Key Points From Daily Murli – 6th January 2025
“प्रश्नः–
लौकिक मित्र–सम्बन्धियों को ज्ञान देने की युक्ति क्या है?
उत्तर:-
कोई भी मित्र–सम्बन्धी आदि हैं तो उनसे बहुत नम्रता से, प्रेमभाव से मुस्कराते हुए बात करनी चाहिए। समझाना चाहिए यह वही महाभारत लड़ाई है। बाप ने रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है। मैं आपको सत्य कहता हूँ कि भक्ति आदि तो जन्म–जन्मान्तर की, अब ज्ञान शुरू होता है। जब मौका मिले तो बहुत युक्ति से बात करो। कुटुम्ब परिवार में बहुत प्यार से चलो। कभी किसी को दु:ख न दो।”
1. “तुम बच्चे साइलेन्स के बल से इस साइंस पर जीत पाते हो। साइलेन्स को योग भी कहा जाता है। आत्मा बाप को याद करती है – बाबा आप आओ तो हम शान्तिधाम में जाकर निवास करें। तो तुम बच्चे इस योगबल से, साइलेन्स के बल से साइंस पर जीत पाते हो। शान्ति का बल प्राप्त करते हो। साइंस से ही यह सारा विनाश होने का है। साइलेन्स से तुम बच्चे विजय पाते हो। बाहुबल वाले कभी भी विश्व पर जीत पा नहीं सकते।”
2. “तुम जानते हो हम साइलेन्स के बल से अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं, उन्हों की है आर्टीफिशल साइलेन्स। तुम्हारी है रीयल साइलेन्स। ज्ञान का बल, शान्ति का बल कहा जाता है। नॉलेज है पढ़ाई। पढ़ाई से ही बल मिलता है। पुलिस सुपरिन्टेन्डेंट बनते हैं, कितना बल रहता है। वह सब हैं जिस्मानी बातें दु:ख देने वाली। तुम्हारी हर बात रूहानी है। तुम्हारे मुख से जो भी बोल निकलते हैं वह एक–एक बोल ऐसे फर्स्टक्लास मीठे हों जो सुनने वाला खुश हो जाए। जैसे बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, ऐसे तुम बच्चों को भी सबको सुख देना है। कुटुम्ब परिवार को भी दु:ख आदि न हो। कायदे अनुसार सबसे चलना है। बड़ों के साथ प्यार से चलना है। मुख से अक्षर ऐसे मीठे फर्स्ट क्लास निकलें जो सब खुश हो जाएं। बोलो, शिवबाबा कहते हैं मन्मनाभव। ऊंच ते ऊंच मैं हूँ। मुझे याद करने से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बहुत प्यार से बात करनी चाहिए। समझो कोई बड़ा भाई हो बोलो दादा जी शिवबाबा कहते हैं – मुझे याद करो। शिवबाबा जिसको रूद्र भी कहते हैं, वही ज्ञान यज्ञ रचते हैं। श्रीकृष्ण ज्ञान यज्ञ अक्षर नहीं सुनेंगे। रूद्र ज्ञान यज्ञ कहते हैं तो रूद्र शिवबाबा ने यह यज्ञ रचा है। राजाई प्राप्त करने के लिए ज्ञान और योग सिखला रहे हैं। बाप कहते हैं भगवानुवाच मामेकम् याद करो क्योंकि अभी सबकी अन्त घड़ी है, वानप्रस्थ अवस्था है। सबको वापिस जाना है। मरने समय मनुष्य को कहते हैं ना ईश्वर को याद करो। यहाँ ईश्वर स्वयं कहते हैं मौत सामने खड़ा है, इनसे कोई बच नहीं सकते। अन्त में ही बाप आकर के कहते हैं कि बच्चे मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जाएं, इनको याद की अग्नि कहा जाता है। बाप गैरन्टी करते हैं कि इससे तुम्हारे पाप दग्ध होंगे। विकर्म विनाश होने का, पावन बनने का और कोई उपाय नहीं है। पापों का बोझा सिर पर चढ़ते–चढ़ते, खाद पड़ते–पड़ते सोना 9 कैरेट का हो गया है। 9 कैरेट के बाद मुलम्मा कहा जाता है। अभी फिर 24 कैरेट कैसे बनें, आत्मा प्योर कैसे बनें? प्योर आत्मा को जेवर भी प्योर मिलेगा।”
3. “यह भक्ति आदि तो जन्म–जन्मान्तर की है, अब ज्ञान शुरू होता है। भक्ति है रात, ज्ञान है दिन। सतयुग में भक्ति होती नहीं। ऐसे–ऐसे युक्ति से बात करनी चाहिए। जब कोई मौका मिले, जब तीर मारना होता है तो समय और मौका देखा जाता है। ज्ञान देने की भी बड़ी युक्ति चाहिए। बाप युक्तियाँ तो सबके लिए बताते रहते हैं। पवित्रता तो बड़ी अच्छी है, यह लक्ष्मी–नारायण हमारे बड़े पूज्य हैं ना। पूज्य पावन फिर पुजारी पतित बनें। पावन की पतित बैठ पूजा करें – यह तो शोभता नहीं है। कई तो पतित से दूर भागते हैं। वल्लभाचारी कभी पाँव को छूने नहीं देते। समझते हैं यह छी–छी मनुष्य हैं। मन्दिरों में भी हमेशा ब्राह्मण को ही मूर्ति छूने का एलाउ रहता है। शूद्र मनुष्य अन्दर जाकर छू न सकें। वहाँ ब्राह्मण लोग ही उनको स्नान आदि कराते हैं, और कोई को जाने नहीं देते। फर्क तो है ना। अब वे तो हैं कुख वंशावली ब्राह्मण, तुम हो मुख वंशावली सच्चे ब्राह्मण। तुम उन ब्राह्मणों को अच्छा समझा सकते हो कि ब्राह्मण दो प्रकार के होते हैं – एक तो हैं प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली, दूसरे हैं कुख वंशावली। ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण हैं ऊंच ते ऊंच चोटी। यज्ञ रचते हैं तो भी ब्राह्मणों को मुकरर किया जाता है। यह फिर है ज्ञान यज्ञ। ब्राह्मणों को ज्ञान मिलता है जो फिर देवता बनते हैं।”
4. “धन्धे आदि से जब छुटटी मिले तो याद में रहने का व्रत लेना है। माया पर विजय प्राप्त करने के लिए याद की मेहनत करनी है।”
5. “बहुत नम्रता और प्रेम भाव से मुस्कराते हुए मित्र–सम्बन्धियों की सेवा करनी है। उनमें बुद्धि को भटकाना नहीं है। प्यार से बाप का परिचय देना है।”
6. “अपनी शक्तिशाली मन्सा द्वारा सकाश देने की सेवा करो – अब अपने दिल की शुभ भावनायें अन्य आत्माओं तक पहुंचाओ। साइलेन्स की शक्ति को प्रत्यक्ष करो। हर एक ब्राह्मण बच्चे में यह साइलेन्स की शक्ति है। सिर्फ इस शक्ति को मन से, तन से इमर्ज करो। एक सेकण्ड में मन के संकल्पों को एकाग्र कर लो तो वायुमण्डल में साइलेन्स की शक्ति के प्रकम्पन्न स्वत: फैलते रहेंगे।”