Key Points From Daily Murli – 23rd March 2025
2. “जो बच्चा हज़ूर की हर श्रीमत पर हाज़िर हज़ूर कर चलता है उसके आगे सर्व शक्तियां भी हज़ूर हाज़िर करती हैं। हर आज्ञा में जी हाज़िर, हर कदम में जी हाज़िर। अगर हर श्रीमत में जी हाज़िर नहीं है तो हर शक्ति भी हर समय हाज़िर हज़ूर नहीं कर सकती है। अगर कभी–कभी बाप की श्रीमत वा आज्ञा का पालन करते हैं, तो शक्तियां भी आपका कभी–कभी हाज़िर होने का आर्डर पालन करती हैं। उस समय अधिकारी के बजाए अधीन बन जाते हैं।”
3. “बाप समान स्थिति है? कभी स्वयं की स्थिति, कभी कोई पर–स्थिति विजय तो नहीं प्राप्त कर लेती? पर स्थिति अगर विजय प्राप्त कर लेती है तो उसका कारण जानते हो ना? स्थिति कमजोर है तब परिस्थिति वार कर सकती है। सदा स्व स्थिति विजयी रहे, उसका साधन है – सदा स्वमान और सम्मान का बैलेन्स। स्वमानधारी आत्मा स्वत: ही सम्मान देने वाला दाता है। वास्तव में किसी को भी सम्मान देना, देना नहीं है, सम्मान देना मान लेना है। सम्मान देने वाला सबके दिल में माननीय स्वत: ही बन जाता है। ब्रह्मा बाप को देखा – आदि देव होते हुए, ड्रामा की फर्स्ट आत्मा होते हुए सदा बच्चों को सम्मान दिया। अपने से भी ज्यादा बच्चों का मान आत्माओं द्वारा दिलाया इसलिए हर एक बच्चे के दिल में ब्रह्मा बाप माननीय बनें। तो मान दिया या मान लिया? सम्मान देना अर्थात् दूसरे के दिल में दिल के स्नेह का बीज बोना। विश्व के आगे भी विश्व कल्याणकारी आत्मा है, यह तब अनुभव करते जब आत्माओं को स्नेह से सम्मान देते हो।”
4. “सम्मान देने वाला ही विधाता आत्मा दिखाई देती है। सम्मान देने वाले ही बापदादा की श्रीमत (शुभ भावना, शुभ कामना) मानने वाले आज्ञाकारी बच्चे हैं। सम्मान देना ही ईश्वरीय परिवार का दिल का प्यार है। सम्मान वाला स्वमान में सहज ही स्थित हो सकता है। क्यों? जिन आत्माओं को सम्मान देता है उन आत्माओं द्वारा जो दुआयें दिल की मिलती हैं, वह दुआओं का भण्डार स्वमान सहज और स्वत: ही याद दिलाता है इसलिए बापदादा चारों ओर के बच्चों को विशेष अण्डरलाइन करा रहे हैं – सम्मान दाता बनो।”
5. “बापदादा के पास जो भी बच्चा जैसा भी आया, कमजोर आया, संस्कार के वश आया, पापों का बोझ लेके आया, कड़े संस्कार लेकर आया, बापदादा ने हर बच्चे को किस नज़र से देखा! मेरा सिकीलधा लाडला बच्चा है, ईश्वरीय परिवार का बच्चा है। तो सम्मान दिया और आप स्वमानधारी बन गये। तो फॉलो फादर। अगर सहज सर्व गुण सम्पन्न बनना चाहते हो तो सम्मान दाता बनो।”
6. “आपका टाइटल है – सर्व उपकारी। अपकार करने वाले पर भी उपकार करने वाले। तो चेक करो – सर्व उपकारी दृष्टि, वृत्ति, स्मृति रहती है? दूसरे पर उपकार करना, स्वयं पर ही उपकार करना है। तो क्या करना है? सम्मान देना है ना! अलग–अलग बातों में धारणा करने के लिए जो मेहनत करते हो, उससे छूट जायेंगे क्योंकि बापदादा देख रहे हैं, कि समय की गति तीव्र हो रही है।”
7. “स्वयं खुशी, शान्ति और अतीन्द्रिय सुख की रौनक में होंगे तो स्थान भी रौनक में आ जायेगा क्योंकि स्थिति से स्थान में वायुमण्डल फैलता है। तो सभी को चेक करना है कि जहाँ हम रहते हैं, वहाँ रौनक है? उदासी तो नहीं है? सब खुशी में नाच रहे हैं? ऐसे है ना!”
8. “तन–मन–धन, मन–वाणी–कर्म – किसी भी प्रकार से बाप के कर्तव्य में सहयोगी बनो तो सहजयोगी बन जायेंगे।”