Key Points From Daily Murli – 11th January 2025
1. “योग अग्नि माना याद की आग।“
2. “बाबा ने समझाया है पहले नम्बर को ही सतो, रजो, तमो में आना है तो दूसरे फिर सिर्फ सतो का पार्ट बजाए वापिस कैसे जा सकते? उनको तो फिर तमोप्रधान में आना ही है, पार्ट बजाना ही है। हर एक एक्टर की ताकत अपनी–अपनी होती है ना। बड़े–बड़े एक्टर्स कितने नामी–ग्रामी होते हैं। सबसे मुख्य क्रियेटर, डायरेक्टर और मुख्य एक्टर कौन है? अभी तुम समझते हो गॉड फादर है मुख्य, पीछे फिर जगत अम्बा, जगतपिता। जगत के मालिक, विश्व के मालिक बनते हैं, इनका पार्ट जरूर ऊंचा है।”
3. “गृहस्थ में भी रहना है, कर्मयोग संन्यास है ना। गृहस्थ व्यवहार में रहते, सब कुछ करते हुए बाप से वर्सा पाने का पुरुषार्थ कर सकते हैं, इसमें कोई तकलीफ नहीं है। कामकाज करते शिवबाबा की याद में रहना है। नॉलेज तो बड़ी सहज है।”
4. “इस ज्ञान की मुख्य दो सब्जेक्ट हैं – अल़फ और बे। स्वदर्शन चक्रधारी बनो और बाप को याद करो तो तुम एवरहेल्दी और वेल्दी बनेंगे। बाप कहते हैं मुझे वहाँ याद करो। घर को भी याद करो, मुझे याद करने से तुम घर चले जायेंगे। स्वदर्शन चक्रधारी बनने से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। यह बुद्धि में अच्छी रीति रहना चाहिए।”
5. “बाप का घर भी ऊपर है ना। मूलवतन, सूक्ष्मवतन और यह है स्थूलवतन। अब फिर वापिस जाना है। अब तुम्हारी मुसाफिरी पूरी हुई है। तुम अब मुसाफिरी से लौट रहे हो। तो अपना घर कितना प्यारा लगता है। वह है बेहद का घर। वापिस अपने घर जाना है। मनुष्य भक्ति करते हैं – घर जाने के लिए, परन्तु ज्ञान पूरा नहीं है तो घर जा नहीं सकते। भगवान पास जाने के लिए अथवा निवार्णधाम में जाने के लिए कितनी तीर्थ यात्रायें आदि करते हैं, मेहनत करते हैं। संन्यासी लोग सिर्फ शान्ति का रास्ता ही बताते हैं। सुखधाम को तो जानते ही नहीं। सुखधाम का रास्ता सिर्फ बाप ही बतलाते हैं। पहले जरूर निवार्णधाम, वानप्रस्थ में जाना है जिसको ब्रह्माण्ड भी कहते हैं। वह फिर ब्रह्म को ईश्वर समझ बैठे हैं। हम आत्मा बिन्दी हैं। हमारा रहने का स्थान है ब्रह्माण्ड।”
6. “आत्मा भी सफेद होती है ना, स्टॉर मिसल। यह भी एक निशानी है। भृकुटी के बीच आत्मा रहती है। बाकी अर्थ का किसको पता भी नहीं है। यह बाप समझाते हैं इतनी छोटी आत्मा में कितना ज्ञान है। इतने बाम्ब्स आदि बनाते रहते हैं। वन्डर है, आत्मा में इतना पार्ट भरा हुआ है। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। इतनी छोटी आत्मा शरीर से कितना काम करती है। आत्मा अविनाशी है, उनका पार्ट कभी विनाश नही होता है, न एक्ट बदलती है। अभी बहुत बड़ा झाड़ है। सतयुग में कितना छोटा झाड़ होता है। पुराना तो होता नहीं। मीठे छोटे झाड़ का कलम अभी लग रहा है। तुम पतित बने थे अब फिर पावन बन रहे हो। छोटी–सी आत्मा में कितना पार्ट है। कुदरत यह है, अविनाशी पार्ट चलता रहता है। यह कभी बन्द नहीं होता, अविनाशी चीज़ है, उसमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। यह वन्डर है ना। बाप समझाते हैं – बच्चे, देही–अभिमानी बनना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, इसमें है मेहनत, जास्ती पार्ट तुम्हारा है। बाबा का इतना पार्ट नहीं, जितना तुम्हारा। बाप कहते हैं तुम स्वर्ग में सुखी बन जाते हो तो मैं विश्राम में बैठ जाता हूँ। हमारा कोई पार्ट नहीं।”
7. “सेवा में जो विघ्न आते हैं, उस विघ्नों के पर्दे के अन्दर कल्याण का दृश्य छिपा हुआ है। सिर्फ मन्सा–वाचा की शक्ति से विघ्न का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई देगा।”