Key Points From Daily Murli – 20th December 2024
2. “लिखा है कि युद्ध के मैदान में मरेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे। परन्तु इसमें हिंसक युद्ध की तो बात ही नहीं है। तुम बच्चों को बाप से शक्ति लेकर माया पर जीत पानी है। तो जरूर बाप को याद करना पड़े तब ही तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। उन्होंने फिर स्थूल हथियार आदि बैठ दिखाये हैं। ज्ञान कटारी, ज्ञान बाण अक्षर सुना है तो स्थूल रूप में हथियार दे दिये हैं। वास्तव में हैं यह ज्ञान की बातें। बाकी इतनी भुजायें आदि तो कोई को होती नहीं। तो यह है युद्ध का मैदान। योग में रह शक्ति लेकर विकारों पर जीत पानी है।“
3. “बाप कहते हैं मुझे इस साधारण तन का आधार ले आना पड़ता है। प्रकृति का आधार लेने बिगर तुम बच्चों को राजयोग कैसे सिखलाऊं? आत्मा शरीर को छोड़ देती है तो फिर कोई बातचीत हो नहीं सकती। फिर जब शरीर धारण करे, बच्चा थोड़ा बड़ा हो तब बाहर निकले और बुद्धि खुले। छोटे बच्चे तो होते ही पवित्र हैं, उनमें विकार होते नहीं। संन्यासी लोग सीढ़ी चढ़कर फिर नीचे उतरते हैं।”
4. “पहले तो निश्चय चाहिए वह बाप है। अगर किसी की तकदीर में नहीं है तो फिर अन्दर में खिटखिट चलती रहेगी। पता नहीं चल सकेगा। बाबा ने समझाया है जब तुम बाप की गोद में आयेंगे तो यह विकारों की बीमारी और ही ज़ोर से बाहर निकलेगी। वैद्य लोग भी कहते हैं – बीमारी उथल खायेगी। बाप भी कहते हैं तुम बच्चे बनेंगे तो देह–अभिमान की और काम–क्रोध आदि की बीमारी बढ़ेगी। नहीं तो परीक्षा कैसे हो? कहाँ भी मूँझो तो पूछते रहो। जब तुम रूसतम बनते हो तब माया खूब पछाड़ती है। तुम बॉक्सिंग में हो। बच्चा नहीं बने हैं तो बॉक्सिंग की बात ही नहीं। वो तो अपने ही संकल्पों–विकल्पों में गोते खाते हैं, न कोई मदद ही मिलती है। बाबा समझते हैं – मम्मा–बाबा कहते हैं तो बाप का बच्चा बनना पड़े, फिर वह दिल में पक्का हो जाता है कि यह हमारा रूहानी बाप है। बाकी यह युद्ध का मैदान है, इसमें डरना नहीं है कि पता नहीं तूफान में ठहर सकेंगे वा नहीं? इसको कमजोर कहा जाता है। इसमें शेर बनना पड़े। पुरूषार्थ के लिए अच्छी मत लेनी चाहिए। बाप से पूछना चाहिए। बहुत बच्चे अपनी अवस्था लिखकर भेजते हैं। बाप को ही सर्टिफिकेट देना है। इनसे भल छिपायें परन्तु शिवबाबा से तो छिप न सके। बहुत हैं जो छिपाते हैं परन्तु उनसे कुछ भी छिप नहीं सकता। अच्छे का फल अच्छा, बुरे का फल बुरा होता है।”
5. “हम आत्माओं को बाबा ने पढ़ाया है फिर हमें दूसरों को पढ़ाना भी है। सच्चे ब्राह्मणों को सच्ची गीता सुनानी है। और कोई शास्त्रों की बात नहीं। मुख्य है गीता। बाकी हैं उनके बाल बच्चे। उनसे कोई का कल्याण नहीं होता।”
6. “यहाँ तो ज्ञान का नशा चाहिए। शराब का भी नशा होता है ना। कोई देवाला मारा हो और शराब पिया, जोर से नशा चढ़ा तो समझेगा हम राजाओं का राजा हैं। यहाँ तुम बच्चों को रोज़ ज्ञान अमृत का प्याला मिलता है। धारण करने लिए दिन–प्रतिदिन प्वाइंट्स ऐसी मिलती रहती हैं जो बुद्धि का ताला ही खुलता जाता है इसलिए मुरली तो कैसे भी पढ़नी है। जैसे गीता का रोज़ पाठ करते हैं ना। यहाँ भी रोज़ बाप से पढ़ना पड़े। पूछना चाहिए मेरी उन्नति नहीं होती है, क्या कारण है? आकर समझना चाहिए। आयेंगे भी वह जिनको पूरा निश्चय है कि वह हमारा बाप है।”
7. “यहाँ तो बहुत अच्छी रीति समझकर जाते हैं। बाहर जाने से ही खाली हो जाते हैं जैसे डिब्बी में ठिकरी रह जाती हैं, रत्न निकल जाते। ज्ञान सुनते–सुनते फिर विकार में गिरा तो खलास। बुद्धि से ज्ञान रत्नों की सफाई हो जाती है। ऐसे भी बहुत लिखते हैं – बाबा, मेहनत करते–करते फिर आज गिर गया। गिरे गोया अपने को और कुल को कलंक लगाया, तकदीर को लकीर लगा दी।”
8. “पुरूषार्थ करना है, जीत पानी है। चोट लगती है तो फिर खड़े हो जाओ। घड़ी–घड़ी चोट खाते रहेंगे तो हार खाकर बेहोश हो पड़ेंगे। बाप समझाते तो बहुत हैं परन्तु कोई ठहरे भी। माया बड़ी तीखी है। पवित्रता का प्रण कर लिया, अगर फिर गिरते हैं तो चोट बड़े ज़ोर से लग पड़ती है। बेड़ा पार होता ही है पवित्रता से।”
9. “ब्रह्मा बाप कर्म करते भी कर्मो के बंधन में नहीं फंसे। सम्बन्ध निभाते भी सम्बन्धों के बंधन में नहीं बंधे। वे धन और साधनों के बंधन से भी मुक्त रहे, जिम्मेवारियां सम्भालते हुए भी जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव किया। ऐसे फालो फादर करो। किसी भी पिछले हिसाब–किताब के बंधन में बंधना नहीं। संस्कार, स्वभाव, प्रभाव और दबाव के बंधन में भी नहीं आना तब कहेंगे कर्मबंधन मुक्त, जीवनमुक्त।”
10. “तमोगुणी वायुमण्डल में स्वयं को सेफ रखना है तो साक्षी होकर खेल देखने का अभ्यास करो।”