Key Points From Daily Murli – 30th January 2025
बाप का मुख्य डायरेक्शन क्या है? उसका उल्लंघन क्यों होता है?
उत्तर:-
बाप का डायरेक्शन है किसी से सेवा मत लो क्योंकि तुम खुद सर्वेन्ट हो। परन्तु देह–अभिमान के कारण बाप के इस डायरेक्शन का उल्लंघन करते हैं। बाबा कहते तुम यहाँ सुख लेंगे तो वहाँ का सुख कम हो जायेगा। कई बच्चे कहते हैं हम तो इन्डिपेन्डेन्ट रहेंगे परन्तु तुम सब बाप पर डिपेन्ड करते हो।”
1. “बाबा ने समझाया है बच्चों का अब कनेक्शन है ही बाप से क्योंकि पतित–पावन ज्ञान का सागर, स्वर्ग का वर्सा देने वाला तो शिवबाबा ही ठहरा। याद भी उनको करना है। ब्रह्मा है उनका भाग्यशाली रथ। रथ द्वारा ही बाप वर्सा देते हैं। ब्रह्मा वर्सा देने वाला नहीं है, वह तो लेने वाला है। तो बच्चों को अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। मिसला समझो रथ को कोई तकलीफ होती है वा कारणे–अकारणे बच्चों को मुरली नहीं मिलती है तो बच्चों का सारा अटेन्शन जाता है शिवबाबा तरफ। वह तो कभी बीमार पड़ नहीं सकते। बच्चों को इतना ज्ञान मिला है वह भी समझा सकते हैं। प्रदर्शनी में बच्चे कितना समझाते हैं। ज्ञान तो बच्चों में है ना। हर एक की बुद्धि में चित्रों का ज्ञान भरा हुआ है। बच्चों को कोई अटक नहीं रह सकती। समझो पोस्ट का आना–जाना बंद हो जाता है, स्ट्राइक हो जाती है फिर क्या करेंगे? ज्ञान तो बच्चों में है। समझाना है सतयुग था, अब कलियुग पुरानी दुनिया है। गीत में भी कहते हैं पुरानी दुनिया में कोई सार नहीं है, इनसे दिल नहीं लगानी है। नहीं तो सज़ा मिल जायेगी। बाप की याद से सजायें कटती जायेंगी। ऐसा न हो बाप की याद टूट जाये फिर सजा खानी पड़े और पुरानी दुनिया में चले जायें। ऐसे तो ढेर गये हैं, जिनको बाप याद भी नहीं है। पुरानी दुनिया से दिल लग गई, जमाना बहुत खराब है। कोई से दिल लगाई तो सज़ा बहुत मिलेगी। बच्चों को ज्ञान सुनना है।”
2. “माया छोड़ती कोई को भी नहीं है। देह–अभिमान के बाद ही कोई न कोई भूल होती है। कोई सेमी काम वश हो जाते हैं, कोई क्रोध वश। मन्सा में तूफान बहुत आते हैं – प्यार करें, ये करें.. । कोई के शरीर से दिल नहीं लगानी है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो तो शरीर का भान न रहे। नहीं तो बाप की आज्ञा का उल्लंघन हो जाता है। देह–अहंकार से नुकसान बहुत होता है इसलिए देह सहित सब–कुछ भूल जाना है।”
3. “आत्माओं को बाप समझाते हैं, शरीर से काम करते मुझे याद करो तो विकर्म भस्म हो जायेंगे। रास्ता तो बहुत सहज है। यह भी समझते हैं तुमसे भूलें होती रहती हैं। परन्तु ऐसा न हो – भूलों में फँसते ही जाओ। एक बारी भूल हुई फिर वह भूल नहीं करनी चाहिए। अपना कान पकड़ना चाहिए, फिर यह भूल नहीं होगी। पुरुषार्थ करना चाहिए। अगर घड़ी–घड़ी भूल होती है तो समझना चाहिए हमारा बहुत नुकसान होगा। भूल करते–करते तो दुर्गति को पाया है ना। कितनी बड़ी सीढ़ी उतरकर क्या बने हैं! आगे तो यह ज्ञान नहीं था। अभी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार ज्ञान में सब प्रवीण हो गये हैं। जितना हो सके अन्तुर्मखी भी रहना है, मुख से कुछ कहना नहीं है। जो ज्ञान में प्रवीण बच्चे हैं, वह कभी पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगायेंगे। उनकी बुद्धि मे रहेगा हम तो रावण राज्य का विनाश करना चाहते हैं। यह शरीर भी पुराना रावण सम्प्रदाय का है तो हम रावण सम्प्रदाय को क्यों याद करें? एक राम को याद करें। सच्चे पिताव्रता बने ना। बाप कहते हैं मुझे याद करते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। पिताव्रता अथवा भगवान व्रता बनना चाहिए। भक्त भगवान को ही याद करते हैं कि हे भगवान आकर हमें सुख–शान्ति का वर्सा दो।”
4. “बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप से योग लगाओ, देह–अभिमान में नहीं आओ। उठते–बैठते बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना है। 100 परसेन्ट पास तो कोई हुआ नहीं है। नीचे–ऊपर होते रहते हैं। भूलें होती हैं, उस पर सावधानी नहीं मिलेगी तो भूलें छोड़ेंगे कैसे? माया किसको भी छोड़ती नहीं है। कहते हैं बाबा हम माया से हार जाते हैं, पुरुषार्थ करते भी हैं फिर पता नहीं क्या होता है। हमसे इतनी कड़ी भूलें पता नहीं कैसे हो जाती हैं। समझते भी हैं ब्राह्मण कुल में इससे हमारा नाम बदनाम होता है। फिर भी माया का ऐसा वार होता है जो समझ में नहीं आता। देह–अभिमान में आने से जैसे बेसमझ बन जाते हैं। बेसमझी के काम होते हैं तो ग्लानि भी होती, वर्सा भी कम हो जाता। ऐसे बहुत भूलें करते हैं। माया ऐसा जोर से थप्पड़ लगा देती है जो खुद तो हार खाते हैं और फिर गुस्से में आकर किसको थप्पड़ वा जूता आदि मारने लग पड़ते हैं फिर पश्चाताप् भी करते हैं। बाबा कहते हैं कि अब तो बहुत मेहनत करनी पड़े। अपना भी नुकसान किया तो दूसरे का भी नुकसान किया, कितना घाटा हो गया। राहू का ग्रहण बैठ गया। अब बाप कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। राहू का ग्रहण बैठता है तो फिर वह टाइम लेता है। सीढ़ी चढ़कर फिर उतरना मुश्किल होता है। मनुष्य को शराब की आदत पड़ती है तो फिर वह छोड़ने में कितनी मुश्किलात होती है। सबसे बड़ी भूल है – काला मुंह करना। घड़ी–घड़ी शरीर याद आता है। फिर बच्चे आदि होते हैं तो उनकी ही याद बनी रहती है। वह फिर दूसरों को ज्ञान क्या देंगे। उनका कोई सुनेंगे भी नहीं। हम तो अभी सबको भूलने की कोशिश कर एक को याद करते हैं। इसमें सम्भाल बहुत करनी पड़ती है। माया बड़ी तीखी है। सारा दिन शिवबाबा को याद करने का ही ख्याल रहना चाहिए। अब नाटक पूरा होता है, हमको जाना है। यह शरीर भी खत्म हो जाना है। जितना बाप को याद करेंगे तो देह–अभिमान टूटता जायेगा और कोई की भी याद नहीं होगी। कितनी बड़ी मंजिल है, सिवाए एक बाप के और कोई के साथ दिल नहीं लगानी है। नहीं तो जरूर वह सामने आयेंगे। वैर जरूर लेंगे। बहुत ऊंची मंजिल है। कहना तो बड़ा सहज है, लाखों में कोई एक दाना निकलता है। कोई स्कॉलरशिप भी लेते हैं ना। जो अच्छी मेहनत करेंगे, जरूर स्कॉलरशिप लेंगे।”
5. “बाप कहते हैं मैं तो दिन–रात सर्विस करता हूँ, थकता शरीर है। फिर आत्मा भी क्या करे, शरीर काम नहीं देता है। बाप तो अथक है ना। वह है जागती ज्योत, सारी दुनिया को जगाते हैं। उनका पार्ट ही वन्डरफुल है, जिसको तुम बच्चों में भी थोड़े जानते हैं। कालों का काल है बाप। उनकी आज्ञा नहीं मानेंगे तो धर्मराज से डन्डा खायेंगे। बाप का मुख्य डायरेक्शन है किसी से सेवा मत लो। परन्तु देह–अभिमान में आकर बाप की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं। बाबा कहते तुम खुद सर्वेन्ट हो। यहाँ सुख लेंगे तो वहाँ सुख कम हो जायेगा। आदत पड़ जाती है तो सर्वेन्ट बिगर रह नहीं सकते हैं। कई कहते हैं हम तो इन्डिपेन्डेट रहेंगे परन्तु बाप कहते हैं डिपेन्ड रहना अच्छा है। तुम सब बाप पर डिपेन्ड करते हो। इन्डिपेन्डेन्ट बनने से गिर पड़ते हैं। तुम सब डिपेन्ड करते हो शिवबाबा पर। सारी दुनिया डिपेन्ड करती है, तब तो कहते हैं हे पतित–पावन आओ। उनसे ही सुख–शान्ति मिलती है, परन्तु समझते नहीं हैं।”
6. “जब रात पूरी होती है तब बाप आते हैं। एक सेकण्ड का भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। बाप कहते हैं मैं इस ड्रामा को जानने वाला हूँ। ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त को और कोई भी नहीं जानते। सतयुग से लेकर यह ज्ञान प्राय:लोप है। अभी तुम रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त को जानते हो, इसको ही ज्ञान कहा जाता है, बाकी सब है भक्ति। बाप को नॉलेजफुल कहते हैं। हमको वह नॉलेज मिल रही है। बच्चों को नशा भी अच्छा होना चाहिए।”
7. “ज्ञान तो बड़ा सहज है। 84 जन्मों का चक्र अब पूरा हुआ है। अब जाना है अपने घर। हम ड्रामा के मुख्य एक्टर्स हैं। सारे ड्रामा को जान गये हैं। सारे ड्रामा में हीरो–हीरोइन एक्टर हम हैं। कितना सहज है। परन्तु तकदीर में नहीं है तो तदबीर भी क्या करें! पढ़ाई में ऐसा होता है। कोई नापास हो जाते हैं, कितना बड़ा स्कूल है।”
8. “बाप कितना सहज समझाते हैं, अब नाटक पूरा होता है। बाप की याद से सतोप्रधान बन, सतोप्रधान दुनिया का मालिक बनना है। जितना हो सके याद में रहना है। परन्तु तकदीर में नहीं है तो फिर बाप के बदले और–और को याद करते हैं। दिल लगाने से फिर रोना भी बहुत पड़ता है। बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है। यह तो खत्म होनी है। यह और कोई को पता नहीं है। वह तो समझते हैं कलियुग अभी बहुत समय चलना है। घोर नींद में सोये पड़े हैं। तुम्हारी यह प्रदर्शनी प्रजा बनाने के लिए विहंग मार्ग की सर्विस का साधन है। राजा–रानी भी कोई निकल पड़ेगा।”
9. “अगर एक बार कोई भूल हुई तो उसी समय कान पकड़ना है, दुबारा वह भूल न हो। कभी भी देह अहंकार में नहीं आना है। ज्ञान में प्रवीण बन अन्तर्मुखी रहना है।”
10. “जो स्नेही को पसन्द है वही स्नेह करने वाले को पसन्द हो – यही स्नेह का स्वरूप है। चलना–खाना–पीना–रहना स्नेही के दिलपसन्द हो इसलिए जो भी संकल्प वा कर्म करो तो पहले सोचो कि यह स्नेही बाप के दिलपसन्द है। ऐसे सच्चे स्नेही बनो तो निरन्तर योगी, सहजयोगी बन जायेंगे। यदि स्नेही स्वरूप को समान स्वरूप में परिवर्तन कर दो तो अमर भव का वरदान मिल जायेगा और जुदाई को सदाकाल के लिए विदाई मिल जायेगी।”
The excerpts above are from the Murli produced by The Brahma Kumaris organisation.