Key Points From Daily Murli – 5th March 2025
2. “तुम अभी समझते हो हमको भगवान से फल मिल रहा है। भक्ति के दो फल हैं – एक मुक्ति, दूसरा जीवनमुक्ति। यह समझने की बड़ी महीन बातें हैं। जिन्होंने शुरू से लेकर बहुत भक्ति की होगी, वह ज्ञान अच्छी रीति लेंगे तो फल भी अच्छा पायेंगे। भक्ति कम की होगी तो ज्ञान भी कम लेंगे, फल भी कम पायेंगे। हिसाब है ना। नम्बरवार पद है ना। बाप कहते हैं – मेरा बनकर विकार में गिरा तो गोया मुझे छोड़ा। एकदम नीचे जाकर पड़ेंगे। कोई तो गिरकर फिर उठ पड़ते हैं। कोई तो बिल्कुल ही गटर में गिर जाते, बुद्धि बिल्कुल सुधरती ही नहीं। कोई को दिल अन्दर खाता है, दु:ख होता है – हमने भगवान से प्रतिज्ञा की और फिर उनको धोखा दे दिया, विकार में गिर पड़ा। बाप का हाथ छोड़ा, माया का बन पड़ा। वे फिर वायुमण्डल ही खराब कर देते हैं, श्रापित हो जाते हैं। बाप के साथ धर्मराज भी है ना। उस समय पता नहीं पड़ता है कि हम क्या करते हैं, बाद में पश्चाताप होता है। ऐसे बहुत होते हैं, किसका खून आदि करते हैं तो जेल में जाना पड़ता है, फिर पश्चाताप होता है – नाहेक उनको मारा। गुस्से में आकर मारते भी बहुत हैं। ढेर समाचार अखबारों में पड़ते हैं। तुम तो अखबार पढ़ते नहीं हो। दुनिया में क्या–क्या हो रहा है, तुमको मालूम नहीं पड़ता है। दिन–प्रतिदिन हालतें खराब होती जाती हैं। सीढ़ी नीचे उतरनी ही है। तुम इस ड्रामा के राज़ को जानते हो। बुद्धि में यह बात है कि हम बाबा को ही याद करें। कोई भी ऐसा छी–छी कर्तव्य न करें जिससे रजिस्टर खराब हो जाए। बाप कहते हैं मैं तुम्हारा टीचर हूँ ना। टीचर के पास स्टूडेन्ट की पढ़ाई का और चाल चलन का रिकार्ड रहता है ना। कोई की चाल बहुत अच्छी, कोई की कम, कोई की बिल्कुल खराब। नम्बरवार होते हैं ना। यह भी सुप्रीम बाप कितना ऊंच पढ़ाते हैं। वह भी हर एक की चाल–चलन को जानते हैं। तुम खुद भी जान सकते हो – हमारे में यह आदत है, इस कारण हम फेल हो जायेंगे। बाबा हर बात क्लीयर कर समझाते हैं। पूरी रीति पढ़ाई नहीं पढ़ेंगे, किसको दु:ख देंगे तो दु:खी होकर मरेंगे। पद भी भ्रष्ट होगा। सजायें भी बहुत खायेंगे।”
3. “मीठे बच्चे, अपनी और दूसरों की तकदीर बनानी है तो रहमदिल का संस्कार धारण करो। जैसे बाप रहमदिल है तब टीचर बनकर तुम्हें पढ़ाते हैं। कोई बच्चे अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं, इसमें रहमदिल बनना होता है। टीचर रहमदिल है ना। कमाई का रास्ता बताते हैं कि कैसे अच्छा पोजीशन तुम पा सकते हो। उस पढ़ाई में तो अनेक प्रकार के टीचर्स होते हैं। यह तो एक ही टीचर है। पढ़ाई भी एक ही है मनुष्य से देवता बनने की। इसमें मुख्य है पवित्रता की बात। पवित्रता ही सब मांगते हैं। बाप तो रास्ता बता रहे हैं परन्तु जिनकी तकदीर में ही नहीं है तो तदबीर क्या कर सकते!”
4. “तुमको हर एक बात बेहद की समझाई जाती है। तुम्हारा है बेहद का वैराग्य। यह भी तुमको सिखलाते हैं जबकि पतित दुनिया का विनाश, पावन दुनिया की स्थापना होनी है।”
5. “संन्यासियों के कभी मन्दिर नहीं बनाते हैं। मन्दिर हमेशा देवताओं के बनाते हैं। तुम कोई भक्ति नहीं करते हो। तुम योग में रहते हो। उनका तो ज्ञान ही है ब्रह्म तत्व को याद करने का। बस ब्रह्म में लीन हो जायें। परन्तु सिवाए बाप के वहाँ तो कोई ले जा न सके। बाप आते ही हैं संगमयुग पर। आकरके देवी–देवता धर्म की स्थापना करते हैं। बाकी सबकी आत्मायें वापिस चली जाती हैं क्योंकि तुम्हारे लिए नई दुनिया चाहिए ना। पुरानी दुनिया का कोई भी रहना नहीं चाहिए। तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो।”
6. “बाप कहते हैं तुम पतित बने हो इसलिए अब मुझे बुलाते हो कि आकर पावन बनाओ तो जरूर आयेंगे तब तो पावन दुनिया स्थापन होगी ना। तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है। युक्ति कितनी अच्छी बतलाते हैं। भगवानुवाच मनमनाभव। देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को तोड़ मामेकम् याद करो।”
7. “हम भी बिन्दी हैं, बाबा भी बिन्दी है, यह स्मृति में आना मुश्किल लगता है। यही यथार्थ रीति याद करना है। मोटी चीज़ तो है नहीं। बाप कहते हैं यथार्थ रूप में मैं बिन्दी हूँ इसलिए मैं जो हूँ, जैसा हूँ वह सिमरण करें – यह बड़ी मेहनत है।”
8. “वह तो कह देते परमात्मा ब्रह्म तत्व है और हम कहते हैं वह एकदम बिन्दी है। रात–दिन का फ़र्क है ना। ब्रह्म तत्व जहाँ हम आत्मायें रहती हैं, उनको परमात्मा कह देते। बुद्धि में यह रहना चाहिए – मैं आत्मा हूँ, बाबा का बच्चा हूँ, इन कानों से सुनता हूँ, बाबा इस मुख से सुनाते हैं कि मैं परम आत्मा हूँ, परे ते परे रहने वाला हूँ। तुम भी परे ते परे रहते हो परन्तु जन्म–मरण में आते हो, मैं नहीं आता हूँ।”
9. “बाप के पार्ट को भी समझा है। आत्मा कोई छोटी–बड़ी नहीं होती है। बाकी आइरन एज में आने से मैली बन जाती है। इतनी छोटी–सी आत्मा में सारा ज्ञान है। बाप भी इतना छोटा है ना। परन्तु उनको परम आत्मा कहा जाता है। वह ज्ञान का सागर है, तुमको आकर समझाते हैं। इस समय तुम जो पढ़ रहे हो कल्प पहले भी पढ़ा था, जिससे तुम देवता बने थे। तुम्हारे में सबसे खोटी तकदीर उन्हों की है जो पतित बन अपनी बुद्धि को मलीन बना देते हैं, क्योंकि उनमें धारणा हो नहीं सकती। दिल अन्दर खाती रहेगी। औरों को कह न सकें पवित्र बनो। अन्दर समझते हैं पावन बनते–बनते हमने हार खा ली, की कमाई सारी चट हो गई। फिर बहुत समय लग जाता है। एक ही चोट जोर से घायल कर देती है, रजिस्टर खराब हो जाता है। बाप कहेंगे तुम माया से हार गये, तुम्हारी तकदीर खोटी है। मायाजीत जगतजीत बनना है। जगतजीत महाराजा–महारानी को ही कहा जाता है। प्रजा को थोड़ेही कहेंगे। अभी दैवी स्वर्ग की स्थापना हो रही है। अपने लिए जो करेगा सो पायेगा। जितना पावन बन औरों को बनायेंगे, बहुत दान करने वाले को फल भी तो मिलता है ना।”
10. “चलते–चलते माया चमाट मार एकदम गिरा देती है। माया भी कम दुश्तर नहीं है। 8-10 वर्ष पवित्र रहा, पवित्रता पर झगड़ा हुआ, दूसरों को भी गिरने से बचाया और फिर खुद गिर पड़ा। तकदीर कहेंगे ना। बाप का बनकर फिर माया का बन जाते हैं तो दुश्मन हो गया ना। खुदा दोस्त की भी एक कहानी है ना। बाप आकर बच्चों को प्यार करते हैं, साक्षात्कार कराते हैं, बिगर कोई भक्ति करने के भी साक्षात्कार होता है। तो दोस्त बनाया ना। कितने साक्षात्कार होते थे फिर जादू समझ हंगामा करने लगे तो बन्द कर दिया फिर पिछाड़ी में तुम बहुत साक्षात्कार करते रहेंगे।”
11. “मनुष्य से देवता बनने के लिए मुख्य है पवित्रता इसलिए कभी भी पतित बन अपनी बुद्धि को मलीन नहीं करना है। ऐसा कर्म न हो जो दिल अन्दर खाती रहे, पश्चाताप करना पड़े।”
12. “बीजरूप स्टेज सबसे पावरफुल स्टेज है यही स्टेज लाइट हाउस का कार्य करती है, इससे सारे विश्व में लाइट फैलाने के निमित्त बनते हो। जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे वृक्ष को पानी मिल जाता है ऐसे जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते हो तो विश्व को लाइट का पानी मिलता है। लेकिन सारे विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए विश्व कल्याणकारी की पावरफुल स्टेज चाहिए। इसके लिए लाइट हाउस बनो न कि बल्ब। हर संकल्प में स्मृति रहे कि सारे विश्व का कल्याण हो।”
13. “परमात्म प्रत्यक्षता का आधार सत्यता है। सत्यता से ही प्रत्यक्षता होगी – एक स्वयं के स्थिति की सत्यता, दूसरी सेवा की सत्यता। सत्यता का आधार है – स्वच्छता और निर्भयता। इन दोनों धारणाओं के आधार से सत्यता द्वारा परमात्म प्रत्यक्षता के निमित्त बनो। किसी भी प्रकार की अस्वच्छता अर्थात् ज़रा भी सच्चाई सफाई की कमी है तो कर्तव्य की सिद्धि नहीं हो सकती।”