Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

2nd April 2025

प्रश्नः
कहा जाता है, आत्मा अपना ही शत्रु, अपना ही मित्र है, सच्ची मित्रता क्या है?

उत्तर:-
एक बाप की श्रीमत पर सदा चलते रहनायही सच्ची मित्रता है। सच्ची मित्रता है एक बाप को याद कर पावन बनना और बाप से पूरा वर्सा लेना। यह मित्रता करने की युक्ति बाप ही बतलाते हैं। संगमयुग पर ही आत्मा अपना मित्र बनती है।

 

गीत:-
तूने रात गँवाई…….

 

1.    यह बाप बैठ तुम बच्चों को सृष्टि के आदिमध्यअन्त का नॉलेज सुनाते हैं। इस सुनाने में भी कितना समय लगता है। सुनाते ही रहते हैं। ऐसे नहीं कह सकते पहले क्यों नहीं यह सब सुनाया। स्कूल में पढ़ाई नम्बरवार होती है। छोटे बच्चों को आरगन्स छोटे होते हैं तो उनको थोड़ा सिखलाते हैं। फिर जैसेजैसे आरगन्स बड़े होते जायेंगे, बुद्धि का ताला खुलता जायेगा। पढ़ाई धारण करते जायेंगे। छोटे बच्चों की बुद्धि में कुछ धारणा हो सके। बड़ा होता है तो फिर बैरिस्टर जज आदि बनते हैं, इसमें भी ऐसे है। कोई की बुद्धि में धारणा अच्छी होती है। बाप कहते हैं मैं आया हूँ पतित से पावन बनाने। तो अब पतित दुनिया से वैराग्य होना चाहिए। आत्मा पावन बने तो फिर पतित दुनिया में रह सके। पतित दुनिया में आत्मा भी पतित है, मनुष्य भी पतित हैं। पावन दुनिया में मनुष्य भी पावन, पतित दुनिया में मनुष्य भी पतित रहते हैं। यह है ही रावण राज्य। यथा राजारानी तथा प्रजा। यह सारा ज्ञान है बुद्धि से समझने का।

 

2.    अभी रचता बाप ही रचना के आदिमध्यअन्त का ज्ञान देते हैं। मनुष्य तो रचता हो सके। मनुष्य कह सकें कि मैं रचता हूँ। बाप खुद कहते हैंमैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ। मैं ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर, सर्व का सद्गति दाता हूँ।

 

3.    तुम शिवबाबा के बने हो तो शिवबाबा पर भी बलि चढ़ते हैं। शास्त्रों में हिंसक बातें लिख दी हैं। तुम तो शिवबाबा के बच्चे हो। तनमनधन बलि चढ़ाते हो, और कोई बात नहीं इसलिए शिव और देवियों पर बलि चढ़ाते हैं। अब गवर्मेन्ट ने शिव काशी पर बलि चढ़ाना बन्द कर दिया है। अभी वह तलवार ही नहीं है। भक्ति मार्ग में जो आपघात करते हैं यह भी जैसे अपने साथ शत्रुता करने का उपाय है। मित्रता करने का एक ही उपाय है जो बाप बतलाते हैंपावन बनकर बाप से पूरा वर्सा लो। एक बाप की श्रीमत पर चलते रहो, यही मित्रता है। कहते हैं जीवात्मा अपना ही शत्रु है। फिर बाप आकर ज्ञान देते हैं तो जीवात्मा अपना मित्र बनती है। आत्मा पवित्र बन बाप से वर्सा लेती है, संगमयुग पर हर एक आत्मा को बाप आकर मित्र बनाते हैं। आत्मा अपना मित्र बनती है, श्रीमत मिलती है तो समझती है हम बाप की मत पर ही चलेंगे। अपनी मत पर आधाकल्प चले। अब श्रीमत पर सद्गति को पाना है, इसमें अपनी मत चल सके। बाप तो सिर्फ मत देते हैं। तुम देवता बनने आये हो ना। यहाँ अच्छे कर्म करेंगे तो दूसरे जन्म में भी अच्छा फल मिलेगा, अमरलोक में। यह तो है ही मृत्युलोक।

 

4.    अभी तुम बच्चों की बुद्धि में बाप के साथ योग रखने से रोशनी गई है। बाप कहते हैं जितना याद में रहेंगे उतना लाइट बढ़ती जायेगी। याद से आत्मा पवित्र बनती है। लाइट बढ़ती जाती है। याद ही नहीं करेंगे तो लाइट मिलेगी नहीं। याद से लाइट वृद्धि को पायेगी। याद नहीं किया और कोई विकर्म कर लिया तो लाइट कम हो जायेगी। तुम पुरूषार्थ करते हो सतोप्रधान बनने का। यह बड़ी समझने की बातें हैं।

 

5.    जितना देरी से जायेंगे तो मकान पुराना तो कहेंगे ना। नया मकान बनता है फिर दिनप्रतिदिन आयु कम होती जायेगी। वहाँ तो सोने के महल बनते हैं, वह तो पुराने हो सके। सोना तो सदैव चमकता ही होगा। फिर भी साफ जरूर करना पड़े। जेवर भी भल पक्के सोने के बनाओ तो भी आखरीन चमक तो कम होती है, फिर उनको पॉलिश चाहिए। तुम बच्चों को सदैव यह खुशी रहनी चाहिए कि हम नई दुनिया में जाते हैं। इस नर्क में यह अन्तिम जन्म है। इन आंखों से जो देखते हैं, जानते हैं यह पुरानी दुनिया, पुराना शरीर है। अभी हमको सतयुग नई दुनिया में नया शरीर लेना है। 5 तत्व भी नये होते हैं। ऐसे विचार सागर मंथन चलना चाहिए। यह पढ़ाई है ना। अन्त तक तुम्हारी यह पढ़ाई चलेगी। पढ़ाई बन्द हुई तो विनाश हो जायेगा। तो अपने को स्टूडेण्ट समझ इस खुशी में रहना चाहिए नाभगवान हमको पढ़ाते हैं। यह खुशी कोई कम थोड़ेही है। परन्तु साथसाथ माया भी उल्टा काम करा लेती है। 5-6 वर्ष पवित्र रहते फिर माया गिरा देती। एक बार गिरे तो फिर वह अवस्था हो सके। हम गिरे हैं तो वह घृणा आती है। अभी तुम बच्चों को सारी स्मृति रखनी है। इस जन्म में जो पाप किये हैं, हर एक आत्मा को अपने जीवन का तो पता है ना। कोई मंदबुद्धि, कोई विशाल बुद्धि होते हैं। छोटेपन की हिस्ट्री याद तो रहती है ना।

 

6.    बाप कहते हैं अपनी जीवन कहानी लिखो। लाइफ की बात है ना। मालूम पड़ता है लाइफ में कितने चमत्कार थे। गांधी नेहरू आदि के कितने बड़ेबड़े वॉल्यूम बनते हैं। लाइफ तो वास्तव में तुम्हारी बहुत वैल्युबुल है। वन्डरफुल लाइफ यह है। यह है मोस्ट वैल्युबुल, अमूल्य जीवन। इनका मूल्य कथन नहीं किया जा सकता। इस समय तुम ही सर्विस करते हो। यह लक्ष्मीनारायण कुछ भी सर्विस नहीं करते। तुम्हारी लाइफ बहुत वैल्युबुल है, जबकि औरों का भी ऐसा जीवन बनाने की सर्विस करते हो। जो अच्छी सर्विस करते हैं वह गायन लायक होते हैं। वैष्णव देवी का भी मन्दिर है ना। अभी तुम सच्चेसच्चे वैष्णव बनते हो। वैष्णव माना जो पवित्र हैं। अभी तुम्हारा खानपान भी वैष्णव है। पहले नम्बर के विकार में तो तुम वैष्णव (पवित्र) हो ही।

 

7.    तुमको फिर बाप कहते हैं दैवीगुण भी धारण करने हैं। किसको भी दु: दो। किसको उल्टासुल्टा रास्ता बताए सत्यानाश करो। एक ही मुख्य बात समझानी चाहिए कि बाप और वर्से को याद करो।

 

8.    बाप के साथ ऐसा योग रखना है जो आत्मा की लाइट बढ़ती जाए। कोई भी विकर्म कर लाइट कम नहीं करना है। अपने साथ मित्रता करनी है।

 

9.    कोई भी परिस्थिति, प्रकृति द्वारा आती है इसलिए परिस्थिति रचना है और स्वस्थिति वाला रचयिता है। मास्टर रचता वा मास्टर सर्वशक्तिवान कभी हार खा नहीं सकते। असम्भव है। अगर कोई अपनी सीट छोड़ते हैं तो हार होती है। सीट छोड़ना अर्थात् शक्तिहीन बनना। सीट के आधार पर शक्तियाँ स्वत: आती हैं। जो सीट से नीचे जाते उन्हें माया की धूल लग जाती है। बापदादा के लाडले, मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मण कभी देह अभिमान की मिट्टी में खेल नहीं सकते।

 

10.                  दृढ़ता कड़े संस्कारों को भी मोम की तरह पिघला (खत्म कर) देती है।

 

11.                  जैसे ज्ञान स्वरूप हो ऐसे स्नेह स्वरूप बनो, ज्ञान और स्नेह दोनों कम्बाइन्ड हो क्योंकि ज्ञान बीज है, पानी स्नेह है। अगर बीज को पानी नहीं मिलेगा तो फल नहीं देगा। ज्ञान के साथ दिल का स्नेह है तो प्राप्ति का फल मिलेगा।

 

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