Key Points From Daily Murli – 22nd December 2024
2. “कोई–कोई सोचता स्वरूप रहते हैं, स्मृति स्वरूप सदा नहीं रहते। कभी सोचता स्वरूप, कभी स्मृति स्वरूप। जो स्मृति स्वरूप रहते हैं वह निरन्तर नेचुरल स्वरूप रहते हैं। जो सोचता स्वरूप रहते हैं उन्हें मेहनत करनी पड़ती है। यह संगमयुग मेहनत का युग नहीं है, सर्व प्राप्तियों के अनुभवों का युग है।”
3. “बापदादा देख रहे थे कि देहभान की स्मृति में रहने में क्या मेहनत की – मैं फलाना हूँ, मैं फलाना हूँ… यह मेहनत की? नेचुरल रहा ना! नेचर बन गई ना बॉडी कॉन्सेस की! इतनी पक्की नेचर हो गई जो अभी भी कभी–कभी कई बच्चों को आत्म–अभिमानी बनने के समय बॉडी कॉन्सेसनेस अपने तरफ आकर्षित कर लेती है। सोचते हैं मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, लेकिन देहभान ऐसा नेचुरल रहा है जो बार–बार न चाहते, न सोचते देहभान में आ जाते हैं। बापदादा कहते हैं अब मरजीवा जन्म में आत्म–अभिमान अर्थात् देही–अभिमानी स्थिति भी ऐसे ही नेचर और नेचुरल हो। मेहनत नहीं करनी पड़े – मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ। जैसे कोई भी बच्चा पैदा होता है और जब उसे थोड़ा समझ में आता है तो उसको परिचय देते हैं आप कौन हो, किसके हो, ऐसे ही जब ब्राह्मण जन्म लिया तो आप ब्राह्मण बच्चों को जन्मते ही क्या परिचय मिला? आप कौन हो? आत्मा का पाठ पक्का कराया गया ना! तो यह पहला परिचय नेचुरल नेचर बन जाए। नेचर नेचुरल और निरन्तर रहती है, याद करना नहीं पड़ता। ऐसे हर ब्राह्मण बच्चे की अब समय प्रमाण देही–अभिमानी स्टेज नेचुरल हो। कई बच्चों की है, सोचना नहीं पड़ता, स्मृति स्वरूप हैं। अब निरन्तर और नेचुरल स्मृति स्वरूप बनना ही है। लास्ट अन्तिम पेपर सभी ब्राह्मणों का यही छोटा सा है – “नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप।“”
4. “बापदादा कहते हैं सदा देही–अभिमानी, स्मृति स्वरूप भव। जीवनमुक्ति तो प्राप्त होनी ही है लेकिन जीवनमुक्त होने के पहले मेहनत मुक्त बनो। यह स्थिति समय को समीप लायेगी और आपके सर्व विश्व के भाई और बहिनों को दु:ख, अशान्ति से मुक्त करेगी। आपकी यह स्थिति आत्माओं के लिए मुक्तिधाम का दरवाजा खोलेगी। तो अपने भाई बहिनों के ऊपर रहम नहीं आता! कितना चारों ओर आत्मायें चिल्ला रही हैं तो आपकी मुक्ति सर्व को मुक्ति दिलायेगी। यह चेक करो – नेचुरल स्मृति सो समर्थ स्वरूप कहाँ तक बने हैं? समर्थ स्वरूप बनना ही व्यर्थ को सहज समाप्त कर देगा। बार–बार मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। अभी इस वर्ष बापदादा बच्चों के स्नेह में कोई भी बच्चे की किसी भी समस्या में मेहनत नहीं देखने चाहते। समस्या समाप्त और समाधान समर्थ स्वरूप। क्या यह हो सकता है? बोलो दादियां हो सकता है? टीचर्स बोलो, हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? फिर बहाना नहीं बताना, यह था ना, यह हुआ ना! यह नहीं होता तो नहीं होता! बापदादा बहुत मीठे–मीठे खेल देख चुके हैं। कुछ भी हो, हिमालय से भी बड़ा, सौ गुणा समस्या का स्वरूप हो, चाहे तन द्वारा, चाहे मन द्वारा, चाहे व्यक्ति द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा समस्या, पर–स्थिति आपकी स्व–स्थिति के आगे कुछ भी नहीं है और स्व–स्थिति का साधन है – स्वमान। नेचुरल रूप में स्वमान हो।”
5. “दाता बनकर सहयोग दो। बातें नहीं देखो, सहयोगी बनो। स्वमान में रहो और सम्मान देकर सहयोगी बनो क्योंकि किसी भी आत्मा को अगर आप दिल से सम्मान देते हो, यह बहुत–बहुत बड़ा पुण्य है क्योंकि कमजोर आत्मा को उमंग–उत्साह में लाया तो कितना बड़ा पुण्य है! गिरे हुए को गिराना नहीं है, गले लगाना है अर्थात् बाहर से गले नहीं लगाना, गले लगाना अर्थात् बाप समान बनाना। सहयोग देना। तो पूछा है ना कि इस वर्ष क्या–क्या करना है? बस सम्मान देना और स्वमान में रहना। समर्थ बन समर्थ बनाना। व्यर्थ की बातों में नहीं जाना। जो कमजोर आत्मा है ही कमजोर, उसकी कमजोरी को देखते रहेंगे तो सहयोगी कैसे बनेंगे! सहयोग दो तो दुआयें मिलेंगी। सबसे सहज पुरुषार्थ है, और कुछ भी नहीं कर सकते हो तो सबसे सहज पुरुषार्थ है – दुआयें दो, दुआयें लो। सम्मान दो और महिमा योग्य बनो। सम्मान देने वाला ही सर्व द्वारा माननीय बनते हैं। और जितना अभी माननीय बनेंगे, उतना ही राज्य अधिकारी और पूज्य आत्मा बनेंगे। देते जाओ लेने का नहीं, लो और दो यह तो बिजनेस वालों का काम है। आप तो दाता के बच्चे हो। बाकी बापदादा चारों ओर के बच्चों की सेवा को देख खुश है, सभी ने अच्छी सेवा की है। लेकिन अभी आगे बढ़ना है ना! वाणी द्वारा सभी ने अच्छी सेवा की, साधनों द्वारा भी अच्छी सेवा की रिजल्ट निकाली। अनेक आत्माओं का उल्हना भी समाप्त किया। साथ–साथ समय के तीव्रगति की रफ्तार देख बापदादा यही चाहते हैं कि सिर्फ थोड़ी आत्माओं की सेवा नहीं करनी है लेकिन विश्व की सर्व आत्माओं के मुक्तिदाता निमित्त आप हो क्योंकि बाप के साथी हो, तो समय की रफ्तार प्रमाण अभी एक ही समय इकट्ठा तीन सेवायें करनी हैं: एक वाणी, दूसरा स्व शक्तिशाली स्थिति और तीसरा श्रेष्ठ रूहानी वायब्रेशन जहाँ भी सेवा करो वहाँ ऐसा रूहानी वायब्रेशन फैलाओ जो वायब्रेशन के प्रभाव में सहज आकर्षित होते रहें। देखो, अभी लास्ट जन्म में भी आप सबके जड़ चित्र कैसे सेवा कर रहे हैं? क्या वाणी से बोलते? वायब्रेशन ऐसा होता जो भक्तों की भावना का फल सहज मिल जाता है। ऐसे वायब्रेशन शक्तिशाली हों, वायब्रेशन में सर्व शक्तियों की किरणें फैलती हों, वायुमण्डल बदल जाए। वायब्रेशन ऐसी चीज़ है जो दिल में छाप लग जाती है। आप सबको अनुभव है किसी आत्मा के प्रति अगर कोई अच्छा या बुरा वायब्रेशन आपके दिल में बैठ जाता है तो कितना समय चलता है? बहुत समय चलता है ना! निकालने चाहो तो भी नहीं निकलता है, किसका बुरा वायब्रेशन बैठ जाता है तो सहज निकलता है? तो आपका सर्व शक्तियों की किरणों का वायब्रेशन, छाप का काम करेगा। वाणी भूल सकती है, लेकिन वायब्रेशन की छाप सहज नहीं निकलती है। अनुभव है ना! है ना अनुभव?”
6. “सदा अपने इस स्वमान की सीट पर स्थित रहो कि मैं विजयी रत्न हूँ, मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ – तो जैसी सीट होती है वैसे लक्षण आते हैं। कोई भी परिस्थिति सामने आये तो सेकण्ड में अपने इस सीट पर सेट हो जाओ। सीट वाले का ही ऑर्डर माना जाता है। सीट पर रहो तो विजयी बन जायेंगे। संगमयुग है ही सदा विजयी बनने का युग, यह युग को वरदान है, तो वरदानी बन विजयी बनो।”