3rd April 2025
1. “मीठे बच्चे – तुम्हारा यह नया झाड़ बहुत मीठा है, इस मीठे झाड़ को ही कीड़े लगते हैं, कीड़ों को समाप्त करने की दवाई है मनमनाभव“
2. “चित्र तो तुमने बहुत बनाये हैं। बाबा पूछते हैं इन सब चित्रों में कौन–सा ऐसा चित्र है जिससे हम किसको भी समझा सकें कि यह है स्वर्ग में जाने का गेट? गोले (सृष्टि चक्र) के चित्र में स्वर्ग जाने का गेट सिद्ध होता है। यही राइट है। ऊपर में उस तरफ है नर्क का गेट, उस तरफ है स्वर्ग का गेट। बिल्कुल क्लीयर है। यहाँ से सब आत्मायें भागती हैं शान्तिधाम फिर आती हैं स्वर्ग में। यह गेट है। सारे चक्र को भी गेट नहीं कहेंगे। ऊपर में जहाँ संगम दिखाया है वह है पूरा गेट। जिससे आत्मायें निकल जाती हैं, फिर नई दुनिया में आती हैं। बाकी सब शान्तिधाम में रहती हैं। कांटा दिखाता है – यह नर्क है, वह स्वर्ग है। सबसे अच्छा फर्स्टक्लास समझाने का यह चित्र है। बिल्कुल क्लीयर है, गेट वे टू हेविन। यह बुद्धि से समझने की बात है ना। अनेक धर्मों का विनाश और एक धर्म की स्थापना हो रही है। तुम जानते हो हम सुखधाम में जायेंगे, बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे। गेट तो बड़ा क्लीयर है। यह गोला ही मुख्य चित्र है। इसमें नर्क का द्वार, स्वर्ग का द्वार बिल्कुल क्लीयर है। स्वर्ग के द्वार में जो कल्प पहले गये थे वही जायेंगे, बाकी सब शान्ति द्वार चले जायेंगे। नर्क का द्वार बन्द हो शान्ति और सुख का द्वार खुलता है। सबसे फर्स्टक्लास चित्र यह है। बाबा हमेशा कहते हैं त्रिमूर्ति, दो गोले और यह चक्र फर्स्टक्लास चित्र है। जो भी कोई आये उनको पहले इस चित्र पर दिखाओ स्वर्ग में जाने का यह गेट है। यह नर्क, यह स्वर्ग। नर्क का अभी विनाश होता है। मुक्ति का गेट खुलता है। इस समय हम स्वर्ग में जायेंगे बाकी सब शान्तिधाम में जायेंगे। कितना सहज है। स्वर्ग द्वार सभी तो नहीं जायेंगे। वहाँ तो इन देवी–देवताओं का ही राज्य था। तुम्हारी बुद्धि में है स्वर्ग द्वार चलने के लिए अभी हम लायक बने हैं। जितना लिखेंगे पढ़ेंगे होंगे नवाब, रुलेंगे पिलेंगे तो होंगे खराब। सबसे अच्छा चित्र यह गोले का है, बुद्धि से समझ सकते हैं एक बार चित्र देखा फिर बुद्धि से काम लिया जाता है। तुम बच्चों को सारा दिन यह ख्यालात चलने चाहिए कि कौन–सा चित्र मुख्य हो, जिस पर हम अच्छी रीति समझा सकते हैं। गेट वे टू हेवन – यह अंग्रेजी अक्षर बहुत अच्छा है।“
3. “आत्मा कहती है ओ गॉड फादर। परन्तु आत्मा क्या है, आत्मा अलग है, उनको कहते हैं परम आत्मा अर्थात् सुप्रीम, ऊंच ते ऊंच सुप्रीम सोल परम आत्मा। एक भी मनुष्य नहीं जिसको अपनी आत्मा का ज्ञान हो। मैं आत्मा हूँ, यह शरीर है। दो चीज़ तो हैं ना। यह शरीर 5 तत्वों का बना हुआ है। आत्मा तो अविनाशी एक बिन्दी है। वह क्या चीज़ से बनेंगी। इतनी छोटी बिन्दी है, साधू–सन्त आदि कोई को पता नहीं।“
4. “तुम जानते हो आत्मा बिन्दी है, परमात्मा भी बिन्दी है। बाकी हम आत्मायें पतित से पावन, पावन से पतित बनती है। वहाँ तो पतित आत्मा नहीं रहती है। वहाँ से सब पावन आते हैं फिर पतित बनते हैं। फिर बाप आकर पावन बनाते हैं, यह बहुत ही सहज ते सहज बात है। तुम जानते हो हमारी आत्मा 84 का चक्र लगाए अब तमोप्रधान बन गई है। हम ही 84 जन्म लेते हैं।“
5. “दुनिया में यह भी किसको पता नहीं कि आत्मा ही अच्छी वा बुरी बनती है। सभी आत्मायें बच्चे हैं।“
6. “आत्मा ही शरीर द्वारा बोलती है, सुनती है। यह बाबा रेज़गारी बताते हैं।“
7. “बीज और झाड़ है। तुम बच्चे जानते हो यह नया झाड़ है। आहिस्ते–आहिस्ते फिर वृद्धि को पाते हैं। तुम्हारे इस नये झाड़ को कीड़े भी बहुत लगते हैं क्योंकि यह नया झाड़ बहुत मीठा है। मीठे झाड़ को ही कीड़े आदि कुछ न कुछ लगते हैं फिर दवाई दे देते हैं। बाप ने भी मनमनाभव की दवाई बहुत अच्छी दी है। मनमनाभव न होने से कीड़े खा जाते हैं। कीड़े वाली चीज़ क्या काम आयेगी। वह तो फेंकी जाती है। कहाँ ऊंच पद, कहाँ नींच पद।“
8. “लेकिन पास विद् ऑनर होने के लिए सिर्फ एक सब्जेक्ट में नहीं, सब सब्जेक्ट में पूरा ध्यान देना है। ज्ञान भी चाहिए, चलन भी ऐसी चाहिए, दैवीगुण भी चाहिए। अटेन्शन रखना अच्छा है।“
9. “कभी भी ब्राह्मण परिवार में किसी कमजोर आत्मा को, तुम कमजोर हो – ऐसे नहीं कहना। आप रहमदिल विश्व कल्याणकारी बच्चों के मुख से सदैव हर आत्मा के प्रति शुभ बोल निकलने चाहिए, दिलशिकस्त बनाने वाले नहीं। चाहे कोई कितना भी कमजोर हो, उसे इशारा या शिक्षा भी देनी हो तो पहले समर्थ बनाकर फिर शिक्षा दो। पहले धरनी पर हिम्मत और उत्साह का हल चलाओ फिर बीज डालो तो सहज हर बीज का फल निकलेगा। इससे विश्व कल्याण की सेवा तीव्र हो जायेगी।“
10. “सदा हर कर्म करते हुए अपने को कर्मयोगी आत्मा अनुभव करो। कोई भी कर्म करते हुए याद भूल नहीं सकती। कर्म और योग – दोनों कम्बाइन्ड हो जाएं। जैसे कोई जुड़ी हुई चीज़ को अलग नहीं कर सकता, ऐसे कर्मयोगी बनो।“