Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

4th April 2025

1.    मीठे बच्चेअभी तुम पुरुषोत्तम बनने का पुरुषार्थ करते हो, पुरुषोत्तम हैं देवतायें, क्योंकि वह हैं पावन, तुम पावन बन रहे हो

 

2.    जैसे बाप ने सुनाया था एक बच्ची किचड़े के डिब्बे में पड़ी थी, वह कोई ने उठाए जाकर किसको गोद में दी क्योंकि उनको अपना बच्चा नहीं था। तो बच्ची जिनकी गोद में गई उनको ही मम्माबाबा कहने लग पड़ेगी ना। यह फिर है बेहद की बात। तुम बच्चे भी जैसे बेहद के किचड़े के डिब्बे में पड़े थे। विषय वैतरणी नदी में पड़े थे। कितने गन्दे हुए पड़े थे। ड्रामा अनुसार बाप ने आकर उस किचड़े से निकाल तुमको एडाप्ट किया है। तमोप्रधान को किचड़ा ही कहेंगे ना। आसुरी गुण वाले मनुष्य हैं देहअभिमानी। काम, क्रोध भी बड़े विकार हैं ना। तो तुम रावण के बड़े रिफ्युज़ में पड़े थे। वास्तव में रिफ्युज़ी भी हो। अब तुमने बेहद के बाप की शरण ली है, रिफ्युज़ से निकल गुलगुल देवता बनने। इस समय सारी दुनिया रिफ्युज़ के बड़े डिब्बे में पड़ी है। बाप आकर तुम बच्चों को किचड़े से निकाल अपना बनाते हैं। परन्तु किचड़े के रहने वाले ऐसे हिरे हुए हैं, जो निकालते हैं फिर भी किचड़ा ही अच्छा लगता है। बाप आकर बेहद के किचड़े से निकालते हैं। बुलाते भी हैं कि बाबा आकर हमको गुलगुल बनाओ। कांटों के जंगल से निकाल फ्लावर बनाओ। खुदाई बगीचे में बिठाओ। अब असुरों के जंगल में पड़े हैं। बाप तुम बच्चों को गार्डन में ले चलते हैं। शुद्र से ब्राह्मण बने हैं फिर देवता बनेंगे। यह देवताओं की राजधानी है। ब्राह्मणों की राजाई है नहीं। भल पाण्डव नाम है परन्तु पाण्डवों को राजाई नहीं है। राजाई प्राप्त करने के लिए बाप के साथ बैठे हैं। बेहद की रात अब पूरी हो बेहद का दिन शुरू होता है।

 

3.    जो नई दुनिया में ऊंच पद पाने वाले हैं वह कभी अपना आसुरी स्वभाव नहीं दिखायेंगे। जिस यज्ञ से इतना ऊंच बनते हैं, उस यज्ञ की बहुत प्यार से सेवा करेंगे। ऐसे यज्ञ में तो हड्डियाँ भी दे देनी चाहिए। अपने को देखना चाहिएइस चलन से हम ऊंच पद कैसे पायेंगे! बेसमझ छोटे बच्चे तो नहीं हैं ना। समझ सकते हैंराजा कैसे, प्रजा कैसे बनते हैं?”

 

4.    खानपान की लालच रखनाइसको भी आसुरी चलन कहा जाता है। दैवीगुण धारण करने हैं तो खान पान बड़ा शुद्ध और साधारण होना चाहिए। परन्तु माया ऐसी है जो एकदम पत्थर बुद्धि बना देती है तो फिर पद भी ऐसा मिलेगा। बाप कहते हैं अपना कल्याण करने के लिए दैवीगुण धारण करो। अच्छी रीति पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे तो तुमको ही इज़ाफा मिलेगा। बाप नहीं देते हैं, तुम अपने पुरुषार्थ से पाते हो।

 

5.    लॉ कहता है पिछाड़ी में याद में ही शरीर छोड़ना है। शिवबाबा की याद में ही प्राण तन से निकलें। एक बाप के सिवाए और कोई याद आये। कहाँ भी आसक्ति हो। यह प्रैक्टिस करनी होती है, हम अशरीरी आये थे फिर अशरीरी होकर जाना है। बच्चों को बारबार समझाते रहते हैं। बहुत मीठा बनना है। दैवीगुण भी होने चाहिए। देहअभिमान का भूत होता है ना। अपने पर बहुत ध्यान रखना है। बहुत प्यार से चलना है। बाप को याद करो और चक्र को याद करो। चक्र का राज़ किसको समझाया तो भी वन्डर खायेंगे।

 

6.    पुरानी दुनिया से वैराग्य होना चाहिए, बुद्धियोग शान्तिधामसुखधाम में रहे। गीता में भी है मनमनाभव।

 

7.    देवता बनने के लिए बहुत रॉयल संस्कार धारण करने हैं। खानपान बहुत शुद्ध और साधारण रखना है। लालच नहीं करनी है। अपना कल्याण करने के लिए दैवीगुण धारण करने हैं।

 

8.    यदि किसी की बीती हुई कमजोरी की बातें कोई सुनाये तो शुभ भावना से किनारा कर लो। व्यर्थ चिंतन या कमजोरी की बातें आपस में नहीं चलनी चाहिए। बीती हुई बातों को रहमदिल बनकर समा लो। समाकर शुभ भावना से उस आत्मा के प्रति मन्सा सेवा करते रहो। भले संस्कारों के वश कोई उल्टा कहता, करता या सुनता है तो उसे परिवर्तन करो। एक से दो तक, दो से तीन तक ऐसे व्यर्थ बातों की माला हो जाए। ऐसा अटेन्शन रखना अर्थात् शुभ चिंतक बनना।

 

9.    जैसे शरीर और आत्मा कम्बाइन्ड है तो जीवन है। यदि आत्मा शरीर से अलग हो जाए तो जीवन समाप्त हो जाता। ऐसे कर्मयोगी जीवन अर्थात् कर्म योग के बिना नहीं, योग कर्म के बिना नहीं। सदा कम्बाइन्ड हो तो सफलता मिलती रहेगी।

 


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