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Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 24th November 2024

1.    “बापदादा देख रहे थे कि स्वमान का निश्चय और उसका रूहानी नशा दोनों का बैलेन्स कितना रहता है? निश्चय हैनॉलेजफुल बनना और रूहानी नशा हैपावॅरफुल बनना। तो नॉलेजफुल में भी दो प्रकार देखेएक है नॉलेजफुल। दूसरे हैं नॉलेजेबुल (ज्ञान स्वरूप) तो अपने से पूछोमैं कौन?”

 

2.    “बापदादा जानते हैं कि बच्चों का लक्ष्य बहुत ऊंचा है। लक्ष्य ऊंचा है ना, क्या ऊंचा है? सभी कहते हैं बाप समान बनेंगे। तो जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है तो बाप समान बनने का लक्ष्य कितना ऊंचा है! तो लक्ष्य को देख बापदादा बहुत खुश होते हैं लेकिनलेकिन बतायें क्या? लेकिन क्यावह टीचर्स वा डबल फारेनर्स सुनेंगे? समझ तो गये होंगे। बापदादा लक्ष्य और लक्षण समान चाहते हैं। अभी अपने से पूछो कि लक्ष्य और लक्षण अर्थात् प्रैक्टिकल स्थिति समान है? क्योंकि लक्ष्य और लक्षण का समान होनायही बाप समान बनना है। समय प्रमाण इस समानता को समीप लाओ।”

 

3.    “कई बच्चे भिन्नभिन्न प्रकार की बाप समान बनने की मेहनत करते हैं, बाप की मोहब्बत के आगे मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं।”

 

4.    “नेचर बन गई, नेचुरल बन गया। जो अभी भी कभीकभी यही कहते हो कि देही के बजाए देह में जाते हैं। तो जैसे देहअभिमान, नेचर और नेचुरल रहा वैसे अभी देहीअभिमानी स्थिति भी नेचुरल और नेचर हो, नेचर बदलना मुश्किल होती है। अभी भी कभीकभी कहते हो ना कि मेरा भाव नहीं है, नेचर है। तो उस नेचर को नेचुरल बनाया है और बाप समान नेचर को नेचुरल नहीं बना सकते! उल्टी नेचर के वश हो जाते हैं और यथार्थ नेचर बाप समान बनने की, इसमें मेहनत क्यों? तो बापदादा अभी सभी बच्चों की देहीअभिमानी रहने की नेचुरल नेचर देखने चाहते हैं। ब्रह्मा बाप को देखा चलतेफिरते कोई भी कार्य करते देहीअभिमानी स्थिति नेचुरल नेचर थी।”

 

5.    “सिर्फ अपनी देह या दूसरे की देह में फंसना, इसको ही देह अहंकार या देहभान नहीं कहा जाता है। देह अहंकार भी है, देह भान भी है।”

 

6.    “लेकिन बापदादा सिर्फ छोटा सा सहज पुरुषार्थ बताते हैं कि सदा मनवचनकर्म, सम्बन्धसम्पर्क में लास्ट मंत्र तीन शब्दों का (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) सदा याद रखो। संकल्प करते हो तो चेक करोमहामंत्र सम्पन्न है? ऐसे ही बोल, कर्म सबमें सिर्फ तीन शब्द याद रखो और समानता करो। यह तो सहज है ना? सारी मुरली नहीं कहते हैं याद करो, तीन शब्द। यह महामंत्र संकल्प को भी श्रेष्ठ बना देगा। वाणी में निर्माणता लायेगा। कर्म में सेवा भाव लायेगा। सम्बन्धसम्पर्क में सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति बनायेगा।”

 

7.     “लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ। लक्ष्य सभी का देखकर बापदादा बहुतबहुत खुश होते हैं। अब सिर्फ समान बनाओ, तो बाप समान बहुत सहज बन जायेंगे।”

 

8.    “जब बाप साथ है तो सर्व बोझ बाप को देकर खुद हल्के हो जाओ, यही विधि है नष्टोमोहा बनने की।”


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