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Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 18th December 2024

 1.     “सर्वशक्तिमान बाप की याद से शक्ति ले रहे हो। बाप ने समझाया है आत्मा ही 84 का पार्ट बजाती है। आत्मा में ही सतोप्रधानता की ताकत थी, वह फिर दिनप्रतिदिन कम होती जाती है। सतोप्रधान से तमोप्रधान तो बनना ही है। जैसे बैटरी की ताकत कम होती जाती है तो मोटर खड़ी हो जाती है। बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है। आत्मा की बैटरी फुल डिस्चार्ज नहीं होती, कुछ कुछ ताकत रहती है। जैसे कोई मरता है तो दीवा जलाते हैं, उसमें घृत डालते ही रहते हैं कि कहाँ ज्योत बुझ जाए। अभी तुम बच्चे समझते हो तुम्हारी आत्मा में पूरी शक्ति थी, अभी नहीं है। अभी फिर तुम सर्वशक्तिमान बाप से अपना बुद्धियोग लगाते हो, अपने में शक्ति भरते हो क्योंकि शक्ति कम हो गई है। शक्ति एकदम खत्म हो जाए तो शरीर ही रहे। आत्मा बाप को याद करतेकरते एकदम प्योर हो जाती है। सतयुग में तुम्हारी बैटरी फुल चार्ज रहती है। फिर धीरेधीरे कला अर्थात् बैटरी कम होती जाती है। कलियुग अन्त तक आत्मा की ताकत एकदम थोड़ी रह जाती है। जैसे ताकत का देवाला निकल जाता है। बाप को याद करने से आत्मा फिर से भरपूर हो जाती है। तो अभी बाप समझाते हैं एक को ही याद करना है। ऊंच ते ऊंच है भगवंत। बाकी सब है रचना। रचना को रचना से हद का वर्सा मिलता है। क्रियेटर तो एक ही बेहद का बाप है। बाकी सब हैं हद के। बेहद के बाप को याद करने से बेहद का वर्सा मिलता है।”

 

2.    “ऊंच ते ऊंच है भगवान। फिर है ब्रह्मा, विष्णु, शंकरसूक्ष्मवतन वासी। यह ब्रह्मा, विष्णु, शंकर कहाँ से आये? यह सिर्फ साक्षात्कार होता है। सूक्ष्मवतन बीच का है ना। जहाँ स्थूल शरीर है नहीं। सूक्ष्म शरीर सिर्फ दिव्य दृष्टि से देखा जाता है।”

 

3.    “बाकी सूक्ष्मवतन का सिर्फ साक्षात्कार होता है। जो बिल्कुल पवित्र हो जाते हैं उनका साक्षात्कार होता है। यही फिर सतयुग में जाकर स्वर्ग के मालिक बनते हैं।”

 

4.    “गीता में भी है देह सहित देह के सब धर्मों को भूल मामेकम् याद करो।”

 

5.    “तुम्हारे में जो पक्के हैं वह वहाँ पहले आते हैं, कच्चे वाले पिछाड़ी में ही आयेंगे। मूलवतन में सभी आत्मायें रहती हैं फिर नीचे आती हैं तो वृद्धि होती जाती है। शरीर बिगर आत्मा कैसे पार्ट बजायेगी? यह पार्टधारियों की दुनिया है जो चारों युगों में फिरती रहती है। सतयुग में हम सो देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। अभी यह है पुरूषोत्तम संगमयुग। यह युग अभी ही बनता है जबकि बाप आते हैं। यह अभी बेहद की नॉलेज बेहद का बाप ही देते हैं।”

 

6.    “शिवबाबा को अपने शरीर का कोई नाम नहीं है। यह शरीर तो इस दादा का है। बाबा ने थोड़े समय के लिए यह लोन लिया है। बाप कहते हैं हमको तुमसे बात करने के लिए मुख तो चाहिए ना। मुख हो तो बाप बच्चों से बात भी कर सके। फिर बेहद की नॉलेज भी इस मुख से सुनाता हूँ, इसलिए इसको गऊमुख भी कहते हैं।”

 

7.   “बाप कहते हैं मेरे सभी बच्चे काम चिता पर चढ़कर कंगाल बन गये हैं। बाप बच्चों को कहते हैं तुम तो स्वर्ग के मालिक थे ना। स्मृति आती है?”

 

8.    “सबसे बड़ा कांटा है काम का। नाम ही है पतित दुनिया। सतयुग है 100 परसेन्ट पवित्र दुनिया। मनुष्य ही, पवित्र देवताओं के आगे जाकर नमन करते हैं। भल बहुत भक्त हैं जो वेजीटेरियन हैं, परन्तु ऐसे नहीं कि विकार में नहीं जाते हैं। ऐसे तो बहुत बाल ब्रह्मचारी भी रहते हैं। छोटेपन से कभी छीछी खाना आदि नहीं खाते हैं। संन्यासी भी कहते हैं निर्विकारी बनो। घरबार का संन्यास करते हैं फिर दूसरे जन्म में भी किसी गृहस्थी के पास जन्म ले फिर घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं। परन्तु क्या पतित से पावन बन सकते हैं? नहीं। पतितपावन बाप की श्रीमत बिगर कोई पतित से पावन बन नहीं सकते। भक्ति है उतरती कला का मार्ग। तो फिर पावन कैसे बनेंगे? पावन बनें तो घर जावें, स्वर्ग में जाएं। सतयुगी देवीदेवतायें कब घरबार छोड़ते हैं क्या? उन्हों का है हद का संन्यास, तुम्हारा है बेहद का संन्यास। सारी दुनिया, मित्रसम्बन्धी आदि सबका संन्यास। तुम्हारे लिए अभी स्वर्ग की स्थापना हो रही है। तुम्हारी बुद्धि स्वर्ग तरफ है। मनुष्य तो नर्क में ही लटके पड़े हैं। तुम बच्चे फिर बाप की याद में लटके पड़े हो।”

 

9.    “यह है ज्ञान के छींटे, जो आत्मा के ऊपर डाले जाते हैं। आत्मा पवित्र बनने से शीतल बन जाती है। इस समय सारी दुनिया काम चिता पर चढ़ काली हो पड़ी है। अब कलष मिलता है तुम बच्चों को। कलष से तुम खुद भी शीतल बनते हो और दूसरों को भी बनाते हो। यह भी शीतल बने हैं ना। दोनों इकट्ठे हैं। घरबार छोड़ने की तो बात ही नहीं, लेकिन गऊशाला बनी होगी तो जरूर कोई ने घरबार छोड़ा होगा। किसलिए? ज्ञानचिता पर बैठ शीतल बनने के लिए। जब तुम यहाँ शीतल बनेंगे तब ही तुम देवता बन सकते हो। अभी तुम बच्चों का बुद्धियोग पुराने घर की तरफ नहीं जाना चाहिए। बाप के साथ बुद्धि लटकी रहे क्योंकि तुम सबको बाप के पास घर जाना है। बाप कहते हैंमीठे बच्चे, मैं पण्डा बनकर आया हूँ तुमको ले चलने। यह शिव शक्ति पाण्डव सेना है।”

 

10. “मनुष्य तो समझते हैंपरमात्मा मरे हुए को जिन्दा कर सकते हैं। परन्तु बाप कहते हैंलाडले बच्चे, इस ड्रामा में हर एक को अनादि पार्ट मिला हुआ है। मैं भी क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर हूँ। ड्रामा के पार्ट को हम कुछ भी चेंज नहीं कर सकते। मनुष्य समझते हैं पत्तापत्ता भी परमात्मा के हुक्म से हिलता है लेकिन परमात्मा तो खुद कहते हैं मैं भी ड्रामा के अधीन हूँ, इसके बंधन में बांधा हुआ हूँ। ऐसे नहीं कि मेरे हुक्म से पत्ते हिलेंगे। सर्वव्यापी के ज्ञान ने भारतवासियों को बिल्कुल कंगाल बना दिया है। बाप के ज्ञान से भारत फिर सिरताज बनता है।”

 

11.  “ज्ञान चिता पर बैठ शीतल अर्थात् पवित्र बनना है। ज्ञान और योग से काम की तपत समाप्त करनी है। बुद्धियोग सदा एक बाप की तरफ लटका रहे।”

 

12. “अटूट निश्चय और फलक से कहोमेरा बाबातो माया समीप भी नहीं सकती।”


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