Key Points From Daily Murli – 12th March 2025
सजाओं से छूटने के लिए कौन–सा पुरूषार्थ बहुत समय का चाहिए?
उत्तर:-
नष्टोमोहा बनने का। किसी में भी ममत्व न हो। अपने दिल से पूछना है – हमारा किसी में मोह तो नहीं है? कोई भी पुराना सम्बन्ध अन्त में याद न आये। योगबल से सब हिसाब–किताब चुक्तू करने हैं तब ही बिगर सजा ऊंच पद मिलेगा।”
1. “बाप बच्चों की पालना कर रहे हैं, पढ़ा रहे हैं। घर बैठे भी बच्चों को राय मिलती है कि घर में ऐसे–ऐसे चलो। अब बाप की श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ से श्रेष्ठ बनेंगे। बच्चे जानते हैं हम ऊंच ते ऊंच बाप की मत से ऊंच ते ऊंच मर्तबा पाते हैं। मनुष्य सृष्टि में ऊंच ते ऊंच यह लक्ष्मी–नारायण का मर्तबा है। यह पास्ट में होकर गये हैं। मनुष्य जाकर इन ऊंच को नमस्ते करते हैं। मुख्य बात है ही पवित्रता की। मनुष्य तो मनुष्य ही हैं। परन्तु कहाँ वह विश्व के मालिक, कहाँ अभी के मनुष्य! यह तुम्हारी बुद्धि में ही है – भारत बरोबर 5 हज़ार वर्ष पहले ऐसा था, हम ही विश्व के मालिक थे। और किसकी बुद्धि में यह नहीं है। इनको भी पता थोड़ेही था, बिल्कुल घोर अन्धियारे में थे। अभी बाप ने आकर बताया है ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे होते हैं? यह बड़ी गुह्य रमणीक बातें हैं जो और कोई समझ न सके। सिवाए बाप के यह नॉलेज कोई पढ़ा न सके। निराकार बाप आकर पढ़ाते हैं। श्रीकृष्ण भगवानुवाच नहीं है। बाप कहते हैं मैं तुमको पढ़ाकर सुखी बनाता हूँ। फिर मैं अपने निर्वाणधाम में चला आता हूँ। अभी तुम बच्चे सतोप्रधान बन रहे हो, इसमें खर्चा कुछ भी नहीं है। सिर्फ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। बिगर कौड़ी खर्चा 21 जन्म के लिए तुम विश्व के मालिक बनते हो। पाई–पैसा भेज देते हैं, वह भी अपना भविष्य बनाने। कल्प पहले जिसने जितना खजाने में डाला है, उतना ही अब डालेंगे। न जास्ती, न कम डाल सकते। यह बुद्धि में ज्ञान है इसलिए फिक्र की कोई बात नहीं रहती। बिगर कोई फिक्र के हम अपनी गुप्त राजधानी स्थापन कर रहे हैं। यह बुद्धि में सिमरण करना है। तुम बच्चों को बहुत खुशी में रहना चाहिए और फिर नष्टोमोहा भी बनना है। यहाँ नष्टोमोहा होने से फिर तुम वहाँ मोहजीत राजा–रानी बनेंगे। तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया तो अब खत्म होनी है, अब वापिस जाना है फिर इसमें ममत्व क्यों रखें। कोई बीमार होता है, डॉक्टर कह देते हैं, केस होपलेस है तो फिर उनसे ममत्व निकल जाता है। समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ जाए दूसरा लेती है। आत्मा तो अविनाशी है ना। आत्मा चली गई, शरीर खत्म हो गया फिर उनको याद करने से फायदा क्या! अभी बाप कहते हैं तुम नष्टोमोहा बनो। अपनी दिल से पूछना है – हमारा किसी में मोह तो नहीं है? नहीं तो वह पिछाड़ी में याद जरूर आयेंगे। नष्टोमोहा होंगे तो यह पद पायेंगे। स्वर्ग में तो सब आयेंगे – वह कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है सज़ा न खाकर, ऊंच पद पाना। योगबल से हिसाब–किताब चुक्तू करेंगे तो फिर सज़ा नहीं खायेंगे। पुराने सम्बन्धी भी याद न पड़ें। अभी तो हमारा ब्राह्मणों से नाता है फिर हमारा देवताओं से नाता होगा। अभी का नाता सबसे ऊंच है।”
2. “अभी बाप मिला है, शिक्षा दे रहे हैं तब तुम समझते हो। बाबा के पास कोई आते हैं बाबा पूछते हैं – आगे इस ड्रेस में इसी मकान में कभी मिले हो? कहते हैं – हाँ बाबा, कल्प–कल्प मिलते हैं।”
3. “अभी पुरूषार्थ करना है। वह भी ड्रामा अनुसार ही होता है। ड्रामा में नूँध है। ऐसे भी नहीं, ड्रामा में पुरूषार्थ करना होगा तो करेंगे, यह कहना रांग है। ड्रामा को पूरा नहीं समझा है, उनको फिर नास्तिक कहा जाता है। वे बाप से प्रीत रख न सकें। ड्रामा के राज़ को उल्टा समझने से गिर पड़ते हैं, फिर समझा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है। विघ्न तो अनेक प्रकार के आयेंगे। उनकी परवाह नहीं करनी है। बाप कहते हैं जो अच्छी बातें तुमको सुनाते हैं वह सुनो। बाप को याद करने से खुश बहुत रहेंगे। बुद्धि में है अब 84 का चक्र पूरा होता है, अब जाना है अपने घर। ऐसे–ऐसे अपने साथ बातें करनी हैं।”
4. “आत्मा तो है बिन्दी। आत्मा को क्या चाहिए? कुछ भी नहीं। आत्मा कितनी छोटी जगह लेती है। इस साकारी झाड़ और निराकारी झाड़ में कितना फर्क है! वह है बिन्दियों का झाड़। यह सब बातें बाप बुद्धि में बिठाते हैं।”
5. “योगबल से तुम एवरहेल्दी एवरवेल्दी बनते हो। नेचर–क्योर कराते हैं ना। अभी तुम्हारी आत्मा क्योर होने से फिर शरीर भी क्योर हो जायेगा। यह है स्प्रीचुअल नेचर–क्योर। हेल्थ वेल्थ हैप्पीनेस 21 जन्मों के लिए मिलती है। ऊपर में नाम लिख दो रूहानी नेचर–क्योर। मनुष्यों को पवित्र बनाने की युक्तियाँ लिखने में कोई हर्जा नहीं है। आत्मा ही पतित बनी है तब तो बुलाते हैं ना। आत्मा पहले सतोप्रधान पवित्र थी फिर अपवित्र बनी है फिर पवित्र कैसे बने? भगवानुवाच – मनमनाभव, मुझे याद करो तो मैं गैरन्टी करता हूँ तुम पवित्र हो जायेंगे।”
6. “तुम बच्चों को देही–अभिमानी बनने की बहुत गुप्त मेहनत करनी है। जैसे बाप जानते हैं मैं आत्माओं को पढ़ा रहा हूँ, ऐसे तुम बच्चे भी आत्म–अभिमानी बनने की मेहनत करो। मुख से शिव–शिव भी कहना नहीं है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है क्योंकि सिर पर पापों का बोझा बहुत है। याद से ही तुम पावन बनेंगे। कल्प पहले जैसे–जैसे जिन्होंने वर्सा लिया होगा, वही अपने–अपने समय पर लेंगे। अदली बदली कुछ हो नहीं सकती। मुख्य बात है ही देही–अभिमानी हो बाप को याद करना तो फिर माया का थप्पड़ नहीं खायेंगे। देह–अभिमान में आने से कुछ न कुछ विकर्म होगा फिर सौ गुणा पाप बन जाता है। सीढ़ी उतरने में 84 जन्म लगे हैं। अब फिर चढ़ती कला एक ही जन्म में होती है।”
7. “बिगर कोई फिक्र (चिंता) के अपनी गुप्त राजधानी श्रीमत पर स्थापन करनी है। विघ्नों की परवाह नहीं करनी है। बुद्धि में रहे कल्प पहले जिन्होंने मदद की है वह अभी भी अवश्य करेंगे, फिक्र की बात नहीं।”
8. “जैसे बाप में निश्चय है वैसे स्वयं में और ड्रामा में भी सम्पूर्ण निश्चय हो। स्वयं में यदि कमजोरी का संकल्प उत्पन्न होता है तो कमजोरी के संस्कार बन जाते हैं, इसलिए व्यर्थ संकल्प रूपी कमजोरी के जर्म्स अपने अन्दर प्रवेश होने नहीं देना। साथ–साथ जो भी ड्रामा की सीन देखते हो, हलचल की सीन में भी कल्याण का अनुभव हो, वातावरण हिलाने वाला हो, समस्या विकराल हो लेकिन सदा निश्चयबद्धि विजयी बनो तो विकराल समस्या भी शीतल हो जायेगी।”