Key Points From Daily Murli – 14th January 2025
1. “छोटा बच्चा महात्मा समान होता है। जैसे छोटे बच्चों को विकार आदि का पता नहीं रहता, वैसे वहाँ बड़ों को भी पता नहीं रहता कि विकार क्या चीज़ है। यह 5 भूत वहाँ होते ही नहीं। विकारों का जैसेकि पता ही नहीं है। इस समय है ही रात। काम की चेष्ठा भी रात को ही होती है। देवतायें हैं दिन में तो काम की चेष्ठा होती नहीं। विकार कोई होते नहीं। अभी रात में सब विकारी हैं। तुम जानते हो दिन होते ही हमारे सब विकार चले जायेंगे। पता नहीं रहता कि विकार क्या चीज़ हैं। यह रावण के विकारी गुण हैं। यह है विशश वर्ल्ड। वाइसलेस वर्ल्ड में विकार की कोई बात नहीं होती। उनको कहा ही जाता है ईश्वरीय राज्य। अभी है आसुरी राज्य।“
2. “तुम बच्चों को यह ज्ञान सिमरण कर अतीन्द्रिय सुख में रहना है। बहुत प्वाइंट्स हैं। परन्तु बाबा समझते हैं माया घड़ी–घड़ी भुला देती है। तो यह याद रहना चाहिए कि शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं। वह है ऊंच ते ऊंच। हमको अब वापस घर जाना है। कितनी सहज बातें हैं। सारा मदार है याद पर। हमको देवता बनना है। दैवी गुण भी धारण करने हैं। 5 विकार हैं भूत। काम का भूत, क्रोध का भूत, देह–अभिमान का भूत भी होता है। हाँ, कोई में जास्ती भूत होते हैं, कोई में कम। तुम ब्राह्मण बच्चों को पता है यह 5 बड़े भूत हैं। नम्बरवन है काम का भूत, सेकण्ड नम्बर है क्रोध का भूत। कोई रफढफ बोलता है तो बाप कहते हैं यह क्रोधी है। यह भूत निकल जाना चाहिए। परन्तु भूत निकलना बड़ा मुश्किल है। क्रोध एक–दो को दु:ख देता है। मोह में बहुतों को दु:ख नहीं होगा। जिसको मोह है उनको ही दु:ख होगा इसलिए बाप समझाते हैं इन भूतों को भगाओ। हर बच्चे को विशेष पढ़ाई और दैवीगुणों पर अटेन्शन देना है। कई बच्चों में तो क्रोध का अंश भी नहीं है। कोई तो क्रोध में आकर बहुत लड़ते हैं। बच्चों को ख्याल करना चाहिए हमको दैवीगुण धारण कर देवता बनना है। कभी गुस्से से बात नहीं करनी चाहिए। कोई गुस्सा करता है तो समझो इनमें क्रोध का भूत है। वह जैसे भूतनाथ–भूतनाथिनी बन जाते हैं, ऐसे भूत वालों से कभी बात नहीं करनी चाहिए। एक ने क्रोध में आकर बात की फिर दूसरे में भी भूत आ गया तो भूत आपस में लड़ पड़ेंगे। भूतनाथिनी अक्षर बड़ा छी–छी है। भूत की प्रवेशता नहीं हो जाए इसलिए मनुष्य किनारा करते हैं। भूत के सामने खड़ा भी नहीं होना चाहिए, नहीं तो प्रवेशता हो जायेगी। बाप आकर आसुरी गुण निकाल दैवी–गुण धारण कराते हैं। बाप कहते हैं मैं आया हूँ दैवीगुण धारण कराए देवता बनाने। बच्चे जानते हैं हम दैवीगुण धारण कर रहे हैं। देवताओं के चित्र भी सामने हैं। बाबा ने समझाया है क्रोध वाले से एकदम किनारा कर लो। अपने को बचाने की युक्ति चाहिए। हमारे में क्रोध न आ जाए, नहीं तो सौ गुणा पाप पड़ जायेगा। कितनी अच्छी समझानी बाप बच्चों को देते हैं। बच्चे भी समझते हैं – बाबा हूबहू कल्प पहले मुआफिक समझाते हैं, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझते ही रहेंगे। अपने ऊपर भी रहम करना है, दूसरे पर भी रहम करना है। कोई अपने पर रहम नहीं करते, दूसरे पर करते हैं तो वह ऊंच चढ़ जाते हैं, खुद रह जाते हैं। खुद विकारों पर जीत पहनते नहीं, दूसरे को समझाते हैं, वह जीत पहन लेते हैं। ऐसे भी वन्डर होता है।”
3. “ज्ञान का सिमरण कर अतीन्द्रिय सुख में रहना है। किसी से भी रफढफ बातचीत नहीं करनी है। कोई गुस्से से बात करे तो उससे किनारा कर लेना है।”
4. “चलते फिरते सदैव अपने को निराकारी आत्मा और कर्म करते अव्यक्त फरिश्ता समझो तो सदा खुशी में ऊपर उड़ते रहेंगे। फरिश्ता अर्थात् ऊंची स्टेज पर रहने वाला। इस देह की दुनिया में कुछ भी होता रहे लेकिन साक्षी हो सब पार्ट देखते रहो और सकाश देते रहो। सीट से उतरकर सकाश नहीं दी जाती। ऊंची स्टेज पर स्थित होकर वृत्ति, दृष्टि से सहयोग की, कल्याण की सकाश दो, मिक्स होकर नहीं तब किसी भी प्रकार के वातावरण से सेफ रह बाप समान अव्यक्त फरिश्ता भव के वरदानी बनेंगे।”