5th April 2025
1. “अब गीता का भगवान राजयोग सिखलाते थे तो जरूर इससे सिद्ध होता है नर से नारायण बनाते थे। तुम बच्चे जानते हो भगवान हमको पढ़ाते हैं। बरोबर नर से नारायण बनाते हैं।“
2. “मनुष्य तो एक भी नहीं जिसको रचता बाप का परिचय हो। मनुष्य होकर और बाप को न जानें तो जानवर से भी बदतर हुआ।“
3. ” तुमको बाप समझाते हैं तुम देवता थे, अभी फिर बाप को याद करने से तुम देवता बन जायेंगे। विकर्म विनाश हो जायेंगे।“
4. “जब तक बाप की याद में रह कर्मातीत अवस्था को पायें, तब तक माया हिलाती रहेगी, किसको भी छोड़ेगी नहीं। जांच करते रहना चाहिए कि माया कैसे धक्का खिलाती है।“
5. “तलवारें भी अनेक प्रकार की होती हैं ना। तुम्हारी भी योग की तलवार बड़ी तीखी चाहिए। सर्विस का हुल्लास चाहिए। बहुतों का जाकर कल्याण करें। बाप को याद करने की ऐसी प्रैक्टिस हो जाए जो पिछाड़ी में सिवाए बाप के और कोई याद न पड़े, तब ही तुम राजाई पद पायेंगे।“
6. “बाप और नारायण (वर्सा) ही याद करना है। परन्तु माया कम नहीं है। कच्चे तो एकदम ढेर हो पड़ते हैं। उल्टे कर्मों का खाता तब बनता है जब किसी के नाम रूप में फँस पड़ते हैं। एक–दो को प्राइवेट चिट्ठियाँ लिखते हैं। देहधारियों से प्रीत हो जाती है तो उल्टे कर्मों का खाता बन जाता है। बाबा के पास समाचार आते हैं। उल्टा–सुल्टा काम कर फिर कहते हैं बाबा हो गया! अरे, खाता उल्टा तो हो गया ना! यह शरीर तो पलीत है, उनको तुम याद क्यों करते हो। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो सदैव खुशी रहे। आज खुशी में हैं, कल फिर मुर्दे बन पड़ते हैं। जन्म–जन्मान्तर नाम–रूप में फँसते आते हैं ना।“
7. “स्वर्ग में यह बीमारी नाम–रूप की होती नहीं। वहाँ तो मोहजीत कुटुम्ब होता है। जानते हैं हम आत्मा हैं, शरीर नहीं। वह है ही आत्म–अभिमानी दुनिया। यहाँ है देह–अभिमानी दुनिया। फिर आधा कल्प तुम देही–अभिमानी बन जाते हो। अब बाप कहते हैं देह–अभिमान छोड़ो। देही–अभिमानी होने से बहुत मीठे शीतल हो जायेंगे।“
8. “तुमको तो सिर्फ आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है। विचित्र बन विचित्र बाप को याद करना है। यह मेहनत है। विश्व का मालिक बनना, कोई मासी का घर नहीं है। बाप कहते हैं – मैं विश्व का मालिक नहीं बनता हूँ, तुमको बनाता हूँ।“
9. ” कई बच्चों को बन्धन भी है, मोह भी रहता है। बाप कहते हैं तुम्हारी सब बीमारियाँ बाहर निकलेंगी। तुम बाप को याद करते रहो। माया तुमको हटाने की कोशिश करती है। याद ही मुख्य है, रचता और रचना के आदि–मध्य–अन्त का ज्ञान मिला, बाकी और क्या चाहिए।“
10. “देह–अभिमान में आकर लड़ना–झगड़ना जैसे क्रोध का भूत हो जाता है। बाबा क्रोध करने वाले की तरफ कभी देखते भी नहीं। सर्विस करने वालों से प्यार होता है। देह–अभिमान की चलन दिखाई पड़ती है।“
11. “सदा हर्षित वही रह सकते हैं जो कहीं भी आकर्षित नहीं होते हैं।“