Key Points From Daily Murli – 21st February 2025
गीत:-
तू प्यार का सागर है…………
1. “ओम् शान्ति। अब यह गीत भी राँग है। प्यार के बदले होना चाहिए ज्ञान का सागर। प्यार का कोई लोटा नहीं होता। लोटा, गंगा जल आदि का होता है। तो यह है भक्ति मार्ग की महिमा। यह है राँग और वह है राइट। बाप पहले–पहले तो ज्ञान का सागर है। बच्चों में थोड़ा भी ज्ञान है तो बहुत ऊंच पद प्राप्त करते हैं।”
2. “यह भी वण्डर है ना। जहाँ जड़ यादगार है वहाँ तुम चैतन्य आकर बैठे हो।”
3. “पहली–पहली मुख्य बात है एक, बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्से को याद करो फिर ज्ञान का सागर भी गाया हुआ है। कितनी अथाह प्वाइन्ट्स सुनाते हैं। इतनी सब प्वाइन्ट्स तो याद रह न सकें। तन्त (सार) बुद्धि में रह जाता है। पिछाड़ी में तन्त हो जाता है – मन्मनाभव।”
4. “ज्ञान का सागर श्रीकृष्ण को नहीं कहेंगे। वह है रचना। रचता एक ही बाप है। बाप ही सबको वर्सा देंगे, घर ले जायेंगे। बाप का तथा आत्माओं का घर है ही साइलेन्स होम। विष्णुपुरी को बाप का घर नहीं कहेंगे। घर है मूलवतन, जहाँ आत्मायें रहती हैं।”
5. “इतना सारा ज्ञान कोई की बुद्धि में याद रह न सके। न इतने कागज लिख सकते हैं। यह मुरलियाँ भी सबकी सब इकट्ठी करते जायें तो इस सारे हाल से भी जास्ती हो जायें।”
6. “जो पूज्य बनते हैं वही फिर पुजारी बनते हैं।”
7. “बाप सदैव कहते हैं पुरूषार्थ करते रहो, सुस्त मत बनो। पुरूषार्थ से समझा जाता है ड्रामा अनुसार इनकी सद्गति इस प्रकार इतनी ही होती है। अपनी सद्गति के लिए श्रीमत पर चलना है। टीचर की मत पर स्टूडेन्ट न चलें तो कोई काम के नहीं।”
8. “अपने को आत्मा समझ कर्मातीत अवस्था में रहना है।“
9. “ऐसे और कोई कह न सके कि देह के सब सम्बन्ध छोड़ मेरा बनो, अपने को निराकार आत्मा समझो। कोई भी चीज का भान न रहे। माया एक–दो की देह में बहुत फँसाती है इसलिए बाबा कहते हैं इस साकार को भी याद नहीं करना है। बाबा कहते तुमको तो अपनी देह को भी भूलना है, एक बाप को याद करना है। इसमें बहुत मेहनत है। माया अच्छे–अच्छे बच्चों को भी नाम–रूप में लटका देती है। यह आदत बड़ी खराब है। शरीर को याद करना – यह तो भूतों की याद हो गई। हम कहते हैं एक शिवबाबा को याद करो। तुम फिर 5 भूतों को याद करते रहते हो। देह से बिल्कुल लगाव नहीं होना चाहिए। ब्राह्मणी से भी सीखना है, न कि उनके नाम–रूप में लटकना है। देही–अभिमानी बनने में ही मेहनत है। बाबा के पास भल चार्ट बहुत बच्चे भेज देते हैं परन्तु बाबा उस पर विश्वास नहीं करता है। कोई तो कहते हैं हम शिवबाबा के सिवाए और किसको याद नहीं करते हैं, परन्तु बाबा जानते हैं – पाई भी याद नहीं करते हैं। याद की तो बड़ी मेहनत है। कहाँ न कहाँ फँस पड़ते हैं। देहधारी को याद करना, यह तो 5 भूतों की याद है। इनको भूत पूजा कहा जाता है। भूत को याद करते हैं। यहाँ तो तुमको एक शिवबाबा को याद करना है। पूजा की तो बात नहीं। भक्ति का नाम–निशान गुम हो जाता है फिर चित्रों को क्या याद करना है। वह भी मिट्टी के बने हुए हैं। बाप कहते हैं यह भी सब ड्रामा में नूँध है। अब फिर तुमको पुजारी से पूज्य बनाता हूँ। कोई भी शरीर को याद नहीं करना है, सिवाए एक बाप के। आत्मा जब पावन बन जायेगी तो फिर शरीर भी पावन मिलेगा। अभी तो यह शरीर पावन नहीं है। पहले आत्मा जब सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आती है तो शरीर भी उस अनुसार मिलता है। अभी तुम्हारी आत्मा पावन बनती जायेगी लेकिन शरीर अभी पावन नहीं होगा। यह समझने की बातें हैं। यह प्वाइन्ट्स भी उनकी बुद्धि में बैठेंगी जो अच्छी रीति समझकर समझाते रहते हैं। सतोप्रधान आत्मा को बनना है। बाप को याद करने की ही बड़ी मेहनत है।”
10. “पास विद् ऑनर बनने के लिए बुद्धियोग थोड़ा भी कहीं न भटके। एक बाप की ही याद रहे। परन्तु बच्चों का बुद्धियोग भटकता रहता है। जितना बहुतों को आप समान बनायेंगे उतना ही पद मिलेगा। देह को याद करने वाले कभी ऊंच पद पा न सकें। यहाँ तो पास विद् ऑनर होना है। मेहनत बिगर यह पद कैसे मिलेगा! देह को याद करने वाले कोई पुरूषार्थ नहीं कर सकते। बाप कहते हैं पुरूषार्थ करने वाले को फालो करो। यह भी पुरूषार्थी है ना।”
11. “यह बड़ा विचित्र ज्ञान है। दुनिया में किसको भी पता नहीं है। किसकी भी बुद्धि में नहीं बैठेगा कि आत्मा की चेन्ज कैसे होती है। यह सारी गुप्त मेहनत है। बाबा भी गुप्त है। तुम राजाई कैसे प्राप्त करते हो, लड़ाई–झगड़ा कुछ भी नहीं है। ज्ञान और योग की ही बात है। हम कोई से लड़ते नहीं हैं। यह तो आत्मा को पवित्र बनाने के लिए मेहनत करनी है। आत्मा जैसे–जैसे पतित बनती जाती है तो शरीर भी पतित लेती है फिर आत्मा को पावन बनकर जाना है, बहुत मेहनत है।”
12. “अभी तुम रावण पर जीत पाते हो, बाकी और कोई लड़ाई नहीं है। यह समझाया जाता है, कितनी गुप्त बात है। योगबल से विश्व की बादशाही तुम लेते हो। तुम जानते हो हम अपने शान्तिधाम के रहने वाले हैं। तुम बच्चों को बेहद का घर ही याद है। यहाँ हम पार्ट बजाने आये हैं फिर जाते हैं अपने घर। आत्मा कैसे जाती है यह भी कोई समझते नहीं हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार आत्माओं को आना ही है।”
13. “कोई भी सिद्धि के लिए एक तो एकान्त दूसरी एकाग्रता दोनों की विधि द्वारा सिद्धि को पाते हैं। जैसे आपके यादगार चित्रों द्वारा सिद्धि प्राप्त करने वालों की विशेष दो बातों की विधि अपनाते हैं – एकान्तवासी और एकाग्रता। यही विधि आप भी साकार में अपनाओ। एकाग्रता कम होने के कारण ही दृढ़ निश्चय की कमी होती है। एकान्तवासी कम होने के कारण ही साधारण संकल्प बीज को कमजोर बना देते हैं इसलिए इस विधि द्वारा सिद्धि–स्वरुप बनो।”