Key Points From Daily Murli – 7th February 2025
“प्रश्नः–
अक्लमंद (होशियार) बच्चे कौन से बोल मुख से नहीं बोलेंगे?
उत्तर:-
हमें योग सिखलाओ, यह बोल अक्लमंद बच्चे नहीं बोलेंगे। बाप को याद करना सीखना होता है क्या! यह पाठशाला है पढ़ने पढ़ाने के लिए। ऐसे नहीं, याद करने के लिए कोई खास बैठना है। तुम्हें कर्म करते बाप को याद करने का अभ्यास करना है।”
1. “यह तो जानते हो मुख्य है रूह। वह तो है अविनाशी। शरीर है विनाशी। बड़ा तो रूह हुआ ना। अज्ञानकाल में यह ज्ञान किसको नहीं रहता है कि हम आत्मा हैं, शरीर द्वारा बोलते हैं। देह–अभिमान में आकर ही बोलते हैं – मैं यह करता हूँ। अभी तुम देही–अभिमानी बने हो। जानते हो आत्मा कहती है मैं इस शरीर द्वारा बोलती हूँ, कर्म करती हूँ। आत्मा मेल है। बाप समझाते हैं – यह बोल बहुत करके सुने जाते हैं, कहते हैं हमको योग में बिठाओ। सामने एक बैठते हैं, इस ख्याल से कि हम भी बाबा की याद में बैठें, यह भी बैठें। अब पाठशाला कोई इसके लिए नहीं है। पाठशाला तो पढ़ाई के लिए है। बाकी ऐसे नहीं, यहाँ बैठकर सिर्फ तुम्हें याद करना है। बाप ने तो समझाया है चलते फिरते, उठते बैठते बाप को याद करो, इसके लिए खास बैठने की भी दरकार नहीं।”
2. “याद तो चलते फिरते कर सकते हैं। तुमको तो कर्म करते बाप को याद करना है। आशिक माशूक कोई खास बैठ–कर एक–दो को याद नहीं करते हैं। काम काज धन्धा आदि सब करना है, सब कुछ करते अपने माशूक को याद करते रहो। ऐसे नहीं कि उनको याद करने के लिए खास कहाँ जाकर बैठना है।”
3. “ड्रामा अनुसार आत्मा अशान्त हो पड़ी है तो बाप को पुकारती है क्योंकि शान्ति, सुख, ज्ञान का सागर वह है। ज्ञान और योग मुख्य दो चीज़ें हैं, योग माना याद। उन्हों का हठयोग बिल्कुल ही अलग है। तुम्हारा है राजयोग। बाप को सिर्फ याद करना है। बाप द्वारा तुम बाप को जानने से सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त को जान गये हो। तुमको सबसे बड़ी खुशी तो यह है कि हमको भगवान पढ़ाते हैं। भगवान का भी पहले–पहले पूरा परिचय होना चाहिए। ऐसा तो कभी नहीं जाना कि जैसे आत्मा स्टॉर है, वैसे भगवान भी स्टॉर है। वह भी आत्मा है। परन्तु उनको परम आत्मा, सुप्रीम सोल कहा जाता है। वह कभी पुनर्जन्म तो लेते नहीं हैं। ऐसे नहीं कि वह जन्म मरण में आते हैं। नहीं, पुनर्जन्म नहीं लेते हैं। खुद आकर समझाते हैं मैं कैसे आता हूँ? त्रिमूर्ति का गायन भी भारत में है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा–विष्णु–शंकर का चित्र भी दिखाते हैं। शिव परमात्माए नम: कहते हैं ना। उस ऊंच ते ऊंच बाप को भूल गये हैं, सिर्फ त्रिमूर्ति का चित्र दे दिया है। ऊपर में शिव तो जरूर होना चाहिए, जिससे यह समझें कि इनका रचयिता शिव है। रचना से कभी वर्सा नहीं मिल सकता है। तुम जानते हो ब्रह्मा से कुछ भी वर्सा नहीं मिलता। विष्णु को तो हीरे जवाहरों का ताज है ना। शिवबाबा द्वारा फिर पेनी से पाउण्ड बने हैं। शिव का चित्र न होने से सारा खण्डन हो जाता है। ऊंच ते ऊंच है परमपिता परमात्मा, उनकी यह रचना है। अभी तुम बच्चों को बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलता है, 21 जन्मों के लिए। भल वहाँ फिर भी समझते हैं लौकिक बाप से वर्सा मिला है। वहाँ यह पता नहीं कि यह बेहद के बाप से पाई हुई प्रालब्ध है। यह तुमको अभी पता है। अभी की कमाई वहाँ 21 जन्म चलती है। वहाँ यह मालूम नहीं रहता है, इस ज्ञान का बिल्कुल पता नहीं रहता। यह ज्ञान न देवताओं में है, न शूद्रों में रहता है। यह ज्ञान है ही तुम ब्राह्मणों में। यह है रूहानी ज्ञान, स्प्रीचुअल का अर्थ भी नहीं जानते हैं। डॉक्टर आफ फिलॉसाफी कहते हैं। डाक्टर आफ स्प्रीचुअल नॉलेज एक ही बाप है। बाप को सर्जन भी कहा जाता है ना।”
4. “साधू संन्यासी आदि कोई सर्जन थोड़ेही हैं। वेद शास्त्र आदि पढ़ने वालों को डॉक्टर थोड़ेही कहेंगे। भल टाइटल भी दे देते हैं परन्तु वास्तव में रूहानी सर्जन है एक बाप, जो रूह को इन्जेक्शन लगाते हैं। वह है भक्ति। उनको कहना चाहिए डाक्टर आफ भक्ति अथवा शास्त्रों का ज्ञान देते हैं। उनसे फायदा कुछ भी नहीं होता, नीचे गिरते ही जाते हैं। तो उनको डॉक्टर कैसे कहेंगे? डॉक्टर तो फायदा पहुँचाते हैं ना। यह बाप तो है अविनाशी ज्ञान सर्जन। योगबल से तुम एवरहेल्दी बनते हो। यह तो तुम बच्चे ही जानते हो। बाहर वाले क्या जानें। उनको अविनाशी सर्जन कहा जाता है। आत्माओं में जो विकारों की खाद पड़ी है, उसे निकालना, पतित को पावन बनाकर सद्गति देना – यह बाप में शक्ति है। ऑलमाइटी पतित–पावन एक फादर है। ऑलमाइटी कोई मनुष्य को नहीं कह सकते हैं। तो बाप कौन–सी शक्ति दिखाते हैं? सर्व को अपनी शक्ति से सद्गति दे देते हैं। उनको कहेंगे डॉक्टर ऑफ स्प्रीचुअल नॉलेज। डॉक्टर आफ फिलॉसाफी – यह तो ढेर के ढेर मनुष्य हैं। स्प्रीचुअल डॉक्टर एक है। तो अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो और पवित्र बनो। मैं आया ही हूँ पवित्र दुनिया स्थापन करने, फिर तुम पतित क्यों बनते हो? पावन बनो, पतित मत बनो। सभी आत्माओं को बाप का डायरेक्शन है – गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहो।”
5. “10 मिनट यहाँ बैठते हैं तो भी ऐसे मत समझो कि कोई एकरस हो बैठते हैं। भक्ति मार्ग में किसकी पूजा करने बैठते हैं तो बुद्धि बहुत भटकती रहती है। नौधा भक्ति करने वालों को यही तात लगी रहती है कि हमको साक्षात्कार हो। वह आश लगाकर बैठे रहते हैं। एक की लगन में लवलीन हो जाते हैं, तब साक्षात्कार होता है। उनको कहा जाता है नौंधा भक्त। वह भक्ति ऐसी है जैसे आशिक–माशूक। खाते पीते बुद्धि में याद रहती है। उनमें विकार की बात नहीं होती, शरीर पर प्यार हो जाता है। एक–दो को देखने बिगर रह नहीं सकते।”
6. “कोई कहते हैं हमको योग में बहुत मजा आता है, ज्ञान में इतना मजा नहीं। बस, योग करके यह भागेंगे। योग ही अच्छा लगता है, कहते हैं हमको तो शान्ति चाहिए। अच्छा, बाप को तो कहाँ भी बैठ याद करो। याद करते–करते तुम शान्तिधाम में चले जायेंगे। इसमें योग सिखलाने की बात ही नहीं है। बाप को याद करना है।”
7. “ऐसे बहुत हैं जो सेन्टर्स पर जाकर आधा पौना घण्टा बैठते हैं, कहते हैं हमको नेष्ठा कराओ या तो कहेंगे बाबा ने प्रोग्राम दिया है नेष्ठा का। यहाँ बाबा कहते हैं चलते फिरते याद में रहो। ना से तो बैठना अच्छा है। बाबा मना नहीं करते हैं, भल सारी रात बैठो, परन्तु ऐसी आदत थोड़ेही डालनी है कि बस रात को ही याद करना है। आदत यह डालनी है कि काम काज़ करते याद करना है। इसमें बड़ी मेहनत है। बुद्धि घड़ी–घड़ी और तरफ भाग जाती है। भक्ति मार्ग में भी बुद्धि भाग जाती है फिर अपने को चुटकी काटते हैं। सच्चे भक्त जो होते हैं उनकी बात करते हैं। तो यहाँ भी अपने साथ ऐसी–ऐसी बातें करनी चाहिए। बाबा को क्यों नहीं याद किया? याद नहीं करेंगे तो विश्व के मालिक कैसे बनेंगे? आशिक–माशूक तो नाम–रूप में फंसे रहते हैं। यहाँ तो तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो। हम आत्मा इस शरीर से अलग हैं। शरीर में आने से कर्म करना होता है। बहुत ऐसे भी हैं जो कहते हैं हम दीदार करें। अब दीदार क्या करेंगे। वह तो बिन्दी है ना।”
8. “याद से ही आत्मा पवित्र होनी है। बहुतों को पढ़ायेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। जो अच्छा समझते हैं वह अच्छा पद पायेंगे। प्रदर्शनी में कितनी प्रजा बनती है। तुम एक–एक लाखों की सेवा करेंगे और फिर अपनी भी अवस्था ऐसी चाहिए। कर्मातीत अवस्था हो जायेगी फिर शरीर नहीं रहेगा। आगे चल तुम समझेंगे अब लड़ाई जोर हो जायेगी फिर ढेर तुम्हारे पास आते रहेंगे। महिमा बढ़ती जायेगी। अन्त में संन्यासी भी आयेंगे, बाप को याद करने लग पड़ेंगे। उनका पार्ट ही मुक्तिधाम में जाने का है। नॉलेज तो लेंगे नहीं। तुम्हारा मैसेज सभी आत्माओं तक पहुँचना है, अखबारों द्वारा बहुत सुनेंगे। कितने गांव हैं, सबको पैगाम देना है। मैसेन्जर पैगम्बर तुम ही हो। पतित से पावन बनाने वाला और कोई है नहीं, सिवाए बाप के।”
9. “तुम बच्चों को अब पवित्र जरूर बनना है। बहुत हैं जो पवित्र नहीं रहते हैं। काम महाशत्रु है ना। अच्छे–अच्छे बच्चे गिर पड़ते हैं, कुदृष्टि भी काम का ही अंश है। यह बड़ा शैतान है। बाप कहते हैं इस पर जीत पहनो तो जगतजीत बन जायेंगे।”
10. “जो यथार्थ पुरूषार्थी हैं वे कभी मेहनत वा थकावट का अनुभव नहीं करते, सदा मोहब्बत में मस्त रहते हैं। वे संकल्प से भी सरेन्डर होने के कारण अनुभव करते कि हमें बापदादा चला रहे हैं, मेहनत के पांव से नहीं लेकिन स्नेह की गोदी में चल रहे हैं, स्नेह की गोद में सर्व प्राप्तियों की अनुभूति होने के कारण वह चलते नहीं लेकिन सदा खुशी में, आन्तरिक सुख में, सर्व शक्तियों के अनुभव में उड़ते रहते हैं।”