Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From Daily Sakar Vaani and Avyakt Vaani – In Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 4th December 2024

 “मीठे बच्चेसारा मदार याद पर है, याद से ही तुम मीठे बन जायेंगे, इस याद में ही माया की युद्ध चलती है

 

“प्रश्नः
इस ड्रामा में कौन सा राज़ बहुत विचार करने योग्य है? जिसे तुम बच्चे ही जानते हो?

उत्तर:-
तुम जानते हो कि ड्रामा में एक पार्ट दो बार बज सके। सारी दुनिया में जो भी पार्ट बजता है वह एक दो से नया। तुम विचार करते हो कि सतयुग से लेकर अब तक कैसे दिन बदल जाते हैं। सारी एक्टिविटी बदल जाती है। आत्मा में 5 हजार वर्ष की एक्टिविटी का रिकॉर्ड भरा हुआ है, जो कभी बदल नहीं सकता। यह छोटी सी बात तुम बच्चों के सिवाए और किसी की बुद्धि में नहीं सकती।”

 

1.   “रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैंमीठेमीठे बच्चे, तुम अपना भविष्य का पुरूषोत्तम मुख, पुरूषोत्तम चोला देखते हो? यह पुरूषोत्तम संगमयुग है ना। तुम फील करते हो कि हम फिर नई दुनिया सतयुग में इनकी वंशावली में जायेंगे, जिसको सुखधाम कहा जाता है। वहाँ के लिए ही तुम अभी पुरूषोत्तम बन रहे हो। बैठेबैठे यह विचार आना चाहिए।

 

2.    “अभी तुम समझते हो हमको ऊंच ते ऊंच भगवान पढ़ाते हैं तो जरूर देवीदेवता ही बनायेंगे। यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए।”

 

3.    “हम आत्मा अभी पतित से पावन बनने के लिए पावन बाप को याद करते हैं। आत्मा याद करती है अपने स्वीट बाप को। बाप खुद कहते हैं तुम मुझे याद करेंगे तो पावन सतोप्रधान बन जायेंगे। सारा मदार याद की यात्रा पर है। बाप जरूर पूछेंगेबच्चे, मुझे कितना समय याद करते हो? याद की यात्रा में ही माया की युद्ध चलती है। तुम युद्ध भी समझते हो। यह यात्रा नहीं परन्तु जैसेकि लड़ाई है, इसमें ही बहुत खबरदार रहना है। नॉलेज में माया के तूफान आदि की बात नहीं। बच्चे कहते भी हैं बाबा हम आपको याद करते हैं, परन्तु माया का एक ही तूफान नीचे गिरा देता है। नम्बरवन तूफान है देहअभिमान का। फिर है काम, क्रोध, लोभ, मोह का। बच्चे कहते हैं बाबा हम बहुत कोशिश करते हैं याद में रहने की, कोई विघ्न आये परन्तु फिर भी तूफान जाते हैं। आज क्रोध का, कभी लोभ का तूफान आया। बाबा आज हमारी अवस्था बहुत अच्छी रही, कोई भी तूफान सारा दिन नहीं आया। बड़ी खुशी रही। बाप को बड़े प्यार से याद किया। स्नेह के आंसू भी आते रहे। बाप की याद से ही बहुत मीठे बन जायेंगे। यह भी समझते हैं हम माया से हार खातेखाते कहाँ तक आकर पहुँचे हैं। यह कोई समझते थोड़े ही हैं।”

 

4.    “मनुष्य तो लाखों वर्ष कह देते हैं या परम्परा कह देते। तुम कहेंगे हम फिर से अभी मनुष्य से देवता बन रहे हैं। यह नॉलेज बाप ही आकर देते हैं। विचित्र बाप ही विचित्र नॉलेज देते हैं। विचित्र निराकार को कहा जाता है। निराकार कैसे यह नॉलेज देते हैं।”

 

5.    “बाप खुद समझाते हैं मैं कैसे इस तन में आता हूँ। फिर भी मनुष्य मूँझते हैं। क्या एक इसी तन में आयेगा! परन्तु ड्रामा में यही तन निमित्त बनता है। ज़रा भी चेन्ज हो नहीं सकती। यह बातें तुम ही समझकर और दूसरों को समझाते हो। आत्मा ही पढ़ती है। आत्मा ही सीखतीसिखलाती है। आत्मा मोस्ट वैल्युबुल है। आत्मा अविनाशी है, सिर्फ शरीर खत्म होता है। हम आत्मायें अपने परमपिता परमात्मा से रचता और रचना के आदिमध्यअन्त के 84 जन्मों की नॉलेज ले रहे हैं। नॉलेज कौन लेते हैं? हम आत्मा। तुम आत्मा ने ही नॉलेजफुल बाप से मूलवतन, सूक्ष्मवतन को जाना है।”

 

6.    “बच्चे में नॉलेज नहीं होती और कोई अवगुण भी नहीं होता है, इसलिए उसे महात्मा कहा जाता है क्योंकि पवित्र है। जितना छोटा बच्चा उतना नम्बरवन फूल। बिल्कुल ही जैसे कर्मातीत अवस्था है। कर्मअकर्मविकर्म को कुछ भी नहीं जानते हैं, इसलिए वह फूल है। सबको कशिश करते हैं। जैसे एक बाप सभी को कशिश करते हैं। बाप आये ही हैं सभी को कशिश कर खुशबूदार फूल बनाने। कई तो कांटे के कांटे ही रह जाते हैं। 5 विकारों के वशीभूत होने वाले को कांटा कहा जाता है। नम्बरवन कांटा है देहअभिमान का, जिससे और कांटों का जन्म होता है। कांटों का जंगल बहुत दु: देता है। किस्मकिस्म के कांटे जंगल में होते हैं ना इसलिए इसको दु:खधाम कहा जाता है। नई दुनिया में कांटे नहीं होते इसलिए उसको सुखधाम कहा जाता है। शिवबाबा फूलों का बगीचा लगाते हैं, रावण कांटों का जंगल लगाता है इसलिए रावण को कांटों की झाड़ियों से जलाते हैं और बाप पर फूल चढ़ाते हैं। इन बातों को बाप जानें और बच्चे जानें और जाने कोई।”

 

7.     “तुम बच्चे जानते होड्रामा में एक पार्ट दो बार बज सके। बुद्धि में है सारी दुनिया में जो पार्ट बजता है वह एकदो से नया। तुम विचार करो सतयुग से लेकर अब तक कैसे दिन बदल जाता है। सारी एक्टिविटी ही बदल जाती है। 5 हजार वर्ष की एक्टिविटी का रिकॉर्ड आत्मा में भरा हुआ है। वह कभी बदल नहीं सकता। हर आत्मा में अपनाअपना पार्ट भरा हुआ है। यह छोटीसी बात भी कोई की बुद्धि में सके। इस ड्रामा के पास्ट, प्रेजन्ट और फ्युचर को तुम जानते हो। यह स्कूल है ना। पवित्र बन बाप को याद करने की पढ़ाई बाप पढ़ाते हैं। यह बातें कभी सोची थी कि बाप आकर ऐसे पतित से पावन बनाने की पढ़ाई पढ़ायेंगे! इस पढ़ाई से ही हम विश्व के मालिक बनेंगे! भक्ति मार्ग के पुस्तक ही अलग हैं, उसको कभी पढ़ाई नहीं कहा जाता है। ज्ञान के बिना सद्गति हो भी कैसे? बाप बिना ज्ञान कहाँ से आये जिससे सद्गति हो।”

 

8.    “सारा ज्ञान आत्मा में रहता है। आत्मा का कोई धर्म नहीं होता। आत्मा जब शरीर धारण करती है फिर कहते हैं फलाना इसइस धर्म का है। आत्मा का धर्म क्या है? एक तो आत्मा बिन्दी मिसल है और शान्त स्वरूप है, शान्तिधाम में रहती है।”

 

9.    “आत्मा तो एक छोटा सितारा है। इतनी सारी नॉलेज एक छोटेसे सितारे में है। सितारा शरीर के बिगर बात भी नहीं कर सकता। सितारे को पार्ट बजाने के लिए इतने ढेर आरगन्स मिले हुए हैं। तुम सितारों की दुनिया ही अलग है। आत्मा यहाँ आकर फिर शरीर धारण करती है। शरीर छोटाबड़ा होता है। आत्मा ही अपने बाप को याद करती है। वह भी जब तक शरीर में है। घर में आत्मा बाप को याद करेगी? नहीं। वहाँ कुछ भी मालूम नहीं पड़ताहम कहाँ हैं! आत्मा और परमात्मा दोनों जब शरीर में हैं तब आत्माओं और परमात्मा का मेला कहा जाता है।”

 

10. “सेकण्डसेकण्ड पास होते 5 हज़ार वर्ष बीत गये। फिर वन नम्बर से शुरू करना है, एक्यूरेट हिसाब है। अभी तुमसे कोई पूछे इसने कब जन्म लिया था? तो तुम एक्यूरेट बता सकते हो। श्रीकृष्ण ही पहले नम्बर में जन्म लेता है। शिव का तो कुछ भी मिनट सेकण्ड नहीं निकाल सकते। श्रीकृष्ण के लिए तिथितारीख, मिनट, सेकण्ड निकाल सकते हो। मनुष्यों की घड़ी में फ़र्क पड़ सकता है। शिवबाबा के अवतरण में तो बिल्कुल फ़र्क नहीं पड़ सकता। पता ही नहीं पड़ता कब आया? ऐसे भी नहीं, साक्षात्कार हुआ तब आया। नहीं, अन्दाज लगा सकते हैं। मिनटसेकेण्ड का हिसाब नहीं बता सकते। उनका अवतरण भी अलौकिक है, वह आते ही हैं बेहद की रात के समय। बाकी और भी जो अवतरण आदि होते हैं, उनका पता पड़ता है। आत्मा शरीर में प्रवेश करती है। छोटा चोला पहनती है फिर धीरेधीरे बड़ा होता है। शरीर के साथ आत्मा बाहर आती है। इन सभी बातों को विचार सागर मंथन कर फिर औरों को समझाना होता है। कितने ढेर मनुष्य हैं, एक मिले दूसरे से। कितना बड़ा माण्डवा है। जैसे बड़ा हाल है, जिसमें बेहद का नाटक चलता है।”

 

11.  “तुमसे जब कोई पूछते हैं तुम किसके पास जाते हो? तो बोलो, शिवबाबा के पास, जो ब्रह्मा के तन में आया हुआ है। यह ब्रह्मा कोई शिव नहीं है। जितना बाप को जानेंगे तो बाप के साथ प्यार भी रहेगा। बाबा कहते हैं बच्चे तुम और कोई को प्यार नहीं करो और संग प्यार तोड़ एक संग जोड़ो। जैसे आशिक माशूक होते हैं ना। यह भी ऐसे हैं। 108 सच्चे आशिक बनते हैं, उसमें भी 8 सच्चेसच्चे बनते हैं। 8 की भी माला होती है ना। 9 रत्न गाये हुए हैं। 8 दानें, 9 वां बाबा। मुख्य हैं 8 देवतायें, फिर 16108 शहजादे शहजादियों का कुटुम्ब बनता है त्रेता अन्त तक। बाबा तो हथेली पर बहिश्त दिखलाते हैं। तुम बच्चों को नशा है कि हम तो सृष्टि के मालिक बनते हैं। बाबा से ऐसा सौदा करना है।”

 


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