Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 31st March 2025

 1.     “बुद्धि में है हमको बाप मिला है तो वह खुशी रहनी चाहिए। परन्तु माया भी कम नहीं है। ऐसे बाप का बनकर फिर भी इतनी खुशी में नहीं रहते हैं। घुटके खाते रहते हैं। माया घड़ीघड़ी बहुत घुटके खिलाती है। शिवबाबा की याद भुला देती है। खुद भी कहते हैं याद ठहरती नहीं है। बाप घुटका खिलाते हैं ज्ञान सागर में, माया फिर घुटका खिलाती है विषय सागर में। बड़ा खुशी से घुटका खाने लग पड़ते हैं। बाप कहते हैं शिवबाबा को याद करो। माया फिर भुला देती है। बाप को याद ही नहीं करते। बाप को जानते ही नहीं। दु: हर्ता सुख कर्ता तो परमपिता परमात्मा है ना। वह है ही दु: हरने वाला। वह फिर गंगा में जाकर डुबकी लगाते हैं। समझते हैं गंगा पतितपावनी है। सतयुग में गंगा को दु: हरनी पाप कटनी नहीं कहेंगे। साधू सन्त आदि सब जाकर नदियों के किनारे बैठते हैं। सागर के किनारे क्यों नहीं बैठते हैं? अभी तुम बच्चे सागर के किनारे बैठे हो। ढेर के ढेर बच्चे सागर पास आते हैं।”

 

2.    “बाप समझाते हैंबच्चे, तुम्हें मन्सावाचाकर्मणा बहुतबहुत ध्यान रखना है, कभी भी तुम्हें क्रोध नहीं आना चाहिए। क्रोध पहले मन्सा में आता फिर वाचा और कर्मणा में भी जाता है। यह तीन खिड़कियाँ हैं इसलिए बाप समझाते हैंमीठे बच्चे, वाचा अधिक नहीं चलाओ, शान्त में रहो, वाचा में आये तो कर्मणा में जायेगा। गुस्सा पहले मन्सा में आता है फिर वाचाकर्मणा में आता है। तीनों खिड़कियों से निकलता है। पहले मन्सा में आयेगा। दुनिया वाले तो एकदो को दु: देते रहते हैं, लड़तेझगड़ते रहते हैं। तुमको तो कोई को भी दु: नहीं देना है। ख्याल भी नहीं आना चाहिए। साइलेन्स में रहना बड़ा अच्छा है।”

 

3.    “सवेरे विचार सागर मंथन करने से मक्खन निकलता है। अच्छी राय निकलती है, तब बाबा कहते हैं सवेरे उठ बाप को याद करो और विचार सागर मंथन करो।”

 

4.    “अपने को आत्मा समझने से फिर देह का भान ही नहीं रहेगा। जैसे बाप समान बन जायेंगे। साक्षात्कार करते रहेंगे। खुशी भी बहुत रहेगी। रिजल्ट सारी पिछाड़ी की गाई हुई है। अपने नामरूप से भी न्यारा होना है तो फिर दूसरे के नामरूप को याद करने से क्या हालत होगी! नॉलेज तो बहुत सहज है।”

 

5.    “प्राचीन भारत का योग जो है, जादू उसमें है। बाबा ने समझाया है ब्रह्म ज्ञानी भी ऐसे शरीर छोड़ते हैं। हम आत्मा हैं, परमात्मा में लीन होना है। लीन कोई होते नहीं हैं। हैं ब्रह्म ज्ञानी। बाबा ने देखा है बैठेबैठे शरीर छोड़ देते हैं। वायुमण्डल बड़ा शान्त रहता है, सन्नाटा हो जाता है। सन्नाटा भी उनको भासेगा जो ज्ञान मार्ग में होंगे, शान्त में रहने वाले होंगे। बाकी कई बच्चे तो अभी बेबियाँ हैं। घड़ीघड़ी गिर पड़ते हैं, इसमें बहुतबहुत गुप्त मेहनत है। भक्ति मार्ग की मेहनत प्रत्यक्ष होती है। माला फेरो, कोठी में बैठ भक्ति करो। यहाँ तो चलतेफिरते तुम याद में रहते हो। कोई को पता पड़ सके कि यह राजाई ले रहे हैं। योग से ही सारा हिसाबकिताब चुक्तू करना है। ज्ञान से थोड़ेही चुक्तू होता है। हिसाबकिताब चुक्तू होगा याद से। कर्मभोग याद से चुक्तू होगा। यह है गुप्त। बाबा सब कुछ गुप्त सिखलाते हैं।”

 

6.    “मन्सावाचाकर्मणा कभी भी क्रोध नहीं करना है। इन तीनों खिड़कियों पर बहुत ध्यान रखना है। वाचा अधिक नहीं चलाना है। एकदो को दु: नहीं देना है।”


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

×