Key Points From Daily Murli – 2nd December 2024
कौन–सा पुरुषार्थ गुप्त बाप से गुप्त वर्सा दिला देता है?
उत्तर:-
अन्तर्मुख अर्थात् चुप रहकर बाप को याद करो तो गुप्त वर्सा मिल जायेगा। याद में रहते शरीर छूटे तो बहुत अच्छा, इसमें कोई तकलीफ नहीं। याद के साथ–साथ ज्ञान–योग की सर्विस भी करनी है, अगर नहीं कर सकते तो कर्मणा सेवा करो। बहुतों को सुख देंगे तो आशीर्वाद मिलेगी। चलन और बोलचाल भी बहुत सात्विक चाहिए।”
1. “पुरुषार्थ करना चाहिए हम विजय माला में पहले जायें। कहाँ माया बिल्ली तूफान लगाकर विकर्म न बना दे जो दीवा बुझ जाए। अब इसमें ज्ञान और योग दोनों बल चाहिए। योग के साथ ज्ञान भी जरूरी है। हर एक को अपने दीपक की सम्भाल करनी है। अन्त तक पुरुषार्थ चलना ही है। रेस चलती रहती है तो बहुत सम्भाल करनी है – कहाँ ज्योत कम न हो जाए, बुझ न जाए इसलिए योग और ज्ञान का घृत रोज़ डालना पड़ता है। योगबल की ताकत नहीं है तो दौड़ नहीं सकते हैं। पिछाड़ी में रह जाते हैं।”
2. “तुम यह ज्ञान और योग की सर्विस करते हो। जो यह ज्ञान योग की सर्विस नहीं कर सकते तो फिर कर्मणा सर्विस की भी मार्क्स हैं। सभी की आशीर्वाद मिलेंगी।”
3. “ज्ञान और योग से हर एक बच्चा देवी–देवता पद पा सकता है।”
4. “बाबा राय भी देते हैं तुम परमधाम से बाबा के साथ आये हो। तुम कहेंगे हम परमधाम निवासी हैं। इस समय बाबा की मत से हम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। जो स्थापना करेंगे वही जरूर मालिक बनेंगे।”
5. “सारा मदार पुरुषार्थ पर है। हम माया पर जीत पाने के वारियर्स हैं। वो लोग फिर मन को वश करने के लिए कितने हठ आदि करते हैं। तुम तो हठयोग आदि कर न सको। बाबा कहते हैं तुमको कोई तकलीफ आदि नहीं करनी है, सिर्फ कहता हूँ तुमको मेरे पास आना है इसलिए मुझे याद करो।”
6. “जपना कुछ भी नहीं है सिर्फ याद करना है। आवाज़ कुछ नहीं करना पड़ता। गुप्त बाबा से गुप्त वर्सा चुप रहने से, अन्तर्मुख होने से हम पाते हैं। इसी ही याद में रहते शरीर छूट जाए तो बहुत अच्छा है। कोई तकल़ीफ नहीं, जिनको याद नहीं ठहरती वह अपना अभ्यास करें। सभी को कहो बाबा ने कहा है मुझे याद करो तो अन्त मती सो गति। याद से विकर्म विनाश होंगे और मैं स्वर्ग में भेज दूँगा। बुद्धियोग शिवबाबा से लगाना बहुत सहज है। परहेज भी सारी यहाँ ही करनी है। सतोप्रधान बनते हैं तो सभी सात्विक होने चाहिए – चलन सात्विक, बोलना सात्विक। यह है अपने साथ बातें करना। साथी से प्यार से बोलना है।”
7. “तुम हो रूप–बसन्त। आत्मा रूप बनती है। ज्ञान का सागर बाप है तो जरूर आकर ज्ञान ही सुनायेंगे। कहते हैं मैं एक ही बार आकर शरीर धारण करता हूँ। यह कम जादूगरी नहीं है! बाबा भी रूप–बसन्त है। परन्तु निराकार तो बोल नहीं सकता इसलिए शरीर लिया है। परन्तु वह पुनर्जन्म में नहीं आता है। आत्मायें तो पुनर्जन्म में आती हैं।”
8. “तुम बच्चे बाबा के ऊपर बलिहार जाते हो तो बाबा कहते हैं फिर ममत्व नहीं रखना। अपना कुछ नहीं समझना। ममत्व मिटाने के लिए ही बाबा युक्ति रचते हैं। कदम–कदम पर बाप से पूछना पड़ता है। माया ऐसी है जो चमाट मारती है। पूरी बॉक्सिंग है, बहुत तो चोट खाकर फिर खड़े हो जाते हैं। लिखते भी हैं – बाबा, माया ने थप्पड़ लगा दिया, काला मुँह कर दिया। जैसे कि 4 मंज़िल से गिरा। क्रोध किया तो थर्ड फ्लोर से गिरा। यह बहुत समझने की बातें हैं।”
9. “सतोप्रधान बनने के लिए बहुत–बहुत परहेज से चलना है। अपना खान–पान, बोल–चाल सब सात्विक रखना है। बाप समान रूप–बसन्त बनना है।”
10. “क्षमाशील वह हैं जो रहमदिल बन सर्व को दुआयें देते रहें।”