Key Points From Daily Murli – March 2025
1st March 2025
“प्रश्नः–
याद की यात्रा को दूसरा कौन–सा नाम देंगे?
उत्तर:-
याद की यात्रा प्रीत की यात्रा है। विपरीत बुद्धि वाले से नाम–रूप में फँसने की बदबू आती है। उनकी बुद्धि तमोप्रधान हो जाती है। जिनकी प्रीत एक बाप से है वह ज्ञान का दान करते रहेंगे। किसी भी देहधारी से उनकी प्रीत नहीं हो सकती।”
1. “अभी तुम रचयिता बाप को जानते हो, उस बाप की याद में तुमको कभी रूकना नहीं है। तुमको यात्रा मिली है याद की। इसको याद की यात्रा अथवा प्रीत की यात्रा कहा जाता है। जिसकी जास्ती प्रीत होगी वह यात्रा भी अच्छी करेंगे। जितना प्यार से यात्रा पर रहेंगे, पवित्र भी बनते जायेंगे।”
2. “अभी तुम बच्चों को बाप अविनाशी ज्ञान रत्नों की सौगात देते हैं, जिससे तुम राजाई प्राप्त करते हो। अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करते हैं तो प्रीत बुद्धि हैं। जानते हैं बाबा सबका कल्याण करने आये हैं, हमको भी मददगार बनना है। ऐसे प्रीत बुद्धि विजयन्ती होते हैं। जो याद ही नहीं करते वह प्रीत बुद्धि नहीं। बाप से प्रीत होगी, याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे और दूसरों को भी कल्याण का रास्ता बतायेंगे।”
3. “रचना को एक रचता बाप ही याद रहना चाहिए। किसी रचना को याद नहीं करना है। दुनिया में तो रचयिता को कोई जानते नहीं, न याद करते हैं। संन्यासी लोग भी ब्रह्म को याद करते हैं, वह भी रचना हो गई। रचयिता तो सबका एक ही है ना। और जो भी चीजें इन आंखों से देखते हो वह सब तो हैं रचना। जो नहीं देखने आता है वह है रचयिता बाप। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी चित्र है। वह भी रचना है।”
4. “बाप कहते हैं तुम्हारा यह रूहानी धंधा तो बहुत अच्छा है। सवेरे और शाम को इस सर्विस में लग जाओ। शाम का समय 6 से 7 तक अच्छा कहते हैं। सतसंग आदि भी शाम को और सवेरे करते हैं। रात में तो वायुमण्डल खराब हो जाता है। रात को आत्मा स्वयं शान्ति में चली जाती है, जिसको नींद कहते हैं। फिर सवेरे जागती है।”
5. “बाप को जानते ही नहीं इसलिए प्रीत बुद्धि हैं नहीं। पाप बढ़ते–बढ़ते एकदम तमोप्रधान बन पड़े हैं। बाप के साथ प्रीत उनकी होगी जो बहुत याद करेंगे। उनकी ही गोल्डन एज बुद्धि होगी। अगर और तरफ बुद्धि भटकती होगी तो तमोप्रधान ही रहेंगे। भल सामने बैठे हैं तो भी प्रीत बुद्धि नहीं कहेंगे क्योंकि याद ही नहीं करते हैं। प्रीत बुद्धि की निशानी है याद। वह धारणा करेंगे, औरों पर भी रहम करते रहेंगे कि बाप को याद करो तो तुम पावन बनेंगे।”
6. “माया की ग्रहचारी पहला वार बुद्धि पर ही करती है। बाप से ही बुद्धियोग तोड़ देती है, जिससे एकदम ऊपर से नीचे गिर जाते हैं। देहधारियों से बुद्धियोग अटक पड़ता है तो बाप से विपरीत हुए ना। तुमको प्रीत रखनी है एक विचित्र विदेही बाप से। देहधारी से प्रीत रखना नुकसानकारक है। बुद्धि ऊपर से टूटती है तो एकदम नीचे गिर पड़ते हैं। भल यह अनादि बना बनाया ड्रामा है फिर भी समझायेंगे तो सही ना। विपरीत बुद्धि से तो जैसे बांस आती है, नाम–रूप में फँसने की।”
7. “कई बच्चे चलते–चलते रूठ पड़ते हैं। अभी देखो तो प्रीत है, अभी देखो तो प्रीत टूट पड़ती, रूठ जाते हैं। कोई बात से बिगड़े तो कभी याद भी नहीं करेंगे। चिट्ठी भी नहीं लिखेंगे। गोया प्रीत नहीं है। तो बाबा भी 6-8 मास चिट्ठी नहीं लिखेंगे। बाबा कालों का काल भी है ना! साथ में धर्मराज भी है। बाप को याद करने की फुर्सत नहीं तो तुम क्या पद पायेंगे। पद भ्रष्ट हो जायेगा।”
8. “यह भी बाबा ने समझाया है – किसकी दी हुई चीज़ पहनेंगे तो उनकी याद जरूर आयेगी। बाबा के भण्डारे से लेंगे तो शिवबाबा ही याद आयेगा। बाबा खुद अनुभव बतलाते हैं। याद जरूर पड़ती है इसलिए कोई की भी दी हुई चीज़ रखनी नहीं चाहिए।”
9. “इस किले में हर आत्मा सदा विजयी और निर्विघ्न बन जाए इसके लिए विशेष टाइम पर चारों ओर एक साथ योग के प्रोग्राम रखो। फिर कोई भी इस तार को काट नहीं सकेगा क्योंकि जितना सेवा बढ़ाते जायेंगे उतना माया अपना बनाने की कोशिश भी करेगी इसलिए जैसे कोई भी कार्य शुरू करते समय शुद्धि की विधियां अपनाते हो, ऐसे संगठित रूप में आप सर्व श्रेष्ठ आत्माओं का एक ही शुद्ध संकल्प हो – विजयी, यह है शुद्धि की विधि – जिससे किला मजबूत हो जायेगा।”
2nd March 2025
1. “आज बापदादा हर एक बच्चे के मस्तक में तीन भाग्य के सितारे चमकते हुए देख रहे हैं। एक परमात्म पालना का भाग्य, परमात्म पढ़ाई का भाग्य, परमात्म वरदानों का भाग्य। ऐसे तीन सितारे सभी के मस्तक बीच देख रहे हैं।”
2. “बापदादा ने पहले भी कहा था – व्हाई–व्हाई नहीं करो, क्या करो? फ्लाई या वाह! वाह! करो या फ्लाई करो। व्हाई–व्हाई नहीं करो। व्हाई–व्हाई करना जल्दी आता है ना! आ जाता है? जब व्हाई आवे ना तो उसको वाह! वाह! कर लो। कोई भी कुछ करता है, कहता है, वाह! ड्रामा वाह!। यह क्यों करता है, यह क्यों कहता, नहीं। यह करे तो मैं करूं, नहीं।”
3. “माया को देखने वा जानने के लिए त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री बनो तब विजयी बनेंगे।”
4. “सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ – सत्यता की निशानी सभ्यता है। अगर आप सच्चे हो, सत्यता की शक्ति आपमें है तो सभ्यता को कभी नहीं छोड़ो, सत्यता को सिद्ध करो लेकिन सभ्यतापूर्वक। अगर सभ्यता को छोड़कर असभ्यता में आकरके सत्य को सिद्ध करना चाहते हो तो वह सत्य सिद्ध नहीं होगा। असभ्यता की निशानी है जिद और सभ्यता की निशानी है निर्मान। सत्यता को सिद्ध करने वाला सदैव स्वयं निर्मान होकर सभ्यतापूर्वक व्यवहार करेगा।”
03rd March 2025
1. “यह भी बच्चों को समझाया है तुम जब ऊपर से आते हो तो वाया सूक्ष्मवतन से नहीं आते हो। अभी वाया सूक्ष्मवतन होकर जाना है। सूक्ष्मवतन बाबा अभी ही दिखाते हैं।”
2. “तुम जानते हो हम ही पूज्य से पुजारी बन बाबा की और अपनी पूजा करते हैं। यह (बाबा) भी नारायण की पूजा करते थे ना। वन्डरफुल खेल है। जैसे नाटक देखने से खुशी होती है ना, वैसे यह भी बेहद का नाटक है, इनको कोई भी जानते नहीं। तुम्हारी बुद्धि में अब सारा ड्रामा का राज़ है।”
3. “तुम जानते हो अभी बाकी थोड़ा समय है, हम जा रहे हैं नई दुनिया में। भविष्य की खुशी रहती है तो वह इस दु:ख को उड़ा देती है। लिखते हैं बाबा बहुत विघ्न पड़ते हैं, घाटा पड़ जाता है। बाप कहते हैं कुछ भी विघ्न आयें, आज लखपति हो, कल कखपति बन जाते हो। तुमको तो भविष्य की खुशी में रहना है ना। यह है ही रावण की आसुरी दुनिया। चलते–चलते कोई न कोई विघ्न पड़ेगा। इस दुनिया में बाकी थोड़े दिन हैं फिर हम अथाह सुखों में जायेंगे। बाबा कहते हैं ना – कल सांवरा था, गांवड़े का छोरा था, अभी बाप हमको नॉलेज दे गोरा बना रहे हैं।”
4. “जिस भण्डारे से खाया, कहते हैं बाबा यह सब आपका है। बाप कहते हैं ट्रस्टी होकर सम्भालो। बाबा सब कुछ आपका दिया हुआ है। भक्ति मार्ग में सिर्फ कहने मात्र कहते थे। अभी मैं तुमको कहता हूँ ट्रस्टी बनो। अभी मैं सम्मुख हूँ। मैं भी ट्रस्टी बन फिर तुमको ट्रस्टी बनाता हूँ। जो कुछ करो पूछ कर करो। बाबा हर बात में राय देते रहेंगे।”
5. “पवित्र रहते भी माया का थप्पड़ लग जाता है, खराब हो पड़ते हैं। माया बड़ी प्रबल है। वह भी काम वश हो जाते हैं, फिर कहा जाता है ड्रामा की भावी। इस घड़ी तक जो कुछ हुआ कल्प पहले भी हुआ था। नथिंगन्यु। अच्छा काम करने में विघ्न डालते हैं, नई बात नहीं।”
6. “जिन्होंने कल्प पहले ज्ञान लिया होगा, उनका ताला खुलता जायेगा। वह आते रहेंगे।”
7. “बाप समझते हैं जो बिल्कुल पत्थरबुद्धि हैं उन्हें पारसबुद्धि बनाना है।”
8. “जो सर्व खजानों से सम्पन्न है वही सदा सन्तुष्ट है। सन्तुष्टता अर्थात् सम्पन्नता। जैसे बाप सम्पन्न है इसलिए महिमा में सागर शब्द कहते हैं, ऐसे आप बच्चे भी मास्टर सागर अर्थात् सम्पन्न बनो तो सदा खुशी में नाचते रहेंगे। अन्दर खुशी के सिवाए और कुछ आ नहीं सकता। स्वयं सम्पन्न होने के कारण किसी से भी तंग नहीं होंगे। किसी भी प्रकार की उलझन या विघ्न एक खेल अनुभव होगा, समस्या मनोरंजन का साधन बन जायेगी। निश्चयबुद्धि होने के कारण सदा हर्षित और विजयी होंगे।”
9. “परमात्मा तीन रूप धारण कर वर्सा देता है। वह हमारा बाप भी है, टीचर भी है तो गुरू भी है।”
10. “सत्य ऐसा सूर्य है जो छिप नहीं सकता, चाहे कितनी भी दीवारें कोई आगे लाये लेकिन सत्यता का प्रकाश कभी छिप नहीं सकता। सभ्यता पूर्वक बोल, सभ्यता पूर्वक चलन, इसमें ही सफलता होती है।”
4th March 2025
“मीठे बच्चे – जिन्होंने शुरू से भक्ति की है, 84 जन्म लिए हैं, वह तुम्हारे ज्ञान को बड़ी रूचि से सुनेंगे, इशारे से समझ जायेंगे”
“प्रश्नः–
देवी–देवता घराने के नजदीक वाली आत्मा है या दूर वाली, उसकी परख क्या होगी?
उत्तर:-
जो तुम्हारे देवता घराने की आत्मायें होंगी, उन्हें ज्ञान की सब बातें सुनते ही जंच जायेंगी, वह मूझेंगे नहीं। जितना बहुत भक्ति की होगी उतना जास्ती सुनने की कोशिश करेंगे। तो बच्चों को नब्ज देखकर सेवा करनी चाहिए।”
1. “यह भी तुम जानते हो 84 जन्म कोई सब तो नहीं लेते होंगे। यह कैसे पता पड़े यह 84 जन्म लेने वाला है या 10 जन्म लेने वाला है वा 20 जन्म लेने वाला है? अब तुम बच्चे यह तो समझते हो कि जिसने बहुत भक्ति की होगी शुरू से लेकर, तो उनको फल भी इतना ही जल्दी और अच्छा मिलेगा। थोड़ी भक्ति की होगी और देरी से की होगी तो फल भी इतना थोड़ा और देरी से मिलेगा। यह बाबा सर्विस करने वाले बच्चों के लिए समझाते हैं। बोलो, तुम भारतवासी हो तो बताओ देवी–देवताओं को मानते हो? भारत में इन लक्ष्मी–नारायण का राज्य था ना। जो 84 जन्म लेने वाला होगा, शुरू से भक्ति की होगी वह झट समझ जायेगा – बरोबर आदि सनातन देवी–देवता धर्म था, रूचि से सुनने लग पड़ेंगे। कोई तो ऐसे ही देखकर चले जाते हैं, कुछ पूछते भी नहीं जैसे कि बुद्धि में बैठता नहीं। तो उनके लिए समझना चाहिए यह अभी तक यहाँ का नहीं है। आगे चल समझ भी लेवें। कोई का समझाने से झट कांध हिलेगा। बरोबर इस हिसाब से तो 84 जन्म ठीक हैं। अगर कहते हैं हम कैसे समझें कि पूरे 84 जन्म लिए हैं? अच्छा, 84 नहीं तो 82, देवता धर्म में तो आये होंगे। देखो इतना बुद्धि में जंचता नहीं है तो समझो यह 84 जन्म लेने वाला नहीं है। दूर वाले कम सुनेंगे। जितना बहुत भक्ति की हुई होगी वह जास्ती सुनने की कोशिश करेंगे। झट समझ जायेंगे। कम समझता है तो समझो यह देरी से आने वाला है। भक्ति भी देरी से की होगी। बहुत भक्ति करने वाला इशारे से समझ जायेगा। ड्रामा रिपीट तो होता है ना। सारा भक्ति पर मदार है। इस (बाबा) ने सबसे नम्बरवन भक्ति की है ना। कम भक्ति की होगी तो फल भी कम मिलेगा। यह सब समझने की बातें हैं। मोटी बुद्धि वाले धारणा कर नहीं सकेंगे।”
2. “अभी तुम बच्चे समझते हो तुमको सुख–शान्ति दोनों मिलते हैं, जहाँ शान्ति है वहाँ सुख है। जहाँ अशान्ति है, वहाँ दु:ख है। सतयुग में सुख–शान्ति है, यहाँ दु:ख–अशान्ति है।”
3. “तुमको माया रावण ने कितना तुच्छ बुद्धि बनाया है, यह भी ड्रामा बना हुआ है। बाप कहते हैं मैं भी ड्रामा के बन्धन में बांधा हुआ हूँ। मेरा पार्ट ही अभी है जो बजा रहा हूँ। कहते भी हैं बाबा कल्प–कल्प आप ही आकर भ्रष्टाचारी पतित से श्रेष्ठाचारी पावन बनाते हो। भ्रष्टाचारी बने हो रावण द्वारा। अब बाप आकर मनुष्य से देवता बनाते हैं।”
4. “अभी बाप आकर यह सब बातें समझाते हैं। बीज और झाड़ का राज़ समझाते हैं। ऐसे झाड़ और कोई बना न सके। यह कोई इसने नहीं बनाया है। इनका कोई गुरू नहीं था। अगर होता तो उनके और भी शिष्य होते ना। मनुष्य समझते हैं इनको कोई गुरू ने सिखाया है या तो कहते परमात्मा की शक्ति प्रवेश करती है। अरे, परमात्मा की शक्ति कैसे प्रवेश करेगी! बिचारे कुछ भी नहीं जानते। बाप खुद बैठ बताते हैं मैंने कहा था मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ, आकर तुमको पढ़ाता हूँ। यह भी सुनते हैं, अटेन्शन तो हमारे ऊपर है। यह भी स्टूडेन्ट है। यह अपने को और कुछ नहीं कहते। प्रजापिता सो भी स्टूडेन्ट है। भल इसने विनाश भी देखा परन्तु समझा कुछ भी नहीं। आहिस्ते–आहिस्ते समझते गये। जैसे तुम समझते जाते हो। बाप तुमको समझाते हैं, बीच में यह भी समझते जाते हैं, पढ़ते रहते हैं। हर एक स्टूडेन्ट पुरूषार्थ करेंगे पढ़ने का।”
5. “ब्रह्मा–विष्णु–शंकर तो हैं सूक्ष्मवतनवासी। उन्हों का क्या पार्ट है, यह भी कोई नहीं जानते। बाप हर एक बात आपेही समझाते हैं। तुम प्रश्न कोई पूछ नहीं सकते। ऊपर में है शिव परमात्मा फिर देवतायें, उनको मिला कैसे सकते। अभी तुम बच्चे जानते हो बाप इसमें आकर प्रवेश करते हैं इसलिए कहा जाता है बापदादा। बाप अलग है, दादा अलग है। बाप शिव, दादा ब्रह्मा है। वर्सा शिव से मिलता है इन द्वारा। ब्राह्मण हो गये ब्रह्मा के बच्चे। बाप ने एडाप्ट किया है ड्रामा के प्लैन अनुसार। बाप कहते हैं नम्बरवन भक्त यह है। 84 जन्म भी इसने लिए हैं। सांवरा और गोरा भी इनको कहते हैं। श्रीकृष्ण सतयुग में गोरा था, कलियुग में सांवरा है। पतित है ना फिर पावन बनते हैं। तुम भी ऐसे बनते हो। यह है आइरन एजेड वर्ल्ड, वह है गोल्डन एजेड वर्ल्ड। सीढ़ी का किसको पता नहीं है, जो पीछे आते हैं वह 84 जन्म थोड़ेही लेते होंगे। वह जरूर कम जन्म लेंगे फिर उनको सीढ़ी में दिखा कैसे सकते। बाबा ने समझाया है – सबसे जास्ती जन्म कौन लेंगे? सबसे कम जन्म कौन लेंगे? यह है नॉलेज। बाप ही नॉलेजफुल, पतित–पावन है। आदि–मध्य–अन्त की नॉलेज सुना रहे हैं। वह सब नेती–नेती करते आये हैं। अपनी आत्मा को ही नहीं जानते तो बाप को फिर कैसे जानेंगे? सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं, आत्मा क्या चीज़ है, कुछ भी नहीं जानते। तुम अभी जानते हो आत्मा अविनाशी है, उसमें 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। इतनी छोटी सी आत्मा में कितना पार्ट नूँधा हुआ है, जो अच्छी रीति सुनते और समझते हैं तो समझा जाता है यह नजदीक वाला है। बुद्धि में नहीं बैठता है तो देरी से आने वाला होगा। सुनाने के समय नब्ज देखी जाती है। समझाने वाले भी नम्बरवार हैं ना। तुम्हारी यह पढ़ाई है, राजधानी स्थापन हो रही है। कोई तो ऊंच से ऊंच राजाई पद पाते हैं, कोई तो प्रजा में नौकर चाकर बनते हैं। बाकी हाँ, इतना है कि सतयुग में कोई दु:ख नहीं होता। उनको कहा ही जाता है सुखधाम, बहिश्त। पास्ट हो गया है तब तो याद करते हैं ना।”
6. “तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, तुम सबसे पहले तो बाप की बॉयोग्राफी को जान गये तो और क्या चाहिए। बाप को जानने से ही सब कुछ समझ में आ जाता है। तो खुशी होनी चाहिए।”
7. “मुख्य बात ही है पतित से पावन बनने लिए बुद्धियोग लगाना है। पावन बनने की प्रतिज्ञा कर फिर अगर पतित बनते हैं तो हडगुड एकदम टूट पड़ती हैं, जैसेकि 5 मंजिल से गिरते हैं। बुद्धि ही मलेच्छ की हो जायेगी, दिल अन्दर खाता रहेगा। मुख से कुछ निकलेगा नहीं इसलिए बाप कहते हैं खबरदार रहो।”
8. “जब भी कोई असत्य बात देखते हो, सुनते हो तो असत्य वायुमण्डल नहीं फैलाओ। कई कहते हैं यह पाप कर्म है ना, पाप कर्म देखा नहीं जाता लेकिन वायुमण्डल में असत्यता की बातें फैलाना, यह भी तो पाप है। लौकिक परिवार में भी अगर कोई ऐसी बात देखी वा सुनी जाती है तो उसे फैलाया नहीं जाता। कान में सुना और दिल में छिपाया। यदि कोई व्यर्थ बातों का फैलाव करता है तो यह छोटे–छोटे पाप उड़ती कला के अनुभव को समाप्त कर देते हैं, इसलिए इस कर्मो की गहन गति को समझकर यथार्थ रूप में सत्यता की शक्ति धारण करो।”
5th March 2025
1. “माया तुमसे जो छी–छी कर्म करायेगी वह कर्म जरूर विकर्म बनेगा। पहले नम्बर में जो कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, यह भी माया ने कहलाया ना। माया तुमसे हर बात में विकर्म ही करायेगी। कर्म–अकर्म–विकर्म का राज़ भी समझाया है। श्रीमत पर आधा–कल्प तुम सुख भोगते हो, आधाकल्प फिर रावण की मत पर दु:ख भोगते हो। इस रावण राज्य में तुम भक्ति जो करते हो, नीचे ही उतरते आये हो। तुम इन बातों को नहीं जानते थे, बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि थे। पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि गाते तो हैं ना। भक्ति मार्ग में कहते भी हैं – हे ईश्वर, इनको अच्छी बुद्धि दो, तो यह लड़ाई आदि बन्द कर दें। तुम बच्चे जानते हो बाबा बहुत अच्छी बुद्धि अभी दे रहे हैं। बाबा कहते हैं – मीठे बच्चों, तुम्हारी आत्मा जो पतित बनी है, उनको पावन बनाना है, याद की यात्रा से।”
2. “तुम अभी समझते हो हमको भगवान से फल मिल रहा है। भक्ति के दो फल हैं – एक मुक्ति, दूसरा जीवनमुक्ति। यह समझने की बड़ी महीन बातें हैं। जिन्होंने शुरू से लेकर बहुत भक्ति की होगी, वह ज्ञान अच्छी रीति लेंगे तो फल भी अच्छा पायेंगे। भक्ति कम की होगी तो ज्ञान भी कम लेंगे, फल भी कम पायेंगे। हिसाब है ना। नम्बरवार पद है ना। बाप कहते हैं – मेरा बनकर विकार में गिरा तो गोया मुझे छोड़ा। एकदम नीचे जाकर पड़ेंगे। कोई तो गिरकर फिर उठ पड़ते हैं। कोई तो बिल्कुल ही गटर में गिर जाते, बुद्धि बिल्कुल सुधरती ही नहीं। कोई को दिल अन्दर खाता है, दु:ख होता है – हमने भगवान से प्रतिज्ञा की और फिर उनको धोखा दे दिया, विकार में गिर पड़ा। बाप का हाथ छोड़ा, माया का बन पड़ा। वे फिर वायुमण्डल ही खराब कर देते हैं, श्रापित हो जाते हैं। बाप के साथ धर्मराज भी है ना। उस समय पता नहीं पड़ता है कि हम क्या करते हैं, बाद में पश्चाताप होता है। ऐसे बहुत होते हैं, किसका खून आदि करते हैं तो जेल में जाना पड़ता है, फिर पश्चाताप होता है – नाहेक उनको मारा। गुस्से में आकर मारते भी बहुत हैं। ढेर समाचार अखबारों में पड़ते हैं। तुम तो अखबार पढ़ते नहीं हो। दुनिया में क्या–क्या हो रहा है, तुमको मालूम नहीं पड़ता है। दिन–प्रतिदिन हालतें खराब होती जाती हैं। सीढ़ी नीचे उतरनी ही है। तुम इस ड्रामा के राज़ को जानते हो। बुद्धि में यह बात है कि हम बाबा को ही याद करें। कोई भी ऐसा छी–छी कर्तव्य न करें जिससे रजिस्टर खराब हो जाए। बाप कहते हैं मैं तुम्हारा टीचर हूँ ना। टीचर के पास स्टूडेन्ट की पढ़ाई का और चाल चलन का रिकार्ड रहता है ना। कोई की चाल बहुत अच्छी, कोई की कम, कोई की बिल्कुल खराब। नम्बरवार होते हैं ना। यह भी सुप्रीम बाप कितना ऊंच पढ़ाते हैं। वह भी हर एक की चाल–चलन को जानते हैं। तुम खुद भी जान सकते हो – हमारे में यह आदत है, इस कारण हम फेल हो जायेंगे। बाबा हर बात क्लीयर कर समझाते हैं। पूरी रीति पढ़ाई नहीं पढ़ेंगे, किसको दु:ख देंगे तो दु:खी होकर मरेंगे। पद भी भ्रष्ट होगा। सजायें भी बहुत खायेंगे।”
3. “मीठे बच्चे, अपनी और दूसरों की तकदीर बनानी है तो रहमदिल का संस्कार धारण करो। जैसे बाप रहमदिल है तब टीचर बनकर तुम्हें पढ़ाते हैं। कोई बच्चे अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं, इसमें रहमदिल बनना होता है। टीचर रहमदिल है ना। कमाई का रास्ता बताते हैं कि कैसे अच्छा पोजीशन तुम पा सकते हो। उस पढ़ाई में तो अनेक प्रकार के टीचर्स होते हैं। यह तो एक ही टीचर है। पढ़ाई भी एक ही है मनुष्य से देवता बनने की। इसमें मुख्य है पवित्रता की बात। पवित्रता ही सब मांगते हैं। बाप तो रास्ता बता रहे हैं परन्तु जिनकी तकदीर में ही नहीं है तो तदबीर क्या कर सकते!”
4. “तुमको हर एक बात बेहद की समझाई जाती है। तुम्हारा है बेहद का वैराग्य। यह भी तुमको सिखलाते हैं जबकि पतित दुनिया का विनाश, पावन दुनिया की स्थापना होनी है।”
5. “संन्यासियों के कभी मन्दिर नहीं बनाते हैं। मन्दिर हमेशा देवताओं के बनाते हैं। तुम कोई भक्ति नहीं करते हो। तुम योग में रहते हो। उनका तो ज्ञान ही है ब्रह्म तत्व को याद करने का। बस ब्रह्म में लीन हो जायें। परन्तु सिवाए बाप के वहाँ तो कोई ले जा न सके। बाप आते ही हैं संगमयुग पर। आकरके देवी–देवता धर्म की स्थापना करते हैं। बाकी सबकी आत्मायें वापिस चली जाती हैं क्योंकि तुम्हारे लिए नई दुनिया चाहिए ना। पुरानी दुनिया का कोई भी रहना नहीं चाहिए। तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो।”
6. “बाप कहते हैं तुम पतित बने हो इसलिए अब मुझे बुलाते हो कि आकर पावन बनाओ तो जरूर आयेंगे तब तो पावन दुनिया स्थापन होगी ना। तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है। युक्ति कितनी अच्छी बतलाते हैं। भगवानुवाच मनमनाभव। देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को तोड़ मामेकम् याद करो।”
7. “हम भी बिन्दी हैं, बाबा भी बिन्दी है, यह स्मृति में आना मुश्किल लगता है। यही यथार्थ रीति याद करना है। मोटी चीज़ तो है नहीं। बाप कहते हैं यथार्थ रूप में मैं बिन्दी हूँ इसलिए मैं जो हूँ, जैसा हूँ वह सिमरण करें – यह बड़ी मेहनत है।”
8. “वह तो कह देते परमात्मा ब्रह्म तत्व है और हम कहते हैं वह एकदम बिन्दी है। रात–दिन का फ़र्क है ना। ब्रह्म तत्व जहाँ हम आत्मायें रहती हैं, उनको परमात्मा कह देते। बुद्धि में यह रहना चाहिए – मैं आत्मा हूँ, बाबा का बच्चा हूँ, इन कानों से सुनता हूँ, बाबा इस मुख से सुनाते हैं कि मैं परम आत्मा हूँ, परे ते परे रहने वाला हूँ। तुम भी परे ते परे रहते हो परन्तु जन्म–मरण में आते हो, मैं नहीं आता हूँ।”
9. “बाप के पार्ट को भी समझा है। आत्मा कोई छोटी–बड़ी नहीं होती है। बाकी आइरन एज में आने से मैली बन जाती है। इतनी छोटी–सी आत्मा में सारा ज्ञान है। बाप भी इतना छोटा है ना। परन्तु उनको परम आत्मा कहा जाता है। वह ज्ञान का सागर है, तुमको आकर समझाते हैं। इस समय तुम जो पढ़ रहे हो कल्प पहले भी पढ़ा था, जिससे तुम देवता बने थे। तुम्हारे में सबसे खोटी तकदीर उन्हों की है जो पतित बन अपनी बुद्धि को मलीन बना देते हैं, क्योंकि उनमें धारणा हो नहीं सकती। दिल अन्दर खाती रहेगी। औरों को कह न सकें पवित्र बनो। अन्दर समझते हैं पावन बनते–बनते हमने हार खा ली, की कमाई सारी चट हो गई। फिर बहुत समय लग जाता है। एक ही चोट जोर से घायल कर देती है, रजिस्टर खराब हो जाता है। बाप कहेंगे तुम माया से हार गये, तुम्हारी तकदीर खोटी है। मायाजीत जगतजीत बनना है। जगतजीत महाराजा–महारानी को ही कहा जाता है। प्रजा को थोड़ेही कहेंगे। अभी दैवी स्वर्ग की स्थापना हो रही है। अपने लिए जो करेगा सो पायेगा। जितना पावन बन औरों को बनायेंगे, बहुत दान करने वाले को फल भी तो मिलता है ना।”
10. “चलते–चलते माया चमाट मार एकदम गिरा देती है। माया भी कम दुश्तर नहीं है। 8-10 वर्ष पवित्र रहा, पवित्रता पर झगड़ा हुआ, दूसरों को भी गिरने से बचाया और फिर खुद गिर पड़ा। तकदीर कहेंगे ना। बाप का बनकर फिर माया का बन जाते हैं तो दुश्मन हो गया ना। खुदा दोस्त की भी एक कहानी है ना। बाप आकर बच्चों को प्यार करते हैं, साक्षात्कार कराते हैं, बिगर कोई भक्ति करने के भी साक्षात्कार होता है। तो दोस्त बनाया ना। कितने साक्षात्कार होते थे फिर जादू समझ हंगामा करने लगे तो बन्द कर दिया फिर पिछाड़ी में तुम बहुत साक्षात्कार करते रहेंगे।”
11. “मनुष्य से देवता बनने के लिए मुख्य है पवित्रता इसलिए कभी भी पतित बन अपनी बुद्धि को मलीन नहीं करना है। ऐसा कर्म न हो जो दिल अन्दर खाती रहे, पश्चाताप करना पड़े।”
12. “बीजरूप स्टेज सबसे पावरफुल स्टेज है यही स्टेज लाइट हाउस का कार्य करती है, इससे सारे विश्व में लाइट फैलाने के निमित्त बनते हो। जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे वृक्ष को पानी मिल जाता है ऐसे जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते हो तो विश्व को लाइट का पानी मिलता है। लेकिन सारे विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए विश्व कल्याणकारी की पावरफुल स्टेज चाहिए। इसके लिए लाइट हाउस बनो न कि बल्ब। हर संकल्प में स्मृति रहे कि सारे विश्व का कल्याण हो।”
13. “परमात्म प्रत्यक्षता का आधार सत्यता है। सत्यता से ही प्रत्यक्षता होगी – एक स्वयं के स्थिति की सत्यता, दूसरी सेवा की सत्यता। सत्यता का आधार है – स्वच्छता और निर्भयता। इन दोनों धारणाओं के आधार से सत्यता द्वारा परमात्म प्रत्यक्षता के निमित्त बनो। किसी भी प्रकार की अस्वच्छता अर्थात् ज़रा भी सच्चाई सफाई की कमी है तो कर्तव्य की सिद्धि नहीं हो सकती।”
6th March 2025
“मीठे बच्चे – जैसे तुम आत्माओं को यह शरीर रूपी सिंहासन मिला है, ऐसे बाप भी इस दादा के सिंहासन पर विराजमान हैं, उन्हें अपना सिंहासन नहीं”
1. “यह आकाश तत्व तो है जीव आत्माओं का सिंहासन। आत्माओं का सिंहासन है वह महतत्व, जहाँ तुम आत्मायें बिगर शरीर रहती थी। जैसे आकाश में सितारे खड़े हैं ना, वैसे तुम आत्मायें भी बहुत छोटी–छोटी वहाँ रहती हो। आत्मा को दिव्य दृष्टि बिगर देखा नहीं जा सकता। तुम बच्चों को अभी यह ज्ञान है, जैसे स्टॉर कितना छोटा है, वैसे आत्मायें भी बिन्दी मिसल हैं। अब बाप ने सिंहासन तो छोड़ दिया है। बाप कहते हैं तुम आत्मायें भी सिंहासन छोड़कर यहाँ इस शरीर को अपना सिंहासन बनाती हो। मुझे भी जरूर शरीर चाहिए। मुझे बुलाते ही हैं पुरानी दुनिया में। गीत है ना – दूरदेश का रहने वाला…….। तुम आत्मायें जहाँ रहती हो वह है तुम आत्माओं और बाबा का देश। फिर तुम स्वर्ग में जाते हो, जिसकी बाबा स्थापना कराते हैं। बाप खुद उस स्वर्ग में नहीं आते। खुद तो वाणी से परे वानप्रस्थ में जाकर रहते हैं। स्वर्ग में उनकी दरकार नहीं। वह तो दु:ख–सुख से न्यारे हैं ना। तुम तो सुख में आते हो, तो दु:ख में भी आते हो।”
2. “जो बच्चे इस रावण राज्य में काम चिता पर बैठ जल गये थे, बाप आकर फिर से उन पर ज्ञान वर्षा करते हैं, सबका कल्याण करते हैं। जैसे सूखी जमीन पर बरसात पड़ने से घास निकल आता है ना, तुम्हारे पर भी ज्ञान की वर्षा न होने से कितने कंगाल बन गये थे। अभी फिर ज्ञान वर्षा होती है जिससे तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे। भल तुम बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते हो परन्तु अन्दर में बहुत खुशी रहनी चाहिए।”
3. “तुम बच्चे जानते हो जिन्होंने सबसे जास्ती भक्ति की है वही सबसे जास्ती ज्ञान आकर लेंगे। सबसे जास्ती शुरू से लेकर तो हमने भक्ति की है। फिर हमको ही बाबा स्वर्ग में पहले–पहले भेज देते हैं। यह है ज्ञान युक्त यथार्थ बात। बरोबर हम ही सो पूज्य थे फिर सो पुजारी बनते हैं। नीचे उतरते जाते हैं। बच्चों को सारा ज्ञान समझाया जाता है।”
4. “अब मनुष्य से देवता बनना है। पहले सूक्ष्म–वतनवासी फरिश्ता बनेंगे। अभी तुम फरिश्ते बन रहे हो। सूक्ष्मवतन का भी राज़ बच्चों को समझाया है। यहाँ है टाकी, सूक्ष्म–वतन में है मूवी, मूलवतन में है साइलेन्स। सूक्ष्मवतन है फरिश्तों का। जैसे घोस्ट को छाया का शरीर होता है ना। आत्मा को शरीर नहीं मिलता है तो भटकती रहती है, उनको घोस्ट कहा जाता है। उनको इन आंखों से भी देख सकते हैं। यह फिर हैं सूक्ष्मवतनवासी फरिश्ते। यह सब बातें बहुत समझने की हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन – इनका तुमको ज्ञान है। चलते फिरते बुद्धि में यह सारा ज्ञान रहना चाहिए। हम असुल मूलवतन के रहवासी हैं। अभी हम वहाँ जायेंगे वाया सूक्ष्मवतन। बाबा सूक्ष्मवतन इस समय ही रचते हैं। पहले सूक्ष्म फिर स्थूल चाहिए। अभी यह है संगमयुग। इनको ईश्वरीय युग कहेंगे, उनको दैवी युग कहेंगे। तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए।”
5. “तुम बच्चों को अपनी अवस्था एकरस बनाने के लिए सब कुछ देखते हुए जैसे कि देखते ही नहीं हैं, यह अभ्यास करना है। इसमें बुद्धि को एकरस रखना हिम्मत की बात है। परफेक्ट होने में मेहनत लगती है। सम्पूर्ण बनने में टाइम चाहिए। जब कर्मातीत अवस्था हो तब वह दृष्टि बैठे, तब तक कुछ न कुछ खींच होती रहेगी। इसमें बिल्कुल उपराम होना पड़ता है। लाइन क्लीयर चाहिए। देखते हुए जैसे तुम देखते ही नहीं हो, ऐसा अभ्यास जिसका होगा वही ऊंच पद पायेंगे।”
6. “इस समय तुम भी सबको रास्ता बताना सीखते हो, इसलिए तुम्हारा नाम पाण्डव रखा है। तुम पाण्डवों की सेना है।”
7. “अभी बाप तुम बच्चों को सच्ची गीता सुनाते हैं। यह तो कण्ठ कर लेनी चाहिए। कितना सहज है। तुम्हारा सारा कनेक्शन है ही गीता के साथ। गीता में ज्ञान भी है तो योग भी है। तुमको भी एक ही किताब बनाना चाहिए। योग का किताब अलग क्यों बनाना चाहिए।”
8. “अपने ऊपर आपेही रहम करना है, अपनी दृष्टि बहुत अच्छी पवित्र रखनी है। ईश्वर ने मनुष्य से देवता बनाने के लिए एडाप्ट किया है इसलिए पतित बनने का कभी ख्याल भी न आये।”
9. “सम्पूर्ण, कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने के लिए सदा उपराम रहने का अभ्यास करना है। इस दुनिया में सब कुछ देखते हुए भी नहीं देखना है। इसी अभ्यास से अवस्था एकरस बनानी है।”
10. “आधाकल्प है ब्रह्मा का दिन, आधाकल्प है ब्रह्मा की रात, अब रात पूरी हो सवेरा आना है। अब परमात्मा आकर अन्धियारे की अन्त कर सोझरे की आदि करता है, ज्ञान से है रोशनी, भक्ति से है अन्धियारा।”
11. “आपके बोल में स्नेह भी हो, मधुरता और महानता भी हो, सत्यता भी हो लेकिन स्वरूप की नम्रता भी हो। निर्भय होकर अथॉरिटी से बोलो लेकिन बोल मर्यादा के अन्दर हों – दोनों बातों का बैलेन्स हो, जहाँ बैलेन्स होता है वहाँ कमाल दिखाई देती है और वह शब्द कड़े नहीं, मीठे लगते हैं तो अथॉरिटी और नम्रता दोनों के बैलेन्स की कमाल दिखाओ। यही है बाप की प्रत्यक्षता का साधन।”
7th March 2025
“मीठे बच्चे – यह अनादि अविनाशी बना बनाया ड्रामा है, इसमें जो सीन पास हुई, वह फिर कल्प के बाद ही रिपीट होगी, इसलिए सदा निश्चिंत रहो”
1. “यह है रावण राज्य। यह बहुत बड़ा बेहद का खेल है। इसको फिरने में 5 हज़ार वर्ष लगते हैं। खेल भी ड्रामा मिसल है। नाटक नहीं कहेंगे। नाटक में तो समझो कोई एक्टर बीमार पड़ता है तो अदली बदली कर लेते हैं। इसमें तो यह बात हो न सके। यह तो अनादि ड्रामा है ना। समझो कोई बीमार हो पड़ता है तो कहेंगे ऐसे बीमार होने का भी ड्रामा में पार्ट है। यह अनादि बना बनाया है। और किसको तुम ड्रामा कहो तो मूँझ जायेंगे। तुम जानते हो यह बेहद का ड्रामा है। कल्प बाद फिर भी यही एक्टर्स होंगे। जैसे अभी बरसात आदि पड़ती है, कल्प बाद फिर भी ऐसे ही पड़ेगी। यही उपद्रव होंगे। तुम बच्चे जानते हो ज्ञान की बरसात तो सभी पर पड़ नहीं सकती है लेकिन यह आवाज़ सभी के कानों तक अवश्य जायेगा कि ज्ञान सागर भगवान आया हुआ है। तुम्हारा मुख्य है योग। ज्ञान भी तुम सुनते हो बाकी बरसात तो सारी दुनिया में पड़ती है। तुम्हारे योग से स्थाई शान्ति हो जाती है।”
2. “कल्प पहले भी मैंने तुमको ऐसे समझाया था। तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनेंगे? सिर्फ मुझे याद करो। मैं आया हूँ तुमको अपना और रचना का परिचय देने। उस बाप को सभी याद करते ही हैं रावण राज्य में। आत्मा अपने बाप को याद करती है। बाप है ही अशरीरी, बिन्दी है ना। उनका नाम फिर रखा गया है। तुमको कहते हैं सालिग्राम और बाप को कहते हैं शिव। तुम बच्चों का नाम शरीर पर पड़ता है। बाप तो है ही परम आत्मा। उनको शरीर तो लेना नहीं है। उसने इनमें प्रवेश किया है। यह ब्रह्मा का तन है, इनको शिव नहीं कहेंगे। आत्मा नाम तो तुम्हारा है ही फिर तुम शरीर में आते हो। वह परम आत्मा है सभी आत्माओं का पिता। तो सभी के दो बाप हो गये। एक निराकारी, एक साकारी। इनको फिर अलौकिक वन्डरफुल बाप कहा जाता है। कितने ढेर बच्चे हैं।”
3. “पुरूषोत्तम बनाने के मददगार हो तो यह दिल में आना चाहिए – हम पुरूषोत्तम हैं, तो हमारे में वह दैवीगुण हैं? आसुरी गुण हैं तो वह फिर बाप का बच्चा तो कहला न सके इसलिए कहा जाता है सतगुरू का निंदक ठौर न पाये।”
8th March 2025
“प्रश्नः–
देही–अभिमानी बनने की मेहनत कौन कर सकते हैं? देही–अभिमानी की निशानियाँ सुनाओ?
उत्तर:-
जिनका पढ़ाई से और बाप से अटूट प्यार है वह देही–अभिमानी बनने की मेहनत कर सकते हैं। वह शीतल होंगे, किसी से भी अधिक बात नहीं करेंगे, उनका बाप से लॅव होगा, चलन बड़ी रॉयल होगी। उन्हें नशा रहता कि हमें भगवान पढ़ाते हैं, हम उनके बच्चे हैं। वह सुखदाई होंगे। हर कदम श्रीमत पर उठायेंगे।”
1. “बाबा का अटेन्शन सारा सर्विसएबुल बच्चों तरफ ही जाता है।”
2. “कई तो सम्मुख मुरली सुनते हुए भी कुछ समझ नहीं सकते। धारणा नहीं होती क्योंकि आधाकल्प के देह–अभिमान की बीमारी बड़ी कड़ी है। उसको मिटाने के लिए बहुत थोड़े हैं जो अच्छी रीति पुरूषार्थ करते हैं। बहुतों से देही–अभिमानी बनने की मेहनत पहुँचती नहीं है। बाबा समझाते हैं – बच्चे, देही–अभिमानी बनना बड़ी मेहनत है।”
3. “देही–अभिमानी बड़े शीतल होंगे। वह इतना जास्ती बातचीत नहीं करेंगे। उन्हों का बाप से लॅव ऐसा होगा जो बात मत पूछो। आत्मा को इतनी खुशी होनी चाहिए जो कभी कोई मनुष्य को न हो। इन लक्ष्मी–नारायण को तो ज्ञान है नहीं। ज्ञान तुम बच्चों को ही है, जिनको भगवान पढ़ाते हैं। भगवान हमको पढ़ाते हैं, यह नशा भी तुम्हारे में कोई एक–दो को रहता है। वह नशा हो तो बाप की याद में रहें, जिसको देही–अभिमानी कहा जाता है। परन्तु वह नशा नहीं रहता है। याद में रहने वाले की चलन बड़ी अच्छी रॉयल होगी।”
4. “बाप हर एक को जानते हैं। बच्चे खुद भी समझते हैं कि हम क्या सर्विस करते हैं। सर्विस का शौक बच्चों में बहुत होना चाहिए। कोई को सेन्टर जमाने का भी शौक रहता है। कोई को चित्र बनाने का शौक रहता है। बाप भी कहते हैं – मुझे ज्ञानी तू आत्मा बच्चे प्यारे लगते हैं, जो बाप की याद में भी रहते हैं और सर्विस करने के लिए भी फथकते रहते हैं।”
5. “जो बाप का स्नेही होगा उनका बोलचाल बड़ा मीठा सुन्दर रहेगा। विवेक ऐसा कहता है – भल टाइम है परन्तु शरीर पर कोई भरोसा थोड़ेही है। बैठे–बैठे एक्सीडेंट हो जाते हैं। कोई हार्टफेल हो जाते हैं। किसको रोग लग जाता है, मौत तो अचानक हो जाता है ना इसलिए श्वांस पर तो भरोसा नहीं है। नैचुरल कैलेमिटीज की भी अभी प्रैक्टिस हो रही है। बिगर टाइम बरसात पड़ने से भी नुकसान कर देती है। यह दुनिया ही दु:ख देने वाली है। बाप भी ऐसे समय पर आते हैं जबकि महान दु:ख है, रक्त की नदियां भी बहनी हैं। कोशिश करना चाहिए – हम अपना पुरूषार्थ कर 21 जन्मों का कल्याण तो कर लेवें।”
6. “तुम बच्चे जानते हो कल्प–कल्प हमको बेहद के बाप का प्यार मिलता है। बाप गुल–गुल (फूल) बनाने की बहुत मेहनत करते हैं। परन्तु ड्रामा अनुसार सब तो गुल–गुल बनते नहीं हैं। आज बहुत अच्छे–अच्छे कल विकारी हो जाते हैं। बाप कहेंगे तकदीर में नहीं है तो और क्या करेंगे।”
7. “बेहद का बाप एक ही बार आते हैं। वह लौकिक बाप तो जन्म–जन्मान्तर मिलता है। सतयुग में भी मिलता है। परन्तु वहाँ यह बाप नहीं मिलता है। अभी की पढ़ाई से तुम पद पाते हो। यह भी तुम बच्चे ही जानते हो कि बाप से हम नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हैं। यह बुद्धि में याद रहना चाहिए।”
8. “हम आत्मा बाबा के साथ जाने वाली हैं शान्तिधाम। फिर वहाँ से पार्ट बजाने आयेंगे पहले–पहले सुखधाम में। जैसे कॉलेज में पढ़ते हैं तो समझते हैं हम यह–यह पढ़ते हैं फिर यह बनेंगे। बैरिस्टर बनेंगे वा पुलिस सुपरिटेन्डेन्ट बनेंगे, इतना पैसा कमायेंगे। खुशी का पारा चढ़ा रहेगा। तुम बच्चों को भी यह खुशी रहनी चाहिए। हम बेहद के बाप से यह वर्सा पाते हैं फिर हम स्वर्ग में अपने महल बनायेंगे।”
9. “जिन बच्चों के पास ज्ञान धन है उनका फ़र्ज है दान करना। अगर धन है, दान नहीं करते हैं तो उन्हें मनहूस कहा जाता है। उनके पास धन होते भी जैसेकि है ही नहीं। धन हो तो दान जरूर करें। अच्छे–अच्छे महारथी बच्चे जो हैं वह सदैव बाबा की दिल पर चढ़े रहते हैं।”
10. “ऐसे–ऐसे बच्चे भी हैं, कोई तो अन्दर में बहुत शुक्रिया मानते हैं, कोई अन्दर जल मरते हैं। माया का देह–अभिमान बहुत है। कई ऐसे भी बच्चे हैं जो मुरली सुनते ही नहीं हैं और कोई तो मुरली बिगर रह नहीं सकते। मुरली नहीं पढ़ते हैं तो अपना ही हठ है, हमारे में तो ज्ञान बहुत है और है कुछ भी नहीं।”
11. “सर्विस बहुत है। अंधों की लाठी बनना है। जो सर्विस नहीं करते, बुद्धि साफ नहीं है तो फिर धारणा नहीं होती है।”
12. “निरहंकारी बन सेवा करनी है।”
13. “निराकारी दुनिया और निराकारी रूप की स्मृति ही सदा न्यारा और प्यारा बना देती है। हम हैं ही निराकारी दुनिया के निवासी, यहाँ सेवा अर्थ अवतरित हुए हैं। हम इस मृत्युलोक के नहीं लेकिन अवतार हैं सिर्फ यह छोटी सी बात याद रहे तो उपराम हो जायेंगे। जो अवतार न समझ गृहस्थी समझते हैं तो गृहस्थी की गाड़ी कीचड़ में फंसी रहती है, गृहस्थी है ही बोझ की स्थिति और अवतार बिल्कुल हल्का है। अवतार समझने से अपना निजी धाम निजी स्वरूप याद रहेगा और उपराम हो जायेंगे।”
14. “जो निर्मान होता है वही नव–निर्माण कर सकता है। शुभ–भावना वा शुभ–कामना का बीज ही है निमित्त–भाव और निर्मान–भाव। हद का मान नहीं, लेकिन निर्मान। अब अपने जीवन में सत्यता और सभ्यता के संस्कार धारण करो। यदि न चाहते हुए भी कभी क्रोध या चिड़चिड़ापन आ जाए तो दिल से कहो “मीठा बाबा”, तो एकस्ट्रा मदद मिल जायेगी।”
9th March 2025
1. तो इमर्ज करो कितने खजाने बापदादा ने दिये हैं। सबसे पहला खजाना है
2. ज्ञान धन अर्थात् समझदार बन, त्रिकालदर्शी बन कर्म करना। नॉलेजफुल बनना। फुल नॉलेज और तीनों कालों की नॉलेज को समझ ज्ञान धन को कार्य में लगाना। इस ज्ञान के खजाने से प्रत्यक्ष जीवन में, हर कार्य में यूज़ करने से विधि से सिद्धि मिलती है – जो कई बंधनों से मुक्ति और जीवनमुक्ति मिलती है।
3. ब्राह्मण आत्मायें जब तक स्वयं बन्धन मुक्त नहीं हुए हैं, कोई भी सोने की, हीरे की रॉयल बंधन की रस्सी बंधी हुई है तो सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का गेट खुल नहीं सकता। आपके बंधनमुक्त बनने से सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का गेट खुलेगा। तो गेट खोलने की वा सर्व आत्माओं के दु:ख, अशान्ति से मुक्त होने की जिम्मेवारी आपके ऊपर है।
4. अभी तक जो कुछ हुआ – उसे फुलस्टॉप लगाओ। बीती को चिंतन में न लाना – यही तीव्र पुरूषार्थ है। यदि कोई बीती को चिंतन करता है तो समय, शक्ति, संकल्प सब वेस्ट हो जाता है। अभी वेस्ट करने का समय नहीं है क्योंकि संगमयुग की दो घड़ी अर्थात् दो सेकेण्ड भी वेस्ट किया तो अनेक वर्ष वेस्ट कर दिये इसलिए समय के महत्व को जान अब बीती को फुलस्टॉप लगाओ। फुलस्टॉप लगाना अर्थात् सर्व खजानों से फुल बनना।
5. जब हर संकल्प श्रेष्ठ होगा तब स्वयं का और विश्व का कल्याण होगा।
6. ज्ञान की कोई भी बात अथॉरिटी के साथ, सत्यता और सभ्यता से बोलो, संकोच से नहीं। प्रत्यक्षता करने के लिए पहले स्वयं को प्रत्यक्ष करो, निर्भय बनो। भाषण में शब्द कम हों लेकिन ऐसे शक्तिशाली हों जिसमें बाप का परिचय और स्नेह समाया हुआ हो, जो स्नेह रूपी चुम्बक आत्माओं को परमात्मा तरफ खींचे।
10th March 2025
प्रश्नः–
जो सतोप्रधान पुरूषार्थी हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
वह औरों को भी आप समान बनायेंगे। वह बहुतों का कल्याण करते रहेंगे। ज्ञान धन से झोली भरकर दान करेंगे। 21 जन्मों के लिए वर्सा लेंगे और दूसरों को भी दिलायेंगे।
1. उनको कहते हैं शिवाए नम:। तुमको तो नम: नहीं करना है। बाप को बच्चे याद करते हैं, नम: कभी नहीं करते। यह भी बाप है, इनसे तुमको वर्सा मिलता है। तुम नम: नहीं करते हो, याद करते हो। जीव की आत्मा याद करती है।
2. सतयुग है सुखधाम और जहाँ आत्मायें रहती हैं उसको कहा जाता है शान्तिधाम। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम शान्तिधाम के वासी हैं। इस कलियुग को कहा ही जाता है दु:खधाम।
3. यहाँ कलियुग में तो पाप ही होते रहते हैं, पुण्य होता ही नहीं। करके अल्पकाल के लिए सुख मिलता है। अभी तो तुम भविष्य सतयुग में 21 जन्मों के लिए सदा सुखी बनते हो। उसका नाम ही है सुखधाम। प्रदर्शनी में भी तुम लिख सकते हो कि शान्तिधाम और सुखधाम का यह मार्ग है, शान्तिधाम और सुख–धाम में जाने का सहज मार्ग। अभी तो कलियुग है ना। कलियुग से सतयुग, पतित दुनिया से पावन दुनिया में जाने का सहज रास्ता – बिगर कौड़ी खर्चा। तो मनुष्य समझें क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं ना। बाप बिल्कुल सहज करके समझाते हैं। इसका नाम ही है सहज राजयोग, सहज ज्ञान।
4. तुम जानते हो एक है भक्त माला, दूसरी है ज्ञान की माला। भक्त माला से रूद्र माला के बने हैं फिर रूद्र माला से विष्णु की माला बनती है। रूद्र माला है संगमयुग की, यह राज़ तुम बच्चों की बुद्धि में है।
5. मनुष्यों को यह पता नहीं है कि स्वदर्शन चक्र क्या है? शास्त्रों में श्रीकृष्ण को भी स्वदर्शन चक्र दे हिंसा ही हिंसा दिखा दी है। वास्तव में है ज्ञान की बात। तुम अभी स्वदर्शन चक्रधारी बने हो उन्हों ने फिर हिंसा की बात दिखा दी है। तुम बच्चों को अब स्व अर्थात् चक्र का ज्ञान मिला है। तुमको बाबा कहते हैं – ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शन चक्रधारी। इनका अर्थ भी अभी तुम समझते हो।
6. जैसे तुमको बाबा ने पढ़ाया है, तुम पढ़कर होशियार हुए हो। अब तुमको फिर औरों का कल्याण करना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। जब तक ब्रह्मा मुख वंशावली नहीं बने तो शिवबाबा से वर्सा कैसे लेंगे। अभी तुम बने हो ब्राह्मण। वर्सा शिवबाबा से ले रहे हो। यह भूलना नहीं चाहिए। प्वाइंट नोट करनी चाहिए।
7. बाप परम दु:ख से परम सुख में ले जाते हैं। इनका विनाश होता है फिर सब सतोप्रधान बन जाता है। अभी तुम पुरूषार्थ कर जितना बाप से वर्सा लेना है उतना ले लो। नहीं तो पिछाड़ी में पश्चाताप करना पड़ेगा। बाबा आया परन्तु हमने कुछ नहीं लिया। यह लिखा हुआ है – भंभोर को आग लगती है तब कुम्भकरण की नींद से जागते हैं। फिर हाय–हाय कर मर जाते हैं। हाय–हाय के बाद फिर जय–जयकार होगी। कलियुग में हाय–हाय है ना। एक–दो को मारते रहते हैं। बहुत ढेर के ढेर मरेंगे। कलियुग के बाद फिर सतयुग जरूर होगा। बीच में यह है संगम। इसको पुरूषोत्तम युग कहा जाता है। बाप तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने की युक्ति अच्छी बताते हैं। सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो और कुछ भी नहीं करना है।
8. इस समय सबकी उतरती कला है। बाप कहते हैं मैं आकर सर्व की सद्गति करता हूँ। सबको घर ले जाता हूँ। पतितों को तो साथ नहीं ले जाऊंगा इसलिए अब पवित्र बनो तो तुम्हारी ज्योत जग जायेगी।
9. बाप समझाते हैं मेरी तो ज्योत जगी हुई है। मैं तुम्हारी ज्योत जगाता हूँ।
10. बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा लेने के लिए डायरेक्ट ईश्वर अर्थ दान–पुण्य करना है। ज्ञान धन से झोली भरकर सबको देना है।
11th March 2025
प्रश्नः–
इस युद्ध के मैदान में माया सबसे पहला वार किस बात पर करती है?
उत्तर:-
निश्चय पर। चलते–चलते निश्चय तोड़ देती है इसलिए हार खा लेते हैं। यदि पक्का निश्चय रहे कि बाप जो सबका दु:ख हरकर सुख देने वाला है, वही हमें श्रीमत दे रहे हैं, आदि–मध्य–अन्त की नॉलेज सुना रहे हैं, तो कभी माया से हार नहीं हो सकती।
1. बच्चे जानते हैं बाप भी वही है, हम भी वही हैं। तुम बच्चों को यह निश्चय होना चाहिए। बाप कहते हैं हम आये हैं बच्चों को सुखधाम, शान्तिधाम ले जाने लिए। परन्तु माया निश्चय बिठाने नहीं देती। सुखधाम में चलते–चलते फिर हरा देती है। यह युद्ध का मैदान है ना। वह युद्ध होती है बाहुबल की, यह है योगबल की। योगबल बड़ा नामीग्रामी है, इसलिए सब योग–योग कहते रहते हैं। तुम यह योग एक ही बार सीखते हो। बाकी वह सब अनेक प्रकार के हठयोग सिखलाते हैं। यह उनको पता नहीं है कि बाप कैसे आकर योग सिखलाते हैं। वह तो प्राचीन योग सिखला न सकें। तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो यह वही बाप राजयोग सिखला रहे हैं, जिसको याद करते हैं – हे पतित–पावन आओ। ऐसी जगह ले चलो जहाँ चैन हो। चैन है ही शान्तिधाम, सुखधाम में। दु:खधाम में चैन कहाँ से आया? चैन नहीं है तब तो ड्रामा अनुसार बाप आते हैं, यह है दु:खधाम।
2. तुम्हारा बाप के साथ गुप्त लॅव है। कहाँ भी रहो, तुम्हारी बुद्धि में होगा – बाबा मधुबन में बैठे हैं। बाप कहते हैं हमको वहाँ (मूलवतन में) याद करो। तुम्हारा भी निवास स्थान वहाँ है तो जरूर बाप को याद करेंगे, जिसको कहते हैं तुम मात–पिता। वह बरोबर अब तुम्हारे पास आये हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको ले जाने के लिए आया हूँ। रावण ने तुमको पतित तमोप्रधान बनाया है, अब सतोप्रधान पावन बनना है। पतित चल कैसे सकेंगे। पवित्र तो जरूर बनना है। अभी एक भी मनुष्य सतोप्रधान नहीं। यह है तमोप्रधान दुनिया। यह मनुष्यों की ही बात है। मनुष्य के लिए ही सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो का राज़ समझाया जाता है।
3. आत्मा सतोप्रधान प्योर थी फिर कितनी खाद पड़ गई है। अभी फिर प्योर होने के लिए बाबा युक्ति भी बतलाते हैं। यह है योग अग्नि इनसे ही तुम्हारी खाद निकल जायेगी। बाप को याद करना है। बाप खुद कहते हैं मुझे इस प्रकार याद करो। पतित–पावन मैं हूँ। तुमको अनेक बार हमने पतित से पावन बनाया है। यह भी पहले तुम नहीं जानते थे। अभी तुम समझते हो – आज हम पतित हैं, कल फिर पावन होंगे।
4. अब बाप कहते हैं जो कुछ सीखे हो, वह सब बातें भूल जाओ। जीते जी हमारा बनो। गृहस्थ व्यवहार में रहते भी युक्ति से चलना है। याद एक बाप को ही करना है। उनका तो है ही हठयोग। तुम हो राजयोगी। घर वालों को भी ऐसी शिक्षा देनी है। तुम्हारी चलन को देख ऐसा फालो करें। कभी आपस में लड़ना झगड़ना नहीं है। अगर लड़ेंगे तो और सब क्या समझेंगे, इनमें तो बहुत क्रोध है। तुम्हारे में कोई भी विकार न रहे। मनुष्यों की बुद्धि को चट करने वाला है बाइसकोप (सिनेमा), यह जैसा एक हेल है। वहाँ जाने से ही बुद्धि चट हो जाती है।
5. बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और आसुरी गुण छोड़ो। रोज़ रात्रि को अपना पोतामेल निकालो। यह तुम्हारा व्यापार है। यह विरला कोई व्यापार करे। एक सेकेण्ड में कंगाल को सिरताज बना देते हैं, यह जादू ठहरा ना। ऐसे जादूगर का तो हाथ पकड़ लेना चाहिए। जो हमको योगबल से पतित से पावन बनाते हैं। दूसरा कोई बना न सके।
6. ब्रह्मा को भी कितनी भुजायें देते हैं, अब तुम समझते हो ब्रह्मा की भुजायें तो लाखों होंगी। इतने सब ब्रह्माकुमार–कुमारियां यह बाबा की उत्पत्ति है ना, तो प्रजापिता ब्रह्मा की इतनी भुजायें हैं।
7. यह तो तुम बच्चे जानते हो ड्रामा चलता रहता है। जो कुछ चल रहा है बुद्धि से समझते हैं क्या हो रहा है! तुम्हारी बुद्धि में चक्र चलता रहता है, रिपीट होता रहता है। जिन्होंने जो कुछ किया है सो करते हैं। बाप कोई से लेवे, न लेवे उनके हाथ में हैं। भल अभी सेन्टर्स आदि खुलते हैं, पैसे काम में आते हैं। जब तुम्हारा प्रभाव निकलेगा फिर पैसे क्या करेंगे! मूल बात है पतित से पावन बनना। वह तो बड़ा मुश्किल है, इसमें लग जायें। हमको तो बाप को याद करना है। रोटी खावे और बाप को याद करे।
8. वास्तव में तुम बच्चे सारे विश्व को योगबल से पवित्र बनाते हो तो कितना बच्चों को नशा रहना चाहिए। मूल बात है ही पवित्रता की। यहाँ पढ़ाया भी जाता है और पवित्र भी बनना होता है, स्वच्छ भी रहना है। अन्दर में और कोई बात याद नहीं रहनी चाहिए। बच्चों को समझाया जाता है अशरीरी भव। यहाँ तुम पार्ट बजाने आये हो। सभी को अपना–अपना पार्ट बजाना ही है। यह नॉलेज बुद्धि में रहनी चाहिए। सीढ़ी पर भी तुम समझा सकते हो। रावण राज्य है ही पतित, रामराज्य है पावन। फिर पतित से पावन कैसे बनें, ऐसी ऐसी बातों में रमण करना चाहिए, इसको ही विचार सागर मंथन कहा जाता है। 84 का चक्र याद आना चाहिए। बाप ने कहा है मुझे याद करो। यह है रूहानी यात्रा। बाप की याद से ही विकर्म विनाश होते हैं। उन जिस्मानी यात्राओं से और ही विकर्म बनते हैं। बोलो, यह ताबीज है। इनको समझेंगे तो सभी दु:ख दूर हो जायेंगे। ताबीज पहनते ही हैं दु:ख दूर होने लिये।
9. शरीर द्वारा स्थूल सेवा करते हुए मन्सा से विश्व परिवर्तन की सेवा पर तत्पर रहो। एक ही समय पर तन और मन से इक्ट्ठी सेवा हो। जो मन्सा और कर्मणा दोनों साथ–साथ सेवा करते हैं, उनसे देखने वालों को अनुभव व साक्षात्कार हो जाता कि यह कोई अलौकिक शक्ति है। इसलिए इस अभ्यास को निरन्तर और नेचुरल बनाओ। मन्सा सेवा के लिए विशेष एकाग्रता का अभ्यास बढ़ाओ।
10. अब स्वच्छता और निर्भयता के आधार से सत्यता द्वारा प्रत्यक्षता करो। मुख से सत्यता की अथॉरिटी स्वत: ही बाप की प्रत्यक्षता करेगी। अभी परमात्म बाम्ब (सत्य ज्ञान) द्वारा धरनी को परिवर्तन करो। इसका सहज साधन है – सदा मुख पर वा संकल्प में निरन्तर माला के समान परमात्म स्मृति हो। सबके अन्दर एक ही धुन हो “मेरा बाबा”। संकल्प, कर्म और वाणी में यही अखण्ड धुन हो, यही अजपाजाप हो। जब यह अजपाजाप हो जायेगा तब और सब बातें स्वत: ही समाप्त हो जायेंगी।
12th March 2025
प्रश्नः–
सजाओं से छूटने के लिए कौन–सा पुरूषार्थ बहुत समय का चाहिए?
उत्तर:-
नष्टोमोहा बनने का। किसी में भी ममत्व न हो। अपने दिल से पूछना है – हमारा किसी में मोह तो नहीं है? कोई भी पुराना सम्बन्ध अन्त में याद न आये। योगबल से सब हिसाब–किताब चुक्तू करने हैं तब ही बिगर सजा ऊंच पद मिलेगा।
1. बाप बच्चों की पालना कर रहे हैं, पढ़ा रहे हैं। घर बैठे भी बच्चों को राय मिलती है कि घर में ऐसे–ऐसे चलो। अब बाप की श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ से श्रेष्ठ बनेंगे। बच्चे जानते हैं हम ऊंच ते ऊंच बाप की मत से ऊंच ते ऊंच मर्तबा पाते हैं। मनुष्य सृष्टि में ऊंच ते ऊंच यह लक्ष्मी–नारायण का मर्तबा है। यह पास्ट में होकर गये हैं। मनुष्य जाकर इन ऊंच को नमस्ते करते हैं। मुख्य बात है ही पवित्रता की। मनुष्य तो मनुष्य ही हैं। परन्तु कहाँ वह विश्व के मालिक, कहाँ अभी के मनुष्य! यह तुम्हारी बुद्धि में ही है – भारत बरोबर 5 हज़ार वर्ष पहले ऐसा था, हम ही विश्व के मालिक थे। और किसकी बुद्धि में यह नहीं है। इनको भी पता थोड़ेही था, बिल्कुल घोर अन्धियारे में थे। अभी बाप ने आकर बताया है ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे होते हैं? यह बड़ी गुह्य रमणीक बातें हैं जो और कोई समझ न सके। सिवाए बाप के यह नॉलेज कोई पढ़ा न सके। निराकार बाप आकर पढ़ाते हैं। श्रीकृष्ण भगवानुवाच नहीं है। बाप कहते हैं मैं तुमको पढ़ाकर सुखी बनाता हूँ। फिर मैं अपने निर्वाणधाम में चला आता हूँ। अभी तुम बच्चे सतोप्रधान बन रहे हो, इसमें खर्चा कुछ भी नहीं है। सिर्फ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। बिगर कौड़ी खर्चा 21 जन्म के लिए तुम विश्व के मालिक बनते हो। पाई–पैसा भेज देते हैं, वह भी अपना भविष्य बनाने। कल्प पहले जिसने जितना खजाने में डाला है, उतना ही अब डालेंगे। न जास्ती, न कम डाल सकते। यह बुद्धि में ज्ञान है इसलिए फिक्र की कोई बात नहीं रहती। बिगर कोई फिक्र के हम अपनी गुप्त राजधानी स्थापन कर रहे हैं। यह बुद्धि में सिमरण करना है। तुम बच्चों को बहुत खुशी में रहना चाहिए और फिर नष्टोमोहा भी बनना है। यहाँ नष्टोमोहा होने से फिर तुम वहाँ मोहजीत राजा–रानी बनेंगे। तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया तो अब खत्म होनी है, अब वापिस जाना है फिर इसमें ममत्व क्यों रखें। कोई बीमार होता है, डॉक्टर कह देते हैं, केस होपलेस है तो फिर उनसे ममत्व निकल जाता है। समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ जाए दूसरा लेती है। आत्मा तो अविनाशी है ना। आत्मा चली गई, शरीर खत्म हो गया फिर उनको याद करने से फायदा क्या! अभी बाप कहते हैं तुम नष्टोमोहा बनो। अपनी दिल से पूछना है – हमारा किसी में मोह तो नहीं है? नहीं तो वह पिछाड़ी में याद जरूर आयेंगे। नष्टोमोहा होंगे तो यह पद पायेंगे। स्वर्ग में तो सब आयेंगे – वह कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है सज़ा न खाकर, ऊंच पद पाना। योगबल से हिसाब–किताब चुक्तू करेंगे तो फिर सज़ा नहीं खायेंगे। पुराने सम्बन्धी भी याद न पड़ें। अभी तो हमारा ब्राह्मणों से नाता है फिर हमारा देवताओं से नाता होगा। अभी का नाता सबसे ऊंच है।
2. अभी बाप मिला है, शिक्षा दे रहे हैं तब तुम समझते हो। बाबा के पास कोई आते हैं बाबा पूछते हैं – आगे इस ड्रेस में इसी मकान में कभी मिले हो? कहते हैं – हाँ बाबा, कल्प–कल्प मिलते हैं।
3. अभी पुरूषार्थ करना है। वह भी ड्रामा अनुसार ही होता है। ड्रामा में नूँध है। ऐसे भी नहीं, ड्रामा में पुरूषार्थ करना होगा तो करेंगे, यह कहना रांग है। ड्रामा को पूरा नहीं समझा है, उनको फिर नास्तिक कहा जाता है। वे बाप से प्रीत रख न सकें। ड्रामा के राज़ को उल्टा समझने से गिर पड़ते हैं, फिर समझा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है। विघ्न तो अनेक प्रकार के आयेंगे। उनकी परवाह नहीं करनी है। बाप कहते हैं जो अच्छी बातें तुमको सुनाते हैं वह सुनो। बाप को याद करने से खुश बहुत रहेंगे। बुद्धि में है अब 84 का चक्र पूरा होता है, अब जाना है अपने घर। ऐसे–ऐसे अपने साथ बातें करनी हैं।
4. आत्मा तो है बिन्दी। आत्मा को क्या चाहिए? कुछ भी नहीं। आत्मा कितनी छोटी जगह लेती है। इस साकारी झाड़ और निराकारी झाड़ में कितना फर्क है! वह है बिन्दियों का झाड़। यह सब बातें बाप बुद्धि में बिठाते हैं।
5. योगबल से तुम एवरहेल्दी एवरवेल्दी बनते हो। नेचर–क्योर कराते हैं ना। अभी तुम्हारी आत्मा क्योर होने से फिर शरीर भी क्योर हो जायेगा। यह है स्प्रीचुअल नेचर–क्योर। हेल्थ वेल्थ हैप्पीनेस 21 जन्मों के लिए मिलती है। ऊपर में नाम लिख दो रूहानी नेचर–क्योर। मनुष्यों को पवित्र बनाने की युक्तियाँ लिखने में कोई हर्जा नहीं है। आत्मा ही पतित बनी है तब तो बुलाते हैं ना। आत्मा पहले सतोप्रधान पवित्र थी फिर अपवित्र बनी है फिर पवित्र कैसे बने? भगवानुवाच – मनमनाभव, मुझे याद करो तो मैं गैरन्टी करता हूँ तुम पवित्र हो जायेंगे।
6. तुम बच्चों को देही–अभिमानी बनने की बहुत गुप्त मेहनत करनी है। जैसे बाप जानते हैं मैं आत्माओं को पढ़ा रहा हूँ, ऐसे तुम बच्चे भी आत्म–अभिमानी बनने की मेहनत करो। मुख से शिव–शिव भी कहना नहीं है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है क्योंकि सिर पर पापों का बोझा बहुत है। याद से ही तुम पावन बनेंगे। कल्प पहले जैसे–जैसे जिन्होंने वर्सा लिया होगा, वही अपने–अपने समय पर लेंगे। अदली बदली कुछ हो नहीं सकती। मुख्य बात है ही देही–अभिमानी हो बाप को याद करना तो फिर माया का थप्पड़ नहीं खायेंगे। देह–अभिमान में आने से कुछ न कुछ विकर्म होगा फिर सौ गुणा पाप बन जाता है। सीढ़ी उतरने में 84 जन्म लगे हैं। अब फिर चढ़ती कला एक ही जन्म में होती है।
7. बिगर कोई फिक्र (चिंता) के अपनी गुप्त राजधानी श्रीमत पर स्थापन करनी है। विघ्नों की परवाह नहीं करनी है। बुद्धि में रहे कल्प पहले जिन्होंने मदद की है वह अभी भी अवश्य करेंगे, फिक्र की बात नहीं।
8. जैसे बाप में निश्चय है वैसे स्वयं में और ड्रामा में भी सम्पूर्ण निश्चय हो। स्वयं में यदि कमजोरी का संकल्प उत्पन्न होता है तो कमजोरी के संस्कार बन जाते हैं, इसलिए व्यर्थ संकल्प रूपी कमजोरी के जर्म्स अपने अन्दर प्रवेश होने नहीं देना। साथ–साथ जो भी ड्रामा की सीन देखते हो, हलचल की सीन में भी कल्याण का अनुभव हो, वातावरण हिलाने वाला हो, समस्या विकराल हो लेकिन सदा निश्चयबद्धि विजयी बनो तो विकराल समस्या भी शीतल हो जायेगी।
13th March 2025
प्रश्नः–
जो बाप की याद में रहते हैं, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
याद में रहने वालों में अच्छे गुण होंगे। वह पवित्र होते जायेंगे। रॉयल्टी आती जायेगी। आपस में मीठा क्षीरखण्ड होकर रहेंगे, दूसरों को न देख स्वयं को देखेंगे। उनकी बुद्धि में रहता – जो करेगा वह पायेगा।
1. रावण राज्य में बहुत उपद्रव हैं। अभी तो तमोप्रधान हैं ना। एक–दो में मत न मिलने कारण कितना झगड़ा है इसलिए बाप समझाते रहते हैं इस पुरानी दुनिया को भूल अकेले बन जाओ, घर को याद करो। अपने सुखधाम को याद करो, किससे जास्ती बात भी न करो, नहीं तो नुकसान हो जाता है। बहुत मीठा, शान्त, प्यार से बोलना अच्छा है। जास्ती न बोलना अच्छा है। शान्ति में रहना सबसे अच्छा है। तुम बच्चे तो शान्ति से विजय पाते हो।
2. सच्चा बाप सच्चा बनाने आये हैं इसलिए सच्चाई से चलना है। अपनी जांच करनी है – हमारे में कोई आसुरी गुण तो नहीं हैं? हम जास्ती बात तो नहीं करते हैं? बहुत मीठा बन शान्ति और प्यार से बात करनी है।
3. जैसे हम परमात्मा के कार्य को जानते हैं वैसे ड्रामा के अन्दर हर एक के पार्ट को जान चुके हैं तो इसमें घृणा नहीं आ सकती।
14th March 2025
प्रश्नः–
अभी तुम बच्चों का मुख्य पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर:-
तुम सजाओं से छूटने का ही पुरूषार्थ करते रहते हो। उसके लिए मुख्य है याद की यात्रा, जिससे ही विकर्म विनाश होते हैं। तुम प्यार से याद करो तो बहुत कमाई जमा होती जायेगी। सवेरे–सवेरे उठकर याद में बैठने से पुरानी दुनिया भूलती जायेगी। ज्ञान की बातें बुद्धि में आती रहेंगी। तुम बच्चों को मुख से कोई किचड़–पट्टी की बातें नहीं बोलनी हैं।
1. हमको बाप से विश्व की बादशाही मिलती है! परन्तु माया याद करने नहीं देती है। मित्र–सम्बन्धियों आदि की याद आती रहती है। उनका ही चिंतन रहता है। पुराना सड़ा हुआ किचड़ा बहुतों को याद आता है। बाप जो बतलाते हैं, तुम विश्व के मालिक बनते हो वह नशा नहीं चढ़ता। स्कूल में पढ़ने वालों का चेहरा खुशनुमा रहता है। यहाँ भगवान पढ़ाते हैं, वह खुशी कोई विरले को रहती है। नहीं तो खुशी का पारा अथाह चढ़ा रहना चाहिए। बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं, यह भूल जाते हैं। यह याद रहे तो भी खुशी रहे। परन्तु पास्ट का कर्मभोग ही ऐसा है तो बाप को याद करते ही नहीं। मुँह फिर भी किचड़े तरफ चला जाता है। बाबा सबके लिए तो नहीं कहते हैं, नम्बरवार हैं। महान सौभाग्यशाली वह जो बाप की याद में रहे।
2. तुम तो हो ज्ञान वाले। तुम्हें पुरानी दुनिया की किचड़पट्टी में नहीं फँसना है। परन्तु कई बच्चे ऐसे फँस पड़ते हैं जो बात मत पूछो। किचड़पट्टी से निकलते ही नहीं। सारा दिन किचड़ा ही बोलते रहते। ज्ञान की बातें बुद्धि में आती ही नहीं। कई तो ऐसे बच्चे भी हैं जो सारा दिन सर्विस पर भागते रहते हैं। बाप की जो सर्विस करते हैं, याद भी वह आयेंगे।
3. जो आपस में लड़ते रहते वो सर्विस क्या करते होंगे! बाप को प्यारे कौन लगेंगे? जो अच्छी सर्विस करते हैं, दिन–रात सर्विस की ही चिंता रहती है, बाप की दिल पर भी वही चढ़ते हैं। घड़ी–घड़ी ऐसे गीत तुम सुनते रहो तो भी याद रहे, कुछ नशा चढ़े। बाबा ने कहा है, कोई समय किसको उदासी आ जाती है तो रिकार्ड बजाने से खुशी आ जायेगी।
4. बाबा ने अच्छे–अच्छे 10-12 रिकार्ड छांटकर निकाले थे कि हरेक के पास रहने चाहिए। परन्तु फिर भी भूल जाते हैं। कई तो चलते–चलते पढ़ाई ही छोड़ देते हैं। माया वार कर लेती है। बाप तमोप्रधान बुद्धि को सतोप्रधान बनाने की कितनी सहज युक्ति बताते हैं। अभी तुमको रांग राइट सोचने की बुद्धि मिली है। बुलाते भी बाप को हैं – हे पतित–पावन आओ। अब बाप आये हैं तो पावन बनना चाहिए ना। तुम्हारे सिर पर जन्म–जन्मान्तर का बोझा है, उसके लिए जितना याद करेंगे, पवित्र बनेंगे, खुशी भी रहेगी। भल सर्विस तो करते रहते हैं परन्तु अपना भी हिसाब रखना है।
5. हम बाप को कितना समय याद करते हैं। याद का चार्ट कोई रख नहीं सकते। प्वाइंट तो भल लिखते हैं परन्तु याद को भूल जाते हैं। बाप कहते हैं तुम याद में रह भाषण करेंगे तो बल बहुत मिलेगा। नहीं तो बाप कहते हैं मैं ही जाकर बहुतों को मदद करता हूँ। कोई में प्रवेश कर मैं ही जाकर सर्विस करता हूँ। सर्विस तो करनी है ना। देखता हूँ किसका भाग्य खुलने का है, समझाने वाले में इतना अक्ल नहीं है तो मैं प्रवेश कर सर्विस कर लेता हूँ फिर कोई–कोई लिखते हैं – बाबा ने ही यह सर्विस की। हमारे में तो इतनी ताकत नहीं, बाबा ने मुरली चलाई। कोई को फिर अपना अहंकार आ जाता है, हमने ऐसा अच्छा समझाया। बाप कहते हैं मैं कल्याण करने के लिए प्रवेश करता हूँ फिर वह ब्राह्मणी से भी तीखे हो जाते हैं।
6. अभी तो तुम प्रैक्टिकल में देखते हो। 10 वर्ष पवित्रता में चला, अचानक ही माया ने ऐसा घूँसा लगाया, की कमाई चट कर दी, पतित बन पड़ा। ऐसे बहुत मिसाल होते रहते हैं। बहुत गिरते हैं। माया के तूफानों में सारा दिन हैरान रहते हैं, फिर बाप को ही भूल जाते हैं। बाप से हमको बेहद की बादशाही मिलती है, वह खुशी नहीं रहती। काम के पीछे फिर मोह भी है। इसमें नष्टोमोहा बनना पड़े। पतितों से क्या दिल लगानी है। हाँ, यही ख्याल रखना है – इनको भी हम बाप का परिचय दे उठावें। इनको किस रीति शिवालय का लायक बनायें। अन्दर में यह युक्ति रचो। मोह की बात नहीं। कितना भी प्यारा सम्बन्धी हो, उनको भी समझाते रहो। किसी में भी हड्डी प्यार की रग न जाये। नहीं तो सुधरेंगे नहीं। रहमदिल बनना चाहिए। अपने पर भी रहम करना है और औरों पर भी रहम करना है।
7. भल कोई बात का ख्यालात भी आता है फिर बाप को याद करो तो गोया कामकाज का ख्याल भी किया फिर बाबा की याद में लग गया। बाप कहते हैं कर्म तो भल करो, नींद भी करो, साथ–साथ यह भी करो। कम से कम 8 घण्टे तक आना चाहिए – यह होगा पिछाड़ी तक। धीरे–धीरे अपना चार्ट बढ़ाते रहो। कोई–कोई लिखते हैं दो घण्टा याद में रहा फिर चलते–चलते चार्ट ढीला हो जाता है। वह भी माया गुम कर देती है। माया बड़ी जबरदस्त है। जो इस सर्विस में सारा दिन बिजी रहेंगे वही याद भी कर सकेंगे। घड़ी–घड़ी बाप का परिचय देते रहेंगे। बाबा याद के लिए बहुत जोर देते रहते हैं। खुद भी फील करते हैं हम याद में रह नहीं सकते हैं। याद में ही माया विघ्न डालती है। पढ़ाई तो बहुत सहज है। बाप से हम पढ़ते भी हैं। जितना धन लेंगे उतना साहूकार बनेंगे। बाप तो सभी को पढ़ाते हैं ना। वाणी सबके पास जाती है सिर्फ तुम नहीं, सब पढ़ रहे हैं। वाणी नहीं जाती तो चिल्लाते हैं। कई तो फिर ऐसे भी हैं जो सुनेंगे ही नहीं। ऐसे ही चलते रहते। मुरली सुनने का शौक होना चाहिए। गीत कितना फर्स्ट क्लास है – बाबा हम अपना वर्सा लेने आये हैं। कहते भी हैं ना – बाबा, जैसी हूँ, तैसी हूँ, कानी हूँ, कैसी भी हूँ, आपकी हूँ। वह तो ठीक है परन्तु छी–छी से तो अच्छा बनना चाहिए ना। सारा मदार है योग और पढ़ाई पर।
8. बाप की याद में शान्ति में रहो। परन्तु बाबा जानते हैं सम्मुख रहने वालों से भी दूर रहने वाले बहुत याद में रहते हैं और अच्छा पद पा लेते हैं। भक्ति मार्ग में भी ऐसा होता है। कोई भक्त अच्छे फर्स्टक्लास होते हैं जो गुरू से भी जास्ती याद में रहते हैं। जो बहुत अच्छी भक्ति करते होंगे वही यहाँ आते हैं। सभी भक्त हैं ना। सन्यासी आदि नहीं आयेंगे, सभी भक्त भक्ति करते–करते आ जायेंगे। बाप कितना क्लीयर कर समझाते हैं। तुम ज्ञान उठा रहे हो, सिद्ध होता है तुमने बहुत भक्ति की है। जास्ती भक्ति करने वाले जास्ती पढ़ेंगे। कम भक्ति करने वाले कम पढ़ेंगे। मुख्य मेहनत है याद की। याद से ही विकर्म विनाश होंगे और बहुत मीठा भी बनना है।
9. कितना भी कोई प्यारा सम्बन्धी हो उसमें मोह की रग नहीं जानी चाहिए। नष्टोमोहा बनना है। युक्ति से समझाना है। अपने ऊपर और दूसरों पर रहम करना है।
10. दृष्टि को अलौकिक, मन को शीतल, बुद्धि को रहमदिल और मुख को मधुर बनाओ।
15th March 2025
प्रश्नः–
तुम बच्चों का सहज पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर:-
बाप कहते हैं तुम बिल्कुल चुप रहो, चुप रहने से ही बाप का वर्सा ले लेंगे। बाप को याद करना है, सृष्टि चक्र को फिराना है। बाप की याद से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, आयु बड़ी होगी और चक्र को जानने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे – यही है सहज पुरूषार्थ।
1. बच्चे तो आत्मा ही हैं। बाप कहते हैं इन देह के सारे पसारे (विस्तार) को भूल अपने को आत्मा समझो। आत्मा शरीर से अलग हो जाती है तो सब सम्बन्ध भूल जाती है। तो बाप भी कहते हैं देह के सब सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो।
2. बाप ने तुम बच्चों को बहुत सहज पुरूषार्थ सिखाया है। सबसे सहज पुरूषार्थ है – तुम बिल्कुल चुप रहो। चुप रहने से ही बाप का वर्सा ले लेंगे। बाप को याद करना है। सृष्टि चक्र को याद करना है। बाप की याद से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तुम निरोगी बनेंगे। आयु बड़ी होगी। चक्र को जानने से चक्रवर्ती राजा बनेंगे। अभी हो नर्क के मालिक फिर स्वर्ग के मालिक बनेंगे। स्वर्ग के मालिक तो सब बनते हैं फिर उसमें है पद। जितना आपसमान बनायेंगे उतना ऊंच पद मिलेगा।
3. पहले–पहले तूफान आते हैं मन्सा में, फिर कर्मणा में आते हैं। मन्सा में बहुत आयेंगे, उस पर फिर बुद्धि से काम लेना है, बुरा काम कभी करना नहीं है। अच्छा कर्म करना है। संकल्प अच्छे भी होते हैं, बुरे भी आते हैं। बुरे को रोकना चाहिए। यह बुद्धि बाप ने दी है। दूसरा कोई समझ न सके। वह तो रांग काम ही करते रहते हैं। तुमको अभी राइट काम ही करना है। अच्छे पुरूषार्थ से राइट काम होता है।
4. यह एक–एक अविनाशी ज्ञान का रत्न लाखों–करोड़ों रूपयों का है, इन्हें दान कर कदम–कदम पर पदमों की कमाई जमा करनी है। आप समान बनाकर ऊंच पद पाना है।
5. विकर्मों से बचने के लिए देही–अभिमानी रहने का पुरूषार्थ करना है। मन्सा में कभी बुरे संकल्प आयें तो उन्हें रोकना है। अच्छे संकल्प चलाने हैं। कर्मेन्द्रियों से कभी कोई उल्टा कर्म नहीं करना है।
6. आपका बोल और स्वरूप दोनों साथ–साथ हों – बोल स्पष्ट भी हों, उसमें स्नेह भी हो, नम्रता मधुरता और सत्यता भी हो लेकिन स्वरूप की नम्रता भी हो, इसी रूप से बाप को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। निर्भय हो लेकिन बोल मर्यादा के अन्दर हों, फिर आपके शब्द कड़े नहीं, मीठे लगेंगे।
16th March 2025
1. हर एक बच्चे के तीन राज तख्त देख रहे हैं। यह तीन तख्त सारे कल्प में इस संगम पर ही आप बच्चों को प्राप्त होते हैं। दिखाई दे रहे हैं तीन तख्त? एक तो यह भ्रकुटी रूपी तख्त, जिस पर आत्मा चमक रही है। दूसरा तख्त है – परमात्म दिल तख्त। दिल तख्त नशीन हो ना! और तीसरा है – भविष्य विश्व तख्त। सबसे भाग्यवान बने हो दिल तख्तनशीन बनने से।
2. जो इस समय स्वराज्य अधिकारी बनता है। स्वराज्य नहीं तो विश्व का राज्य भी नहीं क्योंकि इस समय के स्व राज्य अधिकार द्वारा ही विश्व राज्य प्राप्त होता है। विश्व के राज्य के सर्व संस्कार इस समय बनते हैं। तो हर एक अपने को सदा स्वराज्य अधिकारी अनुभव करते हो?
3. सबसे प्यारी चीज़ सच्चाई है क्योंकि जिसमें सच्चाई होती है उसमें सफाई रहती है।
4. जिसमें सच्चाई होगी ना, उसको बाप को याद करना बहुत सहज होगा। क्यों? बाप भी सत्य है ना! तो सत्य बाप की याद जो सत्य है उसको जल्दी आती है। मेहनत नहीं करनी पड़ती है। अगर अभी भी याद में मेहनत लगती है तो समझो कोई न कोई सूक्ष्म संकल्प मात्र, स्वप्न मात्र कोई सच्चाई कम है। जहाँ सच्चाई है वहाँ संकल्प किया बाबा, हज़ूर हाज़िर है इसलिए बापदादा को सच्चाई बहुत प्रिय है।
5. अब का स्वराज्य अधिकारी बनना, जितना जैसा बनेंगे उतना ही अधिकार प्राप्त होगा। तो चेक करो – जैसे गायन है एक राज्य…, एक ही राज्य होगा, दो नहीं। तो वर्तमान स्वराज्य की स्थिति में सदा एक राज्य है? स्वराज्य है वा कभी–कभी पर–राज्य भी हो जाता है? कभी माया का राज्य अगर है तो पर–राज्य कहेंगे या स्वराज्य कहेंगे? तो सदा एक राज्य है, पर–अधीन तो नहीं हो जाते? कभी माया का, कभी स्व का? इससे समझो कि सम्पूर्ण वर्सा अभी प्राप्त हो रहा है, हुआ नहीं है, हो रहा है। तो चेक करो सदा एक राज्य है? एक धर्म – धर्म अर्थात् धारणा। तो विशेष धारणा कौन सी है? पवित्रता की। तो एक धर्म है अर्थात् संकल्प, स्वप्न में भी पवित्रता है? संकल्प में भी, स्वप्न में भी अगर अपवित्रता की परछाई है तो क्या कहेंगे? एक धर्म है? पवित्रता सम्पूर्ण है? तो चेक करो, क्यों? समय फास्ट जा रहा है। तो समय फास्ट जा रहा है और स्वयं अगर स्लो है तो समय पर मंजिल पर तो नहीं पहुंच सकेंगे ना! इसलिए बार–बार चेक करो। एक राज्य है? एक धर्म है? लॉ और आर्डर है? कि माया अपना आर्डर चलाती है? परमात्म बच्चे श्रीमत के लॉ और आर्डर पर चलने वाले। माया के लॉ एण्ड आर्डर पर नहीं। तो चेक करो – सभी भविष्य के संस्कार अभी दिखाई दें क्योंकि संस्कार अभी भरने हैं। वहाँ नहीं भरने हैं, यहाँ ही भरने हैं। सुख है? शान्ति है? सम्पत्तिवान हैं? सुख अभी साधनों के आधार पर तो नहीं है? अतीन्द्रिय सुख है? साधन, इन्द्रियों का आधार है। अतीन्द्रिय सुख साधनों के आधार पर नहीं है। अखण्ड शान्ति है? खण्डित तो नहीं होती है? क्योंकि सतयुग के राज्य की महिमा क्या है? अखण्ड शान्ति, अटल शान्ति। सम्पन्नता है? सम्पत्ति से क्या होता है? सम्पन्नता होती है। सर्व सम्पत्ति है? गुण, शक्तियां, ज्ञान यह सम्पत्ति है। उसकी निशानी क्या होगी? अगर मैं सम्पत्ति में सम्पन्न हूँ – तो उसकी निशानी क्या? सन्तुष्टता। सर्व प्राप्ति का आधार है सन्तुष्टता, असन्तुष्टता अप्राप्ति का साधन है। तो चेक करो – एक भी विशेषता की कमी नहीं होनी चाहिए। तो इतना चेक करते हो? सारा संसार आप अभी के संस्कार द्वारा बनाने वाले हो। अभी के संस्कार अनुसार भविष्य का संसार बनेगा। तो आप सभी क्या कहते हो? कौन हो आप? विश्व परिवर्तक हो ना! विश्व परिवर्तक हो? तो विश्व परिवर्तक के पहले स्व–परिवर्तक। तो यह सब संस्कार अपने में चेक करो।
6. आप कहेंगे कि हम तो नहीं चाहते कि संस्कार आवें, लेकिन आ जाता है, क्या करें? ऐसे सोचते हो? अच्छा। आ जाता है, गलती से। अगर किसको दी हुई चीज़, गलती से आपके पास आ जाए तो क्या करते हो? सम्भाल के अलमारी में रख देते हो? रख देंगे? तो अगर आ भी जाये तो दिल में नहीं रखना क्योंकि दिल में बाप बैठा है ना! तो बाप के साथ अगर वह संस्कार भी रखेंगे, तो अच्छा लगेगा? नहीं लगेगा ना! इसलिए अगर गलती से आ भी जाये, तो दिल से कहना बाबा, बाबा, बाबा, बस। खत्म। बिन्दी लग जायेगी। बाबा क्या है? बिन्दी। तो बिन्दी लग जायेगी। दिल से कहेंगे तो।
7. संस्कार बदलो, तो संसार बदल जायेगा। जब तक संस्कार नहीं बदले हैं, तब तक संसार नहीं बदल सकता।
17th March 2025
1. ड्रामा में चेन्ज हो नहीं सकती। जो कुछ ड्रामा में नूँध हैं, वह हूबहू होना ही है। ऐसे नहीं, होकर फिर बदल जाना है।
2. यह भी गायन है जैसा अन्न वैसा मन।
3. तुम्हारी बुद्धि अब स्वच्छ बनती जाती है। स्वच्छ बुद्धि वालों को मलेच्छ बुद्धि नमन करते हैं। पवित्र रहने वालों का मान है। संन्यासी पवित्र हैं तो गृहस्थी उन्हों को माथा टेकते हैं। संन्यासी तो विकार से जन्म ले फिर संन्यासी बनते हैं। देवताओं को तो कहा ही जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। संन्यासियों को कभी सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं कहेंगे।
4. मैं पन और मेरापन – यही देह अभिमान का दरवाजा है। अब इस दरवाजे को बन्द करो।
5. सत्यता की परख है संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध–सम्पर्क सबमें दिव्यता की अनुभूति होना। कोई कहते हैं मैं तो सदा सच बोलता हूँ लेकिन बोल वा कर्म में अगर दिव्यता नहीं है तो दूसरे को आपका सच, सच नहीं लगेगा इसलिए सत्यता की शक्ति से दिव्यता को धारण करो। कुछ भी सहन करना पड़े, घबराओ नहीं। सत्य समय प्रमाण स्वयं सिद्ध होगा।
18th March 2025
प्रश्नः–
बाप के वर्से का अधिकार किस पुरूषार्थ से प्राप्त होता है?
उत्तर:-
सदा भाई–भाई की दृष्टि रहे। स्त्री–पुरुष का जो भान है वह निकल जाए, तब बाप के वर्से का पूरा अधिकार प्राप्त हो। परन्तु स्त्री–पुरूष का भान वा यह दृष्टि निकलना बड़ा मुश्किल है। इसके लिए देही–अभिमानी बनने का अभ्यास चाहिए। जब बाप के बच्चे बनेंगे तब वर्सा मिलेगा। एक बाप की याद से सतोप्रधान बनने वाले ही मुक्ति–जीवनमुक्ति का वर्सा पाते हैं।
1. दुनिया में जो भी मनुष्य मात्र हैं, सब हैं देह–अभिमानी। तुमको तो अब देही–अभिमानी बनना है। बाप कहते हैं देह–अभिमान छोड़ो, अपने को आत्मा समझो। आत्मा ही पतित बनी है, उसमें खाद पड़ी है। आत्मा ही सतोप्रधान, तमोप्रधान बनती है। जैसी आत्मा वैसा शरीर मिलता है।
2. पवित्र आत्मा ही कशिश करती है।
3. बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को आकर यथार्थ रीति सभी वेदों–शास्त्रों आदि का सार बताता हूँ। पहली–पहली मुख्य बात समझाते हैं कि तुम अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो तो तुम पावन बनेंगे। तुम हो भाई–भाई, फिर ब्रह्मा की सन्तान कुमार–कुमारियाँ तो भाई–बहन हो गये। यह बुद्धि में याद रहे। असुल में आत्मायें भाई–भाई हैं, फिर यहाँ शरीर में आने से भाई–बहन हो जाते हैं। इतनी भी बुद्धि नहीं है समझने की। वह हम आत्माओं का फादर है तो हम ब्रदर्स ठहरे ना। फिर सर्वव्यापी कैसे कहते हैं। वर्सा तो बच्चे को ही मिलेगा, फादर को तो नहीं मिलता। बाप से बच्चे को वर्सा मिलता है। ब्रह्मा भी शिवबाबा का बच्चा है ना, इनको भी वर्सा उनसे मिलता है। तुम हो जाते पोत्रे–पोत्रियाँ। तुमको भी हक है। तो आत्मा के रूप में सब बच्चे हो फिर शरीर में आते हो तो भाई–बहन कहते हो। और कोई नाता नहीं। सदा भाई–भाई की दृष्टि रहे, स्त्री–पुरूष का भान भी निकल जाए। जब मेल–फीमेल दोनों ही कहते हो ओ गॉड फादर तो भाई–बहन हुए ना। भाई–बहन तब होते हैं जब बाप संगम पर आकर रचना रचते हैं। परन्तु स्त्री–पुरूष की दृष्टि बड़ा मुश्किल निकलती है। बाप कहते हैं तुमको देही–अभिमानी बनना है। बाप के बच्चे बनेंगे तब ही वर्सा मिलेगा। मामेकम् याद करो तो सतोप्रधान बनेंगे। सतोप्रधान बनने बिगर तुम वापिस मुक्ति–जीवनमुक्ति में जा नहीं सकेंगे। यह युक्ति संन्यासी आदि कभी नहीं बतायेंगे। वह ऐसे कभी कहेंगे नहीं कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। बाप को कहा जाता है परमपिता परम आत्मा, सुप्रीम। आत्मा तो सबको कहा जाता है परन्तु उनको परम आत्मा कहा जाता है। वह बाप कहते हैं – बच्चों, मैं आया हूँ तुम बच्चों के पास। हमको बोलने के लिए मुख तो चाहिए ना।
4. देवतायें वाम मार्ग में गिरते हैं तो फिर रावण का राज्य शुरू हो जाता है।
5. परमपिता परमात्मा को ही पतित–पावन कहा जाता है। मनुष्य कह देते हैं भगवान प्रेरणा करता है, अब प्रेरणा माना विचार, इसमें प्रेरणा की तो बात ही नहीं। वह खुद कहते हैं हमको शरीर का आधार लेना पड़ता है। मैं बिगर मुख के शिक्षा कैसे दूँ। प्रेरणा से कोई शिक्षा दी जाती है क्या! भगवान प्रेरणा से कुछ भी नहीं करते हैं। बाप तो बच्चों को पढ़ाते हैं। प्रेरणा से पढ़ाई थोड़ेही हो सकती। सिवाए बाप के सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का राज़ कोई भी बता न सके।
6. वह हैं ही हठयोगी, तुम हो राजयोगी। तुम्हारा योग है बाप के साथ, उन्हों का है तत्व के साथ।
7. जो बच्चे ज्ञान की गहराई में जाते हैं वे अनुभव रूपी रत्नों से सम्पन्न बनते हैं। एक है ज्ञान सुनना और सुनाना, दूसरा है अनुभवी मूर्त बनना। अनुभवी सदा अविनाशी और निर्विघ्न रहते हैं। उन्हें कोई भी हिला नहीं सकता। अनुभवी के आगे माया की कोई भी कोशिश सफल नहीं होती। अनुभवी कभी धोखा नहीं खा सकते। इसलिए अनुभवों को बढ़ाते हुए हर गुण के अनुभवी मूर्त बनो। मनन शक्ति द्वारा शुद्ध संकल्पों का स्टॉक जमा करो।
19th March 2025
प्रश्नः–
अच्छे–अच्छे पुरूषार्थी बच्चों की निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
जो अच्छे पुरूषार्थी हैं वह सवेरे–सवेरे उठकर देही–अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करेंगे। वह एक बाप को याद करने का पुरूषार्थ करेंगे। उन्हें लक्ष्य रहता कि और कोई देहधारी याद न आये, निरन्तर बाप और 84 के चक्र की याद रहे। यह भी अहो सौभाग्य कहेंगे।
1. अभी तुम बच्चे जीते जी मरे हुए हो। कैसे मरे हो? देह के अभिमान को छोड़ दिया तो बाकी रही आत्मा। शरीर तो खत्म हो जाता है। आत्मा नहीं मरती। बाप कहते हैं जीते जी अपने को आत्मा समझो और परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाने से आत्मा पवित्र हो जायेगी। जब तक आत्मा बिल्कुल पवित्र नहीं बनी है तब तक पवित्र शरीर मिल न सके। आत्मा पवित्र बन गई तो फिर यह पुराना शरीर आपेही छूट जायेगा, जैसे सर्प की खल ऑटोमेटिकली छूट जाती है, उनसे ममत्व मिट जाता है, वह जानता है हमको नई खल मिलती है, पुरानी उतर जायेगी।
2. आत्मायें सब भाई–भाई हैं। बाप सबको कहते हैं – रूहानी बच्चों मुझे याद करो। आत्मा कितनी छोटी है। यह है बहुत महीन समझने की बातें। बच्चों को याद ठहरती नहीं है।
3. बाप तो कहते हैं अपने को आत्मा समझो। यह आत्मा और परमात्मा का ज्ञान तो कोई को है नहीं इसलिए ऐसी–ऐसी बातें कह देते हैं। अब तुमको देही–अभिमानी बनना है, हम आत्मा हैं, यह पुराना शरीर छोड़ हमको जाए नया लेना है।
4. तुमको तो गृहस्थ व्यवहार में, धन्धे आदि में रहते हुए बुद्धि में यह पक्का करना है – हम आत्मा हैं। बाप कहते हैं – मैं तुम्हारा बाप भी इतनी छोटी बिन्दू हूँ। ऐसे नहीं कि मैं बड़ा हूँ। मेरे में सारा ज्ञान है। आत्मा और परमात्मा दोनों एक जैसे ही हैं, सिर्फ उनको सुप्रीम कहा जाता है। यह ड्रामा में नूंध है। बाप कहते हैं – मैं तो अमर हूँ। मैं अमर न होता तो तुमको पावन कैसे बनाऊं। तुमको स्वीट चिल्ड्रेन कैसे कहूँ। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाप आकर देही–अभिमानी बनाते हैं, इसमें ही मेहनत है। बाप कहते हैं – मुझे याद करो, और कोई को याद न करो।
5. जो अच्छे–अच्छे पुरूषार्थी बच्चे हैं वह सवेरे–सवेरे उठकर देही–अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करेंगे। भक्ति भी सवेरे करते हैं ना। अपने–अपने ईष्ट देव को याद करते हैं। हनूमान की भी कितनी पूजा करते हैं लेकिन जानते कुछ भी नहीं। बाप आकर समझाते हैं – तुम्हारी बुद्धि बन्दर मिसल हो गई है। अब फिर तुम देवता बनते हो। अब यह है पतित तमोप्रधान दुनिया। अभी तुम आये हो बेहद के बाप पास। मैं तो पुनर्जन्म रहित हूँ। यह शरीर इस दादा का है। मेरा कोई शरीर का नाम नहीं। मेरा नाम ही है कल्याणकारी शिव। तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा कल्याणकारी आकर नर्क को स्वर्ग बनाते हैं। कितना कल्याण करते हैं। नर्क का एकदम विनाश करा देते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा अभी स्थापना हो रही है। यह है प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली। चलते फिरते एक–दो को सावधान करना है – मन्मनाभव। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। पतित–पावन तो बाप है ना।
6. बाप कहते हैं सिर्फ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। बाप भी परमधाम में रहते हैं, तुम आत्मायें भी परमधाम में रहती हो। बाप कहते हैं तुमको कोई तकलीफ नहीं देता हूँ। बहुत सहज है। बाकी यह रावण दुश्मन तुम्हारे सामने खड़ा है। यह विघ्न डालते हैं। ज्ञान में विघ्न नहीं पड़ते, विघ्न पड़ते हैं याद में। घड़ी–घड़ी माया याद भुला देती है। देह–अभिमान में ले आती है। बाप को याद करने नहीं देती, यह युद्ध चलती है। बाप कहते हैं तुम कर्मयोगी तो हो ही। अच्छा, दिन में याद नहीं कर सकते हो तो रात को याद करो। रात का अभ्यास दिन में काम आयेगा। निरन्तर स्मृति रहे – जो बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं, हम उसे याद करते हैं! बाप की याद और 84 जन्मों के चक्र की याद रहे तो अहो सौभाग्य। औरों को भी सुनाना है – बहनों और भाइयों, अब कलियुग पूरा हो सतयुग आता है। बाप आये हैं, सतयुग के लिए राजयोग सिखला रहे हैं। कलियुग के बाद सतयुग आना है। एक बाप के सिवाए और कोई को याद नहीं करना है।
7. इस रथ को भी कर्मभोग तो होता है ना। बापदादा की भी आपस में कभी रूहरिहान चलती है – यह बाबा कहते हैं बाबा आशीर्वाद कर दो। खांसी के लिए कोई दवाई करो या छू मंत्र से उड़ा दो। कहते हैं – नहीं, यह तो भोगना ही है। यह तुम्हारा रथ लेता हूँ, उसके एवज में तो देता ही हूँ, बाकी यह तो तुम्हारा हिसाब–किताब है। अन्त तक कुछ न कुछ होता रहेगा। तुम्हें आशीर्वाद करूँ तो सब पर करना पड़े। आज यह बच्ची यहाँ बैठी है, कल ट्रेन में एक्सीडेंट हो जाता है, मर पड़ती है, बाबा कहेंगे ड्रामा। ऐसे थोड़ेही कह सकते कि बाबा ने पहले क्यों नहीं बताया। ऐसा कायदा नहीं है। मैं तो आता हूँ पतित से पावन बनाने। यह बतलाने थोड़ेही आया हूँ। यह हिसाब–किताब तो तुमको अपना चुक्तू करना है। इसमें आशीर्वाद की बात नहीं। इसके लिए जाओ संन्यासियों के पास। बाबा तो बात ही एक बताते हैं। मुझे बुलाया ही इसलिए है कि हमको आकर नर्क से स्वर्ग में ले जाओ।
8. बाप कहते हैं – अपने को आत्मा समझो। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाप याद दिलाते हैं, तुमने 84 जन्म लिये हैं। मनुष्य ही बने हैं। जैसे बाप ऑर्डीनेन्स निकालते हैं कि विकार में नहीं जाना है, ऐसे यह भी ऑर्डीनेन्स निकालते हैं कि किसको रोना नहीं है। सतयुग–त्रेता में कभी कोई रोते नहीं, छोटे बच्चे भी नहीं रोते। रोने का हुक्म नहीं। वह है ही हर्षित रहने की दुनिया। उसकी प्रैक्टिस सारी यहाँ करनी है।
9. बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए याद की यात्रा से अपना सब हिसाब चुक्तू करना है। पावन बनने का पुरूषार्थ करना है। इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझना है।
10. इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी याद नहीं करना है। कर्मयोगी बनना है। सदा हर्षित रहने का अभ्यास करना है। कभी भी रोना नहीं है।
11. जैसे गन्दगी में कीड़े पैदा होते हैं वैसे ही जब मेरापन आता है तो माया का जन्म होता है। मायाजीत बनने का सहज तरीका है – स्वयं को सदा ट्रस्टी समझो। ब्रह्माकुमार माना ट्रस्टी, ट्रस्टी की किसी में भी अटैचमेंट नहीं होती क्योंकि उनमें मेरापन नहीं होता। गृहस्थी समझेंगे तो माया आयेगी और ट्रस्टी समझेंगे तो माया भाग जायेगी इसलिए न्यारे होकर फिर प्रवृत्ति के कार्य में आओ तो मायाप्रूफ रहेंगे।
12. जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान की फीलिंग जरूर आती है।
20th March 2025
प्रश्नः–
बाप की पढ़ाई में तुम्हें कौन–सी विद्या नहीं सिखाई जाती है?
उत्तर:-
भूत विद्या। किसी के संकल्पों को रीड करना, यह भूत विद्या है, तुम्हें यह विद्या नहीं सिखाई जाती। बाप कोई थॉट रीडर नहीं है। वह जानी जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल है। बाप आते हैं तुम्हें रूहानी पढ़ाई पढ़ाने, जिस पढ़ाई से तुम्हें 21 जन्मों के लिए विश्व की राजाई मिलती है।
1. बच्चे जानते हैं हम जीव आत्मायें परमपिता परमात्मा के सम्मुख बैठे हैं। गाया जाता है आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल। अब मूलवतन में जब आत्मायें हैं तो अलग होने की बात नहीं उठती। यहाँ आने से जब जीव आत्मा बनते हैं तो परमात्मा बाप से सभी आत्मायें अलग होती हैं। परमपिता परमात्मा से अलग होकर यहाँ पार्ट बजाने आते हैं। आगे तो बिगर अर्थ ऐसे ही गाते थे। अभी तो बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा से हम अलग हो यहाँ पार्ट बजाने आते हैं। तुम ही पहले–पहले बिछुड़े हो तो शिवबाबा भी पहले–पहले तुमसे ही मिलते हैं। तुम्हारे खातिर बाप को आना पड़ता है। कल्प पहले भी इन बच्चों को ही पढ़ाया था जो फिर स्वर्ग के मालिक बनें। उस समय और कोई खण्ड नहीं था। बच्चे जानते हैं हम आदि सनातन देवी–देवता धर्म के थे जिसको डीटी रिलीजन, डीटी डिनायस्टी भी कहते हैं।
2. तुम्हारी यह है रूहानी पढ़ाई। तुम्हारा बुद्धियोग शिवबाबा के साथ है, उनको ही नॉलेजफुल ज्ञान का सागर कहा जाता है। जानी–जाननहार का यह मतलब नहीं है कि वह सबके दिलों को बैठ जानेगा कि इनके अन्दर क्या चल रहा है। वह जो थॉट रीडर होते हैं वो सब सुनाते हैं। उसको भूत विद्या कहा जाता है। यहाँ तो बाप पढ़ाते हैं, मनुष्य से देवता बनाने। गायन भी है मनुष्य से देवता. . . अभी तुम बच्चे समझते हो हम अभी ब्राह्मण बने हैं फिर दूसरे जन्म में देवता बनेंगे। आदि सनातन देवी–देवता ही गाये जाते हैं। शास्त्रों में तो ढेर कहानियाँ लिख दी हैं। यह तो बाप डायरेक्ट बैठ पढ़ाते हैं।
3. भगवानुवाच – भगवान ही ज्ञान का सागर, सुख का सागर, शान्ति का सागर है। तुम बच्चों को वर्सा देते हैं। यह पढ़ाई है तुम्हारी 21 जन्मों के लिए। तो कितना अच्छी रीति पढ़ना चाहिए। यह रूहानी पढ़ाई बाप एक ही बार आकर पढ़ाते हैं, नई दुनिया की स्थापना करने लिए। नई दुनिया में इन देवी–देवताओं का राज्य था। बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी–देवता धर्म की स्थापना कर रहा हूँ। जब यह धर्म था तो और कोई धर्म नहीं थे। अभी और सब धर्म हैं इसलिए त्रिमूर्ति पर भी तुम समझाते हो – ब्रह्मा द्वारा स्थापना एक धर्म की। अभी वह धर्म है नहीं। गाते भी हैं मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाही, आपेही तरस परोई . . . हमारे में कोई गुण नहीं कहते तो बुद्धि गॉड फादर की तरफ ही जाती है, उनको ही मर्सीफुल कहा जाता है। बाप आते ही हैं बच्चों के सब दु:खों को खलास कर 100 प्रतिशत सुख देने। कितना रहम करते हैं। तुम समझते हो बाबा के पास हम आये हैं तो बाप से पूरा सुख लेना है। वह है ही सुखधाम, यह है दु:खधाम। इस चक्र को भी अच्छी रीति समझना है। शान्तिधाम, सुखधाम को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। शान्तिधाम को याद करेंगे तो जरूर शरीर छोड़ना पड़े तब आत्मायें शान्तिधाम में जायेंगी। एक बाप के सिवाए और कोई की याद न आये। एकदम लाइन क्लीयर चाहिए। एक बाप को याद करने से अन्दर खुशी का पारा चढ़ता है। इस पुरानी दुनिया में तो अल्पकाल क्षण भंगुर सुख है। यह साथ नहीं चल सकता। साथ यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही चलते हैं। यानी यह ज्ञान रत्नों की कमाई ही साथ चलती है जो फिर तुम 21 जन्म प्रालब्ध भोगेंगे।
4. तुम बच्चे अभी सद्गति के लिए पढ़ाई पढ़ रहे हो। यह पढ़ाई है ही बिल्कुल शान्त में रहने की।
5. काम चिता से उतर अब ज्ञान चिता पर बैठो। काम चिता से उतरो। अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। और कोई मनुष्य ऐसे कह न सकें। मनुष्य को भगवान भी नहीं कहा जा सकता। तुम बच्चे जानते हो बाप ही पतित–पावन है। वही आकर काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाते हैं। वह है रूहानी बाप। वह इनमें बैठ कहते हैं तुम भी आत्मा हो, औरों को भी यही समझाते रहो। बाप कहते हैं – मनमनाभव। मनमनाभव कहने से ही स्मृति आ जायेगी।
6. बुद्धि में याद रहना चाहिए – कल हमने राज्य किया था। बाप ने राज्य दिया था फिर 84 जन्म लेते आये। अभी फिर बाबा आया हुआ है। तुम बच्चों में यह तो ज्ञान है ना। बाप ने यह ज्ञान दिया है। जब डीटी धर्म की स्थापना होती है तो बाकी सारे डेविल वर्ल्ड का विनाश होता है। यह बाप बैठ ब्रह्मा द्वारा सब बातें समझाते हैं। ब्रह्मा भी शिव का बच्चा है, विष्णु का भी राज़ समझाया है कि ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा बनता है। अभी तुम समझ गये हो हम ब्राह्मण हैं फिर देवता बनेंगे फिर 84 जन्म लेंगे। यह नॉलेज देने वाला एक ही बाप है तो फिर कोई मनुष्य से यह नॉलेज मिल कैसे सकती? इसमें सारी बुद्धि की बात है। बाप कहते हैं कि और सब तरफ से बुद्धि तोड़ो। बुद्धि ही बिगड़ती है। बाप कहते हैं कि मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। गृहस्थ व्यवहार में भल रहो। एम ऑबजेक्ट तो सामने खड़ी है। जानते हो हम पढ़कर यह बनेंगे। तुम्हारी पढ़ाई है ही संगमयुग की। अभी तुम न इस तरफ हो, न उस तरफ। तुम बाहर हो।
7. तुम भी ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हो, जो कलियुग अन्त में हैं, फिर वही सतयुग आदि में जायेंगे। तुम ही पहले–पहले बाप से अलग हो पार्ट बजाने आये हो। हमारे में भी सब तो नहीं कहेंगे ना। यह भी मालूम पड़ जायेगा कौन पूरे 84 जन्म लेते हैं!
8. योग को अग्नि कहा जाता है क्योंकि योग से ही आत्मा की अलाए (खाद) निकलती है। योग अग्नि से तमोप्रधान आत्मा सतोप्रधान बनती है। यदि आग ठण्डी होगी तो अलाए निकलेगी नहीं। याद को योग अग्नि कहा जाता है, जिससे विकर्म विनाश होते हैं। तो बाप कहते हैं तुमको कितना समझाता रहता हूँ। धारणा भी हो ना। अच्छा मनमनाभव। इसमें तो थकना नहीं चाहिए ना। बाप को याद करना भी भूल जाते हैं। यह पतियों का पति तुम्हारा ज्ञान से कितना श्रृंगार करते हैं। निराकार बाप कहते हैं और सबसे बुद्धियोग तोड़ मुझ अपने बाप को याद करो। बाप सभी का एक ही है। तुम्हारी अब चढ़ती कला होती है। कहते हैं ना – तेरे भाने सर्व का भला। बाप आये हैं सर्व का भला करने। रावण तो सबको दुर्गति में ले जाते हैं, राम सबको सद्गति में ले जाते हैं।
9. बाप की याद से अपार सुखों का अनुभव करने के लिए बुद्धि की लाइन क्लीयर चाहिए। याद जब अग्नि का रूप ले तब आत्मा सतोप्रधान बनें।
10. बन्धनमुक्त की निशानी है सदा योगयुक्त। योगयुक्त बच्चे जिम्मेवारियों के बंधन वा माया के बन्धन से मुक्त होंगे। मन का भी बन्धन न हो। लौकिक जिम्मेवारी तो खेल हैं, इसलिए डायरेक्शन प्रमाण खेल की रीति से हंसकर खेलो तो कभी छोटी–छोटी बातों में थकेंगे नहीं। अगर बंधन समझते हो तो तंग होते हो। क्या, क्यों का प्रश्न उठता है। लेकिन जिम्मेवार बाप है आप निमित्त हो। इस स्मृति से बन्धनमुक्त बनो तो योगयुक्त बन जायेंगे।
21st March 2025
“मीठे बच्चे – तुम्हें अपने योगबल से सारी सृष्टि को पावन बनाना है, तुम योगबल से ही माया पर जीत पाकर जगतजीत बन सकते हो”
1. तुम फिर योगबल से इस सृष्टि को पावन बना रहे हो। माया पर तुम जीत पाकर जगत जीत बनते हो। योगबल को साइंस बल भी कहा जाता है।
2. शान्तिधाम है स्वीट साइलेन्स होम। तुम आत्माओं को अब यह मालूम है कि हमारा घर शान्तिधाम है। यहाँ हम पार्ट बजाने आये हैं। बाप को भी बुलाते हैं – हे पतित–पावन, दु:ख हर्ता, सुख कर्ता आओ, हमको इस रावण की जंजीरों से छुड़ाओ।
3. अभी यह है संगमयुग। इस एक ही संगमयुग का गायन है। आधाकल्प देवताओं का राज्य चलता है फिर वह राज्य कहाँ चला जाता, कौन जीत लेते हैं? यह भी किसको पता नहीं। बाप कहते हैं रावण जीत लेता है। उन्होंने फिर देवताओं और असुरों की लड़ाई बैठ दिखाई है।
4. अब बाप समझाते हैं – 5 विकारों रूपी रावण से हारते हैं फिर जीत भी पाते हैं रावण पर। तुम तो पूज्य थे फिर पुजारी पतित बन जाते हो तो रावण से हारे ना। यह तुम्हारा दुश्मन होने के कारण तुम सदैव जलाते आये हो। परन्तु तुमको पता नहीं है। अब बाप समझाते हैं रावण के कारण तुम पतित बने हो। इन विकारों को ही माया कहा जाता है। माया जीत, जगत जीत। यह रावण सबसे पुराना दुश्मन है। अभी श्रीमत से तुम इन 5 विकारों पर जीत पाते हो। बाप आये हैं जीत पहनाने। यह खेल है ना। माया ते हारे हार, माया ते जीते जीत। जीत बाप ही पहनाते हैं इसलिए इनको सर्वशक्तिमान कहा जाता है। रावण भी कम शक्तिमान नहीं है। परन्तु वह दु:ख देते हैं इसलिए गायन नहीं है। रावण है बहुत दुश्तर। तुम्हारी राजाई ही छीन लेते हैं।
5. तुम बच्चों को साइलेन्स का शुद्ध घमण्ड रहना चाहिए। तुम मनमनाभव के आधार से साइलेन्स द्वारा जगतजीत बन जाते हो। वह है साइंस घमण्डी। तुम साइलेन्स घमण्डी अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो। याद से तुम सतोप्रधान बन जायेंगे।
6. बाप कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ एक बाप से सम्बन्ध रखना है। अब जाना ही है सुख के सम्बन्ध में। दु:ख के बन्धनों को भूलते जायेंगे। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो, साथ–साथ दैवीगुण भी धारण करो। इन देवताओं जैसा बनना है। यह है एम ऑबजेक्ट।
7. स्वमानधारी बच्चे सभी को मान देने वाले दाता होते हैं। दाता अर्थात् रहमदिल। उनमें कभी किसी भी आत्मा के प्रति संकल्प मात्र भी रोब नहीं रहता। यह ऐसा क्यों? ऐसा नहीं करना चाहिए, होना नहीं चाहिए, ज्ञान यह कहता है क्या…यह भी सूक्ष्म रोब का अंश है। लेकिन स्वमानधारी पुण्य आत्मायें गिरे हुए को उठायेंगी, सहयोगी बनायेंगी वह कभी यह संकल्प भी नहीं कर सकती कि यह तो अपने कर्मो का फल भोग रहे हैं, करेंगे तो जरूर पायेंगे.. इन्हें गिरना ही चाहिए…। ऐसे संकल्प आप बच्चों के नहीं हो सकते।
8. सन्तुष्टता और प्रसन्नता की विशेषता ही उड़ती कला का अनुभव कराती है।
22nd March 2025
प्रश्नः–
बाप के संग से तुम्हें क्या–क्या प्राप्तियां होती हैं?
उत्तर:-
बाप के संग से हम मुक्ति, जीवन–मुक्ति के अधिकारी बन जाते हैं। बाप का संग तार देता है (पार ले जाता है)। बाबा हमें अपना बनाकर आस्तिक और त्रिकालदर्शी बना देते हैं। हम रचता और रचना के आदि–मध्य–अन्त को जान जाते हैं।
1. वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड कहते हैं ना। यहाँ माया के राज्य में 7 वन्डर्स गाये जाते हैं। वह हैं स्थूल वन्डर्स। बाप समझाते हैं यह माया के वन्डर्स हैं, जिसमें दु:ख है। राम, बाप का वन्डर है स्वर्ग। वही वन्डर ऑफ वर्ल्ड है।
2. अब तुमको बाप मन्दिर लायक बना रहे हैं। परन्तु माया का संग भी कम नहीं है। गाया हुआ है संग तारे, कुसंग बोरे। बाप का संग तुमको मुक्ति–जीवनमुक्ति में ले जाता है फिर रावण का कुसंग तुमको दुर्गति में ले जाता हैं। 5 विकारों का संग हो जाता है ना। भक्ति में नाम कहते हैं सतसंग परन्तु सीढ़ी तो नीचे उतरते रहते हैं, सीढ़ी से कोई धक्का खायेगा तो जरूर नीचे ही गिरेगा ना! सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही है।
3. बाप कहते हैं मैं आकर तुमको आस्तिक भी बनाता हूँ, त्रिकालदर्शी भी बनाता हूँ। यह ड्रामा है, यह कोई साधू–सन्त आदि नहीं जानते। वह होते हैं हद के ड्रामा, यह है बेहद का। इस बेहद के ड्रामा में हम सुख भी बहुत देखते हैं तो दु:ख भी बहुत देखते हैं। इस ड्रामा में कृष्ण और क्रिश्चियन का भी कैसा हिसाब–किताब है।
4. तुम जानते हो वह प्यार का सागर है। बाप तुम बच्चों को इतना ज्ञान सुनाते हैं, यही उनका प्यार है। टीचर स्टूडेन्ट को पढ़ाते हैं तो स्टूडेन्ट क्या से क्या बन जाते हैं। तुम बच्चों को भी बाप जैसा प्यार का सागर बनना है, प्यार से कोई को भी समझाना है। बाप कहते हैं तुम भी एक–दो को प्यार करो। नम्बरवन प्यार है – बाप का परिचय दो। तुम गुप्त दान करते हो। एक–दो के लिए घृणा भी नहीं रहनी चाहिए। नहीं तो तुमको भी डन्डे खाने पड़ेंगे। किसी का तिरस्कार करेंगे तो डन्डे खायेंगे। कभी भी किसी से नफरत नहीं रखो, तिरस्कार नहीं करो। देह–अभिमान में आने से ही पतित बने हो। बाप देही–अभिमानी बनाते हैं तो तुम पावन बनते हो।
5. बाप सिर्फ कहते हैं मामेकम् याद करो तो पावन बन जायेंगे। तुम बच्चों को रहमदिल बन सारा दिन सर्विस के ख्यालात चलाने चाहिए। बाप डायरेक्शन देते रहते हैं – मीठे बच्चे, रहमदिल बन जो बिचारी दु:खी आत्मायें हैं, उन दु:खी आत्माओं को सुखी बनाओ। उन्हें पत्र लिखना चाहिए बहुत शार्ट में। बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्से को याद करो। एक शिवबाबा की ही महिमा है। मनुष्यों को बाप की महिमा का भी पता नहीं है। हिन्दी में भी चिट्ठी लिख सकते हो। सर्विस करने का भी बच्चों को हौंसला चाहिए। बहुत हैं जो आपघात करने बैठ जाते हैं, उन्हें भी तुम समझा सकते हो कि जीव–घात महापाप है। अभी तुम बच्चों को श्रीमत देने वाला है शिवबाबा। वह है श्री श्री शिवबाबा। तुमको बनाते हैं श्री लक्ष्मी, श्री नारायण। श्री श्री तो वह एक ही है। वह कभी चक्र में आते नहीं हैं। बाकी तुमको श्री का टाइटिल मिलता है।
6. किसी से भी घृणा वा ऩफरत नहीं करनी है। रहमदिल बन दु:खी आत्माओं को सुखी बनाने की सेवा करनी है। बाप समान मास्टर प्यार का सागर बनना है।
7. “भगवान के हम बच्चे हैं” इसी नशे वा खुशी में रहना है। कभी माया के उल्टे संग में नहीं जाना है। देही–अभिमानी बनकर ज्ञान की धारणा करनी है।
8. लोग कहते हैं परमात्मा जानी–जाननहार है, अब जानी–जाननहार का अर्थ यह नहीं है कि सबके दिलों को जानता है। परन्तु सृष्टि रचना के आदि–मध्य–अन्त को जानने वाला है। बाकी ऐसे नहीं परमात्मा रचता पालन कर्ता और संहार कर्ता है तो इसका मतलब यह है कि परमात्मा पैदा करता है, खिलाता है और मारता है, परन्तु ऐसे नहीं है। मनुष्य अपने कर्मों के हिसाब–किताब से जन्म लेते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि परमात्मा बैठ उनके बुरे संकल्प और अच्छे संकल्पों को जानेगा। वो तो जानता है कि अज्ञानियों के दिल में क्या चलता होगा? सारा दिन मायावी संकल्प चलते होंगे और ज्ञानी के अन्दर शुद्ध संकल्प चलते होंगे, बाकी एक एक संकल्प को बैठ थोड़ेही रीड करेगा? बाकी परमात्मा जानता है, अब तो सबकी आत्मा दुर्गति को पहुँची हुई है, उन्हों की सद्गति कैसे होनी है, यह सारी पहचान जानी–जाननहार को है। अब मनुष्य जो कर्म भ्रष्ट बने हैं, उन्हों को श्रेष्ठ कर्म कराना, सिखलाना और उनको कर्मबन्धन से छुटकारा देना, यह परमात्मा जानता है। परमात्मा कहता है मुझ रचता और मेरी रचना के आदि–मध्य–अन्त की यह सारी नॉलेज को मैं जानता हूँ, वह पहचान तो तुम बच्चों को दे रहा हूँ। अब तुम बच्चों को उस बाप की निरन्तर याद में रहना है तब ही सर्व पापों से मुक्त होंगे अर्थात् अमरलोक में जायेंगे, अब इस जानने को ही जानी–जाननहार कहते हैं।
9. कभी भी सभ्यता को छोड़ करके सत्यता को सिद्ध नहीं करना। सभ्यता की निशानी है निर्मानता। यह निर्मानता निर्माण का कार्य सहज करती है। जब तक निर्मान नहीं बने तब तक निर्माण नहीं कर सकते। ज्ञान की शक्ति शान्ति और प्रेम है। अज्ञान की शक्ति क्रोध को बहुत अच्छी तरह से संस्कार बना लिया है और यूज़ भी करते रहते हो फिर माफी भी लेते रहते हो। ऐसे अब हर गुण को, हर ज्ञान की बात को संस्कार रूप में बनाओ तो सभ्यता आती जायेगी।
23rd March 2025
1. हर एक के दिल में “मेरा बाबा” इसी स्नेह का गीत बज रहा है। स्नेह ही इस देह और देह के सम्बन्ध से न्यारा बना रहा है। स्नेह ही मायाजीत बना रहा है। जहाँ दिल का स्नेह है वहाँ माया दूर से ही भाग जाती है। स्नेह की सबजेक्ट में सर्व बच्चे पास हैं। एक है स्नेह, दूसरा है सर्वशक्तिवान बाप द्वारा सर्वशक्तियों का खजाना।
2. जो बच्चा हज़ूर की हर श्रीमत पर हाज़िर हज़ूर कर चलता है उसके आगे सर्व शक्तियां भी हज़ूर हाज़िर करती हैं। हर आज्ञा में जी हाज़िर, हर कदम में जी हाज़िर। अगर हर श्रीमत में जी हाज़िर नहीं है तो हर शक्ति भी हर समय हाज़िर हज़ूर नहीं कर सकती है। अगर कभी–कभी बाप की श्रीमत वा आज्ञा का पालन करते हैं, तो शक्तियां भी आपका कभी–कभी हाज़िर होने का आर्डर पालन करती हैं। उस समय अधिकारी के बजाए अधीन बन जाते हैं।
3. बाप समान स्थिति है? कभी स्वयं की स्थिति, कभी कोई पर–स्थिति विजय तो नहीं प्राप्त कर लेती? पर स्थिति अगर विजय प्राप्त कर लेती है तो उसका कारण जानते हो ना? स्थिति कमजोर है तब परिस्थिति वार कर सकती है। सदा स्व स्थिति विजयी रहे, उसका साधन है – सदा स्वमान और सम्मान का बैलेन्स। स्वमानधारी आत्मा स्वत: ही सम्मान देने वाला दाता है। वास्तव में किसी को भी सम्मान देना, देना नहीं है, सम्मान देना मान लेना है। सम्मान देने वाला सबके दिल में माननीय स्वत: ही बन जाता है। ब्रह्मा बाप को देखा – आदि देव होते हुए, ड्रामा की फर्स्ट आत्मा होते हुए सदा बच्चों को सम्मान दिया। अपने से भी ज्यादा बच्चों का मान आत्माओं द्वारा दिलाया इसलिए हर एक बच्चे के दिल में ब्रह्मा बाप माननीय बनें। तो मान दिया या मान लिया? सम्मान देना अर्थात् दूसरे के दिल में दिल के स्नेह का बीज बोना। विश्व के आगे भी विश्व कल्याणकारी आत्मा है, यह तब अनुभव करते जब आत्माओं को स्नेह से सम्मान देते हो।
4. सम्मान देने वाला ही विधाता आत्मा दिखाई देती है। सम्मान देने वाले ही बापदादा की श्रीमत (शुभ भावना, शुभ कामना) मानने वाले आज्ञाकारी बच्चे हैं। सम्मान देना ही ईश्वरीय परिवार का दिल का प्यार है। सम्मान वाला स्वमान में सहज ही स्थित हो सकता है। क्यों? जिन आत्माओं को सम्मान देता है उन आत्माओं द्वारा जो दुआयें दिल की मिलती हैं, वह दुआओं का भण्डार स्वमान सहज और स्वत: ही याद दिलाता है इसलिए बापदादा चारों ओर के बच्चों को विशेष अण्डरलाइन करा रहे हैं – सम्मान दाता बनो।
5. बापदादा के पास जो भी बच्चा जैसा भी आया, कमजोर आया, संस्कार के वश आया, पापों का बोझ लेके आया, कड़े संस्कार लेकर आया, बापदादा ने हर बच्चे को किस नज़र से देखा! मेरा सिकीलधा लाडला बच्चा है, ईश्वरीय परिवार का बच्चा है। तो सम्मान दिया और आप स्वमानधारी बन गये। तो फॉलो फादर। अगर सहज सर्व गुण सम्पन्न बनना चाहते हो तो सम्मान दाता बनो।
6. आपका टाइटल है – सर्व उपकारी। अपकार करने वाले पर भी उपकार करने वाले। तो चेक करो – सर्व उपकारी दृष्टि, वृत्ति, स्मृति रहती है? दूसरे पर उपकार करना, स्वयं पर ही उपकार करना है। तो क्या करना है? सम्मान देना है ना! अलग–अलग बातों में धारणा करने के लिए जो मेहनत करते हो, उससे छूट जायेंगे क्योंकि बापदादा देख रहे हैं, कि समय की गति तीव्र हो रही है।
7. स्वयं खुशी, शान्ति और अतीन्द्रिय सुख की रौनक में होंगे तो स्थान भी रौनक में आ जायेगा क्योंकि स्थिति से स्थान में वायुमण्डल फैलता है। तो सभी को चेक करना है कि जहाँ हम रहते हैं, वहाँ रौनक है? उदासी तो नहीं है? सब खुशी में नाच रहे हैं? ऐसे है ना!
8. तन–मन–धन, मन–वाणी–कर्म – किसी भी प्रकार से बाप के कर्तव्य में सहयोगी बनो तो सहजयोगी बन जायेंगे।
24th March 2025
प्रश्नः–
याद में मुख्य मेहनत कौन सी है?
उत्तर:-
बाप की याद में बैठते समय देह भी याद न आये। आत्म–अभिमानी बन बाप को याद करो, यही मेहनत है, इसमें ही विघ्न पड़ता है क्योंकि आधाकल्प देह–अभिमानी रहे हो। भक्ति माना ही देह की याद।
1. तुम बच्चे जानते हो याद के लिए एकान्त की बहुत जरूरत है। जितना तुम एकान्त वा शान्त में बाप की याद में रह सकते हो उतना झुण्ड में नहीं रह सकते हो।
2. पहला–पहला शत्रु है देह–अभिमान। बाप को याद करने के बदले देह को याद कर लेते हैं। इसको देह का अहंकार कहा जाता है। यहाँ तुम बच्चों को कहा जाता है आत्म–अभिमानी बनो, इसमें ही मेहनत लगती है।
3. भक्ति की जैसे आग लगी हुई है और ज्ञान में है शीतलता। इसमें काम क्रोध की आग खत्म हो जाती है।
4. वर्सा एक ही बाप रचता से मिलता है, बाकी जो भी हैं जड़ अथवा चैतन्य वह सारी है रचना। रचना से कभी वर्सा मिल न सके। पतित–पावन एक ही बाप है।
5. अभी सब हैं पतित। तुम्हें अभी पावन बनना है। निराकार बाप ही आकर तुमको पढ़ाते हैं। ऐसे कभी नहीं समझो कि ब्रह्मा पढ़ाते हैं। सबकी बुद्धि शिवबाबा तरफ रहनी चाहिए। शिवबाबा इन द्वारा पढ़ाते हैं। तुम दादियों को भी पढ़ाने वाला शिवबाबा है। उनकी क्या खातिरी करेंगे! तुम शिवबाबा के लिए अंगूर आम ले आते हो, शिवबाबा कहते हैं – मैं तो अभोक्ता हूँ। तुम बच्चों के लिए ही सब कुछ है।
6. ब्रह्मा भगवानुवाच तो कहते नहीं हैं। ब्रह्मा वाच भी नहीं कहते हैं। भल यह भी मुरली चलाते हैं परन्तु हमेशा समझो शिवबाबा चलाते हैं। किसी बच्चे को अच्छा तीर लगाना होगा तो खुद प्रवेश कर लेंगे। ज्ञान का तीर तीखा गाया जाता है ना।
7. हम हैं योगबल वाले फिर बाहुबल वालों की कहानियां क्यों सुनें! तुम्हारी वास्तव में लड़ाई है नहीं। तुम योगबल से 5 विकारों पर विजय पाते हो। तुम्हारी लड़ाई है 5 विकारों से।
8. याद के बल से 5 विकारों पर जीत पाते हो। यह 5 विकार दुश्मन हैं। उनमें भी नम्बरवन है देह–अभिमान। बाप कहते हैं तुम तो आत्मा हो ना। तुम आत्मा आती हो, आकर गर्भ में प्रवेश करती हो। मैं तो इस शरीर में विराजमान हुआ हूँ। मैं कोई गर्भ में थोड़ेही जाता हूँ। सतयुग में तुम गर्भ महल में रहते हो। फिर रावण राज्य में गर्भ जेल में जाते हो। मैं तो प्रवेश करता हूँ। इसको दिव्य जन्म कहा जाता है। ड्रामा अनुसार मुझे इसमें आना पड़ता है।
9. सेन्टर्स वालों को भी लिखता हूँ, इतने वर्ष पढ़े हो किसको पढ़ा नहीं सकते हो तो बाकी पढ़े क्या हो! बच्चों की उन्नति तो करनी चाहिए ना। बुद्धि में सारा दिन सर्विस के ख्याल चलने चाहिए।
10. यह तो जानते हैं ड्रामा अनुसार शायद देरी है। बड़ो–बड़ों के तकदीर में अभी नहीं है। फिर भी बाबा पुरुषार्थ कराते रहते हैं। ड्रामा अनुसार सर्विस चल रही है।
11. संगदोष से अपनी बहुत–बहुत सम्भाल करनी है। कभी पतितों के संग में नहीं आना है। साइलेन्स बल से इस सृष्टि को पावन बनाने की सेवा करनी है।
12. आज्ञाकारी ब्राह्मण बच्चे कभी मेहनत वा मुश्किल शब्द मुख से तो क्या संकल्प में भी नहीं ला सकते हैं। वह सहजयोगी बन जाते हैं इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं बनो लेकिन सदा दिलतख्तनशीन बनो, रहमदिल बनो। अहम भाव और वहम भाव को समाप्त करो।
13. जो प्युरिटी की पर्सनैलिटी से सम्पन्न रॉयल आत्मायें हैं उन्हें सभ्यता की देवी कहा जाता है। उनमें क्रोध विकार की इमप्युरिटी भी नहीं हो सकती। क्रोध का सूक्ष्म रूप ईर्ष्या, द्वेष, घृणा भी अगर अन्दर में है तो वह भी अग्नि है जो अन्दर ही अन्दर जलाती है। बाहर से लाल, पीला नहीं होता, लेकिन काला होता है। तो अब इस कालेपन को समाप्त कर सच्चे और साफ बनो।
25th March 2025
प्रश्नः–
किस बात का सदा सिमरण होता रहे तो माया तंग नहीं करेगी?
उत्तर:-
हम बाप के पास आये हैं, वह हमारा बाबा भी है, शिक्षक भी है, सतगुरू भी है परन्तु है निराकार। हम निराकारी आत्माओं को पढ़ाने वाला निराकार बाबा है, यह बुद्धि में सिमरण रहे तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा फिर माया तंग नहीं करेगी।
1. एक है शान्तिधाम, दूसरा है सुखधाम। सुखधाम है बाप की मिलकियत और दु:खधाम है रावण की मिलकियत। 5 विकारों में फँसने से दु:ख ही दु:ख है। अब बच्चे जानते हैं – हम बाबा के पास आये हैं। वह बाप भी है, शिक्षक भी है परन्तु है निराकार। हम निराकारी आत्माओं को पढ़ाने वाला भी निराकार है। वह है आत्माओं का बाप। यह सदैव बुद्धि में सिमरण होता रहे तो भी खुशी का पारा चढ़े।
2. अब तुम जानते हो हम यह शरीर छोड़ जायेंगे अपने घर। अभी यह प्रैक्टिस कर रहे हैं कि कैसे शरीर छोड़ें। ऐसा पुरूषार्थ दुनिया में कोई करते होंगे! तुम बच्चों को यह ज्ञान है कि हमारा यह पुराना शरीर है। बाप भी कहते है मैं पुरानी जुत्ती का लोन लेता हूँ। ड्रामा में यह रथ ही निमित्त बना हुआ है। यह बदल नहीं सकता। इनको फिर तुम 5 हज़ार वर्ष बाद देखेंगे। ड्रामा का राज़ समझ गये ना। यह बाप के सिवाए और कोई में ताकत नहीं जो समझा सके। यह पाठशाला बड़ी वन्डरफुल है, यहाँ बूढ़े भी कहेंगे हम जाते हैं भगवान की पाठशाला में – भगवान भगवती बनने।
3. बाप कहते हैं – मामेकम् याद करो, ऐसे नहीं कहते कि जिसमें प्रवेश किया है उनको भी याद करो। नहीं, कहते हैं मामेकम् याद करो।
4. तो बच्चों को बड़ा खुश होना चाहिए कि हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। आत्मा पढ़ती है ना। संस्कार आत्मा ही ले जाती है। अभी बाबा आत्मा में संस्कार भर रहे हैं। वह बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। जो बाप तुमको सिखलाते हैं तुम औरों को भी यह सिखलाओ, सृष्टि चक्र को याद करो और कराओ। जो उनमें गुण हैं वह बच्चों को भी देते हैं। कहते हैं मैं ज्ञान का सागर, सुख का सागर हूँ। तुमको भी बनाता हूँ। तुम भी सभी को सुख दो। मन्सा, वाचा, कर्मणा कोई को भी दु:ख न दो। सबके कान में यही मीठी–मीठी बात सुनाओ कि शिवबाबा को याद करो तो याद से विकर्म विनाश होंगे।
5. बाप राजयोग सिखला रहे हैं। वही बाप रचयिता है, श्रीकृष्ण तो रचना है ना। वर्सा रचयिता से मिलता है, न कि रचना से। श्रीकृष्ण से वर्सा नहीं मिलता है। विष्णु के दो रूप यह लक्ष्मी–नारायण हैं। छोटेपन में राधे–कृष्ण हैं। यह बातें भी पक्का याद कर लो।
6. बुद्धि में एक बार तीर लग गया तो बस। फिर युक्ति से चलना होता है। ऐसे भी नहीं कोई से बातचीत नहीं करनी है। गृहस्थ व्यवहार में भल रहो, सबसे बातचीत करो। उनसे भी रिश्ता भल रखो। बाप कहते हैं – चैरिटी बिगन्स एट होम। अगर रिश्ता ही नहीं रखेंगे तो उनका उद्धार कैसे करेंगे? दोनों से तोड़ निभाना है। बाबा से पूछते हैं – शादी में जाऊं? बाबा कहेंगे क्यों नहीं जाओ। बाप सिर्फ कहते हैं काम महाशत्रु है, उस पर जीत पानी है तो तुम जगत जीत बन जायेंगे। निर्विकारी होते ही हैं सतयुग में। योगबल से पैदाइस होती है। बाप कहते हैं निर्विकारी बनो।
7. यह है रूहानी बाप, जो तुमको पढ़ाते हैं। इस शरीर द्वारा पढ़ती आत्मा है, न कि शरीर। आत्मा को शुद्ध अभिमान है – मैं भी यह वर्सा ले रहा हूँ, स्वर्ग का मालिक बन रहा हूँ। स्वर्ग में तो सब जायेंगे परन्तु सबका नाम तो लक्ष्मी–नारायण नहीं होगा ना। वर्सा आत्मा पाती है। यह ज्ञान और कोई दे न सके सिवाए बाप के।
8. बाप कहते हैं मैं पतित दुनिया पतित शरीर में आकर तुमको पावन बनाता हूँ। मैं स्वर्ग देखता भी नहीं हूँ। ऐसे नहीं कि कोई के शरीर से छिप कर देख आऊं। नहीं, पार्ट ही नहीं है। तुम कितनी नई–नई बातें सुनते हो। तो अब इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है।
9. बाप की याद से ही सतोप्रधान बनना है। 63 जन्मों की कट चढ़ी हुई है। वह इस जन्म में उतारनी है, और कोई तकलीफ नहीं है। विष पीने की जो भूख लगती है, वह छोड़ देनी है, उनका तो ख्याल भी न करो। बाप कहते हैं इन विकारों से ही तुम जन्म–जन्मान्तर दु:खी हुए हो।
10. बाप सर्वशक्तिमान है या ड्रामा? ड्रामा है फिर उनमें जो एक्टर्स हैं उनमें सर्वशक्तिमान कौन है? शिवबाबा। और फिर रावण। आधाकल्प है राम राज्य, आधाकल्प है रावण राज्य।
11. आपेही अपने को राजतिलक देने के लायक बनाना है – ज्ञान और योग से। बाप को याद करते रहो तो तुम आपेही तिलक के लायक बन जायेंगे।
12. मन्सा–वाचा–कर्मणा कोई को भी दु:ख नहीं देना है। सबके कानों में मीठी–मीठी बातें सुनानी हैं, सबको बाप की याद दिलानी है। बुद्धियोग एक बाप से जुड़ाना है।
13. जहाँ प्रभू प्रीत है वहाँ अशरीरी बनना एक सेकण्ड के खेल के समान है। जैसे स्विच ऑन करते ही अंधकार समाप्त हो जाता है। ऐसे प्रीत बुद्धि बन स्मृति का स्विच ऑन करो तो देह और देह की दुनिया की स्मृति का स्विच ऑफ हो जायेगा। यह सेकण्ड का खेल है। मुख से बाबा कहने में भी टाइम लगता है लेकिन स्मृति में लाने में टाइम नहीं लगता। यह बाबा शब्द ही पुरानी दुनिया को भूलने का आत्मिक बाम्ब है।
14. सत्यता की परख है संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध–सम्पर्क सबमें दिव्यता की अनुभूति होना। कोई कहते हैं मैं तो सदा सच बोलता हूँ लेकिन बोल वा कर्म में अगर दिव्यता नहीं है तो दूसरे को आपका सच, सच नहीं लगेगा इसलिए सत्यता की शक्ति से दिव्यता को धारण करो। कुछ भी सहन करना पड़े, घबराओ नहीं। सत्य समय प्रमाण स्वयं सिद्ध होगा।
26th March 2025
1. पावन दुनिया में पावन भारत था। तुम्हारे पास प्रदर्शनी आदि में भिन्न–भिन्न प्रकार के मनुष्य आते हैं। कोई कहते हैं जैसे भोजन जरूरी है वैसे यह विकार भी भोजन है, इनके बिना मर जायेंगे। अब ऐसी बात तो है नहीं। संन्यासी पवित्र बनते हैं फिर मर जाते हैं क्या! ऐसे–ऐसे बोलने वाले के लिए समझा जाता है कोई बहुत अजामिल जैसे पापी होंगे, जो ऐसे–ऐसे कहते हैं। बोलना चाहिए क्या इस बिगर तुम मर जायेंगे जो भोजन से इनकी भेंट करते हो! स्वर्ग में आने वाले जो होंगे वह होंगे सतोप्रधान। फिर पीछे सतो, रजो, तमो में आते हैं ना। जो पीछे आते हैं उन आत्माओं ने निर्विकारी दुनिया तो देखी ही नहीं है। तो वह आत्मायें ऐसे–ऐसे कहेंगी कि इन बिगर हम रह नहीं सकते।
2. यह तुम बच्चे जानते हो, अभी ही हम भगवान के बच्चे बने हैं, बाप से वर्सा लेने, परन्तु माया भी कम नहीं है। माया का एक ही थप्पड़ ऐसा लगता है जो एकदम गटर में गिरा देती है। विकार में जो गिरते हैं तो बुद्धि एकदम चट हो जाती है। बाप कितना समझाते हैं – आपस में देहधारी से कभी प्रीत नहीं रखो। तुमको प्रीत रखनी है एक बाप से। कोई भी देहधारी से प्यार नहीं रखना है, मुहब्बत नहीं रखनी है। मुहब्बत रखनी है उनसे जो देह रहित विचित्र बाप है। बाप कितना समझाते रहते हैं फिर भी समझते नहीं। तकदीर में नहीं है तो एक–दो की देह में फँस पड़ते हैं। बाबा कितना समझाते हैं – तुम भी रूप हो। आत्मा और परमात्मा का रूप तो एक ही है। आत्मा छोटी–बड़ी नहीं होती। आत्मा अविनाशी है। हर एक का ड्रामा में पार्ट नूँधा हुआ है।
3. जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे। जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना श्रेष्ठ बनेंगे। सारा मदार पुरूषार्थ पर है।
4. मनुष्य को कांटे से फूल, पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनाते हैं, इसको विहंग मार्ग कहा जाता है।
5. जो ज्ञान की बातों के सिवाए दूसरा कुछ भी सुनाए उसका संग नहीं करना है। फुल पास होने का पुरूषार्थ करना है। कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है।
6. अब घर जाने का समय है इसलिए बंधनमुक्त और योगयुक्त बनो। बंधनमुक्त अर्थात् लूज़ ड्रेस, टाइट नहीं। आर्डर मिला और सेकण्ड में गया। ऐसे बंधनमुक्त, योगयुक्त स्थिति का वरदान प्राप्त करने के लिए सदा यह वायदा स्मृति में रहे कि “एक बाप दूसरा न कोई।” क्योंकि घर जाने के लिए वा सतयुगी राज्य में आने के लिए इस पुराने शरीर को छोड़ना पड़ेगा। तो चेक करो ऐसे एवररेडी बने हैं या अभी तक कुछ रस्सियां बंधी हुई है? यह पुराना चोला टाइट तो नहीं है?
27th March 2025
प्रश्नः–
बाप की याद बच्चों को यथार्थ न रहने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:-
साकार में आते–आते भूल गये हैं कि हम आत्मा निराकार हैं और हमारा बाप भी निराकार है, साकार होने के कारण साकार की याद सहज आ जाती है। देही–अभिमानी बन अपने को बिन्दी समझ बाप को याद करना – इसी में ही मेहनत है।
1. यह तो बहुत बार समझाया है कोई मनुष्य को या देवता को अथवा सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा–विष्णु–शंकर को भगवान नहीं कहा जाता। जिनका कोई आकार वा साकार चित्र है उनको भगवान नहीं कह सकते। भगवान कहा ही जाता है बेहद के बाप को।
2. अब आत्मा तो है बिन्दी। तो बाप भी बिन्दी ही होगा।
3. भगवान को कहा जाता है – परमपिता परमात्मा। यह समझना तो बिल्कुल सहज है। परमपिता अर्थात् परे से परे रहने वाला परम आत्मा। तुमको कहा जाता है आत्मा। तुमको परम नहीं कहेंगे। तुम तो पुनर्जन्म लेते हो ना।
4. सुख था सतयुग में, दु:ख है अभी कलियुग में इसलिए इसको कांटों का जंगल कहा जाता है। पहला नम्बर है देह–अभिमान का कांटा। फिर है काम का कांटा।
5. भगवानुवाच – परमपिता परमात्मा शिव कहते हैं – मैं हूँ पतित–पावन, मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे।
6. भगवान तो खुद ही अपने को जाने, और न जाने कोई।
7. शिवबाबा कहते हैं – मैं गीता आदि कुछ पढ़ा हुआ नहीं हूँ। यह रथ जिसमें बैठा हूँ, यह पढ़ा हुआ है, मैं नहीं पढ़ा हुआ हूँ। मेरे में तो सारे सृष्टि चक्र के आदि–मध्य–अन्त का ज्ञान है। यह रोज़ गीता पढ़ता था। तोते मुआफिक कण्ठ कर लेते थे, जब बाप ने प्रवेश किया तो झट गीता छोड़ दी क्योंकि बुद्धि में आ गया यह तो शिवबाबा सुनाते हैं।
8. बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग की बादशाही देता हूँ तो अब पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा दो। सिर्फ मामेकम् याद करो। यह मेहनत करनी है।
9. निरन्तर योगी बनने का सहज साधन है – प्रवृत्ति में रहते पर–वृत्ति में रहना। पर–वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप। जो आत्मिक रूप में स्थित रहता है वह सदा न्यारा और बाप का प्यारा बन जाता है। कुछ भी करेगा लेकिन यह महसूस होगा जैसे काम नहीं किया है लेकिन खेल किया है। तो प्रवृत्ति में रहते आत्मिक रूप में रहने से सब खेल की तरह सहज अनुभव होगा। बंधन नहीं लगेगा। सिर्फ स्नेह और सहयोग के साथ शक्ति की एडीशन करो तो हाईजम्प लगा लेंगे।
28th March 2025
1. यह पढ़ाई हैख् इसमें अभी फेल हुए तो जन्म–जन्मान्तर, कल्प–कल्पान्तर फेल होते रहेंगे। अच्छी रीति पढ़ेंगे तो कल्प–कल्पान्तर अच्छी रीति पढ़ते रहेंगे।
2. योग अच्छा है तो चलन भी अच्छी रहेगी। पढ़ाई में फिर कहाँ अहंकार आ जाता है, इसमें सारी गुप्त मेहनत करनी है याद की इसलिए ही बहुतों की रिपोर्ट आती है कि बाबा हम योग में नहीं रह सकते। बाबा ने समझाया है योग अक्षर निकाल दो। बाप जिससे वर्सा मिलता है, उनको तुम याद नहीं कर सकते हो! वन्डर है। बाप कहते हैं – हे आत्मायें, तुम मुझ बाप को याद नहीं करते हो, मैं तुमको रास्ता बताने आया हूँ, तुम मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से पाप दग्ध हो जायेंगे।
3. जो फर्स्टक्लास बच्चे हैं वह एक माशूक के सच्चे–सच्चे आशिक बन याद करते रहेंगे। घूमने फिरने जाते हैं तो एकान्त में बगीचे में बैठकर याद करेंगे। झरमुई झगमुई आदि वार्तालाप में रहने से वायुमण्डल खराब होता है इसलिए जितना टाइम मिले बाप को याद करने की प्रैक्टिस करो। फर्स्टक्लास सच्चे माशूक के आशिक बनो।
4. बाप कहते हैं साइलेन्स से तुमको साइंस पर विजय पानी है। साइलेन्स और साइंस राशि एक ही है। मिलेट्री में भी 3 मिनट साइलेन्स कराते हैं। मनुष्य भी चाहते हैं हमको शान्ति मिले। अभी तुम जानते हो शान्ति का स्थान तो है ही ब्रह्माण्ड। जिस ब्रह्म महतत्व में हम आत्मा इतनी छोटी बिन्दी रहती हैं। वह सब आत्माओं का झाड़ तो वन्डरफुल होगा ना। मनुष्य कहते भी हैं भृकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा। बहुत छोटा सोने का तिलक बनाए यहाँ लगाते हैं। आत्मा भी बिन्दी है, बाप भी उनके बाजू में आकर बैठता है। साधू–सन्त आदि कोई भी अपनी आत्मा को जानते नहीं। जबकि आत्मा को ही नहीं जानते तो परमात्मा को कैसे जान सकते? सिर्फ तुम ब्राह्मण ही आत्मा और परमात्मा को जानते हो।
5. तुम अभी जानते हो कैसे इतनी छोटी आत्मा में पार्ट नूँधा हुआ है। आत्मा भी अविनाशी है, पार्ट भी अविनाशी है। वन्डर है ना। यह सारा बना बनाया खेल है। कहते भी हैं बनी बनाई बन रही… ड्रामा में जो नूँध है, वह तो जरूर होगा। चिंता की बात नहीं।
6. तुम बच्चों को अब अपने आपसे प्रतिज्ञा करनी है कि कुछ भी हो जाए – ऑसू नहीं बहायेंगे। फलाना मर गया, आत्मा ने जाकर दूसरा शरीर लिया, फिर रोने की क्या दरकार? वापिस तो आ नहीं सकते। आंसू आया – नापास हुए इसलिए बाबा कहते हैं प्रतिज्ञा करो कि हम कभी रोयेंगे नहीं। परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले बाप की, वह मिल गया तो बाकी क्या चाहिए।
7. ऩफरत कड़ा अक्षर है। वैराग्य अक्षर मीठा है। जब ज्ञान मिलता है तो फिर भक्ति का वैराग्य हो जाता है।
8. झरमुई झगमुई (परचिंतन) के वार्तालाप से वातावरण खराब नहीं करना है। एकान्त में बैठ सच्चे–सच्चे आशिक बन अपने माशूक को याद करना है।
9. अशरीरी पन की एक्सरसाइज और व्यर्थ संकल्प रूपी भोजन की परहेज से स्वयं को तन्दरूस्त बनाओ।
29th March 2025
1. कल्प पहले भी बच्चों को समझाया था, मुझ पतित–पावन बाप को याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। पतित कैसे बने हो, विकारों की खाद पड़ी है। सब मनुष्य जंक खाये हुए हैं। अब वह जंक कैसे निकले? मुझे याद करो। देह–अभिमान छोड़ देही–अभिमानी बनो। अपने को आत्मा समझो। पहले तुम हो आत्मा फिर शरीर लेते हो। आत्मा तो अमर है, शरीर मृत्यु को पाता है।
2. बाप तो इनमें प्रवेश करते हैं, आते हैं, जाते हैं, मालिक हैं, जिसमें चाहे उनमें जा सकते हैं। बाबा ने समझाया है कोई का कल्याण करने अर्थ मैं प्रवेश कर लेता हूँ। आता तो पतित तन में ही हूँ ना। बहुतों का कल्याण करता हूँ। बच्चों को समझाया है – माया भी कम नहीं है। कभी–कभी ध्यान में माया प्रवेश कर उल्टा–सुल्टा बुलवाती रहती है इसलिए बच्चों को बहुत सम्भाल करनी है। कइयों में जब माया प्रवेश कर लेती है तो कहते हैं मैं शिव हूँ, फलाना हूँ। माया बड़ी शैतान है। समझदार बच्चे अच्छी रीति समझ जायेंगे कि यह किसका प्रवेश है। शरीर तो उनका मुकरर यह है ना। फिर दूसरे का हम सुनें ही क्यों! अगर सुनते हो तो बाबा से पूछो यह बात राइट है वा नहीं? बाप झट समझा देंगे।
3. बहुतों में माया प्रवेश कर लेती है। फिर ध्यान में जाकर क्या–क्या बोलते रहते हैं। इसमें भी बड़ा सम्भालना चाहिए। बाप को पूरा समाचार देना चाहिए।
4. सूक्ष्मवतनवासियों को कहा जाता है फरिश्ते। वह बहुत थोड़ा समय बनते हो जबकि तुम कर्मातीत अवस्था को पाते हो। सूक्ष्मवतन में हड्डी मांस होता नहीं। हड्डी मांस नहीं तो बाकी क्या रहा? सिर्फ सूक्ष्म शरीर होता है! ऐसे नहीं कि निराकार बन जाते हैं। नहीं, सूक्ष्म आकार रहता है। वहाँ की भाषा मूवी चलती है। आत्मा आवाज़ से परे है। उसको कहा जाता है सटिल वर्ल्ड। सूक्ष्म आवाज़ होता है। यहाँ है टाकी। फिर मूवी फिर है साइलेन्स। यहाँ टॉक चलती है। यह ड्रामा का बना बनाया पार्ट है। वहाँ है साइलेन्स। वह मूवी और यह है टाकी। इन तीन लोकों को भी याद करने वाले कोई विरले होंगे। बाप समझाते हैं – बच्चे, सजाओं से छूटने के लिए कम से कम 8 घण्टा कर्मयोगी बन कर्म करो, 8 घण्टा आराम करो और 8 घण्टा बाप को याद करो। इसी प्रैक्टिस से तुम पावन बन जायेंगे। नींद करते हो, वह कोई बाप की याद नहीं है। ऐसे भी कोई न समझे कि बाबा के तो हम बच्चे हैं ना फिर याद क्या करें। नहीं, बाप तो कहते हैं मुझे वहाँ याद करो। अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। जब तक योगबल से तुम पवित्र न बनो तब तक घर में भी तुम जा नहीं सकते। नहीं तो फिर सजायें खाकर जाना होगा। सूक्ष्मवतन मूलवतन में भी जाना है फिर आना है स्वर्ग में।
5. सतयुग–त्रेता में है श्रेष्ठाचारी दुनिया। द्वापर–कलियुग है भ्रष्टाचारी दुनिया। अभी तुम संगम पर हो।
6. रचयिता और रचना का ज्ञान सिमरण कर सदा हर्षित रहना है। याद की यात्रा से अपने पुराने सब कर्मबन्धन काट कर्मातीत अवस्था बनानी है।
7. ध्यान दीदार में माया की बहुत प्रवेशता होती है, इसलिए सम्भाल करनी है, बाप को समाचार दे राय लेनी है, कोई भी भूल नहीं करनी है।
8. सेवाधारी बच्चों की विशेष सेवा है – स्वयं शक्ति स्वरूप रहना और सर्व को शक्ति स्वरूप बनाना अर्थात् निर्बल आत्माओं में बल भरना, इसके लिए सदा शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना स्वरूप बनो। शुभ भावना का अर्थ यह नहीं कि किसी में भावना रखते–रखते उसके भाववान हो जाओ। यह गलती नहीं करना। शुभ भावना भी बेहद की हो। एक के प्रति विशेष भावना भी नुकसानकारक है इसलिए बेहद में स्थित हो निर्बल आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के आधार से शक्ति स्वरूप बनाओ।
9. कई चतुराई से कहते हैं कि हम क्रोध नहीं करते हैं, हमारा आवाज ही बड़ा है, आवाज ही ऐसा तेज है लेकिन जब साइन्स के साधनों से आवाज को कम और ज्यादा कर सकते हैं तो क्या साइलेन्स की पॉवर से अपने आवाज की गति को धीमी या तेज नहीं कर सकते हो?
30th March 2025
1. वाह भाग्य विधाता! और वाह मेरा भाग्य! इस श्रेष्ठ भाग्य की विशेषता यही है – एक भगवान द्वारा तीन सम्बन्ध की प्राप्ति है। एक द्वारा एक में तीन सम्बन्ध, जो जीवन में विशेष सम्बन्ध गाये हुए हैं – बाप, शिक्षक, सतगुरू, किसी को भी एक द्वारा तीन विशेष सम्बन्ध और प्राप्ति नहीं है। आप फलक से कहते हो हमारा बाप भी है, शिक्षक भी है तो सतगुरू भी है।
2. बापदादा ने देखा है कि स्मृति में ज्ञान भी रहता है, नशा भी रहता है, निश्चय भी रहता है, लेकिन अभी एडीशन चाहिए – चलन और चेहरे से दिखाई दे। बुद्धि में याद सब रहता है, स्मृति में भी आता है लेकिन अब स्वरूप में आवे। जब साधारण रूप में भी अगर कोई बड़े आक्यूपेशन वाला है या कोई साहूकार का बच्चा एज्यूकेटेड है तो उसकी चलन से दिखाई पड़ता है कि यह कुछ है। उनका कुछ न कुछ न्यारापन दिखाई देता है। तो इतना बड़ा भाग्य, वर्सा भी है, पढ़ाई और पद भी है। स्वराज्य तो अभी भी है ना! प्राप्तियां भी सब हैं, लेकिन चलन और चेहरे से भाग्य का सितारा मस्तक में चमकता हुआ दिखाई दे, वह अभी एडीशन चाहिए। अभी लोगों को आप श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं द्वारा यह अनुभव होना है, चाहिए नहीं, होना है कि यह हमारे इष्ट देव हैं, इष्ट देवियां हैं। यह हमारे हैं। जैसे ब्रह्मा बाप में देखा – साधारण तन में होते भी आदि के समय भी ब्रह्मा बाप में क्या दिखाई देता था, कृष्ण दिखाई देता था ना! आदि वालों को अनुभव है ना! तो जैसे आदि में ब्रह्मा बाप द्वारा कृष्ण दिखाई देता था ऐसे ही लास्ट में क्या दिखाई देता था? अव्यक्त रूप दिखाई देता था ना! चलन में, चेहरे में दिखाई दिया ना! अभी बापदादा विशेष निमित्त बच्चों को यह होम वर्क दे रहा है कि अभी ब्रह्मा बाप समान अव्यक्त रूप दिखाई दे।
31st March 2025
1. बुद्धि में है हमको बाप मिला है तो वह खुशी रहनी चाहिए। परन्तु माया भी कम नहीं है। ऐसे बाप का बनकर फिर भी इतनी खुशी में नहीं रहते हैं। घुटके खाते रहते हैं। माया घड़ी–घड़ी बहुत घुटके खिलाती है। शिवबाबा की याद भुला देती है। खुद भी कहते हैं याद ठहरती नहीं है। बाप घुटका खिलाते हैं ज्ञान सागर में, माया फिर घुटका खिलाती है विषय सागर में। बड़ा खुशी से घुटका खाने लग पड़ते हैं। बाप कहते हैं शिवबाबा को याद करो। माया फिर भुला देती है। बाप को याद ही नहीं करते। बाप को जानते ही नहीं। दु:ख हर्ता सुख कर्ता तो परमपिता परमात्मा है ना। वह है ही दु:ख हरने वाला। वह फिर गंगा में जाकर डुबकी लगाते हैं। समझते हैं गंगा पतित–पावनी है। सतयुग में गंगा को दु:ख हरनी पाप कटनी नहीं कहेंगे। साधू सन्त आदि सब जाकर नदियों के किनारे बैठते हैं। सागर के किनारे क्यों नहीं बैठते हैं? अभी तुम बच्चे सागर के किनारे बैठे हो। ढेर के ढेर बच्चे सागर पास आते हैं।
2. बाप समझाते हैं – बच्चे, तुम्हें मन्सा–वाचा–कर्मणा बहुत–बहुत ध्यान रखना है, कभी भी तुम्हें क्रोध नहीं आना चाहिए। क्रोध पहले मन्सा में आता फिर वाचा और कर्मणा में भी आ जाता है। यह तीन खिड़कियाँ हैं इसलिए बाप समझाते हैं – मीठे बच्चे, वाचा अधिक नहीं चलाओ, शान्त में रहो, वाचा में आये तो कर्मणा में आ जायेगा। गुस्सा पहले मन्सा में आता है फिर वाचा–कर्मणा में आता है। तीनों खिड़कियों से निकलता है। पहले मन्सा में आयेगा। दुनिया वाले तो एक–दो को दु:ख देते रहते हैं, लड़ते–झगड़ते रहते हैं। तुमको तो कोई को भी दु:ख नहीं देना है। ख्याल भी नहीं आना चाहिए। साइलेन्स में रहना बड़ा अच्छा है।
3. सवेरे विचार सागर मंथन करने से मक्खन निकलता है। अच्छी राय निकलती है, तब बाबा कहते हैं सवेरे उठ बाप को याद करो और विचार सागर मंथन करो
4. अपने को आत्मा समझने से फिर देह का भान ही नहीं रहेगा। जैसे बाप समान बन जायेंगे। साक्षात्कार करते रहेंगे। खुशी भी बहुत रहेगी। रिजल्ट सारी पिछाड़ी की गाई हुई है। अपने नाम–रूप से भी न्यारा होना है तो फिर दूसरे के नाम–रूप को याद करने से क्या हालत होगी! नॉलेज तो बहुत सहज है।
5. प्राचीन भारत का योग जो है, जादू उसमें है। बाबा ने समझाया है ब्रह्म ज्ञानी भी ऐसे शरीर छोड़ते हैं। हम आत्मा हैं, परमात्मा में लीन होना है। लीन कोई होते नहीं हैं। हैं ब्रह्म ज्ञानी। बाबा ने देखा है बैठे–बैठे शरीर छोड़ देते हैं। वायुमण्डल बड़ा शान्त रहता है, सन्नाटा हो जाता है। सन्नाटा भी उनको भासेगा जो ज्ञान मार्ग में होंगे, शान्त में रहने वाले होंगे। बाकी कई बच्चे तो अभी बेबियाँ हैं। घड़ी–घड़ी गिर पड़ते हैं, इसमें बहुत–बहुत गुप्त मेहनत है। भक्ति मार्ग की मेहनत प्रत्यक्ष होती है। माला फेरो, कोठी में बैठ भक्ति करो। यहाँ तो चलते–फिरते तुम याद में रहते हो। कोई को पता पड़ न सके कि यह राजाई ले रहे हैं। योग से ही सारा हिसाब–किताब चुक्तू करना है। ज्ञान से थोड़ेही चुक्तू होता है। हिसाब–किताब चुक्तू होगा याद से। कर्मभोग याद से चुक्तू होगा। यह है गुप्त। बाबा सब कुछ गुप्त सिखलाते हैं।
6. मन्सा–वाचा–कर्मणा कभी भी क्रोध नहीं करना है। इन तीनों खिड़कियों पर बहुत ध्यान रखना है। वाचा अधिक नहीं चलाना है। एक–दो को दु:ख नहीं देना है