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Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 24th December 2024

 1.   “देहअभिमान की बीमारी बहुत कड़ी है। बाबा मुरली में समझाते हैं, कइयों को तो ज्ञान का उल्टा नशा चढ़ जाता है, अहंकार जाता है फिर याद भी नहीं करते, पत्र भी नहीं लिखते। तो बाप भी याद कैसे करेंगे? याद से याद मिलती है। अभी तुम बच्चे बाप को यथार्थ जानकर याद करते हो, दिल से महिमा करते हो। कई बच्चे बाप को साधारण समझते हैं इसलिए याद नहीं करते।

 

2.   “आत्मा को सर्व का सद्गति दाता नहीं कहेंगे। परमात्मा की कभी दुर्गति होती है क्या? आत्मा की ही दुर्गति और आत्मा की ही सद्गति होती है। यह सभी बातें विचार सागर मंथन करने की हैं। नहीं तो दूसरों को कैसे समझायेंगे। परन्तु माया ऐसी दुस्तर है जो बच्चों की बुद्धि आगे नहीं बढ़ने देती। दिन भर झरमुई झगमुई में ही टाइम वेस्ट कर देते हैं। बाप से पिछाड़ने के लिए माया कितना फोर्स करती है। फिर कई बच्चे तो टूट पड़ते हैं। बाप को याद करने से अवस्था अचलअडोल नहीं बन पाती। बाप घड़ीघड़ी खड़ा करते, माया गिरा देती। बाप कहते कभी हार नहीं खानी है। कल्पकल्प ऐसा होता है, कोई नई बात नहीं। मायाजीत अन्त में बन ही जायेंगे। रावण राज्य खलास तो होना ही है। फिर हम नई दुनिया में राज्य करेंगे। कल्पकल्प माया जीत बने हैं। अनगिनत बार नई दुनिया में राज्य किया है। बाप कहते हैं बुद्धि को सदा बिजी रखो तो सदा सेफ रहेंगे। इसको ही स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है।

 

3.    “यह काम विकार ही मनुष्य को पतित बनाता है, उनको जीतने से तुम जगतजीत बनेंगे। परन्तु काम विकार उन्हों की जैसे पूँजी है, इसलिए वह अक्षर नहीं बोलते हैं। सिर्फ कहते हैं मन को वश में करो। लेकिन मन अमन तब हो जब शरीर में नहीं हो। बाकी मन अमन तो कभी होता ही नहीं। देह मिलती है कर्म करने के लिए तो फिर कर्मातीत अवस्था में कैसे रहेंगे? कर्मातीत अवस्था कहा जाता है मुर्दे को। जीते जी मुर्दा अथवा शरीर से डिटैच। बाप तुमको शरीर से न्यारा बनने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। शरीर से आत्मा अलग है। आत्मा परमधाम की रहने वाली है। आत्मा शरीर में आती है तो उसे मनुष्य कहा जाता है। शरीर मिलता ही है कर्म करने के लिए। एक शरीर छोड़ फिर दूसरा शरीर कर्म करने लिए लेना है। शान्ति तो तब हो जब शरीर में नहीं है। मूलवतन में कर्म होता नहीं।”

 

4.   “बाप और सृष्टि चक्र को जानना, इसको ही नॉलेज कहा जाता है। सूक्ष्मवतन में सफेद पोशधारी, सजे सजाये, नागबलाए पहनने वाले शंकर आदि ही होते हैं। बाकी ब्रह्मा और विष्णु का राज़ बाप समझाते रहते हैं। ब्रह्मा यहाँ है। विष्णु के दो रूप भी यहाँ हैं। वह सिर्फ साक्षात्कार का पार्ट ड्रामा में है, जो दिव्य दृष्टि से देखा जाता है। क्रिमिनल आंखों से पवित्र चीज़ दिखाई पड़े।

 

5.    “अपने आपको सदा सेफ रखने के लिए बुद्धि को विचार सागर मंथन में बिज़ी रखना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहना है। झरमुई झगमुई में अपना समय नहीं गँवाना है।”


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