Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 24th March 2025

 “प्रश्नः

याद में मुख्य मेहनत कौन सी है?

उत्तर:-
बाप की याद में बैठते समय देह भी याद आये। आत्मअभिमानी बन बाप को याद करो, यही मेहनत है, इसमें ही विघ्न पड़ता है क्योंकि आधाकल्प देहअभिमानी रहे हो। भक्ति माना ही देह की याद।”

 

1.     “तुम बच्चे जानते हो याद के लिए एकान्त की बहुत जरूरत है। जितना तुम एकान्त वा शान्त में बाप की याद में रह सकते हो उतना झुण्ड में नहीं रह सकते हो।”

 

2.    “पहलापहला शत्रु है देहअभिमान। बाप को याद करने के बदले देह को याद कर लेते हैं। इसको देह का अहंकार कहा जाता है। यहाँ तुम बच्चों को कहा जाता है आत्मअभिमानी बनो, इसमें ही मेहनत लगती है।”

 

3.    “भक्ति की जैसे आग लगी हुई है और ज्ञान में है शीतलता। इसमें काम क्रोध की आग खत्म हो जाती है।

 

4.    “वर्सा एक ही बाप रचता से मिलता है, बाकी जो भी हैं जड़ अथवा चैतन्य वह सारी है रचना। रचना से कभी वर्सा मिल सके। पतितपावन एक ही बाप है।”

 

5.    “अभी सब हैं पतित। तुम्हें अभी पावन बनना है। निराकार बाप ही आकर तुमको पढ़ाते हैं। ऐसे कभी नहीं समझो कि ब्रह्मा पढ़ाते हैं। सबकी बुद्धि शिवबाबा तरफ रहनी चाहिए। शिवबाबा इन द्वारा पढ़ाते हैं। तुम दादियों को भी पढ़ाने वाला शिवबाबा है। उनकी क्या खातिरी करेंगे! तुम शिवबाबा के लिए अंगूर आम ले आते हो, शिवबाबा कहते हैंमैं तो अभोक्ता हूँ। तुम बच्चों के लिए ही सब कुछ है।”

 

6.    “ब्रह्मा भगवानुवाच तो कहते नहीं हैं। ब्रह्मा वाच भी नहीं कहते हैं। भल यह भी मुरली चलाते हैं परन्तु हमेशा समझो शिवबाबा चलाते हैं। किसी बच्चे को अच्छा तीर लगाना होगा तो खुद प्रवेश कर लेंगे। ज्ञान का तीर तीखा गाया जाता है ना।”

 

7.     “हम हैं योगबल वाले फिर बाहुबल वालों की कहानियां क्यों सुनें! तुम्हारी वास्तव में लड़ाई है नहीं। तुम योगबल से 5 विकारों पर विजय पाते हो। तुम्हारी लड़ाई है 5 विकारों से।”

 

8.    “याद के बल से 5 विकारों पर जीत पाते हो। यह 5 विकार दुश्मन हैं। उनमें भी नम्बरवन है देहअभिमान। बाप कहते हैं तुम तो आत्मा हो ना। तुम आत्मा आती हो, आकर गर्भ में प्रवेश करती हो। मैं तो इस शरीर में विराजमान हुआ हूँ। मैं कोई गर्भ में थोड़ेही जाता हूँ। सतयुग में तुम गर्भ महल में रहते हो। फिर रावण राज्य में गर्भ जेल में जाते हो। मैं तो प्रवेश करता हूँ। इसको दिव्य जन्म कहा जाता है। ड्रामा अनुसार मुझे इसमें आना पड़ता है।”

 

9.    “सेन्टर्स वालों को भी लिखता हूँ, इतने वर्ष पढ़े हो किसको पढ़ा नहीं सकते हो तो बाकी पढ़े क्या हो! बच्चों की उन्नति तो करनी चाहिए ना। बुद्धि में सारा दिन सर्विस के ख्याल चलने चाहिए।”

10. “यह तो जानते हैं ड्रामा अनुसार शायद देरी है। बड़ोबड़ों के तकदीर में अभी नहीं है। फिर भी बाबा पुरुषार्थ कराते रहते हैं। ड्रामा अनुसार सर्विस चल रही है।”

 

11.  “संगदोष से अपनी बहुतबहुत सम्भाल करनी है। कभी पतितों के संग में नहीं आना है। साइलेन्स बल से इस सृष्टि को पावन बनाने की सेवा करनी है।”

 

12. “आज्ञाकारी ब्राह्मण बच्चे कभी मेहनत वा मुश्किल शब्द मुख से तो क्या संकल्प में भी नहीं ला सकते हैं। वह सहजयोगी बन जाते हैं इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं बनो लेकिन सदा दिलतख्तनशीन बनो, रहमदिल बनो। अहम भाव और वहम भाव को समाप्त करो।”

 

13.                  “जो प्युरिटी की पर्सनैलिटी से सम्पन्न रॉयल आत्मायें हैं उन्हें सभ्यता की देवी कहा जाता है। उनमें क्रोध विकार की इमप्युरिटी भी नहीं हो सकती। क्रोध का सूक्ष्म रूप ईर्ष्या, द्वेष, घृणा भी अगर अन्दर में है तो वह भी अग्नि है जो अन्दर ही अन्दर जलाती है। बाहर से लाल, पीला नहीं होता, लेकिन काला होता है। तो अब इस कालेपन को समाप्त कर सच्चे और साफ बनो।”

 


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