Key Points From Daily Murli – 19th December 2024
2. “देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ हम आत्मा आपको ही याद करेंगे। बाप ने समझाया है अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो।”
3. “तुम भाई–भाई हो, रहने का स्थान मूलवतन अथवा निर्वाणधाम है, जिसको निराकारी दुनिया भी कहते हैं। सब आत्मायें वहाँ रहती हैं। इस सूर्य चांद से भी उस पार वह तुम्हारा स्वीट साइलेन्स घर है परन्तु वहाँ बैठ तो नहीं जाना है। बैठकर क्या करेंगे। वह तो जैसे जड़ अवस्था हो गई। आत्मा जब पार्ट बजाये तब ही चैतन्य कहलाये। है चैतन्य परन्तु पार्ट न बजाये तो जड़ हुई ना। तुम यहाँ खड़े हो जाओ, हाथ पांव न चलाओ तो जैसे जड़ हुए। वहाँ तो नैचुरल शान्ति रहती है, आत्मायें जैसे कि जड़ हैं। पार्ट कुछ भी नहीं बजाती। शोभा तो पार्ट में है ना। शान्तिधाम में क्या शोभा होगी? आत्मायें सुख–दु:ख की भासना से परे रहती हैं। कुछ पार्ट ही नहीं बजाती तो वहाँ रहने से क्या फायदा? पहले–पहले सुख का पार्ट बजाना है। हर एक को पहले से ही पार्ट मिला हुआ है। कोई कहते हैं हमको तो मोक्ष चाहिए। बुदबुदा पानी में मिल गया बस, आत्मा जैसेकि है नहीं। कुछ भी पार्ट न बजावे तो जैसे जड़ कहेंगे। चैतन्य होते हुए जड़ होकर पड़ा रहे तो क्या फायदा? पार्ट तो सबको बजाना ही है। मुख्य हीरो–हीरोइन का पार्ट कहा जाता है। तुम बच्चों को हीरो–हीरोइन का टाइटिल मिलता है। आत्मा यहाँ पार्ट बजाती है। पहले सुख का राज्य करती है फिर रावण के दु:ख के राज्य में जाती है। अब बाप कहते हैं तुम बच्चे सबको यह पैगाम दो।“
4. “यूँ तो महिमा एक बाप की ही करते हैं – वाह बाबा, आप इन बच्चों द्वारा हमारा कितना कल्याण करते हो! कोई द्वारा तो होता है ना। बाप करनकरावनहार है, तुम्हारे द्वारा कराते हैं। तुम्हारा कल्याण होता है। तो तुम फिर औरों को कलम लगाते हो। जैसे–जैसे जो सर्विस करते हैं, उतना ऊंच पद पाते हैं।”
5. “माला बनती है ना। अपने से पूछना चाहिए हम माला में कौन–सा नम्बर बनेंगे? 9 रत्न मुख्य हैं ना। बीच में है हीरा बनाने वाला। हीरे को बीच में रखते हैं। माला में ऊपर फूल भी है ना। अन्त में तुमको पता पड़ेगा – कौन–से मुख्य दाने बनते हैं, जो डिनायस्टी में आयेंगे। पिछाड़ी में तुमको सब साक्षात्कार होगा जरूर। देखेंगे, कैसे यह सब सजायें खाते हैं। शुरू में दिव्य दृष्टि में तुम सूक्ष्मवतन में देखते थे। यह भी गुप्त है। आत्मा सजायें कहाँ खाती है – यह भी ड्रामा में पार्ट है। गर्भ जेल में सजायें मिलती हैं। जेल में धर्मराज को देखते हैं फिर कहते हैं बाहर निकालो। बीमारियाँ आदि होती हैं, वह भी कर्म का हिसाब है ना।”
6. “तुम फुल पार्ट बजाते हो। बाप तुमको ही समझाते हैं, तुम कैसे फुल पार्ट बजाते हो। पढ़ाई अनुसार ऊपर से आते हो पार्ट बजाने। तुम्हारी यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए। बाप कहते हैं अनेक बार तुमको पढ़ाता हूँ। यह पढ़ाई अविनाशी हो जाती है। आधाकल्प तुम प्रालब्ध पाते हो। उस विनाशी पढ़ाई से सुख भी अल्पकाल लिए मिलता है। अभी कोई बैरिस्टर बनता है फिर कल्प बाद बैरिस्टर बनेगा। यह भी तुम जानते हो – जो भी सबका पार्ट है, वही पार्ट कल्प–कल्प बजता रहेगा। देवता हो या शूद्र हो, हर एक का पार्ट वही बजता है, जो कल्प–कल्प बजता है। उनमें कोई फर्क नहीं हो सकता। हर एक अपना पार्ट बजाते रहते हैं। यह सारा बना–बनाया खेल है। पूछते हैं पुरूषार्थ बड़ा या प्रालब्ध बड़ी? अब पुरूषार्थ बिगर तो प्रालब्ध मिलती नहीं। पुरूषार्थ से प्रालब्ध मिलती है ड्रामा अनुसार। तो सारा बोझ ड्रामा पर आ जाता है। पुरूषार्थ कोई करते हैं, कोई नहीं करते हैं। आते भी हैं फिर भी पुरूषार्थ नहीं करते तो प्रालब्ध नहीं मिलती। सारी दुनिया में जो भी एक्ट चलती है, सारा बना–बनाया ड्रामा है। आत्मा में पहले से ही पार्ट नूँधा हुआ है आदि से अन्त तक। जैसे तुम्हारी आत्मा में 84 का पार्ट है, हीरा भी बनती है तो कौड़ी जैसा भी बनती है। यह सब बातें तुम अभी सुनते हो।”
7. “बाप तो सबकी सद्गति करते हैं। गाते हैं अहो बाबा, तेरी लीला… क्या लीला? कैसी लीला? यह पुरानी दुनिया को बदलने की लीला है। मालूम होना चाहिए ना। मनुष्य ही जानेंगे ना। बाप तुम बच्चों को ही आकर सब बातें समझाते हैं।”