Key Points From Daily Murli – 13th December 2024
2. “बाप ध्यान के लिए भी डायरेक्शन देते हैं सिर्फ भोग लगाकर आओ। बाबा यह तो कहते नहीं कि वैकुण्ठ में जाओ, रास–विलास आदि करो। दूसरी जगह गये तो समझो माया की प्रवेशता हुई। माया का नम्बरवन कर्तव्य है पतित बनाना। बेकायदे चलन से नुकसान बहुत होता है। हो सकता है फिर कड़ी सजायें भी खानी पड़े, अगर अपने को सम्भालेंगे नहीं तो। बाप के साथ–साथ धर्मराज भी है। उनके पास बेहद का हिसाब–किताब रहता है। रावण की जेल में कितना वर्ष सजायें खाई हैं। इस दुनिया में कितना अपार दु:ख है। अभी बाप कहते हैं और सब बातें भूल एक बाप को याद करो और सभी दुविधा अन्दर से निकाल दो। विकार में कौन ले जाते हैं? माया के भूत। तुम्हारा एम ऑब्जेक्ट है ही यह। राजयोग है ना। बाप को याद करने से यह वर्सा मिलेगा। तो इस धन्धे में लग जाना चाहिए। किचड़ा सारा अन्दर से निकाल देना चाहिए। माया की पराकाष्ठा भी बहुत कड़ी है। परन्तु उनको उड़ाते रहना है। जितना हो सके याद की यात्रा में रहना है। अभी तो निरन्तर याद हो न सके। आखरीन निरन्तर तक भी आयेंगे तब ही ऊंच पद पायेंगे। अगर अन्दर दुविधा, खराब ख्यालात होंगे तो ऊंच पद मिल नहीं सकता। माया के वश होकर ही हार खाते हैं।“
3. “बाप समझाते हैं – बच्चे, गन्दे काम से हार मत खाओ। निन्दा आदि करते तो तुम्हारी बहुत बुरी गति हो गई है। अभी सद्गति होती है तो बुरे कर्म मत करो। बाबा देखते हैं माया ने गले तक ग्रास (हप) कर लिया है। पता भी नहीं पड़ता है। खुद समझते हैं हम बहुत अच्छा चल रहे हैं, परन्तु नहीं। बाप समझाते हैं – मन्सा, वाचा, कर्मणा मुख से रत्न ही निकलने चाहिए। गन्दी बातें करना पत्थर हैं। अभी तुम पत्थर से पारस बनते हो तो मुख से कभी पत्थर नहीं निकलने चाहिए। बाबा को तो समझाना पड़ता है। बाप का हक है बच्चों को समझाना।”
4. “एक–दो बार मिस किया तो आदत पड़ जाती है मिस करने की। संग है माया के मुरीदों का। शिवबाबा के मुरीद थोड़े हैं। बाकी सब हैं माया के मुरीद। तुम शिवबाबा के मुरीद बनते हो तो माया सहन नहीं कर सकती है, इसलिए सम्भाल बहुत करनी चाहिए। छी–छी गन्दे मनुष्यों से बड़ी सम्भाल रखनी है। हंस और बगुले हैं ना। बाबा ने रात को भी शिक्षा दी है, सारा दिन कोई न कोई की निंदा करना, परचिंतन करना, इनको कोई दैवीगुण नहीं कहा जाता है। देवतायें ऐसा काम नहीं करते हैं। बाप कहते हैं बाप और वर्से को याद करो फिर भी निंदा करते रहते हैं। निंदा तो जन्म–जन्मान्तर करते आये हो। दुविधा अन्दर रहती ही है। यह भी अन्दर मारामारी है। मुफ्त अपना खून करते हैं। बहुतों को घाटा डालते हैं। फलाना ऐसा है, इसमें तुम्हारा क्या जाता है। सबका सहायक एक बाप है। अभी तो श्रीमत पर चलना है। मनुष्य मत तो बड़ा गन्दा बना देती है। एक–दो की ग्लानि करते रहते हैं। ग्लानि करना यह है माया का भूत। यह है ही पतित दुनिया। तुम समझते हो कि हम अभी पतित से पावन बन रहे हैं। तो यह बड़ी खराबियाँ हैं। समझाया जाता है आज से अपना कान पकड़ना चाहिए – कभी ऐसा कर्म नहीं करेंगे। कुछ भी अगर देखते हो तो बाबा को रिपोर्ट करनी चाहिए। तुम्हारा क्या जाता है! तुम एक–दो की ग्लानि क्यों करते हो! बाप सुनता तो सब–कुछ है ना। बाप ने कानों और आंखों का लोन लिया है ना। बाप भी देखते हैं तो यह दादा भी देखते हैं। चलन, वातावरण तो कोई–कोई का बिल्कुल ही बेकायदे चलता है।”
5. “बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। देह के सब बन्धन छोड़ अपने को आत्मा समझो। बाप समझाते हैं कि प्रीत रखनी है तो एक से रखो तब बेड़ा पार होगा।”
6. “माया कोई को पकड़ लेती है, किसकी निंदा करना, ग्लानि करना – यह तो बहुतों की आदत है। और तो कोई काम है ही नहीं। बाप को कभी याद नहीं करेंगे। एक–दो की ग्लानि का धन्धा ही करते हैं। यह है माया का पाठ। बाप का पाठ तो बिल्कुल ही सीधा है।”
7. “हमारे में कोई खराब ख्याल भी नहीं आना चाहिए। बहुतों को अभी भी खराब ख्यालात आते हैं, फिर इसकी सज़ा भी बहुत कड़ी है। बाप समझाते तो बहुत हैं। अगर कुछ चाल तुम्हारी फिर खराब देखी तो यहाँ रह नहीं सकेंगे। थोड़ी सजा भी देनी होती है, तुम लायक नहीं हो। बाप को ठगते हो। तुम बाप को याद कर नहीं सकेंगे। अवस्था सारी गिर जाती है। अवस्था गिरना ही सजा है। श्रीमत पर न चलने से अपना पद भ्रष्ट कर देते हैं। बाप के डायरेक्शन पर न चलने से और ही भूत की प्रवेशता होती है। बाबा को तो कभी–कभी ख्याल आता है, कहीं बहुत बड़ी कड़ी सजायें अभी ही शुरू न हो जाएं। सजायें भी बहुत गुप्त होती हैं ना। कहीं कड़ी पीड़ा न आये। बहुत गिरते हैं, सजा खाते हैं। बाप तो सब इशारे में समझाते रहते हैं। अपनी तकदीर को लकीर बहुत लगाते हैं इसलिए बाप खबरदार करते रहते हैं, अभी ग़फलत करने का समय नहीं है, अपने को सुधारो। अन्त घड़ी आने में कोई देरी नहीं है।”
8. “बन्धनमुक्त हैं तो पूरा–पूरा बलिहार जाना है। अपना ममत्व निकाल देना है। कभी भी किसी की निंदा वा परचिंतन नहीं करना है। गन्दे खराब ख्यालातों से स्वयं को मुक्त रखना है।”