्त का सिमरण करो, बाप को याद करो तो सारा दिन खुशी में बीतेगा। स्टूडेन्ट अपनी पढ़ाई की रिहर्सल करते हैं। तुम बच्चे भी अपनी रिहर्सल करो।”
1. “तुम भगवान के बच्चे हो ना। तुम जानते हो भगवान हमको राह दिखा रहे हैं। वह पुकारते रहते हैं कि हम अन्धेरे में हैं क्योंकि भक्ति मार्ग है ही अन्धियारा मार्ग। भक्त कहते हैं हम तुमसे मिलने के लिए भटक रहे हैं। कब तीर्थों पर, कब कहाँ दान–पुण्य करते, मन्त्र जपते हैं। अनेक प्रकार के मन्त्र देते हैं फिर भी कोई समझते थोड़ेही हैं कि हम अन्धेरे में हैं। सोझरा क्या चीज़ है – कुछ भी समझते नहीं, क्योंकि अन्धियारे में हैं। अभी तुम तो अन्धियारे में नहीं हो। तुम वृक्ष में पहले–पहले आते हो। नई दुनिया में जाकर राज्य करते हो, फिर सीढ़ी उतरते हो।”
2. “बाबा में भी यह सारा ज्ञान है ना। दुनिया में और कोई नहीं जानते। तो बच्चों को सवेरे उठकर एक तो बाप को याद करना है और ज्ञान का सिमरण करना है खुशी में। अभी हम सारे ड्रामा के आदि–मध्य–अन्त को जान चुके हैं।”
3. “सवेरे उठकर ऐसे–ऐसे ख्याल चलने चाहिए। हमको बाबा रावण पर जीत पहनाते हैं। ऐसी–ऐसी बातें सवेरे–सवेरे उठ अपने साथ करनी चाहिए तो आदत पड़ जायेगी। इस बेहद के नाटक को कोई नहीं जानते हैं। एक्टर होकर आदि–मध्य–अन्त को नहीं जानते हैं। अभी हम बाबा द्वारा लायक बन रहे हैं। बाबा अपने बच्चों को आप समान बनाते हैं। आप समान भी क्या, बाप तो बच्चों को अपने कन्धे पर चढ़ाते हैं। बाबा का कितना प्यार है बच्चों से। कितना अच्छी रीति समझाते हैं मीठे–मीठे बच्चों, मैं तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। मैं नहीं बनता हूँ, तुम बच्चों को बनाता हूँ। तुम बच्चों को गुल–गुल बनाकर फिर टीचर बन पढ़ाता हूँ। फिर सद्गति के लिए ज्ञान देकर तुमको शान्तिधाम–सुखधाम का मालिक बनाता हूँ। मैं तो निर्वाणधाम में बैठ जाता हूँ।“
4. “बच्चों को यह भी समझाना है कि हम कितने श्रेष्ठ धर्म वाले थे फिर कैसे धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बने हैं। माया गॉडरेज का ताला बुद्धि को लगा देती है इसलिए भगवान को कहते हैं आप बुद्धिवानों की बुद्धि हो, इनकी बुद्धि का ताला खोलो। अब तो बाप सम्मुख समझा रहे हैं। मैं ज्ञान का सागर हूँ, तुमको इन द्वारा समझाता हूँ। कौन–सा ज्ञान? यह सृष्टि चक्र के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान जो कोई भी मनुष्य दे न सके।“
5. “भगवान पढ़ाकर हमको भगवान भगवती बनाते हैं, ओहो! ऐसे बाप को जितना याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे। ऐसे–ऐसे विचार सागर मंथन करने की आदत डालनी चाहिए। दादा हमको इस बाप द्वारा वर्सा दे रहे हैं। खुद कहते हैं मैं इस रथ का आधार लेता हूँ। तुमको ज्ञान मिल रहा है ना। ज्ञान गंगायें ज्ञान सुनाकर पवित्र बनाती हैं कि गंगा का पानी? अब बाप कहते हैं – बच्चे, तुम भारत की सच्ची–सच्ची सेवा करते हो। वह सोशल वर्कर्स तो हद की सेवा करते हैं। यह है रूहानी सच्ची सेवा।“
6. “जैसे बाबा सवेरे उठकर विचार सागर मंथन करते हैं, बच्चों को भी फालो करना है।”
7. “माया और प्रकृति की आकर्षण से दूर रहो तो सदा हर्षित रहेंगे।“
8. “जब मन्सा में सदा शुभ भावना वा शुभ दुआयें देने का नेचुरल अभ्यास हो जायेगा तो मन्सा आपकी बिजी हो जायेगी। मन में जो हलचल होती है, उससे स्वत: ही किनारे हो जायेंगे। अपने पुरुषार्थ में जो कभी दिलशिकस्त होते हो वह नहीं होंगे। जादूमन्त्र हो जायेगा।”