Key Points From Daily Murli – 6th March 2025
1. “यह आकाश तत्व तो है जीव आत्माओं का सिंहासन। आत्माओं का सिंहासन है वह महतत्व, जहाँ तुम आत्मायें बिगर शरीर रहती थी। जैसे आकाश में सितारे खड़े हैं ना, वैसे तुम आत्मायें भी बहुत छोटी–छोटी वहाँ रहती हो। आत्मा को दिव्य दृष्टि बिगर देखा नहीं जा सकता। तुम बच्चों को अभी यह ज्ञान है, जैसे स्टॉर कितना छोटा है, वैसे आत्मायें भी बिन्दी मिसल हैं। अब बाप ने सिंहासन तो छोड़ दिया है। बाप कहते हैं तुम आत्मायें भी सिंहासन छोड़कर यहाँ इस शरीर को अपना सिंहासन बनाती हो। मुझे भी जरूर शरीर चाहिए। मुझे बुलाते ही हैं पुरानी दुनिया में। गीत है ना – दूरदेश का रहने वाला…….। तुम आत्मायें जहाँ रहती हो वह है तुम आत्माओं और बाबा का देश। फिर तुम स्वर्ग में जाते हो, जिसकी बाबा स्थापना कराते हैं। बाप खुद उस स्वर्ग में नहीं आते। खुद तो वाणी से परे वानप्रस्थ में जाकर रहते हैं। स्वर्ग में उनकी दरकार नहीं। वह तो दु:ख–सुख से न्यारे हैं ना। तुम तो सुख में आते हो, तो दु:ख में भी आते हो।”
2. “जो बच्चे इस रावण राज्य में काम चिता पर बैठ जल गये थे, बाप आकर फिर से उन पर ज्ञान वर्षा करते हैं, सबका कल्याण करते हैं। जैसे सूखी जमीन पर बरसात पड़ने से घास निकल आता है ना, तुम्हारे पर भी ज्ञान की वर्षा न होने से कितने कंगाल बन गये थे। अभी फिर ज्ञान वर्षा होती है जिससे तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे। भल तुम बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते हो परन्तु अन्दर में बहुत खुशी रहनी चाहिए।”
3. “तुम बच्चे जानते हो जिन्होंने सबसे जास्ती भक्ति की है वही सबसे जास्ती ज्ञान आकर लेंगे। सबसे जास्ती शुरू से लेकर तो हमने भक्ति की है। फिर हमको ही बाबा स्वर्ग में पहले–पहले भेज देते हैं। यह है ज्ञान युक्त यथार्थ बात। बरोबर हम ही सो पूज्य थे फिर सो पुजारी बनते हैं। नीचे उतरते जाते हैं। बच्चों को सारा ज्ञान समझाया जाता है।”
4. “अब मनुष्य से देवता बनना है। पहले सूक्ष्म–वतनवासी फरिश्ता बनेंगे। अभी तुम फरिश्ते बन रहे हो। सूक्ष्मवतन का भी राज़ बच्चों को समझाया है। यहाँ है टाकी, सूक्ष्म–वतन में है मूवी, मूलवतन में है साइलेन्स। सूक्ष्मवतन है फरिश्तों का। जैसे घोस्ट को छाया का शरीर होता है ना। आत्मा को शरीर नहीं मिलता है तो भटकती रहती है, उनको घोस्ट कहा जाता है। उनको इन आंखों से भी देख सकते हैं। यह फिर हैं सूक्ष्मवतनवासी फरिश्ते। यह सब बातें बहुत समझने की हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन – इनका तुमको ज्ञान है। चलते फिरते बुद्धि में यह सारा ज्ञान रहना चाहिए। हम असुल मूलवतन के रहवासी हैं। अभी हम वहाँ जायेंगे वाया सूक्ष्मवतन। बाबा सूक्ष्मवतन इस समय ही रचते हैं। पहले सूक्ष्म फिर स्थूल चाहिए। अभी यह है संगमयुग। इनको ईश्वरीय युग कहेंगे, उनको दैवी युग कहेंगे। तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए।”
5. “तुम बच्चों को अपनी अवस्था एकरस बनाने के लिए सब कुछ देखते हुए जैसे कि देखते ही नहीं हैं, यह अभ्यास करना है। इसमें बुद्धि को एकरस रखना हिम्मत की बात है। परफेक्ट होने में मेहनत लगती है। सम्पूर्ण बनने में टाइम चाहिए। जब कर्मातीत अवस्था हो तब वह दृष्टि बैठे, तब तक कुछ न कुछ खींच होती रहेगी। इसमें बिल्कुल उपराम होना पड़ता है। लाइन क्लीयर चाहिए। देखते हुए जैसे तुम देखते ही नहीं हो, ऐसा अभ्यास जिसका होगा वही ऊंच पद पायेंगे।”
6. “इस समय तुम भी सबको रास्ता बताना सीखते हो, इसलिए तुम्हारा नाम पाण्डव रखा है। तुम पाण्डवों की सेना है।”
7. “अभी बाप तुम बच्चों को सच्ची गीता सुनाते हैं। यह तो कण्ठ कर लेनी चाहिए। कितना सहज है। तुम्हारा सारा कनेक्शन है ही गीता के साथ। गीता में ज्ञान भी है तो योग भी है। तुमको भी एक ही किताब बनाना चाहिए। योग का किताब अलग क्यों बनाना चाहिए।”
8. “अपने ऊपर आपेही रहम करना है, अपनी दृष्टि बहुत अच्छी पवित्र रखनी है। ईश्वर ने मनुष्य से देवता बनाने के लिए एडाप्ट किया है इसलिए पतित बनने का कभी ख्याल भी न आये।”
9. “सम्पूर्ण, कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने के लिए सदा उपराम रहने का अभ्यास करना है। इस दुनिया में सब कुछ देखते हुए भी नहीं देखना है। इसी अभ्यास से अवस्था एकरस बनानी है।”
10. “आधाकल्प है ब्रह्मा का दिन, आधाकल्प है ब्रह्मा की रात, अब रात पूरी हो सवेरा आना है। अब परमात्मा आकर अन्धियारे की अन्त कर सोझरे की आदि करता है, ज्ञान से है रोशनी, भक्ति से है अन्धियारा।”
11. “आपके बोल में स्नेह भी हो, मधुरता और महानता भी हो, सत्यता भी हो लेकिन स्वरूप की नम्रता भी हो। निर्भय होकर अथॉरिटी से बोलो लेकिन बोल मर्यादा के अन्दर हों – दोनों बातों का बैलेन्स हो, जहाँ बैलेन्स होता है वहाँ कमाल दिखाई देती है और वह शब्द कड़े नहीं, मीठे लगते हैं तो अथॉरिटी और नम्रता दोनों के बैलेन्स की कमाल दिखाओ। यही है बाप की प्रत्यक्षता का साधन।”