Key Points From Daily Murli – 6th November 2024
2. “पहले नई दुनिया में हद है। बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। उसको सतयुग कहा जाता है।”
3. “बाप भी इस तन द्वारा ही समझाते हैं, न कि देवताओं के शरीर से। बाप एक ही बार आकर गुरू बनते हैं फिर भी बाप को ही पार्ट बजाना है।”
4. “बाप समझाते हैं ऊंच ते ऊंच मैं हूँ। फिर है मेरू। जो आदि में महाराजा–महारानी हैं, वह फिर जाकर अन्त में आदि देव, आदि देवी बनेंगे। यह सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है। एक तो याद की यात्रा चाहिए इसमें, जो फिर पवित्र बर्तन में ज्ञान रत्न ठहरें। यह ऊंच ते ऊंच रत्न हैं। अच्छी चीज़ अच्छे बर्तन में शोभती है। तुम्हारे कान सुनते हैं। उनमें धारणा होती है। पवित्र होगा, बुद्धियोग बाप से होगा तो धारणा अच्छी होगी। नहीं तो सब निकल जायेगा। आत्मा भी है कितनी छोटी। उनमें कितना ज्ञान भरा हुआ है। कितना अच्छा शुद्ध बर्तन चाहिए। कोई संकल्प भी न उठे। उल्टे–सुल्टे संकल्प सब बन्द हो जाने चाहिए। सब तरफ से बुद्धियोग हटाना है। मेरे साथ योग लगाते–लगाते बर्तन सोना बना दो जो रत्न ठहर सकें।”
5. “एम ऑब्जेक्ट तो बाप बता देते हैं। पुरुषार्थ करना बच्चों का काम है। अब ही इतना ऊंच पद पा सकेंगे।”
6. “गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है। हथ कार डे दिल यार डे। गृहस्थी तो बहुत हैं। गृहस्थी जितना उठाते हैं उतना घर में रहने वाले बच्चे नहीं। सेन्टर चलाने वाले, मुरली चलाने वाले भी ना पास हो जाते हैं और पढ़ने वाले ऊंच चले जाते हैं। आगे तुमको सब मालूम पड़ता जायेगा। बाबा बिल्कुल ठीक बताते हैं। हमको जो पढ़ाते थे उनको माया खा गई। महारथी को माया एकदम हप कर गई। हैं नहीं। मायावी ट्रेटर बन जाते हैं। विलायत में भी ट्रेटर बन पड़ते हैं ना।”
7. “युद्ध है ना। माया के तूफान भी बहुत आते हैं। सब सहन करना पड़ता है। बाप की याद में रहने से तूफान सब चले जायेंगे। माया बड़ी तीखी है, इतना ऊंच पढ़ाई पढ़ते–पढ़ते बैठे–बैठे गिरा देती है इसलिए बाप समझाते रहते हैं अपने को भाई–भाई समझो तो फिर हद बेहद से पार चले जायेंगे। शरीर ही नहीं तो फिर दृष्टि कहाँ जायेगी। इतनी मेहनत करनी है, सुनकर फाँ नहीं हो जाना है। कल्प–कल्प तुम्हारा पुरुषार्थ चलता है और तुम अपना भाग्य पाते हो। बाप कहते हैं पढ़ा हुआ सब भूलो। बाकी जो कभी नहीं पढ़े हो वह सुनो और याद करो।”
8. “प्रकृति को पावन बनाना है तो सम्पूर्ण लगाव मुक्त बनो।”