Key Points From Daily Murli – 25th March 2025
किस बात का सदा सिमरण होता रहे तो माया तंग नहीं करेगी?
उत्तर:-
हम बाप के पास आये हैं, वह हमारा बाबा भी है, शिक्षक भी है, सतगुरू भी है परन्तु है निराकार। हम निराकारी आत्माओं को पढ़ाने वाला निराकार बाबा है, यह बुद्धि में सिमरण रहे तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा फिर माया तंग नहीं करेगी।”
1. “एक है शान्तिधाम, दूसरा है सुखधाम। सुखधाम है बाप की मिलकियत और दु:खधाम है रावण की मिलकियत। 5 विकारों में फँसने से दु:ख ही दु:ख है। अब बच्चे जानते हैं – हम बाबा के पास आये हैं। वह बाप भी है, शिक्षक भी है परन्तु है निराकार। हम निराकारी आत्माओं को पढ़ाने वाला भी निराकार है। वह है आत्माओं का बाप। यह सदैव बुद्धि में सिमरण होता रहे तो भी खुशी का पारा चढ़े।”
2. “अब तुम जानते हो हम यह शरीर छोड़ जायेंगे अपने घर। अभी यह प्रैक्टिस कर रहे हैं कि कैसे शरीर छोड़ें। ऐसा पुरूषार्थ दुनिया में कोई करते होंगे! तुम बच्चों को यह ज्ञान है कि हमारा यह पुराना शरीर है। बाप भी कहते है मैं पुरानी जुत्ती का लोन लेता हूँ। ड्रामा में यह रथ ही निमित्त बना हुआ है। यह बदल नहीं सकता। इनको फिर तुम 5 हज़ार वर्ष बाद देखेंगे। ड्रामा का राज़ समझ गये ना। यह बाप के सिवाए और कोई में ताकत नहीं जो समझा सके। यह पाठशाला बड़ी वन्डरफुल है, यहाँ बूढ़े भी कहेंगे हम जाते हैं भगवान की पाठशाला में – भगवान भगवती बनने।”
3. “बाप कहते हैं – मामेकम् याद करो, ऐसे नहीं कहते कि जिसमें प्रवेश किया है उनको भी याद करो। नहीं, कहते हैं मामेकम् याद करो।”
4. “तो बच्चों को बड़ा खुश होना चाहिए कि हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। आत्मा पढ़ती है ना। संस्कार आत्मा ही ले जाती है। अभी बाबा आत्मा में संस्कार भर रहे हैं। वह बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। जो बाप तुमको सिखलाते हैं तुम औरों को भी यह सिखलाओ, सृष्टि चक्र को याद करो और कराओ। जो उनमें गुण हैं वह बच्चों को भी देते हैं। कहते हैं मैं ज्ञान का सागर, सुख का सागर हूँ। तुमको भी बनाता हूँ। तुम भी सभी को सुख दो। मन्सा, वाचा, कर्मणा कोई को भी दु:ख न दो। सबके कान में यही मीठी–मीठी बात सुनाओ कि शिवबाबा को याद करो तो याद से विकर्म विनाश होंगे।”
5. “बाप राजयोग सिखला रहे हैं। वही बाप रचयिता है, श्रीकृष्ण तो रचना है ना। वर्सा रचयिता से मिलता है, न कि रचना से। श्रीकृष्ण से वर्सा नहीं मिलता है। विष्णु के दो रूप यह लक्ष्मी–नारायण हैं। छोटेपन में राधे–कृष्ण हैं। यह बातें भी पक्का याद कर लो।”
6. “बुद्धि में एक बार तीर लग गया तो बस। फिर युक्ति से चलना होता है। ऐसे भी नहीं कोई से बातचीत नहीं करनी है। गृहस्थ व्यवहार में भल रहो, सबसे बातचीत करो। उनसे भी रिश्ता भल रखो। बाप कहते हैं – चैरिटी बिगन्स एट होम। अगर रिश्ता ही नहीं रखेंगे तो उनका उद्धार कैसे करेंगे? दोनों से तोड़ निभाना है। बाबा से पूछते हैं – शादी में जाऊं? बाबा कहेंगे क्यों नहीं जाओ। बाप सिर्फ कहते हैं काम महाशत्रु है, उस पर जीत पानी है तो तुम जगत जीत बन जायेंगे। निर्विकारी होते ही हैं सतयुग में। योगबल से पैदाइस होती है। बाप कहते हैं निर्विकारी बनो।”
7. “यह है रूहानी बाप, जो तुमको पढ़ाते हैं। इस शरीर द्वारा पढ़ती आत्मा है, न कि शरीर। आत्मा को शुद्ध अभिमान है – मैं भी यह वर्सा ले रहा हूँ, स्वर्ग का मालिक बन रहा हूँ। स्वर्ग में तो सब जायेंगे परन्तु सबका नाम तो लक्ष्मी–नारायण नहीं होगा ना। वर्सा आत्मा पाती है। यह ज्ञान और कोई दे न सके सिवाए बाप के।”
8. “बाप कहते हैं मैं पतित दुनिया पतित शरीर में आकर तुमको पावन बनाता हूँ। मैं स्वर्ग देखता भी नहीं हूँ। ऐसे नहीं कि कोई के शरीर से छिप कर देख आऊं। नहीं, पार्ट ही नहीं है। तुम कितनी नई–नई बातें सुनते हो। तो अब इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है।”
9. “बाप की याद से ही सतोप्रधान बनना है। 63 जन्मों की कट चढ़ी हुई है। वह इस जन्म में उतारनी है, और कोई तकलीफ नहीं है। विष पीने की जो भूख लगती है, वह छोड़ देनी है, उनका तो ख्याल भी न करो। बाप कहते हैं इन विकारों से ही तुम जन्म–जन्मान्तर दु:खी हुए हो।”
10. “बाप सर्वशक्तिमान है या ड्रामा? ड्रामा है फिर उनमें जो एक्टर्स हैं उनमें सर्वशक्तिमान कौन है? शिवबाबा। और फिर रावण। आधाकल्प है राम राज्य, आधाकल्प है रावण राज्य।”
11. “आपेही अपने को राजतिलक देने के लायक बनाना है – ज्ञान और योग से। बाप को याद करते रहो तो तुम आपेही तिलक के लायक बन जायेंगे।”
12. “मन्सा–वाचा–कर्मणा कोई को भी दु:ख नहीं देना है। सबके कानों में मीठी–मीठी बातें सुनानी हैं, सबको बाप की याद दिलानी है। बुद्धियोग एक बाप से जुड़ाना है।”
13. “जहाँ प्रभू प्रीत है वहाँ अशरीरी बनना एक सेकण्ड के खेल के समान है। जैसे स्विच ऑन करते ही अंधकार समाप्त हो जाता है। ऐसे प्रीत बुद्धि बन स्मृति का स्विच ऑन करो तो देह और देह की दुनिया की स्मृति का स्विच ऑफ हो जायेगा। यह सेकण्ड का खेल है। मुख से बाबा कहने में भी टाइम लगता है लेकिन स्मृति में लाने में टाइम नहीं लगता। यह बाबा शब्द ही पुरानी दुनिया को भूलने का आत्मिक बाम्ब है।”
14. “सत्यता की परख है संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध–सम्पर्क सबमें दिव्यता की अनुभूति होना। कोई कहते हैं मैं तो सदा सच बोलता हूँ लेकिन बोल वा कर्म में अगर दिव्यता नहीं है तो दूसरे को आपका सच, सच नहीं लगेगा इसलिए सत्यता की शक्ति से दिव्यता को धारण करो। कुछ भी सहन करना पड़े, घबराओ नहीं। सत्य समय प्रमाण स्वयं सिद्ध होगा।”