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Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 20th March 2025

 “प्रश्नः

बाप की पढ़ाई में तुम्हें कौनसी विद्या नहीं सिखाई जाती है?

उत्तर:-
भूत विद्या। किसी के संकल्पों को रीड करना, यह भूत विद्या है, तुम्हें यह विद्या नहीं सिखाई जाती। बाप कोई थॉट रीडर नहीं है। वह जानी जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल है। बाप आते हैं तुम्हें रूहानी पढ़ाई पढ़ाने, जिस पढ़ाई से तुम्हें 21 जन्मों के लिए विश्व की राजाई मिलती है।”

 

1.     “बच्चे जानते हैं हम जीव आत्मायें परमपिता परमात्मा के सम्मुख बैठे हैं। गाया जाता है आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल। अब मूलवतन में जब आत्मायें हैं तो अलग होने की बात नहीं उठती। यहाँ आने से जब जीव आत्मा बनते हैं तो परमात्मा बाप से सभी आत्मायें अलग होती हैं। परमपिता परमात्मा से अलग होकर यहाँ पार्ट बजाने आते हैं। आगे तो बिगर अर्थ ऐसे ही गाते थे। अभी तो बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा से हम अलग हो यहाँ पार्ट बजाने आते हैं। तुम ही पहलेपहले बिछुड़े हो तो शिवबाबा भी पहलेपहले तुमसे ही मिलते हैं। तुम्हारे खातिर बाप को आना पड़ता है। कल्प पहले भी इन बच्चों को ही पढ़ाया था जो फिर स्वर्ग के मालिक बनें। उस समय और कोई खण्ड नहीं था। बच्चे जानते हैं हम आदि सनातन देवीदेवता धर्म के थे जिसको डीटी रिलीजन, डीटी डिनायस्टी भी कहते हैं।”

 

2.    “तुम्हारी यह है रूहानी पढ़ाई। तुम्हारा बुद्धियोग शिवबाबा के साथ है, उनको ही नॉलेजफुल ज्ञान का सागर कहा जाता है। जानीजाननहार का यह मतलब नहीं है कि वह सबके दिलों को बैठ जानेगा कि इनके अन्दर क्या चल रहा है। वह जो थॉट रीडर होते हैं वो सब सुनाते हैं। उसको भूत विद्या कहा जाता है। यहाँ तो बाप पढ़ाते हैं, मनुष्य से देवता बनाने। गायन भी है मनुष्य से देवता. . . अभी तुम बच्चे समझते हो हम अभी ब्राह्मण बने हैं फिर दूसरे जन्म में देवता बनेंगे। आदि सनातन देवीदेवता ही गाये जाते हैं। शास्त्रों में तो ढेर कहानियाँ लिख दी हैं। यह तो बाप डायरेक्ट बैठ पढ़ाते हैं।”

 

3.    “भगवानुवाचभगवान ही ज्ञान का सागर, सुख का सागर, शान्ति का सागर है। तुम बच्चों को वर्सा देते हैं। यह पढ़ाई है तुम्हारी 21 जन्मों के लिए। तो कितना अच्छी रीति पढ़ना चाहिए। यह रूहानी पढ़ाई बाप एक ही बार आकर पढ़ाते हैं, नई दुनिया की स्थापना करने लिए। नई दुनिया में इन देवीदेवताओं का राज्य था। बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवीदेवता धर्म की स्थापना कर रहा हूँ। जब यह धर्म था तो और कोई धर्म नहीं थे। अभी और सब धर्म हैं इसलिए त्रिमूर्ति पर भी तुम समझाते होब्रह्मा द्वारा स्थापना एक धर्म की। अभी वह धर्म है नहीं। गाते भी हैं मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाही, आपेही तरस परोई . . . हमारे में कोई गुण नहीं कहते तो बुद्धि गॉड फादर की तरफ ही जाती है, उनको ही मर्सीफुल कहा जाता है। बाप आते ही हैं बच्चों के सब दु:खों को खलास कर 100 प्रतिशत सुख देने। कितना रहम करते हैं। तुम समझते हो बाबा के पास हम आये हैं तो बाप से पूरा सुख लेना है। वह है ही सुखधाम, यह है दु:खधाम। इस चक्र को भी अच्छी रीति समझना है। शान्तिधाम, सुखधाम को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। शान्तिधाम को याद करेंगे तो जरूर शरीर छोड़ना पड़े तब आत्मायें शान्तिधाम में जायेंगी। एक बाप के सिवाए और कोई की याद आये। एकदम लाइन क्लीयर चाहिए। एक बाप को याद करने से अन्दर खुशी का पारा चढ़ता है। इस पुरानी दुनिया में तो अल्पकाल क्षण भंगुर सुख है। यह साथ नहीं चल सकता। साथ यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही चलते हैं। यानी यह ज्ञान रत्नों की कमाई ही साथ चलती है जो फिर तुम 21 जन्म प्रालब्ध भोगेंगे।”

 

4.    “तुम बच्चे अभी सद्गति के लिए पढ़ाई पढ़ रहे हो। यह पढ़ाई है ही बिल्कुल शान्त में रहने की।”

 

5.    “काम चिता से उतर अब ज्ञान चिता पर बैठो। काम चिता से उतरो। अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। और कोई मनुष्य ऐसे कह सकें। मनुष्य को भगवान भी नहीं कहा जा सकता। तुम बच्चे जानते हो बाप ही पतितपावन है। वही आकर काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाते हैं। वह है रूहानी बाप। वह इनमें बैठ कहते हैं तुम भी आत्मा हो, औरों को भी यही समझाते रहो। बाप कहते हैंमनमनाभव। मनमनाभव कहने से ही स्मृति जायेगी।”

 

6.    “बुद्धि में याद रहना चाहिएकल हमने राज्य किया था। बाप ने राज्य दिया था फिर 84 जन्म लेते आये। अभी फिर बाबा आया हुआ है। तुम बच्चों में यह तो ज्ञान है ना। बाप ने यह ज्ञान दिया है। जब डीटी धर्म की स्थापना होती है तो बाकी सारे डेविल वर्ल्ड का विनाश होता है। यह बाप बैठ ब्रह्मा द्वारा सब बातें समझाते हैं। ब्रह्मा भी शिव का बच्चा है, विष्णु का भी राज़ समझाया है कि ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा बनता है। अभी तुम समझ गये हो हम ब्राह्मण हैं फिर देवता बनेंगे फिर 84 जन्म लेंगे। यह नॉलेज देने वाला एक ही बाप है तो फिर कोई मनुष्य से यह नॉलेज मिल कैसे सकती? इसमें सारी बुद्धि की बात है। बाप कहते हैं कि और सब तरफ से बुद्धि तोड़ो। बुद्धि ही बिगड़ती है। बाप कहते हैं कि मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। गृहस्थ व्यवहार में भल रहो। एम ऑबजेक्ट तो सामने खड़ी है। जानते हो हम पढ़कर यह बनेंगे। तुम्हारी पढ़ाई है ही संगमयुग की। अभी तुम इस तरफ हो, उस तरफ। तुम बाहर हो।”

 

7.    “तुम भी ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हो, जो कलियुग अन्त में हैं, फिर वही सतयुग आदि में जायेंगे। तुम ही पहलेपहले बाप से अलग हो पार्ट बजाने आये हो। हमारे में भी सब तो नहीं कहेंगे ना। यह भी मालूम पड़ जायेगा कौन पूरे 84 जन्म लेते हैं!”

 

8.    “योग को अग्नि कहा जाता है क्योंकि योग से ही आत्मा की अलाए (खाद) निकलती है। योग अग्नि से तमोप्रधान आत्मा सतोप्रधान बनती है। यदि आग ठण्डी होगी तो अलाए निकलेगी नहीं। याद को योग अग्नि कहा जाता है, जिससे विकर्म विनाश होते हैं। तो बाप कहते हैं तुमको कितना समझाता रहता हूँ। धारणा भी हो ना। अच्छा मनमनाभव। इसमें तो थकना नहीं चाहिए ना। बाप को याद करना भी भूल जाते हैं। यह पतियों का पति तुम्हारा ज्ञान से कितना श्रृंगार करते हैं। निराकार बाप कहते हैं और सबसे बुद्धियोग तोड़ मुझ अपने बाप को याद करो। बाप सभी का एक ही है। तुम्हारी अब चढ़ती कला होती है। कहते हैं नातेरे भाने सर्व का भला। बाप आये हैं सर्व का भला करने। रावण तो सबको दुर्गति में ले जाते हैं, राम सबको सद्गति में ले जाते हैं।”

 

9.    “बाप की याद से अपार सुखों का अनुभव करने के लिए बुद्धि की लाइन क्लीयर चाहिए। याद जब अग्नि का रूप ले तब आत्मा सतोप्रधान बनें।”

 

10.                  “बन्धनमुक्त की निशानी है सदा योगयुक्त। योगयुक्त बच्चे जिम्मेवारियों के बंधन वा माया के बन्धन से मुक्त होंगे। मन का भी बन्धन हो। लौकिक जिम्मेवारी तो खेल हैं, इसलिए डायरेक्शन प्रमाण खेल की रीति से हंसकर खेलो तो कभी छोटीछोटी बातों में थकेंगे नहीं। अगर बंधन समझते हो तो तंग होते हो। क्या, क्यों का प्रश्न उठता है। लेकिन जिम्मेवार बाप है आप निमित्त हो। इस स्मृति से बन्धनमुक्त बनो तो योगयुक्त बन जायेंगे।”

 


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