Key Points From Daily Murli – 30th December 2024
“प्रश्नः–
इस समय सभी मनुष्य आत्माओं को भटकाने वाला कौन है? वह भटकाता क्यों है?
उत्तर:-
सभी को भटकाने वाला रावण है क्योंकि वह खुद भी भटकता है। उसे अपना कोई घर नहीं है। रावण को कोई बाबा नहीं कहेंगे। बाप तो परमधाम घर से आता है अपने बच्चों को ठिकाना देने। अभी तुम्हें घर का पता चल गया इसलिए तुम भटकते नहीं हो। तुम कहते हो हम बाप से पहले–पहले जुदा हुए अब फिर पहले–पहले घर जायेंगे।”
1. “मीठे–मीठे बच्चे यहाँ बैठकर समझते हैं, इनमें जो शिवबाबा आये हैं, कैसे भी करके हमको साथ घर जरूर ले जायेंगे।“
2. “हमारा बेहद का बाबा आया हुआ है – हमको वापिस घर ले जाने। रावण का कोई घर नहीं होता, घर राम का होता है। शिवबाबा कहाँ रहते हैं? तुम झट कहेंगे परमधाम में। रावण को तो बाबा नहीं कहेंगे। रावण कहाँ रहते हैं? पता नहीं। ऐसे नहीं कहेंगे कि रावण परमधाम में रहते हैं। नहीं, उनका जैसेकि ठिकाना ही नहीं। भटकता रहता है, तुमको भी भटकाता है। तुम रावण को याद करते हो क्या? नहीं। कितना तुमको भटकाते हैं। शास्त्र पढ़ो, भक्ति करो, यह करो। बाप कहते हैं इसको कहा जाता है भक्ति मार्ग, रावण राज्य।“
3. “दुनिया के मनुष्य तो बिल्कुल कुछ नहीं जानते। कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं फिर बाप आकर जगाते हैं। अभी तुम बच्चों को जगाया है और सब सोये पड़े हैं। तुम भी कुम्भकरण की आसुरी नींद में सोये हुए थे। बाप ने आकर जगाया है, बच्चों जागो। तुम गाफिल हो (अलबेले हो) सोये पड़े हो, इसको कहा जाता है अज्ञान नींद। वह नींद तो सब करते हैं। सतयुग में भी करते हैं। अभी सब हैं अज्ञान की नींद में। बाप आकर ज्ञान देकर सबको जगाते हैं। अब तुम बच्चे जागे हो, जानते हो बाबा आया हुआ है, हमको ले जायेगा। अभी तो न यह शरीर काम का रहा है, न आत्मा, दोनों पतित बन पड़े हैं, एकदम मुलम्मे का है। 9 कैरेट कहें अर्थात् बहुत थोड़ा सोना, सच्चा सोना 24 कैरेट का होता है। अब बाप तुम बच्चों को 24 कैरेट में ले जाना चाहते हैं। तुम्हारी आत्मा को सच्चा–सच्चा गोल्डन एजेड बनाते हैं।”
4. “आत्मा निकलकर जाती कहाँ है? दूसरे तन में जाकर प्रवेश करती है। अभी तुम्हारी आत्मा ऊपर चली जायेगी शान्तिधाम। यह पक्का मालूम है बाप आकर हमको घर ले जायेंगे। एक तरफ है कलियुग, दूसरे तरफ है सतयुग। अभी हम संगम पर खड़े हैं। वन्डर है। यहाँ करोड़ों मनुष्य हैं और सतयुग में सिर्फ 9 लाख! बाकी सबका क्या हुआ? विनाश हो जाता है। बाप आते ही हैं नई दुनिया की स्थापना करने।”
5. “तुम जानते हो यह लक्ष्मी–नारायण विश्व के मालिक थे। फिर ड्रामा का चक्र फिरता है। सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। यह भी जानते हो विकारी से निर्विकारी, निर्विकारी से विकारी, यह 84 जन्मों का पार्ट अनगिनत बार बजाया है। उसकी गिनती नहीं कर सकते। आदमशुमारी भल गिनती कर लेते हैं। बाकी यह जो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान, सतोप्रधान से तमोप्रधान बनते हो, इनका हिसाब निकाल नहीं सकते कि कितना बार बने हो। बाबा कहते हैं 5 हज़ार वर्ष का यह चक्र है। यह ठीक है। लाखों वर्ष की बात तो याद भी न रह सके। अभी तुम्हारे में गुणों की धारणा होती है। ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल जाता है। इन आंखों से तुम पुरानी दुनिया को देखते हो। तीसरा नेत्र जो मिलता है, उनसे नई दुनिया को देखना है। यह दुनिया तो कोई काम की नहीं है। पुरानी दुनिया है। नई और पुरानी दुनिया में फ़र्क देखो कितना है। तुम जानते हो हम ही नई दुनिया के मालिक थे फिर 84 जन्म लेते–लेते यह बने हैं। यह अच्छी रीति याद रखना चाहिए और फिर दूसरे को भी समझाना है – कैसे हम यह बनते हैं? ब्रह्मा सो विष्णु, फिर विष्णु सो ब्रह्मा बनते हैं। ब्रह्मा और विष्णु का फ़र्क देखते हो ना। विष्णु कैसा सजा–सजाया बैठा है और यह ब्रह्मा कैसे साधारण बैठा है। तुम जानते हो यह ब्रह्मा, वह विष्णु बनने वाला है। यह किसको समझाना भी बहुत सहज है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का आपस में क्या सम्बन्ध है? तुम जानते हो यह विष्णु के दो रूप लक्ष्मी–नारायण हैं। यही विष्णु देवता सो फिर यह मनुष्य ब्रह्मा बनते हैं। वह विष्णु सतयुग का है, ब्रह्मा यहाँ का है। बाप ने समझाया है ब्रह्मा से विष्णु बनना सेकण्ड में, फिर विष्णु से ब्रह्मा बनने में 5 हज़ार वर्ष लगते हैं। ततत्वम्। केवल एक ब्रह्मा ही तो नहीं बनते हैं ना! यह बातें सिवाए बाप के और कोई समझा न सके। यहाँ कोई मनुष्य गुरू की बात नहीं है। इनका भी गुरू शिवबाबा, तुम ब्राह्मणों का भी गुरू शिवबाबा है। उनको सद्गुरू कहा जाता है। तो बच्चों को शिवबाबा को ही याद करना है। कोई को भी यह समझाना तो बहुत सहज है – शिवबाबा को याद करो। शिवबाबा स्वर्ग नई दुनिया रचते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान् शिव है। वह हम आत्माओं का बाबा है। तो भगवान् बच्चों को कहते हैं मुझ बाप को याद करो। याद करना कितना सहज है।”
6. “घड़ी–घड़ी कहते हैं मनमनाभव। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, यह बात भूलो मत। देह–अभिमान में आने से ही भूल जाते हैं। पहले–पहले तो अपने को आत्मा समझना है – हम आत्मा सालिग्राम हैं और एक बाप को ही याद करना है। बाप ने समझाया है मैं पतित–पावन हूँ, मुझे याद करने से तुम्हारी बैटरी जो खाली हो गई है वह भरपूर हो जायेगी, तुम सतोप्रधान बन जायेंगे।”
7. “ज्ञान से ही सद्गति होती है। इस समय है ही पाप आत्माओं की झूठी दुनिया। लेन–देन भी पाप आत्माओं से ही होती है। मन्सा–वाचा–कर्मणा पाप आत्मा ही बनते हैं। अभी तुम बच्चों को समझ मिली है। तुम कहते हो हम यह लक्ष्मी–नारायण बनने के लिए पुरूषार्थ करते हैं।”
8. “सर्व सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ। यह एकाग्रता की शक्ति सहज निर्विघ्न बना देती है, मेहनत करने की आवश्यकता नहीं रहती। एक बाप दूसरा न कोई – इसका सहज अनुभव होता है, सहज एकरस स्थिति बन जाती है। सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति, भाई–भाई की दृष्टि रहती है। लेकिन एकाग्र होने के लिए इतना समर्थ बनो जो मन–बुद्धि सदा आपके आर्डर अनुसार चले। स्वप्न में भी सेकण्ड मात्र भी हलचल न हो।”