Key Points From Daily Murli – 28th March 2025
2. “योग अच्छा है तो चलन भी अच्छी रहेगी। पढ़ाई में फिर कहाँ अहंकार आ जाता है, इसमें सारी गुप्त मेहनत करनी है याद की इसलिए ही बहुतों की रिपोर्ट आती है कि बाबा हम योग में नहीं रह सकते। बाबा ने समझाया है योग अक्षर निकाल दो। बाप जिससे वर्सा मिलता है, उनको तुम याद नहीं कर सकते हो! वन्डर है। बाप कहते हैं – हे आत्मायें, तुम मुझ बाप को याद नहीं करते हो, मैं तुमको रास्ता बताने आया हूँ, तुम मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से पाप दग्ध हो जायेंगे।”
3. “जो फर्स्टक्लास बच्चे हैं वह एक माशूक के सच्चे–सच्चे आशिक बन याद करते रहेंगे। घूमने फिरने जाते हैं तो एकान्त में बगीचे में बैठकर याद करेंगे। झरमुई झगमुई आदि वार्तालाप में रहने से वायुमण्डल खराब होता है इसलिए जितना टाइम मिले बाप को याद करने की प्रैक्टिस करो। फर्स्टक्लास सच्चे माशूक के आशिक बनो।”
4. “बाप कहते हैं साइलेन्स से तुमको साइंस पर विजय पानी है। साइलेन्स और साइंस राशि एक ही है। मिलेट्री में भी 3 मिनट साइलेन्स कराते हैं। मनुष्य भी चाहते हैं हमको शान्ति मिले। अभी तुम जानते हो शान्ति का स्थान तो है ही ब्रह्माण्ड। जिस ब्रह्म महतत्व में हम आत्मा इतनी छोटी बिन्दी रहती हैं। वह सब आत्माओं का झाड़ तो वन्डरफुल होगा ना। मनुष्य कहते भी हैं भृकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा। बहुत छोटा सोने का तिलक बनाए यहाँ लगाते हैं। आत्मा भी बिन्दी है, बाप भी उनके बाजू में आकर बैठता है। साधू–सन्त आदि कोई भी अपनी आत्मा को जानते नहीं। जबकि आत्मा को ही नहीं जानते तो परमात्मा को कैसे जान सकते? सिर्फ तुम ब्राह्मण ही आत्मा और परमात्मा को जानते हो।”
5. “तुम अभी जानते हो कैसे इतनी छोटी आत्मा में पार्ट नूँधा हुआ है। आत्मा भी अविनाशी है, पार्ट भी अविनाशी है। वन्डर है ना। यह सारा बना बनाया खेल है। कहते भी हैं बनी बनाई बन रही… ड्रामा में जो नूँध है, वह तो जरूर होगा। चिंता की बात नहीं।”
6. “तुम बच्चों को अब अपने आपसे प्रतिज्ञा करनी है कि कुछ भी हो जाए – ऑसू नहीं बहायेंगे। फलाना मर गया, आत्मा ने जाकर दूसरा शरीर लिया, फिर रोने की क्या दरकार? वापिस तो आ नहीं सकते। आंसू आया – नापास हुए इसलिए बाबा कहते हैं प्रतिज्ञा करो कि हम कभी रोयेंगे नहीं। परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले बाप की, वह मिल गया तो बाकी क्या चाहिए।”
7. “ऩफरत कड़ा अक्षर है। वैराग्य अक्षर मीठा है। जब ज्ञान मिलता है तो फिर भक्ति का वैराग्य हो जाता है।”
8. “झरमुई झगमुई (परचिंतन) के वार्तालाप से वातावरण खराब नहीं करना है। एकान्त में बैठ सच्चे–सच्चे आशिक बन अपने माशूक को याद करना है।”
9. “अशरीरी पन की एक्सरसाइज और व्यर्थ संकल्प रूपी भोजन की परहेज से स्वयं को तन्दरूस्त बनाओ।”