Key Points From Daily Murli – 16th February 2025
2. “आज के समय अनुसार सर्व आत्माओं को शक्तियों द्वारा पालना की आवश्यकता है। जानते हो आजकल आत्माओं में अशान्ति और दु:ख की लहर छाई हुई है। तो आप पूर्वज और पूज्य आत्माओं को अपने वंशावली के ऊपर रहम आता है? जैसे जब कोई विशेष अशान्ति का वायुमण्डल होता है तो विशेष रूप से मिलेट्री या पुलिस अलर्ट हो जाती है। ऐसे ही आजकल के वातावरण में आप पूर्वज भी विशेष सेवा के अर्थ स्वयं को निमित्त समझते हो! सारे विश्व की आत्माओं के निमित्त हैं, यह स्मृति रहती है? सारे विश्व की आत्माओं को आज आपके सकाश की आवश्यकता है। ऐसे बेहद के विश्व की पूर्वज आत्मा अपने को अनुभव करते हो? विश्व की सेवा याद आती है वा अपने सेन्टर्स की सेवा याद आती है? आज आत्मायें आप पूर्वज देव आत्माओं को पुकार रही हैं। हर एक अपने–अपने भिन्न–भिन्न देवियां वा देवताओं को पुकार रहे हैं – आओ, क्षमा करो, कृपा करो। तो भक्तों का आवाज सुनने आता है? आता है सुनने या नहीं? कोई भी धर्म की आत्मायें हैं, जब उनसे मिलते हो तो अपने को सर्व आत्माओं के पूर्वज समझकर मिलते हो? ऐसे अनुभव होता है कि यह भी हम पूर्वज की ही टाल–टालियां हैं! इन्हों को भी सकाश देने वाले आप पूर्वज हो। अपने कल्प वृक्ष का चित्र सामने लाओ, अपने को देखो आपका स्थान कहाँ है! जड़ में भी आप हो, तना भी आप हो। साथ में परमधाम में भी देखो आप पूर्वज आत्माओं का स्थान बाप के साथ समीप का है। जानते हो ना! इसी नशे से कोई भी आत्मा से मिलते हो तो हर धर्म की आत्मा आपको यह हमारे हैं, अपने हैं, उस दृष्टि से देखते हैं। अगर उस पूर्वज के नशे से, स्मृति से, वृत्ति से, दृष्टि से मिलते हो, तो उन्हों को भी अपनेपन का आभास होता है क्योंकि आप सर्व के पूर्वज हो, सबके हो। ऐसी स्मृति से सेवा करने से हर आत्मा अनुभव करेगी कि यह हमारे ही पूर्वज वा ईष्ट फिर से हमें मिल गये।”
3. “बापदादा अभी सभी बच्चों को समय के सरकमस्टांश अनुसार बेहद की सेवा में सदा बिजी देखने चाहते हैं क्योंकि सेवा में बिजी रहने के कारण अनेक प्रकार की हलचल से बच जाते हैं। लेकिन जब भी सेवा करते हो, प्लैन बनाते हो और प्लैन अनुसार प्रैक्टिकल में भी आते हो, सफलता भी प्राप्त करते हो। लेकिन बापदादा चाहते हैं कि एक समय पर तीनों सेवा इकट्ठी हो, सिर्फ वाचा नहीं हो, मन्सा भी हो, वाचा भी हो और कर्मणा अर्थात् सम्बन्ध–सम्पर्क में आते हुए भी सेवा हो। सेवा का भाव, सेवा की भावना हो। इस समय वाचा के सेवा की परसेन्टेज़ ज्यादा है, मन्सा है लेकिन वाचा की परसेन्टेज़ ज्यादा है। एक ही समय पर तीनों सेवा साथ–साथ होने से सेवा में सफलता और ज्यादा होगी।”
4. “अभी बापदादा सभी बच्चों को सदा निर्विघ्न स्वरूप में देखने चाहते हैं, क्यों? जब आप निमित्त बने हुए निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहो तब विश्व की आत्माओं को सर्व समस्याओं से निर्विघ्न बना सको। इसके लिए विशेष दो बातों पर अण्डरलाइन करो। करते भी हो लेकिन और अण्डरलाइन करो। एक तो हर एक आत्मा को अपने आत्मिक दृष्टि से देखो। आत्मा के ओरीज्नल संस्कार के स्वरूप में देखो। चाहे कैसे भी संस्कार वाली आत्मा है लेकिन आपकी हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, परिवर्तन की श्रेष्ठ भावना, उनके संस्कार को थोड़े समय के लिए परिवर्तन कर सकती है। आत्मिक भाव इमर्ज करो। जैसे शुरू–शुरू में देखा तो संगठन में रहते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति, आत्मा–आत्मा से मिल रही है, बात कर रही है, इस दृष्टि से फाउण्डेशन कितना पक्का हो गया। अभी सेवा के विस्तार में, सेवा के विस्तार के सम्बन्ध में आत्मिक भाव से चलना, बोलना, सम्पर्क में आना मर्ज हो गया है। खत्म नहीं हुआ है लेकिन मर्ज हो गया है। आत्मिक स्वमान, आत्मा को सहज सफलता दिलाता है क्योंकि आप सभी कौन आकर इकट्ठे हुए हो? वही कल्प पहले वाले देव आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें इकट्ठे हुए हो। ब्राह्मण आत्मा के रूप में भी सभी श्रेष्ठ आत्मायें हो, देव आत्माओं के हिसाब से भी श्रेष्ठ आत्मायें हो। उसी स्वरूप से सम्बन्ध–सम्पर्क में आओ। हर समय चेक करो – मुझ देव आत्मा, ब्राह्मण आत्मा का श्रेष्ठ कर्तव्य, श्रेष्ठ सेवा क्या है? “दुआओं देना और दुआयें लेना।” आपके जड़ चित्र क्या सेवा करते हैं? कैसी भी आत्मा हो लेकिन दुआयें लेने जाते, दुआयें लेकर आते। और कोई भी अगर पुरुषार्थ में मेहनत समझते हैं तो सबसे सहज पुरुषार्थ है, सारा दिन दृष्टि, वृत्ति, बोल, भावना सबसे दुआयें दो, दुआयें लो। आपका टाइटल है, वरदान ही है महादानी, सेवा करते, कार्य में सम्बन्ध–सम्पर्क में आते सिर्फ यही कार्य करो – दुआयें दो और दुआयें लो। यह मुश्किल है क्या? कि सहज है? जो समझते हैं सहज है, वह हाथ उठाओ। कोई आपका आपोजीशन करे तो? तो भी दुआ देंगे? देंगे? इतनी दुआओं का स्टॉक है आपके पास? आपोजीशन तो होगी क्योंकि आपोजीशन ही पोजीशन तक पहुंचाती है। देखो, सबसे ज्यादा आपोजीशन ब्रह्मा बाप की हुई। हुई ना? और पोजीशन किसने नम्बरवन पाई? ब्रह्मा ने पाई ना! कुछ भी हो लेकिन मुझे ब्रह्मा बाप समान दुआयें देनी हैं। क्या ब्रह्मा बाप के आगे व्यर्थ बोलने, व्यर्थ करने वाले नहीं थे? लेकिन ब्रह्मा बाप ने दुआयें दी, दुआयें ली, समाने की शक्ति रखी। बच्चा है, बदल जायेगा। ऐसे ही आप भी यही वृत्ति दृष्टि रखो – यह कल्प पहले वाले हमारे ही परिवार के, ब्राह्मण परिवार के हैं। मुझे बदल इसको भी बदलना है। यह बदले तो मैं बदलूं, नहीं। मुझे बदलके बदलना है, मेरी जिम्मेवारी है। तब दुआ निकलेगी और दुआ मिलेगी।”
5. “अभी समय जल्दी से परिवर्तन की ओर जा रहा है, अति में जा रहा है लेकिन समय परिवर्तन के पहले आप विश्व परिवर्तक श्रेष्ठ आत्मायें स्व परिवर्तन द्वारा सर्व के परिवर्तन के आधारमूर्त बनो। आप भी विश्व के आधारमूर्त, उद्धारमूर्त हो। हर एक आत्मा लक्ष्य रखो – मुझे निमित्त बनना है। सिर्फ तीन बातों का स्व में संकल्प मात्र भी न हो, यह परिवर्तन करो। एक – पर–चिन्तन। दूसरा – परदर्शन। स्वदर्शन के बजाए परदर्शन नहीं। तीसरा – परमत या परसंग, कुसंग। श्रेष्ठ संग करो क्योंकि संगदोष बहुत नुकसान करता है।”
6. “पहले भी बापदादा ने कहा था – एक पर–उपकारी बनो और यह तीन पर काट दो। पर दर्शन, पर चिंतन, परमत अर्थात् कुसंग, पर का फालतू संग। पर–उपकारी बनो तब ही दुआयें मिलेंगी और दुआयें देंगे। कोई कुछ भी दे लेकिन आप दुआयें दो। इतनी हिम्मत है? है हिम्मत? तो बापदादा चारों ओर के सर्व सेन्टर्स वाले बच्चों को कहते हैं – अगर आप सब बच्चों ने हिम्मत रखी, कोई कुछ भी दे लेकिन हमें दुआयें देनी हैं, तो बापदादा इस वर्ष एक्स्ट्रा आपको हिम्मत के, उमंग के कारण मदद देंगे। एक्स्ट्रा मदद देंगे। लेकिन दुआयें देंगे तो।”
7. “निमित्त भाव, यह गुणों की खान है। सिर्फ हर समय निमित्त भाव आ जाए तो और सभी गुण सहज आ सकते हैं क्योंकि निमित्त भाव में मैं पन नहीं है और मैं पन ही हलचल में लाता है। निमित्त बनने से मेरा पन भी खत्म, तेरा, तेरा हो जाता है। सहजयोगी बन जाते हैं। तो सभी का दादियों से प्यार है, बापदादा से प्यार है, तो प्यार का रिटर्न है – विशेषताओं को समान बनाना। तो ऐसे लक्ष्य रखो। विशेषताओं को समान बनाना है। किसी में भी कोई विशेषता देखो, विशेषता को भले फालो करो। आत्मा को फालो करने में दोनों दिखाई देंगे। विशेषता को देखो और उसमें समान बनो।”
8. “जो निश्चयबुद्धि बच्चे हैं वह कभी कैसे वा ऐसे के विस्तार में नहीं जाते। उनके निश्चय की अटूट रेखा अन्य आत्माओं को भी स्पष्ट दिखाई देती है। उनके निश्चय के रेखा की लाइन बीच–बीच में खण्डित नहीं होती। ऐसी रेखा वाले के मस्तक में अर्थात् स्मृति में सदा विजय का तिलक नज़र आयेगा। वे जन्मते ही सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी होंगे। सदा ज्ञान रत्नों से खेलने वाले होंगे। सदा याद और खुशी के झूले में झूलते हुए जीवन बिताने वाले होंगे। यही है नम्बरवन भाग्य की रेखा।”