Key Points From Daily Murli – 19th January 2025
1. “स्वमान, अभिमान को खत्म कर देता है क्योंकि स्वमान है श्रेष्ठ अभिमान। तो श्रेष्ठ अभिमान अशुद्ध भिन्न–भिन्न देह–अभिमान को समाप्त कर देता है। जैसे सेकण्ड में लाइट का स्विच ऑन करने से अंधकार भाग जाता है, अंधकार को भगाया नहीं जाता है या अंधकार को निकालने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है लेकिन स्विच ऑन किया अंधकार स्वत: ही समाप्त हो जाता है। ऐसे स्वमान की स्मृति का स्विच ऑन करो तो भिन्न–भिन्न देह–अभिमान समाप्त करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। मेहनत तब तक करनी पड़ती है जब तक स्वमान के स्मृति स्वरूप नहीं बनते। बापदादा बच्चों का खेल देखते हैं – स्वमान को दिल में वर्णन करते हैं – “मैं बापदादा के दिल तख्तनशीन हूँ”, वर्णन भी कर रहे हैं, सोच भी रहे हैं लेकिन अनुभव की सीट पर सेट नहीं होते। जो सोचते हैं वह अनुभव होना जरूरी है क्योंकि सबसे श्रेष्ठ अथॉरिटी अनुभव की अथॉरिटी है। तो बापदादा देखते हैं – सुनते बहुत अच्छा हैं, सोचते भी बहुत अच्छा हैं लेकिन सुनना और सोचना अलग चीज़ है, अनुभवी स्वरूप बनना – यही ब्राह्मण जीवन की श्रेष्ठ अथॉरिटी है। यही भक्ति और ज्ञान में अन्तर है। भक्ति में भी सुनने की मस्ती में बहुत मस्त होते हैं। सोचते भी हैं लेकिन अनुभव नहीं कर पाते हैं। ज्ञान का अर्थ ही है, ज्ञानी तू आत्मा अर्थात् हर स्वमान के अनुभवी बनना। अनुभवी स्वरूप रूहानी नशा चढ़ाता है। अनुभव कभी भी जीवन में भूलता नहीं है, सुना हुआ, सोचा हुआ भूल सकता है लेकिन अनुभव की अथॉरिटी कभी कम नहीं होती है। तो बापदादा यही बच्चों को स्मृति दिलाते हैं – हर सुनी हुई बात जो भगवान बाप से सुनी, उसके अनुभवी मूर्त बनो। अनुभव की हुई बात हजार लोग भी अगर मिटाने चाहें तो मिट नहीं सकती। माया भी अनुभव को मिटा नहीं सकती। जैसे शरीर धारण करते ही अनुभव करते हो कि मैं फलाना हूँ, तो कितना पक्का रहता है! कभी अपनी देह का नाम भूलता है? कोई आपको कहे नहीं आप फलानी या फलाना नहीं हो, तो मान सकते हो? ऐसे ही हर स्वमान की लिस्ट अनुभव करने से कभी स्वमान भूल नहीं सकता। लेकिन बापदादा ने देखा कि अनुभव हर स्वमान का वा हर प्वाइंट का, अनुभवी बनने में नम्बरवार हैं। जब अनुभव कर लिया कि मैं हूँ ही आत्मा, आत्मा के सिवाए और हो ही क्या! देह को तो मेरा कहते हो लेकिन मैं हूँ ही आत्मा, जब हो ही आत्मा तो देहभान कहाँ से आया? क्यों आया? कारण, 63 जन्म का अभ्यास, मैं देह हूँ, उल्टा अभ्यास पक्का है। यथार्थ अभ्यास अनुभव में भूल जाता है। बापदादा बच्चों को जब मेहनत करता देखते हैं तो बच्चों पर प्यार आता है। परमात्म बच्चे और मेहनत! कारण, अनुभव मूर्त की कमी है। जब देहभान का अनुभव कुछ भी हो जाए, कोई भी कर्म करते देहभान भूलता नहीं है, तो ब्राह्मण जीवन अर्थात् कर्मयोगी जीवन, योगी जीवन का अनुभव भूल कैसे सकता! तो चेक करो – हर सबजेक्ट को अनुभव में लाया है? ज्ञान सुनना सुनाना तो सहज है लेकिन ज्ञान स्वरूप बनना है। ज्ञान को स्वरूप में लाया तो स्वत: ही हर कर्म नॉलेजफुल अर्थात् नॉलेज की लाइट माइट वाला होगा। नॉलेज को कहा ही जाता है लाइट और माइट। ऐसे ही योगी स्वरूप, योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वरूप। धारणा स्वरूप अर्थात् हर कर्म, हर कर्मेन्द्रिय, हर गुण के धारणा स्वरूप होगी। सेवा के अनुभवी मूर्त, सेवाधारी का अर्थ ही है निरन्तर स्वत: ही सेवाधारी, चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्बन्ध–सम्पर्क हर कर्म में सेवा नेचुरल होती रहे, इसको कहा जाता है चार ही सबजेक्ट में अनुभव स्वरूप। तो सभी चेक करो – कहाँ तक अनुभवी बने हैं? हर गुण का अनुभवी, हर शक्ति का अनुभवी। वैसे भी कहावत है कि अनुभव समय पर बहुत काम में आता है। तो अनुभवी मूर्त का अनुभव कैसी भी समस्या हो, अनुभवी मूर्त अनुभव की अथॉरिटी से समस्या को सेकण्ड में समाधान स्वरूप में परिवर्तन कर लेता है। समस्या, समस्या नहीं रहेगी, समाधान स्वरूप बन जायेगी।”
2. “जैसे वाचा सेवा नेचुरल हो गई है, ऐसे मन्सा सेवा भी साथ–साथ और नेचुरल हो। वाणी के साथ मन्सा सेवा भी करते रहो तो आपको बोलना कम पड़ेगा। बोलने में जो एनर्जी लगाते हो वह मन्सा सेवा के सहयोग कारण वाणी की एनर्जी जमा होगी और मन्सा की शक्तिशाली सेवा सफलता ज्यादा अनुभव करायेगी।”