Key Points From Daily Murli – 7th December 2024
1. “इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी न देखो।“
2. “बाप का भी इस संगम पर पार्ट चलता है। क्रियेटर, डायरेक्टर है ना! तो जरूर उनकी कोई एक्टिविटी होगी ना। सब जानते हैं कि उनको आदमी नहीं कहा जाता, उनको तो अपना शरीर ही नहीं। बाकी सबको मनुष्य वा देवता कहेंगे। शिवबाबा को न देवता, न मनुष्य कहेंगे। यह तो टैप्रेरी शरीर लोन में लिया हुआ है। गर्भ से थोड़ेही पैदा हुए हैं। बाप खुद कहते हैं – बच्चे, शरीर बिगर मैं राजयोग कैसे सिखलाऊंगा! हमको मनुष्य लोग भल कह देते हैं कि ठिक्कर भित्तर में परमात्मा है परन्तु अभी तुम बच्चे समझते हो कि मैं कैसे आता हूँ।”
3. “माया बहुत कड़ी है। किसको भी छोड़ती नहीं है। बाप को सब मालूम पड़ता है। माया ग्राह एकदम हप कर लेती है। यह बाप अच्छी रीति जानते हैं। ऐसे नहीं समझो बाप कोई अन्तर्यामी है। नहीं, बाप सभी की एक्टिविटी को जानते हैं। समाचार तो आते हैं ना। माया एकदम कच्चा ही पेट में डाल देती है। ऐसी बहुत बातें तुम बच्चों को मालूम नहीं पड़ती हैं। बाप को तो सब मालूम पड़ता है। मनुष्य फिर समझ लेते परमात्मा अन्तर्यामी है। बाप कहते हैं मैं अन्तर्यामी नहीं हूँ। हर एक की चलन से मालूम तो पड़ता है ना। बहुत ही छी–छी चलन चलते हैं इसलिए बाप घड़ी–घड़ी बच्चों को खबरदार करते हैं। माया से सम्भालना है। फिर भल बाप समझाते हैं तो भी बुद्धि में नहीं बैठता, काम महाशत्रु है, मालूम भी न पड़े कि हम विकार में गये हैं, ऐसे भी होता है इसलिए बाप कहते हैं कुछ भी भूल आदि होती है तो साफ बता दो, छिपाओ मत। नहीं तो सौगुणा पाप हो जायेगा। वह अन्दर खाता रहेगा। वृद्धि होती रहेगी। एकदम गिर पड़ेंगे। बच्चों को बाप के साथ बिल्कुल ही सच्चा रहना है। नहीं तो बहुत–बहुत घाटा पड़ जायेगा। यह तो रावण की दुनिया है। रावण की दुनिया को हम याद क्यों करें।”
4. “अभी हम नई दुनिया में जाने वाले हैं फिर जितना बाप को याद करेंगे उतना गुल–गुल बनेंगे। हम विकारों के वश हो कांटे बन पड़े हैं। तुम बच्चे जानते हो – जो नहीं आते हैं वह तो माया के वश हो गये हैं। बाप के पास हैं ही नहीं। ट्रेटर बन गये हैं। पुराने दुश्मन पास चले गये हैं। ऐसे–ऐसे बहुतों को माया हप कर लेती है। कितने खत्म हो जाते हैं। बहुत अच्छे–अच्छे हैं जो कहकर जाते हैं हम ऐसे करेंगे, यह करेंगे। हम तो यज्ञ के लिए प्राण भी देने के लिए तैयार हैं। आज वह हैं नहीं। तुम्हारी लड़ाई है ही माया के साथ।”
5. “दुनिया में यह कोई नहीं जानते कि माया से लड़ाई कैसे होती है। शास्त्रों में फिर दिखाया है देवताओं और असुरों में लड़ाई हुई। फिर कौरवों और पाण्डवों की लड़ाई हुई। कोई से पूछो यह दो बातें शास्त्रों में कैसी हैं? देवतायें तो अहिंसक होते हैं। वह होते ही हैं सतयुग में। वह फिर क्या कलियुग में लड़ने आयेंगे। कौरव और पाण्डव का भी अर्थ नहीं समझते। शास्त्रों में जो लिखा है वही पढ़कर सुनाते रहते हैं। बाबा की तो सारी गीता पढ़ी हुई है। जब यह ज्ञान मिला तो विचार चला कि गीता में यह लड़ाई आदि की बातें क्या लिखी हैं? श्रीकृष्ण तो गीता का भगवान नहीं है। इनके अन्दर बाप बैठा था तो इन द्वारा उस गीता को भी छुड़वा दिया। अभी बाप द्वारा कितना सोझरा मिला है। आत्मा को ही सोझरा होता है तब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बेहद के बाप को याद करो।”
6. “देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूल एक मुझ बाप को याद करो तो माया के पाप कर्म भस्म हो जायेंगे।”
7. “अभी तुम बुद्धिवान बनते हो। आगे बुद्धिहीन थे। यह लक्ष्मी–नारायण हैं बुद्धिवान। बुद्धिहीन पतित को कहा जाता है। मुख्य है पवित्रता। लिखते भी हैं माया ने हमें गिरा दिया। आंखें क्रिमिनल बन गई। बाप तो घड़ी–घड़ी सावधान करते रहते हैं – बच्चे, कभी माया से हार नहीं खाना। अभी घर जाना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। यह पुरानी दुनिया खत्म हुई कि हुई। हम पावन बनते हैं तो हमें पावन दुनिया भी तो चाहिए ना! तुम बच्चों को ही पतित से पावन बनना है। बाप तो योग नहीं लगायेंगे। बाबा पतित थोड़ेही बनता है जो योग लगावे। बाबा तो कहते हैं मैं तुम्हारी सेवा में उपस्थित होता हूँ। तुमने ही मांगनी की है कि आकर हम पतितों को पावन बनाओ। तुम्हारे ही कहने से मैं आया हूँ। तुम्हें बहुत सहज रास्ता बताता हूँ सिर्फ मनमनाभव।”
8. “कई बच्चे बाबा के पास आते हैं जो कभी पवित्र नहीं रहते हैं। बाबा समझाते हैं विकार में जाते हो फिर बाबा के पास क्यों आते हो? कहते क्या करूँ, रह नहीं सकता हूँ। परन्तु यहाँ आता हूँ शायद कभी तीर लग जाए। आप बिगर हमारी सद्गति कौन करेगा इसलिए आकर बैठ जाता हूँ। माया कितनी प्रबल है। निश्चय भी होता है – बाबा हमको पतित से पावन गुल–गुल बनाते हैं। परन्तु क्या करें फिर भी सच बोलने से कभी सुधर जाऊंगा। हमको यह निश्चय है कि आपसे ही हमें सुधरना है। बाबा को ऐसे बच्चों पर तरस पड़ता है फिर भी ऐसे होगा। नथिंगन्यु। बाबा तो रोज़–रोज़ श्रीमत देते हैं। कोई अमल में लाते भी हैं, इसमें बाबा क्या कर सकता है। बाबा कहे शायद इनका पार्ट ही ऐसा है। सब तो राजे–रानियाँ नहीं बनते हैं। राजधानी स्थापन हो रही है। राजधानी में सब चाहिए। फिर भी बाबा कहते हैं बच्चे हिम्मत नहीं छोड़ो। आगे जा सकते हो।”
9. “जब निगेटिव अथवा व्यर्थ संकल्प चलते हैं, तो उसकी गति बहुत फास्ट होती है। फास्ट गति के समय पॉवरफुल ब्रेक लगाकर परिवर्तन करने का अभ्यास चाहिए। वैसे भी जब पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो पहले ब्रेक को चेक करते हैं। आप अपनी ऊंची स्थिति बनाने के लिए संकल्पों को सेकण्ड में ब्रेक देने का अभ्यास बढ़ाओ। जब अपने संकल्प वा संस्कार एक सेकण्ड में निगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन कर लेंगे तब स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन का कार्य सम्पन्न होगा।”
10. “स्वयं प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति श्रेष्ठ परिवर्तन की शक्ति को कार्य में लाने वाले ही सच्चे कर्मयोगी हैं।”