Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

November 2024 – Key Points from Daily Murli

2nd November 2024

  1. जैसा बाप वैसे बच्चे होते हैं।
  2. सारा मदार पुरूषार्थ पर है। पुरूषार्थ कर जितना ऊंच पद लेना हो ले सकते हो।
  3. वह है बेहद का बाप, बेहद सुख देने वाला। समझाते हैं सतोप्रधान बनने से ही तुम बेहद का सुख पा सकेंगे। सतो बनेंगे तो कम सुख। रजो बनेंगे तो उससे कम सुख। हिसाब सारा बाप बतला देते हैं।
  4. यह बहुत ऊंच था फिर इनके ही बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में मैंने प्रवेश किया है। यह अच्छी रीति याद करो, भूलो नहीं। माया भुलाती बहुतों को है।
  5. पवित्र या तो योगबल से होना है या फिर सजायें खाकर जायेंगे। सबका हिसाबकिताब चुक्तू जरूर होना है।
  6. जितनाजितना तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते जायेंगे, उतना अन्दर में तुमको खुशी भी होगी।
  7. यह बाबा बहुत अनुभवी है। बाप कहते हैं मैं यह सब नहीं जानता। मैं तो ऊपर में रहता हूँ। यह सब बातें यह ब्रह्मा तुमको सुनाते हैं। यह अनुभवी है, मैं तो मनमनाभव की बातें ही सुनाता हूँ और सृष्टि चक्र का राज़ समझाता हूँ, जो यह नहीं जानते। यह अपना अनुभव अलग समझाते हैं, मैं इन बातों में नहीं जाता। मेरा पार्ट है सिर्फ तुमको रास्ता बताना। मैं बाप, टीचर, गुरू हूँ। टीचर बन तुमको पढ़ाता हूँ, बाकी इसमें कृपा आदि की कोई बात नहीं। पढ़ाता हूँ फिर साथ में ले जाने वाला हूँ। इस पढ़ाई से ही सद्गति होती है। मैं आया ही हूँ तुमको ले जाने।
  8. पुरूषार्थ हमेशा ऊंच बनने का किया जाता हैहम लक्ष्मीनारायण बनें।
  9. किसी विशेष कार्य में मददगार बनना ही दुआओं की लिफ्ट लेना है। 

3rd November 2024

  1. ब्राह्मण जीवन की पर्सनाल्टी प्युरिटी है और प्युरिटी ही रूहानी रॉयल्टी है। तो आदि अनादि, आदि मध्य और अन्त सारे कल्प में यह रूहानी रॉयल्टी चलती रही है।
  2. प्युरिटी की वृत्ति हैशुभ भावना, शुभ कामना। कोई कैसा भी हो लेकिन पवित्र वृत्ति अर्थात् शुभ भावना, शुभ कामना और पवित्र दृष्टि अर्थात् सदा हर एक को आत्मिक रूप में देखना वा फरिश्ता रूप में देखना। तो वृत्ति, दृष्टि और तीसरा है कृति अर्थात् कर्म में, तो कर्म में भी सदा हर आत्मा को सुख देना और सुख लेना। यह है प्युरिटी की निशानी। वृत्ति, दृष्टि और कृति तीनों में यह धारणा हो।
  3. कोई क्या भी करता है, दु: भी देता है, इन्सल्ट भी करता है, लेकिन हमारा कर्तव्य क्या है? क्या दु: देने वाले को फालो करना है या बापदादा को फालो करना है? फालो फादर है ना! यह सोचो मेरा कर्तव्य क्या है! उसका कर्तव्य देख अपना कर्तव्य नहीं भूलो। वह गाली दे रहा है, आप सहनशील देवी, सहनशील देव बन जाओ। आपकी सहनशीलता से गाली देने वाले भी आपको गले लगायेंगे। सहनशीलता में इतनी शक्ति है, लेकिन थोड़ा समय सहन करना पड़ता है।
  4. अभी टीचर्स मिलकरके यह प्लैन बनाओ कि अपने चलन और चेहरे से बाप को प्रत्यक्ष कैसे करें? दुनिया वाले कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है और आप कहते हो नहीं है। लेकिन बापदादा कहते हैं कि अभी समय प्रमाण हर टीचर में बाप प्रत्यक्ष दिखाई दे तो सर्वव्यापी दिखाई देगा ना! जिसको देखे उसमें बाप ही दिखाई दे। आत्मा, परमात्मा के आगे छिप जाये और परमात्मा ही दिखाई दे।
  5. बापदादा ने सभी बच्चों को तीन स्मृतियों का तिलक दिया है, एक स्व की स्मृति फिर बाप की स्मृति और श्रेष्ठ कर्म के लिए ड्रामा की स्मृति। जिन्हें यह तीनों स्मृतियां सदा हैं उनकी स्थिति भी श्रेष्ठ है। आत्मा की स्मृति के साथ बाप की स्मृति और बाप के साथ ड्रामा की स्मृति अति आवश्यक है क्योंकि कर्म में अगर ड्रामा का ज्ञान है तो नीचे ऊपर नहीं होंगे। जो भी भिन्नभिन्न परिस्थितियां आती हैं, उसमें अचलअडोल रहेंगे।

4th November 2024

  1. मीठे बच्चेअपनी खामियां निकालनी हैं तो सच्चे दिल से बाप को सुनाओ, बाबा तुम्हें कमियों को निकालने की युक्ति बतायेंगे
  2. अपने अन्दर में देखो कोई खामी तो नहीं है? क्योंकि तुम सबको परफेक्ट बनना है। बाप आते ही हैं परफेक्ट बनाने के लिए इसलिए एम ऑब्जेक्ट का चित्र भी सामने रखा है।
  3. वह जिस्मानी विद्या पढ़ाने वाले टीचर आदि तो इस समय सब विकारी हैं। यह (लक्ष्मीनारायण) सम्पूर्ण निर्विकारियों का सैम्पुल है। आधाकल्प तुमने इन्हों की महिमा की है। तो अब अपने से पूछोहमारे में क्याक्या खामियां हैं, जिनको निकाल हम अपनी उन्नति करें? और बाप को बतावें कि बाबा यह खामी है, जो हमसे निकलती नहीं है, कोई उपाय बताओ।
  4. यह 5 विकारों रूपी भूत जन्मजन्मान्तर के हैं। देखना चाहिए हमारे में क्या भूत हैं? उसको निकालने लिए फिर राय लेनी चाहिए। आंखें भी बहुत धोखा देने वाली हैं, इसलिए बाप समझाते हैं अपने को आत्मा समझ दूसरे को भी आत्मा समझने की प्रैक्टिस डालो। इस युक्ति से तुम्हारी यह बीमारी निकल जायेगी। हम सब आत्मायें तो आत्मा भाईभाई ठहरे। शरीर तो है नहीं। यह भी जानते हो हम आत्मायें सब वापिस जाने वाली हैं। तो अपने को देखना है हम सर्वगुण सम्पन्न बने हैं? नहीं तो हमारे में क्या अवगुण हैं? तो बाप भी उस आत्मा को बैठ देखते हैं, इनमें यह खामी है तो उनको करेन्ट देंगे। इस बच्चे का यह विघ्न निकल जाए। अगर सर्जन से ही छिपाते रहेंगे तो कर ही क्या सकते? तुम अपने अवगुण बताते रहेंगे तो बाप भी राय देंगे। जैसे तुम आत्मायें बाप को याद करती होबाबा, आप कितने मीठे हो! हमको क्या से क्या बना देते हो! बाप को याद करते रहेंगे तो भूत भागते रहेंगे। कोई कोई भूत है जरूर। बाप सर्जन को बताओ, बाबा हमको इनकी युक्ति बताओ। नहीं तो बहुत घाटा पड़ जायेगा, सुनाने से बाप को भी तरस पड़ेगायह माया के भूत इनको तंग करते हैं। भूतों को भगाने वाला तो एक ही बाप है। युक्ति से भगाते हैं।
  5. तुम बच्चों के लिए मुख्य है याद की यात्रा। याद में अच्छी रीति रहेंगे तो तुम जो भी मांगो मिल सकता है। प्रकृति दासी बन जाती है। उनकी शक्ल आदि भी ऐसी खींचने वाली रहती है, कुछ भी मांगने की दरकार नहीं।
  6. आत्मघात नहीं होता है, जीवघात होता है। आत्मा तो है ही, वह जाकर दूसरा जीवन अर्थात् शरीर लेती है।
  7. सर्विस में सक्सेस होने के लिए अन्दर में कोई भी माया का भूत हो।
  8. सदा यह स्मृति रहे कि विजय की भावी टल नहीं सकती, ऐसे निश्चयबुद्धि बच्चे, क्या हुआ, क्यों हुआइन सब प्रश्नों से भी पार सदा निश्चिंत, सदा हर्षित रहते हैं।
  9. जो भी टाइम मिलें अपने से बातें करनी चाहिए। बहुत टाइम है, 8 घण्टा धन्धा आदि करो। 8 घण्टा आराम भी करो। बाकी 8 घण्टा यह बाप से रूहरिहान कर फिर जाकर रूहानी सर्विस करनी है।

5th November 2024

  1. एक है रूहानी बाप की श्रीमत, दूसरी है रावण की आसुरी मत। 
  2. आसुरी मत जबसे मिलती है, तुम नीचे गिरते ही आते हो।
  3. श्रीमत तुम बच्चों को मिलती है फिर से श्रेष्ठ बनने के लिए। तुम यहाँ आये ही हो श्रेष्ठ बनने के लिए।
  4. पुरूषार्थ करने लगते हैं तो माया के विघ्न भी पड़ते हैं। रावण पर जीत पानी होती है। सारी सृष्टि पर इस रावण का राज्य है। अभी तुम समझते हो हम योगबल से रावण पर हर कल्प जीत पाते आये हैं।
  5. भक्ति में कनरस बहुत मिलता है इसलिए छोड़ते नहीं।
  6. यह बाबा भी जानते हैं हमने अपना यह शरीर रूपी मकान किराये पर दिया है। यह मकान है ना। इसमें आत्मा रहती है। हमको बहुत फखुर रहता हैभगवान को हमने किराये पर मकान दिया है! ड्रामा प्लेन अनुसार और कोई मकान उनको लेना ही नहीं है। कल्पकल्प यह मकान ही लेना पड़ता है। इनको तो खुशी होती है ना। परन्तु फिर हंगामा भी कितना मचा। यह बाबा हंसीकुड़ी में कब बाबा को कहते हैंबाबा, आपका रथ बना तो हमको इतनी गाली खानी पड़ती है। बाप कहते हैं सबसे जास्ती गाली मुझे मिली। अब तुम्हारी बारी है। ब्रह्मा को कब गाली मिली नहीं हैं। अब बारी आयी है। रथ दिया है यह तो समझते हैं ना तो जरूर बाप से मदद भी मिलेगी। फिर भी बाबा कहते हैं बाप को निरन्तर याद करना, इसमें तुम बच्चे इनसे भी जास्ती तीखे जा सकते हो क्योंकि इनके ऊपर तो मामला बहुत हैं। भल ड्रामा कहकर छोड़ देते हैं फिर भी कुछ लैस जरूर आती है। यह बिचारे बहुत अच्छी सर्विस करते थे। यह संगदोष में खराब हो गये। कितनी डिससर्विस होती है। ऐसाऐसा काम करते हैं, लैस जाती है। उस समय यह नहीं समझते कि यह भी ड्रामा बना हुआ है। यह फिर बाद में ख्याल आता है। यह तो ड्रामा में नूँध है ना। माया अवस्था को बिगाड़ देती है तो बहुत डिस सर्विस हो जाती है। कितना अबलाओं आदि पर अत्याचार हो जाते हैं। यहाँ तो खुद के बच्चे ही कितनी डिससर्विस करते हैं। उल्टा सुल्टा बोलने लग पड़ते हैं।
  7. अभी हम श्रीमत पर कितना श्रेष्ठ बनते हैं। आसुरी मत से कितना भ्रष्ट बने हैं। टाइम लगता है ना। माया की युद्ध चलती रहेगी। अभी तुम्हारी विजय तो जरूर होनी है। 
  8. इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही स्थापना और विनाश होता है। यह सारी डीटेल तुम बच्चों की बुद्धि में है। बरोबर बाप हमारे द्वारा स्थापना करा रहे हैं। फिर हम ही राज्य करेंगे। बाबा को थैंक्स भी नहीं देंगे! बाप कहते हैं यह भी ड्रामा में नूँध हैं। मैं भी इस ड्रामा के अन्दर पार्टधारी हूँ। ड्रामा में सबका पार्ट नूँधा हुआ है। शिवबाबा का भी पार्ट है। हमारा भी पार्ट है। थैंक्स देने की बात नहीं। शिवबाबा कहते हैं मैं तुमको श्रीमत दे रास्ता बताता हूँ और कोई बता सके।
  9. मंत्र ही यह है मनमनाभव, मध्याजी भव।
  10. कोई गिरते हैं तो फिर ज्ञान आदि सारा खत्म हो जाता है। कलाकाया माया ले लेती है। सब कला निकाल कला रहित कर देती है। विकार में ऐसे फँस जाते हैं, बात मत पूछो।
  11. गुरू वह जो सद्गति दे।
  12. सदा यह स्लोगन याद रहे कि जो हुआ अच्छा हुआ, अच्छा है और अच्छा ही होना है। बुराई को बुराई के रूप में देखें। लेकिन बुराई में भी अच्छाई का अनुभव करें, बुराई से भी अपना पाठ पढ़ लें। कोई भी बात आये तोक्या होगायह संकल्प आये लेकिन फौरन आये किअच्छा होगा बीत गया अच्छा हुआ।

6th November 2024

  1. ज्ञान के लिए शुद्ध बर्तन चाहिए। उल्टेसुल्टे संकल्प भी बन्द हो जाने चाहिए। बाप के साथ योग लगातेलगाते बर्तन सोना बने तब यह ज्ञान रत्न ठहर सकें।
  2. पहले नई दुनिया में हद है। बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। उसको सतयुग कहा जाता है।
  3. बाप भी इस तन द्वारा ही समझाते हैं, कि देवताओं के शरीर से। बाप एक ही बार आकर गुरू बनते हैं फिर भी बाप को ही पार्ट बजाना है।
  4. बाप समझाते हैं ऊंच ते ऊंच मैं हूँ। फिर है मेरू। जो आदि में महाराजामहारानी हैं, वह फिर जाकर अन्त में आदि देव, आदि देवी बनेंगे। यह सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है। एक तो याद की यात्रा चाहिए इसमें, जो फिर पवित्र बर्तन में ज्ञान रत्न ठहरें। यह ऊंच ते ऊंच रत्न हैं। अच्छी चीज़ अच्छे बर्तन में शोभती है। तुम्हारे कान सुनते हैं। उनमें धारणा होती है। पवित्र होगा, बुद्धियोग बाप से होगा तो धारणा अच्छी होगी। नहीं तो सब निकल जायेगा। आत्मा भी है कितनी छोटी। उनमें कितना ज्ञान भरा हुआ है। कितना अच्छा शुद्ध बर्तन चाहिए। कोई संकल्प भी उठे। उल्टेसुल्टे संकल्प सब बन्द हो जाने चाहिए। सब तरफ से बुद्धियोग हटाना है। मेरे साथ योग लगातेलगाते बर्तन सोना बना दो जो रत्न ठहर सकें।
  5. एम ऑब्जेक्ट तो बाप बता देते हैं। पुरुषार्थ करना बच्चों का काम है। अब ही इतना ऊंच पद पा सकेंगे।
  6. गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है। हथ कार डे दिल यार डे। गृहस्थी तो बहुत हैं। गृहस्थी जितना उठाते हैं उतना घर में रहने वाले बच्चे नहीं। सेन्टर चलाने वाले, मुरली चलाने वाले भी ना पास हो जाते हैं और पढ़ने वाले ऊंच चले जाते हैं। आगे तुमको सब मालूम पड़ता जायेगा। बाबा बिल्कुल ठीक बताते हैं। हमको जो पढ़ाते थे उनको माया खा गई। महारथी को माया एकदम हप कर गई। हैं नहीं। मायावी ट्रेटर बन जाते हैं। विलायत में भी ट्रेटर बन पड़ते हैं ना।
  7. युद्ध है ना। माया के तूफान भी बहुत आते हैं। सब सहन करना पड़ता है। बाप की याद में रहने से तूफान सब चले जायेंगे। माया बड़ी तीखी है, इतना ऊंच पढ़ाई पढ़तेपढ़ते बैठेबैठे गिरा देती है इसलिए बाप समझाते रहते हैं अपने को भाईभाई समझो तो फिर हद बेहद से पार चले जायेंगे। शरीर ही नहीं तो फिर दृष्टि कहाँ जायेगी। इतनी मेहनत करनी है, सुनकर फाँ नहीं हो जाना है। कल्पकल्प तुम्हारा पुरुषार्थ चलता है और तुम अपना भाग्य पाते हो। बाप कहते हैं पढ़ा हुआ सब भूलो। बाकी जो कभी नहीं पढ़े हो वह सुनो और याद करो।
  8. प्रकृति को पावन बनाना है तो सम्पूर्ण लगाव मुक्त बनो।

7th November 2024

अच्छेअच्छे बच्चे भी ब्राह्मण से फिर शूद्र बन जाते हैं। इसको कहा जाता है माया से हार खाना। बाबा की गोद से हारकर रावण की गोद में चले जाते हैं। कहाँ बाप की श्रेष्ठ बनने की गोद, कहाँ भ्रष्ट बनने की गोद। सेकण्ड में जीवनमुक्ति। सेकण्ड में पूरी दुर्दशा हो जाती है। ब्राह्मण बच्चे अच्छी रीति जानते हैंकैसे दुर्दशा हो जाती है। आज बाप के बनते, कल फिर माया के पंजे में आकर रावण के बन जाते हैं। फिर तुम बचाने की कोशिश करते हो तो कोईकोई बच भी जाते हैं। तुम देखते हो डूबते हैं तो बचाने की कोशिश करते रहो।

 

8th November 2024

प्रश्नः
इस पढ़ाई में कई बच्चे चलतेचलते फेल क्यों हो जाते हैं?

उत्तर:-
क्योंकि इस पढ़ाई में माया के साथ बॉक्सिंग है। माया की बॉक्सिंग में बुद्धि को बहुत कड़ी चोट लग जाती है। चोट लगने का कारण बाप से सच्चे नहीं हैं। सच्चे बच्चे सदा सेफ रहते हैं।

  1. बाप का बनते हैं तो माया की युद्ध चलती है। युद्ध होने से ट्रेटर बन पड़ते हैं। रावण के थे, राम के बने। फिर रावण, राम के बच्चों पर जीत पहन अपनी तरफ ले जाता है। कोई बीमार हो पड़ते हैं। फिर वहाँ के रहते, यहाँ के रहते। खुशी है, रंज। बीच में पड़े रहते हैं। तुम्हारे पास भी बहुत हैं जो बीच में हैं। बाप का भी पूरा नहीं बनते हैं, रावण का भी पूरा नहीं बनते।
  2. अपने वचनों (वाक्यों) में ताकत भरने के लिए आत्मअभिमानी रहने का अभ्यास करना है। स्मृति रहेबाप का सिखलाया हुआ हम सुना रहे हैं तो उसमें जौहर भरेगा।

9th November 2024

प्रश्नः
ज्ञानवान बच्चे किस चिन्तन में सदा रहते हैं?

उत्तर:-
मैं अविनाशी आत्मा हूँ, यह शरीर विनाशी है। मैंने 84 शरीर धारण किये हैं। अब यह अन्तिम जन्म है। आत्मा कभी छोटीबड़ी नहीं होती है। शरीर ही छोटा बड़ा होता है। यह आंखें शरीर में हैं लेकिन इनसे देखने वाली मैं आत्मा हूँ। बाबा आत्माओं को ही ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं। वह भी जब तक शरीर का आधार लें तब तक पढ़ा नहीं सकते। ऐसा चिन्तन ज्ञानवान बच्चे सदा करते हैं।

  1. आत्मा तो चैतन्य है ना। जब तक आत्मा प्रवेश करे तब तक पुतला कोई काम का नहीं रहता है। कितना फर्क है। बोलने, चालने वाली भी आत्मा ही है। वह इतनी छोटीसी बिन्दी ही है। वह कभी छोटीबड़ी नहीं होती। विनाश को नहीं पाती। अब यह परम आत्मा बाप ने समझाया है कि मैं अविनाशी हूँ और यह शरीर विनाशी है। उनमें मैं प्रवेश कर पार्ट बजाता हूँ।
  2. आत्मा नैचुरल है शरीर अननैचुरल मिट्टी का बना हुआ है। जब आत्मा है तो बोलती चालती है।
  3. निराकार शिवबाबा इस संगमयुग पर ही इस शरीर द्वारा आकर सुनाते हैं। यह आंखे तो शरीर में रहती ही हैं। अभी बाप ज्ञान चक्षु देते हैं। आत्मा में ज्ञान नहीं है तो अज्ञान चक्षु है। बाप आते हैं तो आत्मा को ज्ञान चक्षु मिलते हैं। आत्मा ही सब कुछ करती है। आत्मा कर्म करती है शरीर द्वारा।
  4. बाप ही आकर तुमको ज्ञानी तू आत्मा बनाते हैं। आगे तुम भक्ति तू आत्मा थे। तू आत्मा भक्ति करते थे। अभी तुम आत्मा ज्ञान सुनते हो। भक्ति को कहा जाता है अन्धियारा। ऐसे नहीं कहेंगे भक्ति से भगवान मिलता है। बाप ने समझाया है भक्ति का भी पार्ट है, ज्ञान का भी पार्ट है। तुम जानते हो हम भक्ति करते थे तो कोई सुख नहीं था। भक्ति करते धक्का खाते रहते थे।
  5. भगवान आकरके तुम पतितों को पावन बनाते हैं और तुम यह शरीर छोड़ देते हो। पावन तो इस तमोप्रधान पतित सृष्टि में रह नहीं सकते। 
  6. बाप तुमको पावन बनाकर गुम हो जाते हैं, उनका पार्ट ही ड्रामा में वन्डरफुल है।
  7. जैसे आत्मा देखने में आती नहीं है। भल साक्षात्कार होता है तो भी समझ सकें। और तो सबको समझ सकते हैं यह फलाना है, यह फलाना है। याद करते हैं। चाहते हैं फलाने का चैतन्य में साक्षात्कार हो और तो कोई मतलब नहीं। अच्छा, चैतन्य में देखते हो फिर क्या? साक्षात्कार हुआ फिर तो गुम हो जायेगा। अल्पकाल क्षण भंगुर सुख की आश पूरी होगी। उसको कहा जायेगा अल्पकाल क्षण भंगुर सुख। साक्षात्कार की चाहना थी वह मिला। बस यहाँ तो मूल बात है पतित से पावन बनने की। पावन बनेंगे तो देवता बन जायेंगे अर्थात् स्वर्ग में चले जायेंगे।
  8. रावण जब से आता है तो भक्ति भी उनके साथ है और जब बाप आते हैं तो उनके साथ ज्ञान है। बाप से एक ही बार ज्ञान का वर्सा मिलता है। घड़ीघड़ी नहीं मिल सकता।
  9. रामराज्य में सब निर्विकारी हैं, रावण राज्य में हैं सब विकारी। इनका नाम ही है वेश्यालय। रौरव नर्क है ना। इस समय के मनुष्य विषय वैतरणी नदी में पड़े हैं। मनुष्य, जानवर आदि सब एक समान हैं। मनुष्य की कोई भी महिमा नहीं है।
  10. असुरों की निशानी क्या है? 5 विकार। देवताओं को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी और असुरों को कहा जाता है सम्पूर्ण विकारी। वह हैं 16 कला सम्पूर्ण और यहाँ नो कला। सबकी कला काया चट हो गई है।
  11. बाप समझाते हैं मैं ही मालिक हूँ। मैं बीजरूप, चैतन्य, ज्ञान का सागर हूँ। मेरे में सारा ज्ञान है और कोई में नहीं। तुम समझ सकते हो इस सृष्टि चक्र के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज बाप में ही है।
  12. तुम भल विलायत में होंगे तो भी कहेंगे ब्रह्मा के तन में शिवबाबा है। तन तो जरूर चाहिए ना। कहाँ भी तुम बैठे होंगे तो जरूर यहाँ याद करेंगे। ब्रह्मा के तन में ही याद करना पड़े। कई बुद्धिहीन ब्रह्मा को नहीं मानते हैं। बाबा ऐसे नहीं कहते ब्रह्मा को याद करो। ब्रह्मा बिगर शिवबाबा कैसे याद पड़ेगा। बाप कहते हैं मैं इस तन में हूँ। इसमें मुझे याद करो इसलिए तुम बाप और दादा दोनों को याद करते हो।
  13. जब भक्ति है तो ज्ञान का अक्षर नहीं। इनको कहा जाता है पुरुषोत्तम संगमयुग जबकि चेन्ज होती है। पुरानी दुनिया में असुर रहते हैं, नई दुनिया में देवतायें रहते हैं तो उनको चेन्ज करने लिए बाप को आना पड़ता है। सतयुग में तुमको कुछ भी पता नहीं रहेगा। अभी तुम कलियुग में हो तो भी कुछ पता नहीं है। जब नई दुनिया में होंगे तो भी इस पुरानी दुनिया का कुछ पता नहीं होगा। अभी पुरानी दुनिया में हो तो नई का मालूम नहीं है। नई दुनिया कब थी, पता नहीं।
  14. पुजारी से पूज्य बनने के लिए सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है। ज्ञानवान बन स्वयं को स्वयं ही चेंज करना है। अल्पकाल सुख के पीछे नहीं जाना है।
  15. नशे का आधार है ही निश्चय। निश्चय कम तो नशा कम इसलिए कहते हैं निश्चयबुद्धि विजयी।

10th November 2024

  1. जहाँ हर संकल्प में, हर कार्य में निश्चय है वहाँ विजय हुई पड़ी है। सफलता जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में स्वत: और सहज प्राप्त है। जन्म सिद्ध अधिकार के लिए मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। सफलता ब्राह्मण जीवन के गले का हार है। ब्राह्मण जीवन है ही सफलता स्वरूप। सफलता होगी वा नहीं होगी यह ब्राह्मण जीवन का क्वेश्चन ही नहीं है। निश्चयबुद्धि सदा बाप के साथ कम्बाइन्ड है, तो जहाँ बाप कम्बाइन्ड है वहाँ सफलता सदा प्राप्त है। तो चेक करोसफलता स्वरूप कहाँ तक बने हैं? अगर सफलता में परसेन्टेज़ है तो उसका कारण निश्चय में परसेन्टेज़ है। निश्चय सिर्फ बाप में है, यह तो बहुत अच्छा है। लेकिन निश्चयबाप में निश्चय, स्व में निश्चय, ड्रामा में निश्चय और साथसाथ परिवार में निश्चय। इन चारों निश्चय के आधार से सफलता सहज और स्वत: है।
  2. ब्राह्मण जीवन में सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनने के लिए स्व में भी निश्चय आवश्यक है। बापदादा के द्वारा प्राप्त हुए श्रेष्ठ आत्मा के स्वमान सदा स्मृति में रहे कि मैं परमात्मा द्वारा स्वमानधारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ। साधारण आत्मा नहीं, परमात्म स्वमानधारी आत्मा। तो स्वमान हर संकल्प में, हर कर्म में सफलता अवश्य दिलाता है। साधारण कर्म करने वाली आत्मा नहीं, स्वमानधारी आत्मा हूँ। तो हर कर्म में स्वमान आपको सफलता सहज ही दिलायेगा। तो स्व में निश्चयबुद्धि की निशानी हैसफलता वा विजय। ऐसे ही बाप में तो पक्का निश्चय है, उसकी विशेषता हैनिरन्तर मैं बाप का और बाप मेरा।यह निरन्तर विजय का आधार है।मेरा बाबासिर्फ बाबा नहीं, मेरा बाबा। मेरे के ऊपर अधिकार होता है। तो मेरा बाबा, ऐसी निश्चयबुद्धि आत्मा सदा अधिकारी हैसफलता की, विजय की। ऐसे ही ड्रामा में भी पूरापूरा निश्चय चाहिए। सफलता और समस्या दोनों प्रकार की बातें ड्रामा में आती हैं लेकिन समस्या के समय निश्चयबुद्धि की निशानी हैसमाधान स्वरूप। समस्या को सेकण्ड में समाधान स्वरूप द्वारा परिवर्तन कर देना। समस्या का काम है आना, निश्चयबुद्धि आत्मा का काम है समाधान स्वरूप से समस्या को परिवर्तन करना। क्यों? आप हर ब्राह्मण आत्मा ने ब्राह्मण जन्म लेते माया को चैलेन्ज किया है। किया है ना या भूल गये हो? चैलेन्ज है कि हम मायाजीत बनने वाले हैं। तो समस्या का स्वरूप, माया का स्वरूप है। जब चैलेन्ज किया है तो माया सामना तो करेगी ना! वह भिन्नभिन्न समस्याओं के रूप में आपकी चैलेन्ज को पूरा करने के लिए आती है। आपको निश्चयबुद्धि विजयी स्वरूप से पार करना है, क्यों? नथिंग न्यू। कितने बार विजयी बने हो? अभी एक बार संगम पर विजयी बन रहे हो वा अनेक बार बने हुए को रिपीट कर रहे हो? इसलिए समस्या आपके लिए नई बात नहीं है, नथिंग न्यू। अनेक बार विजयी बने हैं, बन रहे हैं और आगे भी बनते रहेंगे। यह है ड्रामा में निश्चयबुद्धि विजयी। और हैब्राह्मण परिवार में निश्चय, क्यों? ब्राह्मण परिवार का अर्थ ही है संगठन। छोटा परिवार नहीं है, ब्रह्मा बाप का ब्राह्मण परिवार सर्व परिवारों से श्रेष्ठ और बड़ा है। तो परिवार के बीच, परिवार के प्रीत की रीति निभाने में भी विजयी। ऐसा नहीं कि बाप मेरा, मैं बाबा का, सब कुछ हो गया, बाबा से काम है, परिवार से क्या काम! लेकिन यह भी निश्चय की विशेषता है। चार ही बातों में निश्चय, विजय आवश्यक है। परिवार भी सभी को कई बातों में मजबूत बनाता है। सिर्फ परिवार में यह स्मृति में रहे कि सब अपनेअपने नम्बरवार धारणा स्वरूप हैं। वैरायटी है। इसका यादगार 108 की माला है। सोचोकहाँ एक नम्बर और कहाँ 108वाँ नम्बर, क्यों बना? सब एक नम्बर क्यों नहीं बने? 16 हजार क्यों बना? कारण? वैरायटी संस्कार को समझ नॉलेजफुल बन चलना, निभाना, यही सक्सेसफुल स्टेज है। चलना तो पड़ता ही है। परिवार को छोड़कर कहाँ जायेंगे। नशा भी है ना कि हमारा इतना बड़ा परिवार है। तो बड़े परिवार में बड़ी दिल से हर एक के संस्कार को जानते हुए चलना, निर्माण होके चलना, शुभ भावना, शुभ कामना की वृत्ति से चलनायही परिवार के निश्चयबुद्धि विजयी की निशानी है। तो सभी विजयी हो ना? विजयी हैं?
  3. जब बाप समान बनना है तो एक है निराकार और दूसरा है अव्यक्त फरिश्ता। तो जब भी समय मिलता है सेकण्ड में बाप समान निराकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ, बाप समान बनना है तो निराकारी स्थिति बाप समान है। कार्य करते फरिश्ता बनकर कर्म करो, फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। कार्य का बोझ नहीं हो। कार्य का बोझ अव्यक्त फरिश्ता बनने नहीं देगा। तो बीचबीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज़ करो तो थकावट नहीं होगी। जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखाडबल लाइट। सेवा का भी बोझ नहीं। अव्यक्त फरिश्ता रूप। तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे। आत्मा भी निराकार है और आत्मा निराकार स्थिति में स्थित होगी तो निराकार बाप की याद सहज समान बना देगी।
  4. किसी भी प्रकार का मेरापनमेरा स्वभाव, मेरा संस्कार, मेरी नेचरकुछ भी मेरा है तो बोझ है और बोझ वाला उड़ नहीं सकता। यह मेरामेरा ही मैला बनाने वाला है इसलिए अब तेरातेरा कह स्वच्छ बनो। फरिश्ता माना ही मेरे पन का अंशमात्र नहीं। संकल्प में भी मेरेपन का भान आये तो समझो मैला हुआ। तो इस मैलेपन के बोझ को समाप्त कर, डबल लाइट बनो।

11th November 2024

  1. बाप ने समझाया है कि ध्यान और योग बिल्कुल अलग है। योग अर्थात् याद। आंखें खुली होते भी तुम याद कर सकते हो। ध्यान को कोई योग नहीं कहा जाता। भोग भी ले जाते हैं तो डायरेक्शन अनुसार ही जाना है। इसमें माया भी बहुत आती है। माया ऐसी है जो एकदम नाक में दम कर देती है। जैसे बाप बलवान है, वैसे माया भी बड़ी बलवान है। इतनी बलवान है जो सारी दुनिया को वेश्यालय में ढकेल दिया है इसलिए इसमें बहुत खबरदारी रखनी होती है। बाप की कायदे अनुसार याद चाहिए। बेकायदे कोई काम किया तो एकदम गिरा देती है।
  2. बाप देवता बनाते, माया असुर बना देती है।
  3. बाप में ज्ञान और योग दोनों हैं। तुम्हारे में भी होना चाहिए। जानते हो हमें शिवबाबा पढ़ाते हैं तो ज्ञान भी हुआ और याद भी हुई। ज्ञान और योग दोनों साथसाथ चलता है।

12th November 2024

  1. माया का कितना बड़ा तूफान है। बहुतों को माया हराने की कोशिश करती है, आगे चल तुम बहुत देखेंगे, सुनेंगे।
  2. हिस्ट्री चैतन्य की होती है, जॉग्राफी तो जड़ वस्तु की है। तुम्हारी आत्मा जानती है हम कहाँ तक राज्य करते हैं।
  3. आत्मा चैतन्य, शरीर जड़ है। सारा खेल ही जड़ और चैतन्य का है। मनुष्य जीवन ही उत्तम गाया जाता है। 

13th November 2024

  1. रावण का अर्थ ही है – 5 विकार स्त्री में, 5 विकार पुरूष में।
  2. यह निश्चय बिठाना है कि हम आत्मा हैं, परमात्मा नहीं हैं। हमारे में परमात्मा व्यापक है। सभी में आत्मा व्यापक है। आत्मा शरीर के आधार से पार्ट बजाती है। यह पक्का कराओ।
  3. सतयुगत्रेता पास्ट हुआ, नोट करो। उनको कहा जाता है स्वर्ग और सेमी स्वर्ग। वहाँ देवीदेवताओं का राज्य चलता है। सतयुग में है 16 कला, त्रेता में है 14 कला। 
  4. विष्णुपुरी ही बदल रामसीता पुरी बनती है। उनकी भी डिनायस्टी चलती है ना। दो युग पास्ट हुए फिर आता है द्वापरयुग। रावण का राज्य। देवतायें वाम मार्ग में चले जाते हैं तो विकार का सिस्टम बन जाता है।
  5. सतयुगत्रेता में सभी निर्विकारी रहते हैं। एक आदि सनातन देवीदेवता धर्म रहता है। 
  6. बाप अपना परिचय खुद ही आकर देते हैं। खुद कहते हैं मैं आता हूँ पतितों को पावन बनाने के लिए तो मुझे शरीर जरूर चाहिए। नहीं तो बात कैसे करूँ। मैं चैतन्य हूँ, सत हूँ और अमर हूँ। सतो, रजो, तमो में आत्मा आती है। आत्मा ही पतित, आत्मा ही पावन बनती है। आत्मा में ही सब संस्कार हैं। पास्ट के कर्म वा विकर्म का संस्कार आत्मा ले आती है। सतयुग में तो विकर्म होता नहीं, कर्म करते हैं, पार्ट बजाते हैं। परन्तु वह कर्म अकर्म बन जाता है। गीता में भी अक्षर हैं।
  7. जानते हो बाबा आया हुआ है पुरानी दुनिया को बदल नई दुनिया बनाने, जहाँ कर्म अकर्म हो जाते हैं। उनको ही सतयुग कहा जाता है और यहाँ फिर यह कर्म विकर्म ही होते हैं जिसको कलियुग कहा जाता है। तुम अभी हो संगम पर। बाबा दोनों ही तरफ की बात सुनाते हैं।
  8. आत्मा पावन बनती है फिर शरीर भी पावन बनता है। जैसे सोना, वैसे जेवर भी बनता है।
  9. बाप समझाते हैं मैं उनके तन में आता हूँ, जो बहुत जन्मों के अन्त में है, पूरा 84 जन्म लेते हैं। राजाओं का राजा बनाने के लिए इस भाग्यशाली रथ में प्रवेश करना होता है।
  10. पहले नम्बर में है श्रीकृष्ण। वह है नई दुनिया का मालिक। फिर वही नीचे उतरते हैं। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, फिर वैश्य, शूद्र वंशी फिर ब्रह्मा वंशी बनते हैं। गोल्डन से सिल्वर…… फिर तुम आइरन से गोल्डन बन रहे हो।
  11. जिसमें मैंने प्रवेश किया है, इनकी आत्मा में तो ज़रा भी यह नॉलेज नहीं थी। इनमें मैं प्रवेश करता हूँ, इसलिए इनको भाग्यशाली रथ कहा जाता है। खुद कहते हैं मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ।
  12. बाप कहते हैं मैं बीजरूप हूँ। श्रीकृष्ण तो है ही सतयुग का रहवासी। उनको दूसरी जगह तो कोई देख सके।
  13. कर्म से मुक्त हम इनकारपोरियल दुनिया में जाकर बैठते हैं। पार्टधारी घर गया तो पार्ट से मुक्त हुआ। सब चाहते हैं हम मुक्ति पावें। परन्तु मुक्ति तो किसको मिल सके। यह ड्रामा अनादि अविनाशी है। कोई कहे यह पार्ट बजाना हमको पसन्द नहीं, परन्तु इसमें कोई कुछ कर सके। यह अनादि ड्रामा बना हुआ है। एक भी मुक्ति को नहीं पा सकते। वह सब हैं अनेक प्रकार की मनुष्य मत। 

14th November 2024

प्रश्नः
ईश्वरीय गवर्मेन्ट का गुप्त कर्तव्य कौनसा है, जिसे दुनिया नहीं जानती?

उत्तर:-
ईश्वरीय गवर्मेन्ट आत्माओं को पावन बनाकर देवता बनाती हैयह है बहुत गुप्त कर्तव्य, जिसे मनुष्य नहीं समझ सकते। जब मनुष्य देवता बनें तब तो नर्कवासी से स्वर्गवासी बन सकें। मनुष्य का सारा कैरेक्टर विकारों ने बिगाड़ा है। अभी तुम सबको श्रेष्ठ कैरेक्टर वाला बनाने की सेवा करते हो, यही तुम्हारा मुख्य कर्तव्य है।

  1. बाप कहते हैं इस काम विकार को जीतो तो जगतजीत नई दुनिया के मालिक बनेंगे।
  2. अभी तुम बच्चे समझते हो दुनिया में कोई काम की चीज़ नहीं। सभी मनुष्य मात्र को आग लगनी है। जो कुछ इन आंखों से देखते हैं, सबको आग लग जायेगी। आत्मा को तो आग लगती नहीं। आत्मा तो जैसे इनश्योर है। आत्मा को कभी इनश्योर कराते हैं क्या? इनश्योर तो शरीर को कराते हैं। बच्चों को समझाया गया है, यह खेल है। आत्मा तो ऊपर में 5 तत्वों से भी ऊपर रहती है। 5 तत्वों से ही सारी दुनिया की सामग्री बनती है। आत्मा तो नहीं बनती, आत्मा तो सदैव है ही। सिर्फ पुण्य आत्मा, पाप आत्मा बनती है। 5 विकारों से आत्मा कितनी गन्दी बन पड़ती है। अभी बाप आये हैं पापों से छुड़ाने।
  3. अभी तुम समझते हो हम ईश्वरीय गवर्मेन्ट के हैं। बाप आये हैं रामराज्य स्थापन करने। इस समय ईश्वरीय गवर्मेन्ट क्या करती है? आत्माओं को पावन बनाकर देवता बनाती है। नहीं तो फिर देवता कहाँ से आयेयह कोई नहीं जानते इसलिए इसको गुप्त गवर्मेन्ट कहा जाता है।
  4. यह पढ़ाई है ही पतित से पावन बनने की। आत्मा ही पतित बनती है। पतित से पावन बनानायह धन्धा बाप ने तुम्हें सिखलाया है। पावन बनो तो पावन दुनिया में चलेंगे। आत्मा ही पावन बने तब तो स्वर्ग के लायक बने। यह ज्ञान तुम्हें इस संगम पर ही मिलता है। पवित्र बनने का हथियार मिलता है। पतितपावन एक बाबा को ही कहा जाता है।
  5. अभी जो पारसबुद्धि बने हैं उन्हों का काम है औरों को भी पारसबुद्धि बनाना।
  6. जो झूठ बोलते, झूठा काम करते, वही थर्ड ग्रेड बनते हैं। फर्स्ट, सेकण्ड, थर्ड ग्रेड होती हैं ना। बाप बता सकते हैंयह थर्ड ग्रेड हैं।
  7. अच्छेअच्छे महारथियों को भी माया किसी किसी प्रकार से धोखा दे देती है फिर वह दिल पर चढ़ नहीं सकते हैं। कोई तो बच्चे ऐसे होते हैं जो बाप को भी खत्म करने में देरी नहीं करते। परिवार को भी खत्म कर देते हैं। महान् पाप आत्मायें हैं। रावण क्याक्या करा देता है। बहुत ऩफरत आती है। कितनी डर्टी दुनिया है, इससे कभी दिल नहीं लगानी है। पवित्र बनने की बड़ी हिम्मत चाहिए। विश्व के बादशाही की प्राइज़ लेने के लिए पवित्रता है मुख्य।
  8. माया के धोखे से बचने के लिए किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं रखनी है। इच्छा मात्रम् अविद्या बनना है।

15th November 2024

प्रश्नः– 

इस पाप आत्माओं की दुनिया में कौनसी बात बिल्कुल असम्भव है और क्यों?

उत्तर:-
यहाँ कोई कहे हम पुण्य आत्मा हैं, यह बिल्कुल असम्भव है क्योंकि दुनिया ही कलियुगी तमोप्रधान है। मनुष्य जिसको पुण्य का काम समझते हैं वह भी पाप हो जाता है क्योंकि हर कर्म विकारों के वश हो करते हैं।

  1. मीठे बच्चेअपनी जांच करो कि कितना समय बाप की स्मृति रहती है, क्योंकि स्मृति में है ही फायदा, विस्मृति में है घाटा
  2. अपने दिल से पूछो सचसच हम बाप की याद में बैठे थे या माया रावण बुद्धि को और तरफ ले गयी।
  3. बाप ने कहा है मामेकम् याद करो तो पाप कटें। अब अपने से पूछना है हम बाबा की याद में रहे या बुद्धि कहाँ चली गई? स्मृति रहनी चाहिएकितना समय हम बाबा की याद में रहे? कितना समय हमारी बुद्धि कहाँकहाँ गई? अपनी अवस्था को देखो। जितना टाइम बाप को याद करेंगे, उससे ही पावन बनेंगे। जमा और ना का भी पोतामेल रखना है।
  4. स्मृति से है फायदा, विस्मृति से है घाटा।
  5. मनुष्य जिसको पुण्य का काम समझते हैं वह भी पाप ही है। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। तुम्हारी लेनदेन भी है पाप आत्माओं से। पुण्य आत्मा यहाँ है ही नहीं। पुण्य आत्माओं की दुनिया में फिर एक भी पाप आत्मा नहीं। पाप आत्माओं की दुनिया में एक भी पुण्य आत्मा नहीं हो सकती। जिन गुरुओं के चरणों में गिरते हैं वह भी कोई पुण्य आत्मा नहीं हैं। यह तो है ही कलियुग सो भी तमोप्रधान। तो इसमें कोई पुण्य आत्मा होना ही असम्भव है। पुण्य आत्मा बनने लिए ही बाप को बुलाते हैं कि आकर हमको पावन आत्मा बनाओ। ऐसे नहीं, कोई बहुत दानपुण्य आदि करते हैं, धर्मशाला आदि बनाते हैं तो वह कोई पुण्य आत्मा हैं। नहीं, शादियों आदि के लिए हाल आदि बनाते हैं यह कोई पुण्य थोड़ेही है। यह समझने की बातें हैं। यह है रावण राज्य, पाप आत्माओं की आसुरी दुनिया।
  6. जो बाप तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, तुम मनुष्य मत पर चल उनकी कितनी ग्लानि करते हो। मनुष्य मत और ईश्वरीय मत का किताब भी है ना। यह तो तुम ही जानते हो और समझाते हो हम श्रीमत पर देवता बनते हैं। रावण मत पर फिर आसुरी मनुष्य बन जाते हैं। मनुष्य मत को आसुरी मत कहा जायेगा। आसुरी कर्तव्य ही करते रहते हैं। मूल बात ईश्वर को सर्वव्यापी कह देते।
  7. रावण राज्य को आसुरी सम्प्रदाय कहेंगे। कितना कड़ा अक्षर है।
  8. बाबा भी जब बनारस गये थे उस समय यह दुनिया अच्छी नहीं लगती थी, वहाँ सारी दीवारों पर लकीर बैठ लगाते थे। बाप यह सब कराते थे परन्तु हम तो उस समय बच्चे थे ना। पूरा समझ में नहीं आता था। बस कोई है जो हमसे यह कराता है। विनाश देखा तो अन्दर में खुशी भी थी। रात को सोते थे तो भी जैसे उड़ते रहते थे परन्तु कुछ समझ में नहीं आता था। ऐसेऐसे लकीरें खींचते रहते थे। कोई ताकत है जिसने प्रवेश किया है। हम वन्डर खाते थे। पहले तो धन्धा आदि करते थे फिर क्या हुआ, कोई को देखते थे और झट ध्यान में चले जाते थे। कहता था यह क्या होता है जिसको देखता हूँ उनकी ऑखें बन्द हो जाती हैं। पूछते थे क्या देखा तो कहते थे वैकुण्ठ देखा, कृष्ण देखा। यह भी सब समझने की बातें हुई ना इसलिए सब कुछ छोड़कर बनारस चले गये समझने लिए। सारा दिन बैठा रहता था। पेंसिल और दीवार और कोई धन्धा ही नहीं। बेबी थे ना। तो ऐसेऐसे जब देखा तो समझा अब यह कुछ करना नहीं है। धन्धा आदि छोड़ना पड़ेगा। खुशी थी यह गदाई छोड़नी है। रावण राज्य है ना। रावण पर गधे का शीश दिखाते हैं ना, तो ख्याल हुआ यह राजाई नहीं, गदाई है। गधा घड़ीघड़ी मिट्टी में लथेड़ कर धोबी के कपड़े सब खराब कर देता है। बाप भी कहते हैं तुम क्या थे, अब तुम्हारी क्या अवस्था हो गई है। यह बाप ही बैठ समझाते हैं और यह दादा भी समझाते हैं। दोनों का चलता रहता है।
  9. आत्मा ही अपना पार्ट कल्पकल्प बजाती है। सब एक समान ज्ञान नहीं उठायेंगे। यह स्थापना ही वन्डरफुल है। दूसरे कोई स्थापना का ज्ञान थोड़ेही देते हैं।
  10. नई आत्मा जो आती है उनको दु: तो हो नहीं सकता। लॉ नहीं कहता। आत्मा सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आवे तब दु: हो। लॉ भी है ना! यहाँ है मिक्सअप, रावण सम्प्रदाय भी है तो राम सम्प्रदाय भी है। अभी तो सम्पूर्ण बने नहीं हैं। सम्पूर्ण बनेंगे तो फिर शरीर छोड़ देंगे। कर्मातीत अवस्था वाले को कोई दु: हो सके। वह इस छीछी दुनिया में रह नहीं सकते। वह चले जायेंगे बाकी जो रहेंगे वह कर्मातीत नहीं बने होंगे। सब तो एक साथ कर्मातीत हो नहीं सकते। भल विनाश होता है तो भी कुछ बचेंगे। प्रलय नहीं होती।
  11. इस जन्म में छोटेपन से हमसे कौनकौन से उल्टे कर्म अथवा पाप हुए हैं, वह नोट करना है। जिस बात में दिल खाती है उसे बाप को सुनाकर हल्का हो जाना है। अब कोई भी पाप का काम नहीं करना है।
  12. सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है। सेवाभाव नहीं तो कर्मबन्धन खींचता है। जहाँ कर्मबन्धन है वहाँ दु: की लहर है, सेवा के बंधन में खुशी है इसलिए कर्मबन्धन को सेवा के बन्धन में परिवर्तन कर न्यारे प्यारे रहो तो परमात्म प्यारे बन जायेंगे।

16th November 2024

  1. तुमको बाप रूहानी हुनर (कला) सिखलाते हैं। इस हुनर सीखने से तुमको कितनी बड़ी प्राइज़ मिलती है। 21 जन्मों की प्राइज मिलती है, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। आजकल गवर्मेन्ट लॉटरी भी निकालती है ना। यह बाप तुमको प्राइज़ देते हैं। और क्या सिखाते हैं? तुमको बिल्कुल ऊपर ले जाते हैं, जहाँ तुम्हारा घर है। अभी तुमको याद आता है ना कि हमारा घर कहाँ है और राजधानी जो गँवाई है, वह कहाँ है। रावण ने छीन लिया। अब फिर से हम अपने असली घर भी जाते हैं और राजाई भी पाते हैं। मुक्तिधाम हमारा घर हैयह कोई को पता नहीं है। अब तुम बच्चों को सिखलाने के लिए देखो बाप कहाँ से आते हैं, कितना दूर से आते हैं। आत्मा भी रॉकेट है।
  2. वह कोशिश करते हैं ऊपर जाकर देखें चन्द्रमा में क्या है, स्टॉर में क्या है? तुम बच्चे जानते हो यह तो इस माण्डवे की बत्तियां हैं। जैसे माण्डवे में बिजलियां लगाते हैं। म्यूज़ियम में भी तुम बत्तियों की लड़ियाँ लगाते हो ना। यह फिर है बेहद की दुनिया। इसमें यह सूर्य, चांद, सितारे रोशनी देने वाले हैं। मनुष्य फिर समझते हैं सूर्यचन्द्रमा यह देवतायें हैं। परन्तु यह देवता तो हैं नहीं।
  3. ज्ञान से ही तुम बच्चों की सद्गति हो रही है। तुम कितना दूर जाते हो। बाप ने ही घर जाने का रास्ता बताया है। सिवाए बाप के कोई भी वापिस अपने घर जा नहीं सकते। बाप जब आकर शिक्षा देते हैं, तब तुम जानते हो। यह भी समझते हैं हम आत्मा पवित्र बनेंगे तब ही अपने घर जा सकेंगे। फिर या तो योगबल से या सजाओं के बल से पावन बनना है। बाप तो समझाते रहते हैं जितना बाप को याद करेंगे उतना तुम पावन बनेंगे। याद नहीं करेंगे तो पतित ही रह जायेंगे फिर बहुत सजा खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। बाप खुद बैठ तुमको समझाते हैं। तुम ऐसेऐसे घर जा सकते हो।
  4. असुल में तुम आत्मायें पावन थी। ऊपर अपने घर में रहने वाली थी, जब तुम सतयुग में जीवनमुक्ति में हो तो बाकी सब मुक्तिधाम में रहते हैं। मुक्ति और जीवनमुक्ति दोनों को हम शिवालय कह सकते हैं। मुक्ति में शिवबाबा भी रहते हैं, हम बच्चे (आत्मायें) भी रहते हैं। यह है रूहानी हाइएस्ट नॉलेज।
  5. बाप ने बताया है यह युद्ध का मैदान है, टाइम लगता है पावन बनने में। इतना ही समय लगता है जब तक लड़ाई पूरी हो। ऐसे नहीं जो शुरू में आये हैं वह पूरे पावन होंगे। बाबा कहते हैं माया की लड़ाई बड़ी जोर से चलती है। अच्छेअच्छे को भी माया जीत लेती है। इतनी तो बलवान है। जो गिरते हैं वह फिर मुरली भी कहाँ से सुनें। सेन्टर में तो आते ही नहीं तो उनको कैसे पता पड़े। माया एकदम वर्थ नाट पेनी बना देती है। मुरली जब पढ़ें तब सुजाग हों। गन्दे काम में लग जाते हैं। कोई सेन्सीबुल बच्चा हो जो उनको समझावेतुमने माया से कैसे हार खाई है। बाबा तुमको क्या सुनाते हैं, तुम फिर कहाँ जा रहे हो। देखते हैं इनको माया खा रही है तो बचाने की कोशिश करनी चाहिए। कहाँ माया सारा हप कर लेवे। फिर से सुजाग हो जाएं। नहीं तो ऊंच पद नहीं पायेंगे। सतगुरू की निंदा कराते हैं। अच्छा! 

17th November 2024

  1. वर्तमान समय माया के विशेष दो रूप बच्चों का पेपर लेते हैं। एक व्यर्थ संकल्प, विकल्प नहीं, व्यर्थ संकल्प। दूसरा – “मैं ही राइट हूँ जो किया, जो कहा, जो सोचा…. मैं कम नहीं, राइट हूँ। बापदादा समय के प्रमाण अब यही चाहते हैं कि एक शब्द सदा स्मृति में रखोबाप से हुई सर्व प्राप्तियों का, स्नेह का, सहयोग का रिटर्न करना है। रिटर्न करना अर्थात् समान बनना। दूसराअब हमारी रिटर्नजर्नी (वापिसी यात्रा) है। एक ही शब्द रिटर्न सदा याद रहे। इसके लिए बहुत सहज साधन हैहर संकल्प, बोल और कर्म को ब्रह्मा बाप से टैली (मिलान) करो।
  2. पहले चेक करो, जैसे कहावत है पहले सोचो फिर करो, पहले तोलो फिर बोलो।
  3. जैसे ब्रह्मा बाप सदा निमित्त और निर्माण रहे, ऐसे निमित्त भाव और निर्माण भाव। सिर्फ निमित्त भाव नहीं, निमित्त भाव के साथ निर्माण भाव, दोनों आवश्यक हैं क्योंकि टीचर्स तो निमित्त हैं ना! तो संकल्प में भी, बोल में भी और किसी के भी संबंध में, सम्पर्क में, कर्म में, हर बोल में निर्माण। जो निर्माण है वही निमित्त भाव में है। जो निर्माण नहीं है उसमें थोड़ा बहुत सूक्ष्म, महान रूप में अभिमान नहीं भी हो तो रोब होगा। ये रोब, यह भी अभिमान का अंश है और बोल में सदा निर्मल भाषी, मधुर भाषी। जब सम्बन्धसम्पर्क में आत्मिक रूप की स्मृति रहती है तो सदा निराकारी और निरहंकारी रहते हैं। ब्रह्मा बाप के लास्ट के तीनों शब्द याद रहते हैं? निराकारी, निरहंकारी वही निर्विकारी।

18th November 2024

प्रश्नः
माया तुम्हारे बीच में विघ्न क्यों डालती है? कोई कारण बताओ?

उत्तर:-
1.
क्योंकि तुम माया के बड़े ते बड़े ग्राहक हो। उसकी ग्राहकी खत्म होती है इसलिए विघ्न डालती है। 2. जब अविनाशी वैद्य तुम्हें दवा देता है तो माया की बीमारी उथलती है इसलिए विघ्नों से डरना नहीं है। मनमनाभव के मंत्र से माया भाग जायेगी।

  1. रोज़ कहते भी हैं ओम् शान्ति। परन्तु इसका अर्थ समझने के कारण शान्ति मांगते ही रहते हैं। कहते भी हैं आई एम आत्मा अर्थात् आई एम साइलेन्स। हमारा स्वधर्म है साइलेन्स।
  2. 5 विकारों में सब फँसते हैं। जन्म ही भ्रष्टाचार से होता है तो रावण का राज्य हुआ। इस समय अथाह दु: हैं। इसका निमित्त कौन? रावण। यह कोई को पता नहींदु: किस कारण होता है। यह तो राज्य ही रावण का है। सबसे बड़ा दुश्मन यह है।
  3. इस समय सब इन विकारों की जेल में पड़े हैं।
  4. आत्मा और जीव दो का खेल है। निराकार आत्मा अविनाशी है और साकार शरीर विनाशी है इनका खेल है।
  5. बाप के पास दवाई है ना। यह भी बताता हूँ, माया विघ्न जरूर डालेगी। तुम रावण के ग्राहक हो ना। उनकी ग्राहकी चली जायेगी तो जरूर फथकेगी (परेशान होगी) तो बाप समझाते हैं यह तो पढ़ाई है। कोई दवाई नहीं है। दवाई यह है याद की यात्रा। एक ही दवाई से तुम्हारे सब दु: दूर हो जायेंगे, अगर मेरे को निरन्तर याद करने का पुरूषार्थ करेंगे तो।
  6. यहाँ फिर बाप समझाते हैं रामराम कोई मुख से कहना नहीं है। यह तो अजपाजाप है सिर्फ बाप को याद करते रहो। बाप कहते हैं मैं कोई राम नहीं हूँ।
  7. बेहद के बाप को याद कर अन्दर में खुशी होती है फिर से हम विश्व का मालिक बनेंगे। यह आत्मा की खुशी के संस्कार ही फिर साथ चलेंगे। फिर थोड़ाथोड़ा कम होता जायेगा। इस समय माया तुमको बहुत हैरान करेगी। माया कोशिश करेगीतुम्हारी याद को भुलाने की। सदैव ऐसे हर्षित मुख रह नहीं सकेंगे। जरूर कोई समय घुटका खायेंगे।
  8. यह है रावण की दुनिया। रावण बड़ा भारी दुश्मन है। इन जैसा दुश्मन कोई होता नहीं। हर वर्ष तुम रावण को जलाते हो। यह है कौन? किसको पता नहीं है। कोई मनुष्य तो नहीं है, यह हैं 5 विकार इसलिए इनको रावण राज्य कहा जाता है। 5 विकारों का राज्य है ना। सबमें 5 विकार हैं। यह दुर्गति और सद्गति का खेल बना हुआ है। अभी तुमको सद्गति के टाइम आदि का भी बाप ने समझाया है। दुर्गति का भी समझाया है। तुम ही ऊंच चढ़ते हो फिर तुम ही नीचे गिरते हो।

वरदान:-
सर्व के प्रति अपनी दृष्टि और भावना प्यार की रखने वाले सर्व के प्यारे फरिश्ता भव

स्वप्न में भी किसी के पास फरिश्ता आता है तो कितना खुश होते हैं। फरिश्ता अर्थात् सर्व के प्यारे। हद के प्यारे नहीं, बेहद के प्यारे। जो प्यार करे उसके प्यारे नहीं लेकिन सर्व के प्यारे। कोई कैसी भी आत्मा हो लेकिन आपकी दृष्टि, आपकी भावना प्यार की होइसको कहा जाता है सर्व के प्यारे। कोई इनसल्ट करे, घृणा करे तो भी उसके प्रति प्यार वा कल्याण की भावना उत्पन्न हो क्योंकि उस समय वह परवश है।

 

19th November 2024

  1. मीठेमीठे सिकीलधे बच्चों से रूहानी बाप पूछते हैं यहाँ तुम बैठे हो, किसकी याद में बैठे हो? (बाप, शिक्षक, सतगुरू की) सभी इन तीनों की याद में बैठे हो? हर एक अपने से पूछे यह सिर्फ यहाँ बैठे याद है या चलतेफिरते याद रहती है? क्योंकि यह है वन्डरफुल बात। और कोई आत्मा को कभी ऐसे नहीं कहा जाता। भल यह लक्ष्मीनारायण विश्व के मालिक हैं परन्तु उनकी आत्मा को कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि यह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। बल्कि सारी दुनिया में जो भी जीव आत्मायें है, कोई भी आत्मा को ऐसे नहीं कहेंगे। तुम बच्चे ही ऐसे याद करते हो। अन्दर में आता है यह बाबा, बाबा भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। सो भी सुप्रीम। तीनों को याद करते हो या एक को? भल वह एक है परन्तु तीनों गुणों से याद करते हो। शिवबाबा हमारा बाप भी है, टीचर और सतगुरू भी है। यह एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी कहा जाता है। जब बैठे हो अथवा चलते फिरते हो तो यह याद रहना चाहिए। बाबा पूछते हैं ऐसे याद करते हो कि यह हमारा बाप, टीचर, सतगुरू भी है। ऐसा कोई भी देहधारी हो नहीं सकता। देहधारी नम्बरवन है श्रीकृष्ण, उनको बाप, टीचर, सतगुरू कह नहीं सकते, यह बिल्कुल वन्डरफुल बात है। तो सच बताना चाहिए तीनों रूप में याद करते हो? भोजन पर बैठते हो तो सिर्फ शिवबाबा को याद करते हो या तीनों बुद्धि में आते हैं? और तो कोई भी आत्मा को ऐसे नहीं कह सकते। यह है वन्डरफुल बात। विचित्र महिमा है बाप की। तो बाप को याद भी ऐसे करना है। तो बुद्धि एकदम उस तरफ चली जायेगी जो ऐसा वन्डरफुल है।
  2. अभी तुम बच्चे नास्तिक से आस्तिक बन रहे हो। तुम बेहद के बाप को जानते हो जो तुमको इतना ऊंच बनाते हैं। पुकारते भी हैं गॉड फादर, लिबरेट करो। बाप समझाते हैं, इस समय रावण का सारे विश्व पर राज्य है। सब भ्रष्टाचारी हैं फिर श्रेष्ठाचारी भी होंगे ना। तुम बच्चों की बुद्धि में हैपहलेपहले पवित्र दुनिया थी। बाप अपवित्र दुनिया थोड़ेही बनायेंगे। बाप तो आकर पावन दुनिया स्थापन करते हैं, जिसको शिवालय कहा जाता है।
  3. बहुत देहअभिमानी बच्चे हैं जो समझते हैं हम तो सब कुछ जान गये हैं। मुरली भी नहीं पढ़ते हैं। कदर ही नहीं है। बाबा ताकीद करते हैं, कोईकोई समय मुरली बहुत अच्छी चलती है। मिस नहीं करना चाहिए। 10-15 दिन की मुरली जो मिस होती है वह बैठ पढ़नी चाहिए। यह भी बाप कहते हैं ऐसीऐसी चैलेन्ज दोयह रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज कोई आकर दे तो हम उनको खर्चा आदि सब देंगे। ऐसी चैलेन्ज तो जो जानते हैं वह देंगे ना। टीचर खुद जानता है तब तो पूछते हैं ना। बिगर जाने पूछेंगे कैसे।
  4. कोईकोई बच्चे मुरली की भी डोन्टकेयर करते हैं। बस हमारा तो शिवबाबा से ही कनेक्शन है। परन्तु शिवबाबा जो सुनाते हैं वह भी सुनना है ना कि सिर्फ उनको याद करना है। बाप कैसे अच्छीअच्छी मीठीमीठी बातें सुनाते हैं। परन्तु माया बिल्कुल ही मगरूर कर देती है।
  5. पवित्रता पूज्य बनाती है। पूज्य वही बनते हैं जो सदा श्रेष्ठ कर्म करते हैं। लेकिन पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं। मन्सा संकल्प में भी किसी के प्रति निगेटिव संकल्प उत्पन्न हो। बोल भी अयथार्थ हो। सम्बन्धसम्पर्क में भी फ़र्क हो, सबके साथ अच्छा एक जैसा सम्बन्ध हो। मन्सावाचाकर्मणा किसी में भी पवित्रता खण्डित हो तब कहेंगे पूज्य आत्मा। मैं परम पूज्य आत्मा हूँइस स्मृति से पवित्रता का फाउन्डेशन मजबूत बनाओ। 

20th November 2024

प्रश्नः
इस बेहद के ड्रामा में सबसे जबरदस्त लेबर्स (नौकर) कौनकौन हैं और कैसे?

उत्तर:-
इस पुरानी दुनिया की सफाई करने वाले सबसे जबरदस्त लेबर्स हैं नैचुरल कैलेमिटीज। धरती हिलती है, बाढ़ आती है, सफाई हो जाती है। इसके लिए भगवान किसी को डायरेक्शन नहीं देते। बाप कैसे बच्चों को डिस्ट्राय करेंगे। यह तो ड्रामा में पार्ट है। रावण का राज्य है ना, इसे गॉडली कैलेमिटीज नहीं कहेंगे।

  1. यह बाप जो नई सृष्टि रचने वाला है, वही पहलेपहले मंत्र देते हैं मनमनाभव। इसका नाम ही है वशीकरण मंत्र अर्थात् माया पर जीत पाने का मंत्र। यह कोई अन्दर में जपना नहीं है। यह तो समझाना होता है।
  2. आत्मा को भी इन आंखों से देख नहीं सकते हैं तो बाप को भी भूल जाते हैं। ड्रामा में पार्ट ही ऐसा है जिसको विश्व का मालिक बनाते हैं उनका नाम डाल देते हैं और बनाने वाले का नाम गुम कर देते हैं।
  3. पुरानी दुनिया खत्म होनी है। पुरानी दुनिया के विनाश के लिए यह नैचुरल कैलेमिटीज सब लेबर्स हैं। कितने जबरदस्त लेबर्स हैं। ऐसे नहीं कि उन्हों को बाप का डायरेक्शन है कि विनाश करो। नहीं, तूफान लगते हैं, फेमन होता है। भगवान कहते हैं क्या, यह करो? कभी नहीं। यह तो ड्रामा में पार्ट है। बाप नहीं कहते हैं बॉम्बस बनाओ। यह सब रावण की मत कहेंगे। यह बनाबनाया ड्रामा है। रावण का राज्य है तो आसुरी बुद्धि बन जाते हैं। कितने मरते हैं। आखरीन में सब जला देंगे। यह बनाबनाया खेल है, जो रिपीट होता है। बाकी ऐसे नहीं कि शंकर के आंख खोलने से विनाश हो जाता है, इनको गॉडली कैलेमिटीज़ भी नहीं कहेंगे। यह नैचुरल ही है।
  4. अब बाप तुम बच्चों को श्रीमत दे रहे हैं। कोई को दु: आदि देने की बात ही नहीं। बाप तो है ही सुख का रास्ता बताने वाला। ड्रामा प्लैन अनुसार मकान पुराना होता ही जायेगा। बाप भी कहते हैं यह सारी दुनिया पुरानी हो गई है। यह खलास होनी चाहिए। आपस में लड़ते देखो कैसे हैं! आसुरी बुद्धि हैं ना। जब ईश्वरीय बुद्धि हैं तो कोई भी मारने आदि की बात नहीं। बाप कहते हैं मैं तो सबका बाप हूँ। हमारा सब पर प्यार है।
  5. जो बच्चे मुझे याद करते हैं मैं भी उन्हों को याद करता हूँ। जो मुझे नहीं भी याद करते हैं तो भी मैं सबको याद करता हूँ क्योंकि मुझे तो सबको ले जाना है ना। हाँ, जो मेरे द्वारा सृष्टि चक्र की नॉलेज को समझते हैं नम्बरवार वह फिर ऊंच पद पायेंगे। यह बेहद की बातें हैं।
  6. बाप ने ड्रामा सुख के लिए बनाया है, कि दु: के लिए। यह तो बाद में तुमको दु: मिला है।
  7. सदा तन्दरूस्त रहने के लिएपवित्रताको अपनाना है। पवित्रता के आधार से हेल्थ, वेल्थ और हैपीनेस का वर्सा बाप से लेना है।
  8. संगमयुग पर बापदादा द्वारा जो भी प्राप्तियां हुई हैं उनकी स्मृति इमर्ज रूप में रहे। तो प्राप्तियों की खुशी कभी नीचे हलचल में नहीं लायेगी। सदा अचल रहेंगे। 

21th November 2024

प्रश्नः
बाबा किन बच्चों का कुछ भी स्वीकार नहीं करते हैं?

उत्तर:-
जिन्हें अहंकार है मैं इतना देता हूँ, मैं इतनी मदद कर सकता हूँ, बाबा उनका कुछ भी स्वीकार नहीं करते। बाबा कहते मेरे हाथ में चाबी है। चाहे तो मैं किसी को गरीब बनाऊं, चाहे किसको साहूकार बनाऊं। यह भी ड्रामा में राज़ है। जिन्हें आज अपनी साहूकारी का घमण्ड है वह कल गरीब बन जाते और गरीब बच्चे बाप के कार्य में अपनी पाईपाई सफल कर साहूकार बन जाते हैं।

  1. तुम पढ़ाने वाले टीचर जरूर बनते हो बाकी तुम कोई का गुरू नहीं बन सकते हो, सिर्फ टीचर बन सकते हो। गुरू तो एक सतगुरू ही है वह सिखलाते हैं। सर्व का सतगुरू एक ही है।
  2. याद क्यों करना पड़ता है! क्योंकि हमारे ऊपर जो पाप चढ़े हुए हैं, वह इस याद से ही खत्म होंगे इसलिए गायन भी है एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति। जीवनमुक्ति का मदार पढ़ाई पर है और मुक्ति का मदार याद पर है। जितना तुम बाप को याद करेंगे और पढ़ाई पर ध्यान देंगे तो ऊंच नम्बर में मर्तबा पायेंगे। धन्धा आदि तो भल करते रहो, बाप कोई मना नहीं करते। धन्धा आदि जो तुम करते होवह भी दिनरात याद रहता है ना। तो अब बाप यह रूहानी धन्धा देते हैंअपने को आत्मा समझ मुझे याद करो और 84 के चक्र को याद करो। मुझे याद करने से ही तुम सतोप्रधान बनेंगे।
  3. तुम ही पूज्य देवीदेवता थे फिर तुम ही पुजारी बने हो। आपेही पूज्य, आपेही पुजारी। बाप कोई पुजारी नहीं बनते हैं परन्तु पुजारी दुनिया में तो आते हैं ना। बाप तो एवर पूज्य है। वह कभी पुजारी होते नहीं, उनका धन्धा है तुमको पुजारी से पूज्य बनाना। रावण का काम है तुमको पुजारी बनाना। यह दुनिया में किसको पता नहीं है। तुम भी भूल जाते हो। रोज़रोज़ बाप समझाते रहते हैं।
  4. तुम विश्व के मालिक बनते हो। अभी युद्ध के मैदान में हो, तुम और कुछ भी नहीं करते हो सिवाए बाप को याद करने के। बाप ने फरमान किया है मुझे याद करो तो इतनी शक्ति मिलेगी। यह तुम्हारा धर्म बहुत सुख देने वाला है। बाप है सर्वशक्तिमान्। तुम उनके बनते हो, सारा मदार याद की यात्रा पर है। यहाँ तुम सुनते हो फिर उस पर मंथन चलता है। जैसे गाय खाना खाकर फिर उगारती है, मुख चलता ही रहता है। तुम बच्चों को भी कहते हैं ज्ञान की बातों पर खूब विचार करो।
  5. योगबल से सब पापों को भस्म करना है, इसमें ही बड़ी मेहनत करनी है। घड़ीघड़ी बाप को भूल जाते हैं क्योंकि यह बड़ी महीन चीज़ है।
  6. कोई भी दृढ़ संकल्प रूपी व्रत वृत्ति को बदल देता है।
  7. व्यर्थ से बचना है तो मुख पर दृढ़ संकल्प का बटन लगा दो।

22th November 2024

  1. निश्चय में ही विजय है, इसमें कभी नुकसान नहीं होगा। नुकसान को भी बाप फायदे में बदल देंगे। परन्तु निश्चयबुद्धि वालों को। 
  2. बाबा खुद गैरन्टी करते हैंश्रीमत पर चलने से कभी अकल्याण हो नहीं सकता।
  3. बाप कहते हैंबच्चे, गृहस्थ व्यवहार में भल रहो, कौन कहता है तुम कपड़े आदि बदली करो। भल कुछ भी पहनो। बहुतों से कनेक्शन में आना पड़ता है। रंगीन कपड़ों के लिए कोई मना नहीं करते हैं। कोई भी कपड़ा पहनो, इनसे कोई तैलुक नहीं। बाप कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ो। बाकी पहनो सब कुछ।
  4. रावण पर जीत पाने से ही तुम पुण्य आत्मा बन जाते हो। तुम फील करते हो, माया कितने विघ्न डालती है। एकदम नाक में दम कर देती है। तुम समझते हो माया से युद्ध कैसे चलती है। उन्होंने फिर कौरवों और पाण्डवों की युद्ध, लश्कर आदि क्याक्या बैठ दिखाये हैं। इस युद्ध का किसको भी पता नहीं। यह है गुप्त। इनको तुम ही जानते हो। माया से हम आत्माओं को युद्ध करनी है।
  5. सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो में आयेंगे। इसमें मूँझने की बात नहीं।
  6. किसी भी परिस्थिति में फुलस्टाप तब लगा सकते हैं जब बिन्दु स्वरूप बाप और बिन्दू स्वरूप आत्मा दोनों की स्मृति हो। कन्ट्रोलिंग पावर हो। जो बच्चे किसी भी परिस्थिति में स्वयं को परिवर्तन कर फुलस्टॉप लगाने में स्वयं को पहले आफर करते हैं, वह दुआओं के पात्र बन जाते हैं। उन्हें स्वयं को स्वयं भी दुआयें अर्थात् खुशी मिलती है, बाप द्वारा और ब्राह्मण परिवार द्वारा भी दुआयें मिलती हैं।
  7. जो संकल्प करते हो उसे बीचबीच में दृढ़ता का ठप्पा लगाओ तो विजयी बन जायेंगे।

23th November 2024

प्रश्नः
किस स्मृति में रहो तो देहअभिमान नहीं आयेगा?

उत्तर:-
सदा स्मृति रहे कि हम गॉडली सर्वेन्ट हैं। सर्वेन्ट को कभी भी देहअभिमान नहीं सकता। जितनाजितना योग में रहेंगे उतना देहअभिमान टूटता जायेगा।

प्रश्नः
देहअभिमानियों को ड्रामा अनुसार कौनसा दण्ड मिल जाता है?

उत्तर:-
उनकी बुद्धि में यह ज्ञान बैठता ही नहीं है। साहूकार लोगों में धन के कारण देहअभिमान रहता है इसलिए वह इस ज्ञान को समझ नहीं सकते, यह भी दण्ड मिल जाता है। गरीब सहज समझ लेते हैं।

  1. अच्छेअच्छे बच्चे जो अपने को महावीर समझते हैं उनको ही माया पकड़ती है। बड़ी ऊंची मंजिल है। बड़ी खबरदारी रखनी है। बॉक्सिंग कम नहीं है। बड़े ते बड़ी बॉक्सिंग है। रावण को जीतने का युद्ध का मैदान है। थोड़ा भी देह का अभिमान आयेमैं ऐसी सर्विस करता हूँ, यह करता हूँ….’ हम तो गॉडली सर्वेन्ट हैं। हमको पैगाम देना ही है, इसमें गुप्त मेहनत बहुत है। तुम ज्ञान और योगबल से अपने को समझाते हो। इसमें गुप्त रह विचार सागर मंथन करें तब नशा चढ़े।
  2. ज्ञान भल अच्छा है योग कम है तो बैटरी भर सकें क्योंकि देह का अहंकार बहुत रहता है। योग कुछ भी है नहीं, इसलिए ज्ञान बाण में जौहर नहीं भरता। तलवार में भी जौहर होता है।
  3. दैवी चलन रखो, क्रोध में आकर भौंकते क्यों हो! स्वर्ग में क्रोध होता नहीं। बाप कुछ भी सामने समझाते थे, कभी भी गुस्सा नहीं आता था। बाबा सब रिफाइन करके समझाते हैं। ड्रामा कायदे अनुसार चलता रहता है। ड्रामा में कोई भूल नहीं है। अनादि अविनाशी बना हुआ है।
  4. बाबा कहते हैं गरीब हो और ही अच्छा। साहूकार होते तो यहाँ आते ही नहीं। अच्छा।
  5. इस बनेबनाये ड्रामा को एक्यूरेट समझना है, इसमें कोई भूल हो नहीं सकती। जो एक्ट हुई फिर रिपीट होगी। इस बात को अच्छे दिमाग से समझकर चलो तो कभी गुस्सा नहीं आयेगा।

वरदान:-
तूफान को तोहफा (गिफ्ट) समझ सहज क्रास करने वाले सम्पूर्ण और सम्पन्न भव

जब सभी का लक्ष्य सम्पूर्ण और सम्पन्न बनने का है तो छोटीछोटी बातों में घबराओ नहीं। मूर्ति बन रहे हो तो कुछ हेमर तो लगेंगे ही। जो जितना आगे होता है उसको तूफान भी सबसे ज्यादा क्रास करने होते हैं लेकिन वो तूफान उन्हों को तूफान नहीं लगता, तोहफा लगता है। यह तूफान भी अनुभवी बनने की गिफ्ट बन जाते हैं इसलिए विघ्नों को वेलकम करो और अनुभवी बनते आगे बढ़ते चलो।

 

24th November 2024

  1. बापदादा देख रहे थे कि स्वमान का निश्चय और उसका रूहानी नशा दोनों का बैलेन्स कितना रहता है? निश्चय हैनॉलेजफुल बनना और रूहानी नशा हैपावॅरफुल बनना। तो नॉलेजफुल में भी दो प्रकार देखेएक है नॉलेजफुल। दूसरे हैं नॉलेजेबुल (ज्ञान स्वरूप) तो अपने से पूछोमैं कौन?
  2. बापदादा जानते हैं कि बच्चों का लक्ष्य बहुत ऊंचा है। लक्ष्य ऊंचा है ना, क्या ऊंचा है? सभी कहते हैं बाप समान बनेंगे। तो जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है तो बाप समान बनने का लक्ष्य कितना ऊंचा है! तो लक्ष्य को देख बापदादा बहुत खुश होते हैं लेकिनलेकिन बतायें क्या? लेकिन क्यावह टीचर्स वा डबल फारेनर्स सुनेंगे? समझ तो गये होंगे। बापदादा लक्ष्य और लक्षण समान चाहते हैं। अभी अपने से पूछो कि लक्ष्य और लक्षण अर्थात् प्रैक्टिकल स्थिति समान है? क्योंकि लक्ष्य और लक्षण का समान होनायही बाप समान बनना है। समय प्रमाण इस समानता को समीप लाओ।
  3. कई बच्चे भिन्नभिन्न प्रकार की बाप समान बनने की मेहनत करते हैं, बाप की मोहब्बत के आगे मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं।
  4. नेचर बन गई, नेचुरल बन गया। जो अभी भी कभीकभी यही कहते हो कि देही के बजाए देह में जाते हैं। तो जैसे देहअभिमान, नेचर और नेचुरल रहा वैसे अभी देहीअभिमानी स्थिति भी नेचुरल और नेचर हो, नेचर बदलना मुश्किल होती है। अभी भी कभीकभी कहते हो ना कि मेरा भाव नहीं है, नेचर है। तो उस नेचर को नेचुरल बनाया है और बाप समान नेचर को नेचुरल नहीं बना सकते! उल्टी नेचर के वश हो जाते हैं और यथार्थ नेचर बाप समान बनने की, इसमें मेहनत क्यों? तो बापदादा अभी सभी बच्चों की देहीअभिमानी रहने की नेचुरल नेचर देखने चाहते हैं। ब्रह्मा बाप को देखा चलतेफिरते कोई भी कार्य करते देहीअभिमानी स्थिति नेचुरल नेचर थी।
  5. सिर्फ अपनी देह या दूसरे की देह में फंसना, इसको ही देह अहंकार या देहभान नहीं कहा जाता है। देह अहंकार भी है, देह भान भी है।
  6. लेकिन बापदादा सिर्फ छोटा सा सहज पुरुषार्थ बताते हैं कि सदा मनवचनकर्म, सम्बन्धसम्पर्क में लास्ट मंत्र तीन शब्दों का (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) सदा याद रखो। संकल्प करते हो तो चेक करोमहामंत्र सम्पन्न है? ऐसे ही बोल, कर्म सबमें सिर्फ तीन शब्द याद रखो और समानता करो। यह तो सहज है ना? सारी मुरली नहीं कहते हैं याद करो, तीन शब्द। यह महामंत्र संकल्प को भी श्रेष्ठ बना देगा। वाणी में निर्माणता लायेगा। कर्म में सेवा भाव लायेगा। सम्बन्धसम्पर्क में सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति बनायेगा।
  7. लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ। लक्ष्य सभी का देखकर बापदादा बहुतबहुत खुश होते हैं। अब सिर्फ समान बनाओ, तो बाप समान बहुत सहज बन जायेंगे।
  8. जब बाप साथ है तो सर्व बोझ बाप को देकर खुद हल्के हो जाओ, यही विधि है नष्टोमोहा बनने की।

25th November 2024

  1. अशान्त होना यह भी अवगुण है। अवगुण को निकालना है।
  2. शान्ति से ही याद कर सकते हैं। अशान्ति वाले याद कर सकें।
  3. कर्मेन्द्रियों पर विजय पानी है।
  4. यहाँ कोई अशान्त रहते हैं तो शान्ति फैलाने के निमित्त नहीं बन सकते।
  5. कोई ने कुछ कहा तो भी सुनाअनसुना कर अपनी मस्ती में मस्त रहना चाहिए। कोई भी बीमारी वा दु: आदि है तो तुम सिर्फ याद में रहो।
  6. अभी बच्चों को मालूम पड़ता हैरावणराज्य में हम कितना छीछी बने हैं। आहिस्तेआहिस्ते नीचे उतरते आये हैं। यह है ही विषय सागर। अब बाप इस विष के सागर से निकाल तुमको क्षीरसागर में ले जाते हैं। बच्चों को यहाँ मीठा बहुत लगता है फिर भूल जाने से क्या अवस्था हो जाती है। बाप कितना खुशी का पारा चढ़ाते हैं। इस ज्ञान अमृत का ही गायन है। ज्ञान अमृत का गिलास पीते रहना है। यहाँ तुमको बहुत अच्छा नशा चढ़ता है फिर बाहर जाने से वह नशा कम हो जाता है। बाबा खुद फील करते हैं, यहाँ बच्चों को अच्छी फीलिंग आती हैहम अपने घर जाते हैं, हम बाबा की श्रीमत पर राजधानी स्थापन कर रहे हैं। हम बड़े वारियर्स हैं। यह सब बुद्धि में नॉलेज है, जिससे तुम इतना पद पाते हो।
  7. तुम्हारा दैवी कैरेक्टर बन रहा है। 5 विकारों से आसुरी कैरेक्टर हो जाता है। कितनी चेंज होती है। तो चेन्ज में आना चाहिए ना। शरीर छूट जाए फिर थोड़ेही चेन्ज हो सकेगी।
  8. पहले से ही आवाज़ है, यह सबको भाईबहन बना देते हैं। अरे, भाईबहन का सम्बन्ध तो अच्छा है ना। तुम आत्मायें तो भाईभाई हो। परन्तु फिर भी जन्मजन्मान्तर की दृष्टि जो पक्की हुई है, वह टूटती नहीं है। बाबा पास तो बहुत समाचार आते हैं। बाप समझाते हैं इस छीछी दुनिया से तुम बच्चों की दिल हट जाना चाहिए। गुलगुल बनना चाहिए। कितने ज्ञान सुनकर भी भूल जाते हैं। सारा ज्ञान उड़ जाता है।
  9. काम महाशत्रु है ना। बाबा तो बहुत अनुभवी है। इस विकार के पिछाड़ी राजाओं ने अपनी राजाई गँवाई है। काम बहुत खराब है। सब कहते भी हैं बाबा यह बहुत कड़ा दुश्मन है। बाप कहते हैं काम को जीतने से तुम विश्व का मालिक बनेंगे। परन्तु काम विकार ऐसा कड़ा है जो प्रतिज्ञा करके फिर गिर पड़ते हैं। बहुत मुश्किल से कोई सुधरते हैं।
  10. उठते, बैठते, चलते ज्ञान का सिमरण कर मोती चुगने वाला हंस बनना है। सबसे गुण ग्रहण करने हैं। एकदूसरे में गुण ही फूंकने हैं। 

26th November 2024

  1. योग से ही हमारी आत्मा जो पतित बन गई है, वह पावन बनेगी।
  2. दिल साफ वाले ही दिल पर चढ़ते हैं। 
  3. बाप कहते हैंबच्चों, मुझे याद करते रहो तो तुम्हारे कपड़े साफ हों। मेरी श्रीमत पर चलो। श्रीमत पर चलने वाले का कपड़ा साफ नहीं होता। आत्मा शुद्ध होती ही नहीं। बाप तो दिनरात इस पर ही जोर देते हैंअपने को आत्मा समझो।
  4. हमारी बुद्धि बिगड़ती है तो समझना चाहिए माया ने नाक से पकड़ा है। याद की यात्रा में बहुत बल है। 
  5. देखना चाहिएहमारी चलन दैवी है या आसुरी है? समय बहुत थोड़ा है।

27th November 2024

  1. कोईकोई कहते हैं बाबा हम ट्रेनिंग लिए जावें? तो बाबा कहते हैं बच्चे, पहले तुम अपनी कमियों को तो निकालो। अपने को देखो हमारे में कितने अवगुण हैं? अच्छेअच्छे महारथियों को भी माया एकदम लूनपानी कर देती है।
  2. अब यह तो है रूहानी नशा। तुम जानते हो बेहद का बाप टीचर बन हमको पढ़ाते हैं और डायरेक्शन देते हैंऐसेऐसे करो। कोईकोई समय में किसको मिथ्या अहंकार भी जाता है। माया है ना। ऐसीऐसी बातें बनाते हैं जो बात मत पूछो। बाबा समझते हैं यह चल नहीं सकेंगे। अन्दर की बड़ी सफाई चाहिए। आत्मा बहुत अच्छी चाहिए।
  3. मीठेमीठे बच्चों तुम जानते हो ना इस समय तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों ही पतित हैं। अभी तुम निकल आये हो। जोजो निकलकर आये हैं उनमें ज्ञान की पराकाष्ठा है ना। तुमको बाप मिला तो फिर क्या! यह नशा जब चढ़े तब तुम किसको समझा सको। बाप आया हुआ है। बाप हमारी आत्मा को पवित्र बना देते हैं। आत्मा पवित्र बनने से फिर शरीर भी फर्स्टक्लास मिलता है।
  4. तुम इतना ऊंच थे फिर गिरतेगिरते आकर नीचे पड़े हो। शिवालय में थे तो आत्मा कितनी शुद्ध थी।
  5. आत्मा की बात है। आत्मा पर ही तरस पड़ता है। एकदम तमोप्रधान दुनिया में आकर आत्मा बैठी है इसलिए बाप को याद करती हैबाबा, हमको वहाँ ले जाओ। यहाँ बैठे भी तुमको यह ख्यालात चलाने चाहिए इसलिए बाबा कहते हैं बच्चों के लिए फर्स्टक्लास युनिवर्सिटी बनाओ।
  6. अभी तुम्हारी लड़ाई है ही रावण से। देहअभिमान भी कमाल करता है, जो बिल्कुल पतित बना देता है। देहीअभिमानी होने से आत्मा शुद्ध बन जाती है।
  7. समझते हैं कि बाबा आया है हमको नर से नारायण बनाने परन्तु माया का बड़ा गुप्त मुकाबला है। तुम्हारी लड़ाई है ही गुप्त इसलिए तुमको अननोनवारियर्स कहा गया है। अननोन वारियर और कोई होता ही नहीं। तुम्हारा ही नाम है वारियर्स। और तो सबके नाम रजिस्टर में हैं ही। तुम अननोन वारियर्स की निशानी उन्होंने पकड़ी है। तुम कितने गुप्त हो, किसको पता नहीं। तुम विश्व पर विजय पा रहे हो माया को वश करने के लिए। तुम बाप को याद करते हो फिर भी माया भुला देती है।
  8. कहाँ भी रहते याद करो तो जंक उतर जाये।
  9. पहले बाप की याद फिर टीचर की फिर गुरू की, कायदा ऐसे कहता है। टीचर को तो जरूर याद करेंगे, उनसे पढ़ाई का वर्सा मिलता है फिर वानप्रस्थ अवस्था में गुरू मिलता है।
  10. बाप कहते हैं अच्छा वा बुरा होतुम बाप का डायरेक्शन ही समझो। उन पर चलना पड़े। इनकी कोई भूल भी हो जायेगी तो अभुल करा देंगे। उनमें ताकत तो है ना। तुम देखते हो यह कैसे चलते हैं, इनके सिर पर कौन बैठे हैं। एकदम बाजू में बैठे हैं। गुरू लोग बाजू में बिठाकर सिखलाते हैं ना। तो भी मेहनत इनको करनी होती है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में पुरूषार्थ करना पड़ता है।
  11. अपने ख्यालात बड़े आलीशान रखने हैं। बहुत अच्छी रॉयल युनिवर्सिटी और हॉस्टल खोलने का प्रबन्ध करना है। बाप का गुप्त मददगार बनना है, अपना शो नहीं करना है। 

28th November 2024

  1. ओम् शान्ति। ओम् शान्ति अक्सर करके क्यों कहा जाता है? यह है परिचय देनाआत्मा का परिचय आत्मा ही देती है। बातचीत आत्मा ही करती है शरीर द्वारा। आत्मा बिगर तो शरीर कुछ कर नहीं सकता। तो यह आत्मा अपना परिचय देती है। हम आत्मा हैं परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं।
  2. बाप समझाते हैं पहलेपहले है ज्ञान फिर है भक्ति। ऐसे नहीं कि पहले भक्ति, पीछे ज्ञान है। पहले है ज्ञान दिन, भक्ति है रात। फिर पीछे दिन कब आये? जब भक्ति का वैराग्य हो। तुम्हारी बुद्धि में यह रहना चाहिए।
  3. तुम समझते हो हम आत्मायें स्प्रीचुअल फादर के स्प्रीचुअल बच्चे हैं। रूहानी बच्चों को जरूर रूहानी बाप चाहिए। रूहानी बाप और रूहानी बच्चे। रूहानी बच्चों का एक ही रूहानी बाप है। वह आकर नॉलेज देते हैं।
  4. बाप कैसे आते हैंवह भी समझाया है। बाप कहते हैं मुझे भी प्रकृति धारण करनी पड़ती है।
  5. अभी तुमको बाप से सुनना ही सुनना है। सिवाए बाप के और कोई से सुनना नहीं है। बच्चे सुनकर फिर और भाईयों को सुनाते हैं। कुछ कुछ सुनाते जरूर हैं। अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो क्योंकि वही पतितपावन है। बुद्धि वहाँ चली जाती है। बच्चों को समझाने से समझ जाते हैं क्योंकि पहले बेसमझ थे।
  6. सब आत्मायें शरीर धारण कर पार्ट बजाती हैं। तो शिवबाबा भी जरूर शरीर द्वारा पार्ट बजायेंगे ना। शिवबाबा पार्ट बजावे फिर तो कोई काम का रहा। वैल्यु ही नहीं होती। उनकी वैल्यु ही तब होती है जबकि सारी दुनिया को सद्गति में पहुँचाते हैं तब उनकी महिमा भक्तिमार्ग में गाते हैं। सद्गति हो जाती है फिर पीछे तो बाप को याद करने की दरकार ही नहीं रहती।
  7. समझते हो भक्ति की रात अलग है, ज्ञान दिन अलग है। दिन का भी टाइम होता है। भक्ति का भी टाइम होता है। यह बेहद की बात है। तुम बच्चों को नॉलेज मिली है बेहद की। आधाकल्प है दिन, आधाकल्प है रात। बाप कहते हैं मैं भी आता हूँ रात को दिन बनाने।
  8. तुम जानते हो आधाकल्प है रावण का राज्य, उसमें अनेक प्रकार के दु: हैं फिर बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं तो उसमें सुख ही सुख मिलता है। कहा भी जाता है यह सुख और दु: का खेल है। सुख माना राम, दु: माना रावण। रावण पर जीत पाते हो तो फिर रामराज्य आता है, फिर आधाकल्प बाद रावण, रामराज्य पर जीत पहन राज्य करते हैं। तुम अभी माया पर जीत पाते हो। अक्षर बाई अक्षर तुम अर्थ सहित कहते हो। यह तुम्हारी है ईश्वरीय भाषा।
  9. भारतवासी वास्तव में हैं ही देवीदेवता घराने के। नहीं तो किस घराने के गिने जाएं। परन्तु भारतवासियों को अपने घराने का मालूम होने कारण हिन्दू कह देते हैं।
  10. सब आत्माओं का बाप एक ही है, सभी उनको याद करते हैं। अब बाप कहते हैं इन आंखों से तुम जो कुछ देखते हो उनको भूल जाना है। यह है बेहद का वैराग्य, उनका है हद का। सिर्फ घरबार से वैराग्य जाता है। तुमको तो इस सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य है। भक्ति के बाद है वैराग्य पुरानी दुनिया का। फिर हम नई दुनिया में जायेंगे वाया शान्तिधाम। बाप भी कहते हैं यह पुरानी दुनिया भस्म होनी है। इस पुरानी दुनिया से अब दिल नहीं लगानी है। रहना तो यहाँ ही है, जब तक लायक बन जायें। हिसाबकिताब सब चुक्तू करना है।
  11. बाबा ने कहा है बड़ेबड़े अच्छे महारथियों को भी माया जोर से फथकायेगी। जैसे तुम माया को फथकाकर जीत पहनते हो, माया भी ऐसे करेगी। बाप ने कितने अच्छेअच्छे फर्स्टक्लास, रमणीक नाम भी रखे। परन्तु अहो माया, आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, फिर भागन्ती….. गिरन्ती हो गये। माया कितनी जबरदस्त है इसलिए बच्चों को बहुत खबरदार रहना है। युद्ध का मैदान है ना। माया के साथ तुम्हारी कितनी बड़ी युद्ध है।
  12. यहाँ ही सब हिसाबकिताब चुक्तू कर आधाकल्प के लिए सुख जमा करना है। इस पुरानी दुनिया से अब दिल नहीं लगानी है। इन आंखों से जो कुछ दिखाई देता है, उसे भूल जाना है।
  13. जब आपकी सूरत से बाप की सीरत दिखाई देगी तब समाप्ति होगी। 

29th November 2024

  1. बाबा हमारा बाप, टीचर और सतगुरू है। विचित्र है। उनको अपना शरीर नहीं है, फिर आते कैसे हैं? कहते हैं मुझे प्रकृति का, मुख का आधार लेना पड़ता है। मैं तो विचित्र हूँ। तुम सभी चित्र वाले हो।
  2. यह बाप आकर तुमको कितनी ऊंच पढ़ाई पढ़ाते हैं, तो उसका कदर भी रखना चाहिए। उनकी श्रीमत पर चलना चाहिए। परन्तु माया घड़ीघड़ी भुला देती है। माया इतनी जबरदस्त है जो अच्छेअच्छे बच्चों को गिरा देती है। बाप कितना धनवान बनाते हैं परन्तु माया एकदम माथा मूड़ लेती है। माया से बचना है तो बाप को जरूर याद करना पड़े। बहुत अच्छे बच्चे हैं जो बाप का बनकर फिर माया के बन जाते हैं, बात मत पूछो, पक्के ट्रेटर बन जाते हैं। माया एकदम नाक से पकड़ लेती है।
  3. बाप जानते हैं हम आत्माओं से बात करते हैं। सब कुछ आत्मा ही करती है, विकर्म आत्मा ही करती है। आत्मा ही शरीर द्वारा भोगती है। तुम्हारे लिए तो ट्रिब्युनल बैठेगी। खास उन बच्चों के लिए जो सर्विस लायक बनकर फिर ट्रेटर बन जाते हैं। यह तो बाप ही जानते हैं, कैसे माया हप कर लेती है। बाबा हमने हार खा ली, काला मुँह कर लिया…… अब क्षमा करो। अब गिरा और माया का बना फिर क्षमा काहे की। उनको तो फिर बहुतबहुत मेहनत करनी पड़े। बहुत हैं जो माया से हार जाते हैं। बाप कहते हैंयहाँ बाप पास दान देकर जाओ फिर वापस नहीं लेना। नहीं तो खलास हो जायेगा।
  4. बच्चों में तो अहंकार रहता है। अच्छेअच्छे बच्चों को माया भुला देती है। बाबा समझ सकते हैं, कहते हैं मै नॉलेजफुल हूँ। जानीजाननहार का मतलब यह नहीं कि मैं सबके अन्दर को जानता हूँ। मै आया ही हूँ पढ़ानेख् ना कि रीड करने। मैं किसको रीड नहीं करता हूँ, तो यह साकार भी रीड नहीं करता है। इनको सब कुछ भूलना है। रीड फिर क्या करेंगे।
  5. बाप ही समझाते हैं बाकी तो सारी दुनिया की बुद्धि पर गॉडरेज का ताला लगा हुआ है। तुम समझते हो यह दैवीगुण वाले थे वही फिर आसुरी गुण वाले बने हैं।
  6. तुम बच्चे महावीर हो नाजो योगबल से माया पर जीत पाते हो। बाप को कहा जाता है ज्ञान का सागर। ज्ञान सागर बाप तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों की थालियां भरकर देते हैं। तुमको मालामाल बनाते हैं। जो ज्ञान धारण करते हैं वह ऊंच पद पाते हैं, जो धारणा नहीं करते तो जरूर कम पद पायेंगे।
  7. यह पढ़ाई ही नर से नारायण बनने की है। पुरानी दुनिया में आने की दिल किसकी होगी!
  8. बाप समझाते हैंमीठेमीठे बच्चों, तुम ही पूज्य से पुजारी बनते हो।
  9. अब फिर वापस घर जाना है। पतित कोई जा सके। आत्मा ही पतित अथवा पावन बनती है। सोने में खाद पड़ती है ना। जेवर में नहीं पड़ती, यह है ज्ञान अग्नि जिससे सारी खाद निकल तुम पक्का सोना बन जायेंगे फिर जेवर भी तुमको अच्छा मिलेगा। अभी आत्मा पतित है तो पावन के आगे नमन करते हैं। करती तो सब कुछ आत्मा है ना। अब बाप समझाते हैंबच्चे, सिर्फ मामेकम् याद करो तो बेड़ा पार हो जाए। पवित्र बन पवित्र दुनिया में चले जायेंगे। अब जो जितना पुरूषार्थ करेंगे।
  10. बड़ा खबरदार रहना है। युद्ध का मैदान है ना। बाप कहते हैं अब विकार में मत जाओ, गन्दे नहीं बनो। अब तो स्वर्ग में चलना है। पवित्र बनकर ही पवित्र नई दुनिया के मालिक बनेंगे। तुमको विश्व की बादशाही देता हूँ। कम बात है क्या। सिर्फ यह एक जन्म पवित्र बनो। अब पवित्र नहीं बनेंगे तो नीचे गिर जायेंगे। टैम्पटेशन बहुत है। काम पर जीत पाने से तुम जगत के मालिक बनेंगे।
  11. आप बच्चों के पास डायरेक्ट परमात्म लाइट का कनेक्शन है। सिर्फ स्वमान की स्मृति का स्विच डायरेक्ट लाइन से आन करो तो लाइट जायेगी और कितना भी गहरा सूर्य की रोशनी को भी छिपाने वाला काला बादल हो, वह भी भाग जायेगा। इससे स्वयं तो लाइट में रहेंगे ही लेकिन औरों के लिए भी लाइट हाउस बन जायेंगे।

30th November 2024


प्रश्नः
किन बच्चों के लिए माया चुम्बक है?

उत्तर:-
जो माया की खूबसूरती की तरफ आकर्षित हो जाते हैं, उन्हों के लिए माया चुम्बक है। श्रीमत पर चलने वाले बच्चे आकर्षित नहीं होंगे।

  1. शिवबाबा समझाते हैं तो जरूर कोई तन द्वारा समझायेंगे। ऊपर से कोई आवाज़ तो नहीं करते हैं। शक्ति वा प्रेरणा आदि की कोई बात नहीं। तुम आत्मा शरीर में आकर वार्तालाप करती हो। वैसे बाप भी कहते हैं मैं भी शरीर द्वारा डायरेक्शन देता हूँ। फिर उस पर जो जितना चलते हैं, अपना ही कल्याण करते हैं। श्रीमत पर चलें वा चलें, टीचर का सुनें वा सुनें, अपने लिए ही कल्याण वा अकल्याण करते हैं। नहीं पढ़ेंगे तो जरूर फेल होंगे। यह भी समझाते रहते हैं शिवबाबा से सीखकर फिर औरों को सिखलाना है। फादर शोज़ सन। जिस्मानी फादर की बात नहीं। यह है रूहानी बाप। यह भी तुम समझते हो जितना हम श्रीमत पर चलेंगे उतना वर्सा पायेंगे। पूरा चलने वाले ऊंच पद पायेंगे। नहीं चलने वाले ऊंच पद नहीं पायेंगे। बाप तो कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जाएं।
  2. बाप कितना समझाते हैं। कल तुम जिस शिव की पूजा करते थे वह आज तुमको पढ़ा रहे हैं। हर बात में पुरूषार्थ के लिए ही जोर दिया जाता है। देखा जाता हैमाया अच्छेअच्छे फूलों को नीचे गिरा देती है। हड़गुड़ (हाड़ियाँ) तोड़ देती है, जिसको फिर ट्रेटर कहा जाता है। जो एक राजधानी छोड़ दूसरे में चला जाता है उनको ट्रेटर कहा जाता है। बाप भी कहते हैं मेरे बनकर फिर माया का बन जाते हैं तो उनको भी ट्रेटर कहा जाता है। उनकी चलन ही ऐसी हो जाती है। अब बाप माया से छुड़ाने आये हैं। बच्चे कहते हैंमाया बड़ी दुश्तर है, अपनी तरफ बहुत खींच लेती है। माया जैसे चुम्बक है। इस समय चुम्बक का रूप धरती है। कितनी खूबसूरती दुनिया में बढ़ गई है।
  3. अच्छेअच्छे सर्विसएबुल जिनकी बाप महिमा करते हैं वह भी माया के चम्बे में जाते हैं। कुश्ती होती है ना। माया भी ऐसे लड़ती है। एकदम पूरा गिरा देती है। आगे चल तुम बच्चों को मालूम पड़ता जायेगा। माया एकदम पूरा सुला देती है। फिर भी बाप कहते हैं एक बार ज्ञान सुना है तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे। बाकी पद तो नहीं पा सकेंगे ना। कल्प पहले जिसने जो पुरूषार्थ किया है वा पुरूषार्थ करतेकरते गिरे हैं, ऐसे ही अब भी गिरते और चढ़ते हैं। हार और जीत होती है ना। सारा मदार बच्चों का याद पर है। बच्चों को यह अखुट खजाना मिलता है।
  4. जो पूरा पुरूषार्थ करते हैं, पूरा स्वर्ग का वर्सा पाते हैं। बुद्धि में रहना चाहिए हम बरोबर स्वर्ग का वर्सा पाते हैं। यह ख्याल नहीं करना है कि फिर नीचे गिरेंगे। यह सबसे जास्ती गिरे अब फिर चढ़ना ही है। ऑटोमेटिकली पुरूषार्थ भी होता रहता है। बाप समझाते हैंदेखो, माया कितनी प्रबल है। मनुष्यों में कितना अज्ञान भर गया है, अज्ञान के कारण बाप को भी सर्वव्यापी कह देते हैं।
  5. तुम ही जानते हो बेहद का बाप ज्ञान सागर आकर हमको पढ़ाते हैं फिर भी माया बहुतों को संशय में ला देती है। झूठ कपट छोड़ते नहीं।
  6. यह बापदादा दोनों इकट्ठे हैं ना। दादा की मत अपनी, ईश्वर की मत अपनी है। समझना चाहिए कि यह मत कौन देता है? यह भी बाप तो है ना। बाप की तो माननी चाहिए। बाबा तो बड़ा बाबा है ना, इसलिए बाबा कहते हैं ऐसे ही समझो शिवबाबा समझाते हैं। नहीं समझेंगे तो पद भी नहीं पायेंगे।
  7. ड्रामा के प्लेन अनुसार बाप भी है, दादा भी है। बाप की श्रीमत मिलती है। माया ऐसी है जो महावीर, पहलवानों से भी कोई कोई उल्टा काम करा देती है।
  8. जितना सच्चाई पर चलते हैं उतनी रक्षा होती है। झूठे की रक्षा नहीं होती। उनकी तो फिर सज़ा कायम हो जाती है, इसलिए बाप समझाते हैंमाया तो एकदम नाक से पकड़कर खत्म कर देती है। बच्चे खुद फील करते हैं माया खा लेती है तो फिर पढ़ाई छोड़ देते हैं। बाप कहते हैं पढ़ाई जरूर पढ़ो।
  9. अच्छा, कहाँ किसका दोष है। इसमें जैसा जो करेगा, सो भविष्य में पायेगा क्योंकि अभी दुनिया बदल रही है। माया ऐसे अंगुरी मार देती है जो वह खुशी नहीं रहती है। फिर चिल्लाते हैंबाबा, पता नहीं क्या होता है। युद्ध के मैदान में बहुत खबरदार रहते हैं कि कहाँ कोई अंगूरी मार दे। फिर भी जास्ती ताकत वाले होते हैं तो दूसरे को गिरा देते हैं। फिर दूसरे दिन पर रखते हैं। यह माया की लड़ाई तो अन्त तक चलती रहती है। नीचेऊपर होते रहते हैं। कई बच्चे सच नहीं बताते हैं। इज्ज़त का बहुत डर हैपता नहीं बाबा क्या कहेंगे। जब तक सच बताया नहीं है तब तक आगे चल सकें। अन्दर में खटकता रहता है, फिर वृद्धि हो जाती है। आपेही सच कभी नहीं बतायेंगे। कहाँ दो हैं तो समझते हैं यह बाबा को सुनायेंगे तो हम भी सुना दें। माया बड़ी दुश्तर है। समझा जाता है उनकी तकदीर में इतना ऊंच पद नहीं है तो सर्जन से छिपाते हैं। छिपाने से बीमारी छूटेगी नहीं। जितना छिपायेंगे उतना गिरते ही रहेंगे। भूत तो सबमें हैं ना। जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं बनी, तब तक क्रिमिनल आई भी छोड़ती नहीं है।
  10. ड्रामा को बुद्धि में रख बाप समान बहुतबहुत मीठा मुलायम (नम्र) बनकर रहना है। अपना अहंकार नहीं दिखाना है। अपनी मत छोड़ एक बाप की श्रेष्ठ मत पर चलना है।
  11. बापदादा बच्चों को अपने स्नेह और सहयोग की गोदी में बिठाकर मंजिल पर ले जा रहे हैं। यह मार्ग मेहनत का नहीं है लेकिन जब हाई वे के बजाए गलियों में चले जाते हो या मंजिल के निशाने से और आगे बढ़ जाते हो तो लौटने की मेहनत करनी पड़ती है। मेहनत से बचने का साधन है एक की मोहब्बत में रहो। एक बाप के लव में लीन होकर हर कार्य करो तो और कुछ दिखाई नहीं देगा। सर्व आकर्षणों से मुक्त हो जायेंगे।
  12. अपनी खुशनसीबी का अनुभव चेहरे और चलन से कराओ।

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