Key Points From Daily Murli – 27th March 2025
बाप की याद बच्चों को यथार्थ न रहने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:-
साकार में आते–आते भूल गये हैं कि हम आत्मा निराकार हैं और हमारा बाप भी निराकार है, साकार होने के कारण साकार की याद सहज आ जाती है। देही–अभिमानी बन अपने को बिन्दी समझ बाप को याद करना – इसी में ही मेहनत है।”
1. “यह तो बहुत बार समझाया है कोई मनुष्य को या देवता को अथवा सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा–विष्णु–शंकर को भगवान नहीं कहा जाता। जिनका कोई आकार वा साकार चित्र है उनको भगवान नहीं कह सकते। भगवान कहा ही जाता है बेहद के बाप को।”
2. “अब आत्मा तो है बिन्दी। तो बाप भी बिन्दी ही होगा।”
3. “भगवान को कहा जाता है – परमपिता परमात्मा। यह समझना तो बिल्कुल सहज है। परमपिता अर्थात् परे से परे रहने वाला परम आत्मा। तुमको कहा जाता है आत्मा। तुमको परम नहीं कहेंगे। तुम तो पुनर्जन्म लेते हो ना।”
4. “सुख था सतयुग में, दु:ख है अभी कलियुग में इसलिए इसको कांटों का जंगल कहा जाता है। पहला नम्बर है देह–अभिमान का कांटा। फिर है काम का कांटा।”
5. “भगवानुवाच – परमपिता परमात्मा शिव कहते हैं – मैं हूँ पतित–पावन, मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे।”
6. “भगवान तो खुद ही अपने को जाने, और न जाने कोई।”
7. “शिवबाबा कहते हैं – मैं गीता आदि कुछ पढ़ा हुआ नहीं हूँ। यह रथ जिसमें बैठा हूँ, यह पढ़ा हुआ है, मैं नहीं पढ़ा हुआ हूँ। मेरे में तो सारे सृष्टि चक्र के आदि–मध्य–अन्त का ज्ञान है। यह रोज़ गीता पढ़ता था। तोते मुआफिक कण्ठ कर लेते थे, जब बाप ने प्रवेश किया तो झट गीता छोड़ दी क्योंकि बुद्धि में आ गया यह तो शिवबाबा सुनाते हैं।”
8. “बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग की बादशाही देता हूँ तो अब पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा दो। सिर्फ मामेकम् याद करो। यह मेहनत करनी है।”
9. “निरन्तर योगी बनने का सहज साधन है – प्रवृत्ति में रहते पर–वृत्ति में रहना। पर–वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप। जो आत्मिक रूप में स्थित रहता है वह सदा न्यारा और बाप का प्यारा बन जाता है। कुछ भी करेगा लेकिन यह महसूस होगा जैसे काम नहीं किया है लेकिन खेल किया है। तो प्रवृत्ति में रहते आत्मिक रूप में रहने से सब खेल की तरह सहज अनुभव होगा। बंधन नहीं लगेगा। सिर्फ स्नेह और सहयोग के साथ शक्ति की एडीशन करो तो हाईजम्प लगा लेंगे।”