Key Points From Daily Murli – 4th January 2025
2. “यह तो जानते हो नॉलेज होती है आत्मा में। उनको ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। वह ज्ञान का सागर इस शरीर द्वारा वर्ल्ड की हिस्ट्री–जॉग्राफी समझाते हैं।”
3. “यह भी तुम जानते हो परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना, शंकर द्वारा विनाश कराते हैं। त्रिमूर्ति का अर्थ ही यह है – स्थापना, विनाश, पालना। यह तो कॉमन बात है। परन्तु यह बातें तुम बच्चे भूल जाते हो। नहीं तो तुमको खुशी बहुत रहे। निरन्तर याद रहनी चाहिए। बाबा हमको अब नई दुनिया के लिए लायक बना रहे हैं।”
4. “बाप ने बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है, जिससे तुम अपने को आत्मा समझ, बाप जो है, जैसा है, उसको उसी रूप में याद करते हो। परन्तु ऐसी बुद्धि उनकी होगी जो पूरा योगयुक्त होंगे, जिनकी बाप से प्रीत बुद्धि होगी। सब तो नहीं हैं ना। एक दो के नाम–रूप में लटक पड़ते हैं। बाप कहते हैं प्रीत तो मेरे साथ लगाओ ना।”
5. “माया ऐसी है जो प्रीत रखने नहीं देती है। माया भी देखती है हमारा ग्राहक जाता है तो एकदम नाक–कान से पकड़ लेती है। फिर जब धोखा खाते हैं तब समझते हैं माया से धोखा खाया। मायाजीत, जगतजीत बन नहीं सकेंगे, ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। इसमें ही मेहनत है। श्रीमत कहती है मामेकम् याद करो तो तुम्हारी जो पतित बुद्धि है वह पावन बन जायेगी।”
6. “इसमें सब्जेक्ट एक ही है अलफ और बे। बस, दो अक्षर भी याद नहीं कर सकते हैं! बाबा कहे अलफ को याद करो फिर अपनी देह को, दूसरे की देह को याद करते रहते हैं। बाबा कहते हैं देह को देखते हुए तुम मुझे याद करो। आत्मा को अब तीसरा नेत्र मिला है मुझे देखने–समझने का, उससे काम लो। तुम बच्चे अभी त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बनते हो। परन्तु त्रिकालदर्शी भी नम्बरवार हैं। नॉलेज धारण करना कोई मुश्किल नहीं है। बहुत ही अच्छा समझते हैं परन्तु योगबल कम है, देही–अभिमानी–पना बहुत कम है। थोड़ी बात में क्रोध, गुस्सा आ जाता है, गिरते रहते हैं। उठते हैं, गिरते हैं। आज उठे कल फिर गिर पड़ते हैं। देह–अभिमान मुख्य है फिर और विकार लोभ, मोह आदि में फंस पड़ते हैं। देह में भी मोह रहता है ना।”
7. “अब हम जाते हैं सुखधाम। तो सदैव ज्ञान के अतीन्द्रिय सुख में रहना चाहिए। जितना याद में रहेंगे उतना सुख बढ़ता जायेगा। छी–छी देह से नष्टोमोहा होते जायेंगे। बाप सिर्फ कहते हैं अलफ को याद करो तो बे बादशाही तुम्हारी है।”
8. “बाप समझाते हैं मीठे बच्चे, ट्रस्टी बनकर रहो तो ममत्व मिट जाये। परन्तु ट्रस्टी बनना मासी का घर नहीं है। यह खुद ट्रस्टी बने हैं, बच्चों को भी ट्रस्टी बनाते हैं। यह कुछ भी लेते हैं क्या? कहते हैं तुम ट्रस्टी हो सम्भालो। ट्रस्टी बने तो फिर ममत्व मिट जाता है। कहते भी हैं ईश्वर का सब कुछ दिया हुआ है। फिर कुछ नुकसान पड़ता है या कोई मर जाता है तो बीमार हो पड़ते हैं। मिलता है तो खुशी होती है। जबकि कहते हो ईश्वर का दिया हुआ है तो फिर मरने पर रोने की क्या दरकार है? परन्तु माया कम नहीं है, मासी का घर थोड़ेही है।”
9. “माया के तूफान तो आयेंगे। कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नहीं करना चाहिए। वह बेकायदे हो जाता है।”
10. “श्रेष्ठ स्मृति और श्रेष्ठ कर्म द्वारा तकदीर की तस्वीर तो सभी बच्चों ने बनाई है, अभी सिर्फ लास्ट टचिंग है सम्पूर्णता की वा ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने की, इसके लिए परोपकारी बनो अर्थात् स्वार्थ भाव से सदा मुक्त रहो। हर परिस्थिति में, हर कार्य में, हर सहयोगी संगठन में जितना नि:स्वार्थ पन होगा उतना ही पर–उपकारी बन सकेंगे। सदा स्वयं को भरपूर अनुभव करेंगे। सदा प्राप्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित रहेंगे। स्व के प्रति कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे।”
11. “अपनी शक्तिशाली मन्सा द्वारा सकाश देने की सेवा करो – यह सकाश देने की सेवा निरन्तर कर सकते हो, इसमें तबियत वा समय की बात नहीं है। दिन रात इस बेहद की सेवा में लग सकते हो। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, रात को भी आंख खुली और बेहद की सकाश देने की सेवा होती रही, ऐसे फालो फादर करो। जब आप बच्चे बेहद को सकाश देंगे तो नजदीक वाले ऑटोमेटिक सकाश लेते रहेंगे। इस बेहद की सकाश देने से वायुमण्डल ऑटोमेटिक बनेगा।”