Key Points From Daily Murli – 29th March 2025
1. “कल्प पहले भी बच्चों को समझाया था, मुझ पतित–पावन बाप को याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। पतित कैसे बने हो, विकारों की खाद पड़ी है। सब मनुष्य जंक खाये हुए हैं। अब वह जंक कैसे निकले? मुझे याद करो। देह–अभिमान छोड़ देही–अभिमानी बनो। अपने को आत्मा समझो। पहले तुम हो आत्मा फिर शरीर लेते हो। आत्मा तो अमर है, शरीर मृत्यु को पाता है।”
2. “बाप तो इनमें प्रवेश करते हैं, आते हैं, जाते हैं, मालिक हैं, जिसमें चाहे उनमें जा सकते हैं। बाबा ने समझाया है कोई का कल्याण करने अर्थ मैं प्रवेश कर लेता हूँ। आता तो पतित तन में ही हूँ ना। बहुतों का कल्याण करता हूँ। बच्चों को समझाया है – माया भी कम नहीं है। कभी–कभी ध्यान में माया प्रवेश कर उल्टा–सुल्टा बुलवाती रहती है इसलिए बच्चों को बहुत सम्भाल करनी है। कइयों में जब माया प्रवेश कर लेती है तो कहते हैं मैं शिव हूँ, फलाना हूँ। माया बड़ी शैतान है। समझदार बच्चे अच्छी रीति समझ जायेंगे कि यह किसका प्रवेश है। शरीर तो उनका मुकरर यह है ना। फिर दूसरे का हम सुनें ही क्यों! अगर सुनते हो तो बाबा से पूछो यह बात राइट है वा नहीं? बाप झट समझा देंगे।”
3. “बहुतों में माया प्रवेश कर लेती है। फिर ध्यान में जाकर क्या–क्या बोलते रहते हैं। इसमें भी बड़ा सम्भालना चाहिए। बाप को पूरा समाचार देना चाहिए।”
4. “सूक्ष्मवतनवासियों को कहा जाता है फरिश्ते। वह बहुत थोड़ा समय बनते हो जबकि तुम कर्मातीत अवस्था को पाते हो। सूक्ष्मवतन में हड्डी मांस होता नहीं। हड्डी मांस नहीं तो बाकी क्या रहा? सिर्फ सूक्ष्म शरीर होता है! ऐसे नहीं कि निराकार बन जाते हैं। नहीं, सूक्ष्म आकार रहता है। वहाँ की भाषा मूवी चलती है। आत्मा आवाज़ से परे है। उसको कहा जाता है सटिल वर्ल्ड। सूक्ष्म आवाज़ होता है। यहाँ है टाकी। फिर मूवी फिर है साइलेन्स। यहाँ टॉक चलती है। यह ड्रामा का बना बनाया पार्ट है। वहाँ है साइलेन्स। वह मूवी और यह है टाकी। इन तीन लोकों को भी याद करने वाले कोई विरले होंगे। बाप समझाते हैं – बच्चे, सजाओं से छूटने के लिए कम से कम 8 घण्टा कर्मयोगी बन कर्म करो, 8 घण्टा आराम करो और 8 घण्टा बाप को याद करो। इसी प्रैक्टिस से तुम पावन बन जायेंगे। नींद करते हो, वह कोई बाप की याद नहीं है। ऐसे भी कोई न समझे कि बाबा के तो हम बच्चे हैं ना फिर याद क्या करें। नहीं, बाप तो कहते हैं मुझे वहाँ याद करो। अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। जब तक योगबल से तुम पवित्र न बनो तब तक घर में भी तुम जा नहीं सकते। नहीं तो फिर सजायें खाकर जाना होगा। सूक्ष्मवतन मूलवतन में भी जाना है फिर आना है स्वर्ग में।”
5. “सतयुग–त्रेता में है श्रेष्ठाचारी दुनिया। द्वापर–कलियुग है भ्रष्टाचारी दुनिया। अभी तुम संगम पर हो।”
6. “रचयिता और रचना का ज्ञान सिमरण कर सदा हर्षित रहना है। याद की यात्रा से अपने पुराने सब कर्मबन्धन काट कर्मातीत अवस्था बनानी है।”
7. “ध्यान दीदार में माया की बहुत प्रवेशता होती है, इसलिए सम्भाल करनी है, बाप को समाचार दे राय लेनी है, कोई भी भूल नहीं करनी है।”
8. “सेवाधारी बच्चों की विशेष सेवा है – स्वयं शक्ति स्वरूप रहना और सर्व को शक्ति स्वरूप बनाना अर्थात् निर्बल आत्माओं में बल भरना, इसके लिए सदा शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना स्वरूप बनो। शुभ भावना का अर्थ यह नहीं कि किसी में भावना रखते–रखते उसके भाववान हो जाओ। यह गलती नहीं करना। शुभ भावना भी बेहद की हो। एक के प्रति विशेष भावना भी नुकसानकारक है इसलिए बेहद में स्थित हो निर्बल आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के आधार से शक्ति स्वरूप बनाओ।”
9. “कई चतुराई से कहते हैं कि हम क्रोध नहीं करते हैं, हमारा आवाज ही बड़ा है, आवाज ही ऐसा तेज है लेकिन जब साइन्स के साधनों से आवाज को कम और ज्यादा कर सकते हैं तो क्या साइलेन्स की पॉवर से अपने आवाज की गति को धीमी या तेज नहीं कर सकते हो?”