October 2024 – Key Points from Daily Murli
21st October 2024
- “बाप सिर्फ कहते हैं मनमनाभव अर्थात् अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो।”
- “पापों को भस्म कर पावन होंगे, याद की यात्रा से।”
- “योग अर्थात् याद की यात्रा।”
- “अपने को आत्मा समझने से देह का अहंकार बिल्कुल टूट जाता है।”
22nd October 2024
- “मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूल वतन – यह है सारी युनिवर्स। खेल कोई सूक्ष्मवतन वा मूलवतन में नहीं चलता है, नाटक यहाँ ही चलता है।”
- “आत्माओं के बाप को बाबा कहेंगे। दूसरा कोई नाम होता नहीं। बाबा का नाम है शिव।”
- “अपवित्र सदैव पवित्र को पूजते हैं।”
- “आत्मा में जो शक्ति रहती है वह फिर आहिस्ते–आहिस्ते डिग्रेड होती जाती है अर्थात् आत्मा में जो सतोप्रधान शक्ति थी वह तमोप्रधान शक्ति हो जाती है। जैसे मोटर का तेल खलास होने से मोटर खड़ी हो जाती है। यह बैटरी घड़ी–घड़ी डिस्चार्ज नहीं होती है, इनको पूरा टाइम मिला हुआ है। कलियुग अन्त में बैटरी ठण्डी हो जाती है। पहले जो सतोप्रधान विश्व के मालिक थे, अभी तमोप्रधान हैं तो ताकत कम हो गई है। शक्ति नहीं रही है। वर्थ नाट पेनी बन जाते हैं। यह 5 विकार रूपी रावण तुम्हारी सारी ताकत छीन लेते है।”
- “सुप्रीम की पढ़ाई से आत्मा सुप्रीम बनती है। सुप्रीम पवित्र को कहा जाता है।”
- “प्रवृत्ति में रहते पवित्रता के स्वधर्म को अपना लिया तो पवित्र आत्मा विशेष आत्मा बन गये।”
23rd October 2024
- “रूहानी बाप ही रूहानी नॉलेज पढ़ाते हैं, इसलिए उनको टीचर भी कहते हैं, स्प्रीचुअल फादर पढ़ाते हैं। इस रूहानी नॉलेज से हम अपना आदि सनातन देवी–देवता धर्म स्थापन करते हैं।”
- “आत्मा अच्छे वा बुरे संस्कार ले जाती है।”
- “अपने को आत्मा के बदले शरीर समझना, इसको कहा जाता है उल्टा लटकना।”
- “माया ग़फलत कराती है। बेहद के बाप को याद करना ही भूल जाते हैं।”
- “कभी भूतों के वशीभूत हो इज्जत गॅवानी नहीं है।”
- “देह–भान से मुक्त बनो तो दूसरे सब बन्धन स्वत: खत्म हो जायेंगे।”
30th October 2024
“प्रश्नः–
बाप जो समझाते हैं उसे कोई सहज मान लेते, कोई मुश्किल समझते – इसका कारण क्या है?
उत्तर:-
जिन बच्चों ने बहुत समय भक्ति की है, आधाकल्प से पुराने भक्त हैं, वह बाप की हर बात को सहज मान लेते हैं क्योंकि उन्हें भक्ति का फल मिलता है। जो पुराने भक्त नहीं उन्हें हर बात समझने में मुश्किल लगता। दूसरे धर्म वाले तो इस ज्ञान को समझ भी नहीं सकते।”
- “सब आत्माओं का बाप एक है। सबको बाप से वर्सा लेने का हक है। तुम हो भाई–भाई, भल शरीर स्त्री–पुरुष का है।”
- “बाप सिर्फ कहते हैं – मीठे–मीठे लाडले बच्चों, मुझे याद करो। तुम्हारी आत्मा जो सतोप्रधान से तमोप्रधान बनी है, खाद पड़ी है ना, वह योग अग्नि से ही निकलेगी। सोनार लोग जानते हैं, बाप को ही पतित–पावन कहते हैं। बाप सुप्रीम सोनार ठहरा। सबकी खाद निकाल सच्चा सोना बना देते हैं। सोना अग्नि में डाला जाता है। यह है योग अर्थात् याद की अग्नि क्योंकि याद से ही पाप भस्म होते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान याद की यात्रा से ही बनना है। सब तो सतोप्रधान नहीं बनेंगे। कल्प पहले मिसल ही पुरूषार्थ करेंगे।”
- “परम आत्मा का भी ड्रामा में पार्ट नूँधा हुआ है, जो नूँध है वह होता रहता है। बदल नहीं सकता। रील फिरता ही रहता है।”
- “वह है सब आत्माओं का बाप। उनको याद करना है। मनमनाभव का भी अर्थ यह है।”
31st October 2024
- “कभी भी कोई विकार की बात हमारे आगे आ नहीं सकती, सिर्फ विकार की भी बात नहीं। एक भूत नहीं परन्तु कोई भी भूत आ नहीं सकता। ऐसा शुद्ध अहंकार रहना चाहिए। बहुत ऊंच ते ऊंच भगवान के हम बच्चे भी ऊंच ते ऊंच ठहरे ना। बातचीत, चलन कैसी रॉयल होनी चाहिए।”
- “अन्दर में सोचो हम कितने ऊंच ते ऊंच बाप के बच्चे हैं, हमारा कैरेक्टर कितना ऊंच होना चाहिए। जो इन देवी–देव–ताओं की महिमा है, वह हमारी होनी चाहिए। प्रजा की थोड़ेही महिमा है।”
- “ज्ञान सागर बाप तुम्हें ज्ञान तो इतना देते हैं जो सागर को स्याही बनाओ, सारा जंगल कलम बनाओ तो भी अन्त नहीं हो सकता।”
- “कोई–कोई प्रश्न पूछते हैं – देवतायें गिरते क्यों हैं? अरे, यह चक्र फिरता रहता है। पुनर्जन्म लेते–लेते नीचे तो उतरेंगे ना! चक्र तो फिरना ही है।”