Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 5th December 2024

 “मीठे बच्चेतुम्हें जो भी ज्ञान मिलता है, उस पर विचार सागर मंथन करो, ज्ञान मंथन से ही अमृत निकलेगा

 

“प्रश्नः
21
जन्मों के लिए मालामाल बनने का साधन क्या है?

उत्तर:-
ज्ञान रत्न। जितना तुम इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ज्ञान रत्न धारण करते हो उतना मालामाल बनते हो। अभी के ज्ञान रत्न वहाँ हीरे जवाहरात बन जाते हैं। जब आत्मा ज्ञान रत्न धारण करे, मुख से ज्ञान रत्न निकाले, रत्न ही सुने और सुनाये तब उनके हर्षित चेहरे से बाप का नाम बाला हो।”

 

1.   “इस ज्ञान से मनुष्य से देवता बनते हैं।

 

2.   “देवता जब मनुष्य बनते हैं तब भक्ति शुरू होती है। मनुष्य को विकारी, देवताओं को निर्विकारी कहा जाता है। देवताओं की सृष्टि को पवित्र दुनिया कहा जाता है। अभी तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। देवताओं में फिर यह ज्ञान होगा नहीं। देवतायें सद्गति में हैं, ज्ञान चाहिए दुर्गति वालों को। इस ज्ञान से ही दैवी गुण आते हैं। ज्ञान की धारणा वालों की चलन देवताई होती है। कम धारणा वालों की चलन मिक्स होती है। आसुरी चलन तो नहीं कहेंगे। धारणा नहीं तो हमारे बच्चे कैसे कहलायेंगे।

 

3.    “तो इस ज्ञान का विचार सागर मंथन करना चाहिए। स्टूडेन्ट विचार सागर मंथन कर ज्ञान को उन्नति में लाते हैं। तुमको यह ज्ञान मिलता है, उस पर अपना विचार सागर मंथन करने से अमृत निकलेगा। विचार सागर मंथन नहीं होगा तो क्या मंथन होगा? आसुरी विचार मंथन, जिससे किचड़ा ही निकलता है। अभी तुम ईश्वरीय स्टूडेन्ट हो। जानते हो मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई बाप पढ़ा रहे हैं।”

 

4.   “पुरूषोत्तम बन रहे हो तो वातावरण भी बहुत अच्छा होना चाहिए। छीछी बातें मुख से नहीं निकलनी चाहिए। नहीं तो कहा जायेगा कम दर्जे का है। वातावरण से झट पता पड़ जाता है। मुख से वचन ही दु: देने वाले निकलते हैं। तुम बच्चों को बाप का नाम बाला करना है। सदैव मुखड़ा हर्षित रहना चाहिए। मुख से सदैव रत्न ही निकलें। यह लक्ष्मीनारायण कितने हर्षितमुख हैं, इनकी आत्मा ने ज्ञान रत्न धारण किये थे। मुख से यह रत्न निकाले थे। रत्न ही सुनते सुनाते थे। कितनी खुशी रहनी चाहिए। अभी तुम जो ज्ञान रत्न लेते हो वह फिर सच्चे हीरेजवाहरात बन जाते हैं।

 

5.    “तो अपने को बहुतबहुत समझदार बनाना है। आसुरी गुणों को निकालना है। आसुरी गुण वाले की शक्ल ही ऐसी हो जाती है। क्रोध में तो लाल तांबा मिसल हो जाते हैं। काम विकार वाले तो एकदम काले मुँह वाले बन जाते हैं। श्रीकृष्ण को भी काला दिखाते हैं ना। विकारों के कारण ही गोरे से सांवरा बन गया। तुम बच्चों को हर एक बात का विचार सागर मंथन करना चाहिए।”

 

6.   “विकार में जाने से विकारी कर्म बन जाते हैं। विकार से विकर्म बनते हैं।

 

7.     “जो विचार सागर मंथन करते रहेंगे, उनको ही धारणा होगी। जो विचार सागर मंथन नहीं करते उन्हें बुद्धू कहेंगे। मुरली चलाने वाले का विचार सागर मंथन चलता रहेगाइस टॉपिक पर यहयह समझाना है। उम्मींद रखी जाती है, अभी नहीं समझेंगे परन्तु आगे चलकर जरूर समझेंगे। उम्मींद रखना माना सर्विस का शौक है, थकना नहीं है। भल कोई चढ़कर फिर अधम बना है, अगर आता है तो स्नेह से बिठायेंगे ना वा कहेंगे चले जाओ! हालचाल पूछना पड़ेइतने दिन कहाँ रहे, क्यों नहीं आये? कहेंगे ना माया से हार खा लिया। समझते भी हैं ज्ञान बड़ा अच्छा है। स्मृति तो रहती है ना। भक्ति में तो हार जीत पाने की बात ही नहीं। यह नॉलेज है, इसे धारण करना है। तुम जब तक ब्राह्मण बने तब तक देवता बन सको।”

 

8.   “बाप का नाम ही है शिव। बच्चों को सालिग्राम कहा जाता है। दोनों की पूजा होती है।

 

9.    “शिव को बाबा कह सभी याद करते हैं। दूसरा ब्रह्मा को भी बाबा कहते हैं। प्रजापिता है तो सारी प्रजा का पिता हुआ ना। ग्रेटग्रेट ग्रैन्ड फादर। यह सारा ज्ञान अभी तुम बच्चों में है। प्रजापिता ब्रह्मा तो कहते बहुत हैं परन्तु यथार्थ रीति जानते कोई नहीं। ब्रह्मा किसका बच्चा है? तुम कहेंगे परमपिता परमात्मा का। शिवबाबा ने इनको एडाप्ट किया है तो यह शरीरधारी हुआ ना। ईश्वर की सभी औलाद हैं। फिर जब शरीर मिलता है तो प्रजापिता ब्रह्मा की एडाप्शन कहते हैं। वह एडाप्शन नहीं। क्या आत्माओं को परमपिता परमात्मा ने एडाप्ट किया है? नहीं, तुमको एडाप्ट किया है। अभी तुम हो ब्रह्माकुमारकुमारियाँ। शिवबाबा एडाप्ट नहीं करते हैं। सभी आत्मायें अनादि अविनाशी हैं। सभी आत्माओं को अपनाअपना शरीर, अपनाअपना पार्ट मिला हुआ है, जो बजाना ही है। यह पार्ट ही अनादि अविनाशी परम्परा से चला आता है। उनका आदि अन्त नहीं कहा जाता है।”

 

10. “वातावरण को अच्छा रखने के लिए मुख से सदैव रत्न निकालने हैं। दु: देने वाले बोल निकलें यह ध्यान रखना है। हर्षितमुख रहना है।”

 

11.  “बापदादा ने सभी बच्चों को सर्वशक्तियां वर्से में दी हैं। याद की शक्ति का अर्थ हैमनबुद्धि को जहाँ लगाना चाहो वहाँ लग जाए। कैसे भी वायुमण्डल के बीच अपने मनबुद्धि को सेकण्ड में एकाग्र कर लो। परिस्थिति हलचल की हो, वायुमण्डल तमोगुणी हो, माया अपना बनाने का प्रयत्न कर रही हो फिर भी सेकण्ड में एकाग्र हो जाओऐसी कन्ट्रोलिंग पावर हो तब कहेंगे सर्वशक्ति सम्पन्न।”

 


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

×