Key Points From Daily Murli – 12th February 2025
अपने जीवन को हीरे जैसा बनाने के लिए किस बात की बहुत–बहुत सम्भाल चाहिए?
उत्तर:-
संग की। बच्चों को संग उनका करना चाहिए जो अच्छा बरसते हैं। जो बरसते नहीं, उनका संग रखने से फायदा ही क्या! संग का दोष बहुत लगता है, कोई किसके संग से हीरे जैसा बन जाते हैं, कोई फिर किसके संग से ठिक्कर बन जाते हैं। जो ज्ञानवान होंगे वह आपसमान जरूर बनायेंगे। संग से अपनी सम्भाल रखेंगे।”
1. “बादल कोई तो खूब बरसते हैं, कोई थोड़ा बरसकर चले जाते हैं। तुम भी बादल हो ना। कोई तो बिल्कुल बरसते ही नहीं हैं। ज्ञान को खींचने की ताकत नहीं है। मम्मा–बाबा अच्छे बादल हैं ना। बच्चों को संग उनका करना चाहिए जो अच्छा बरसते हैं। जो बरसते ही नहीं उनसे संग रखने से क्या होगा? संग का दोष भी बहुत लगता है। कोई तो किसके संग से हीरे जैसा बन जाते हैं, कोई फिर किसके संग से ठिक्कर बन जाते हैं। पीठ पकड़नी चाहिए अच्छे की। जो ज्ञानवान होगा वह आपसमान फूल बनायेगा। सत् बाप से जो ज्ञानवान और योगी बने हैं उनका संग करना चाहिए। ऐसे नहीं समझना है कि हम फलाने का पूँछ पकड़कर पार हो जायेंगे। ऐसे बहुत कहते हैं। परन्तु यहाँ तो वह बात नहीं है। स्टूडेन्ट किसकी पूँछ पकड़ने से पास हो जायेंगे क्या! पढ़ना पड़े ना। बाप भी आकर नॉलेज देते हैं। इस समय वह जानते हैं हमको ज्ञान देना है। भक्ति मार्ग में उनकी बुद्धि में यह बातें नहीं रहती कि हमको जाकर ज्ञान देना है। यह सब ड्रामा में नूँध है। बाबा कुछ करते नहीं हैं। ड्रामा में दिव्य दृष्टि मिलने का पार्ट है तो साक्षात्कार हो जाता है। बाप कहते हैं ऐसे नहीं कि मैं बैठ साक्षात्कार कराता हूँ। यह ड्रामा में नूँध है। अगर कोई देवी का साक्षात्कार करना चाहते हैं, देवी तो नहीं करायेगी ना। कहते हैं – हे भगवान, हमको साक्षात्कार कराओ। बाप कहते हैं ड्रामा में नूँध होगी तो हो जायेगा। मैं भी ड्रामा में बांधा हुआ हूँ।”
2. “बाप कहते हैं – अच्छा वा बुरा काम ड्रामानुसार हर एक करते हैं। नूँध है। मैं थोड़ेही इतने करोड़ों मनुष्यों का बैठ हिसाब रखूँगा, मुझे शरीर है तब सब कुछ करता हूँ। करनकरावनहार भी तब कहते हैं। नहीं तो कह न सकें। मैं जब इसमें आऊं तब आकर पावन बनाऊं। ऊपर में आत्मा क्या करेगी? शरीर से ही पार्ट बजायेगी ना। मैं भी यहाँ आकर पार्ट बजाता हूँ। सतयुग में मेरा पार्ट है नहीं। पार्ट बिगर कोई कुछ कर न सके। शरीर बिगर आत्मा कुछ कर नहीं सकती। आत्मा को बुलाया जाता है, वह भी शरीर में आकर बोलेगी ना। आरगन्स बिगर कुछ कर न सके। यह है डीटेल की समझानी।”
3. “मैं यह करता हूँ, मैं यह करता हूँ, यह अहंकार नहीं आना चाहिए। सर्विस करना तो फ़र्ज है, इसमें अहंकार नहीं आना चाहिए। अहंकार आया और गिरा। सर्विस करते रहो, यह है रूहानी सेवा। बाकी सब है जिस्मानी।”
4. “बापदादा की श्रीमत है बच्चे व्यर्थ बातें न सुनो, न सुनाओ और न सोचो। सदा शुभ भावना से सोचो, शुभ बोल बोलो। व्यर्थ को भी शुभ भाव से सुनो। शुभ चिंतक बन बोल के भाव को परिवर्तन कर दो। सदा भाव और भावना श्रेष्ठ रखो, स्वयं को परिवर्तन करो न कि अन्य के परिवर्तन का सोचो। स्वयं का परिवर्तन ही अन्य का परिवर्तन है, इसमें पहले मैं – इस मरजीवा बनने में ही मजा है, इसी को ही महाबली कहा जाता है। इसमें खुशी से मरो – यह मरना ही जीना है, यही सच्चा जीयदान है।”