Key Points From Daily Murli – 29th January 2025
1. “भगवान ने ही समझाया है कि कोई मनुष्य को भगवान नहीं कहा जा सकता। देवताओं को भी भगवान नहीं कहा जाता। भगवान तो निराकार है, उनका कोई भी साकारी वा आकारी रूप नहीं है। सूक्ष्मवतनवासियों का भी सूक्ष्म आकार है इसलिए उसको कहा जाता है सूक्ष्मवतन। यहाँ साकारी मनुष्य तन है इसलिए इसको स्थूल वतन कहा जाता है। सूक्ष्मवतन में यह स्थूल 5 तत्वों का शरीर होता नहीं। यह 5 तत्वों का मनुष्य शरीर बना हुआ है, इनको कहते हैं मिट्टी का पुतला। सूक्ष्मवतनवासियों को मिट्टी का पुतला नहीं कहेंगे। डीटी (देवता) धर्म वाले भी हैं मनुष्य, परन्तु उनको कहेंगे दैवीगुण वाले मनुष्य। यह दैवीगुण प्राप्त किये हैं शिवबाबा से। दैवीगुण वाले मनुष्य और आसुरी गुण वाले मनुष्यों में कितना फर्क है। मनुष्य ही शिवालय वा वेश्यालय में रहने लायक बनते हैं। सतयुग को कहा जाता है शिवालय। सतयुग यहाँ ही होता है। कोई मूलवतन वा सूक्ष्मवतन में नहीं होता है। तुम बच्चे जानते हो वह शिवबाबा का स्थापन किया हुआ शिवालय है। कब स्थापन किया? संगम पर।”
2. “अभी यह दुनिया है पतित तमोप्रधान, इसको सतोप्रधान नई दुनिया नहीं कहेंगे। नई दुनिया को सतोप्रधान कहा जाता है। वही फिर जब पुरानी बनती है तो उसको तमोप्रधान कहा जाता है। फिर सतोप्रधान कैसे बनती है? तुम बच्चों के योगबल से। योगबल से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होते हैं और तुम पवित्र बन जाते हो। पवित्र के लिए तो फिर जरूर पवित्र दुनिया चाहिए। नई दुनिया को पवित्र, पुरानी दुनिया को अपवित्र कहा जाता है। पवित्र दुनिया बाप स्थापन करते हैं, पतित दुनिया रावण स्थापन करते हैं। यह बातें कोई मनुष्य नहीं जानते। यह 5 विकार न हों तो मनुष्य दु:खी होकर बाप को याद क्यों करें! बाप कहते हैं मैं हूँ ही दु:ख हर्ता सुखकर्ता। रावण का 5 विकारों का पुतला बना दिया है – 10 शीश का। उस रावण को दुश्मन समझकर जलाते हैं।”
3. “कोई घर में मन्दिर आदि रखते हैं तो भी ब्राह्मण को ही बुलाते हैं। अब विकारी तो वह ब्राह्मण भी हैं, सिर्फ नाम ब्राह्मण है। यह तो दुनिया ही विकारी है तो पूजा भी विकारियों से होती है। निर्विकारी कहाँ से आये! निर्विकारी होते ही हैं सतयुग में। ऐसे नहीं कि जो विकार में नहीं जाते उनको निर्विकारी कहेंगे। शरीर तो फिर भी विकार से पैदा हुआ है ना। बाप ने एक ही बात बताई है कि यह सारा रावण राज्य है। रामराज्य में हैं सम्पूर्ण निर्विकारी, रावण राज्य में हैं विकारी। सतयुग में पवित्रता थी तो पीस प्रासपर्टी थी। तुम दिखला सकते हो सतयुग में इन लक्ष्मी–नारायण का राज्य था ना। वहाँ 5 विकार होते नहीं। वह है ही पवित्र राज्य, जो भगवान स्थापन करते हैं। भगवान पतित राज्य थोड़ेही स्थापन करते हैं। सतयुग में अगर पतित होते तो पुकारते ना। वहाँ तो कोई पुकारते ही नहीं। सुख में कोई याद नहीं करते।”
4. “वह है आत्माओं का घर शान्तिधाम। यह है दु:खधाम। अब बाप कहते हैं इस दु:खधाम को देखते हुए भी भूल जाओ। बस, अभी तो हमको शान्तिधाम में जाना है। यह आत्मा कहती है, आत्मा रियलाइज़ करती है। आत्मा को स्मृति आई है कि मैं आत्मा हूँ। बाप कहते हैं मैं जो हूँ जैसा हूँ……. और तो कोई समझ न सके। तुमको ही समझाया है – मैं बिन्दी हूँ। तुम्हें यह घड़ी–घड़ी बुद्धि में रहना चाहिए कि हमने 84 का चक्र कैसे लगाया है। इसमें बाप भी याद आयेगा, घर भी याद आयेगा, चक्र भी याद आयेगा।”
5. “ज्ञान के साथ चलन भी अच्छी चाहिए। माया भी कोई कम नहीं। जो पहले आयेंगे वह जरूर इतनी ताकत वाले होंगे। पार्टधारी भिन्न–भिन्न होते हैं ना।”
6. “बाबा प्यार का सागर है तो तुम बच्चों को भी बाप समान प्यार का सागर बनना है। कभी कड़ुवा नहीं बोलो। किसको दु:ख देंगे तो दु:खी होकर मरेंगे। यह आदतें सब मिटानी चाहिए। गन्दे ते गन्दी आदत है विषय सागर में गोते खाना।”
7. “रहमदिल वह जो बेरहमी से छुड़ाये। बेरहमी है रावण।”
8. “पहले–पहले है ज्ञान। ज्ञान, भक्ति फिर वैराग्य। ऐसे नहीं कि भक्ति, ज्ञान फिर वैराग्य कहेंगे। ज्ञान का वैराग्य थोड़ेही कह सकते। भक्ति का वैराग्य करना होता है इसलिए ज्ञान, भक्ति, वैराग्य यह राइट अक्षर हैं। बाप तुमको बेहद का अर्थात् पुरानी दुनिया का वैराग्य कराते हैं। संन्यासी तो सिर्फ घरबार से वैराग्य कराते हैं। यह भी ड्रामा में नूंध है। मनुष्यों की बुद्धि में बैठता ही नहीं।”
9. “बहुतों को माया के तूफान बहुत आते हैं। बाप समझाते हैं – यह तो होगा। ड्रामा में नूंध है। स्वर्ग की स्थापना तो होनी ही है। सदैव नई दुनिया तो रह नहीं सकती। चक्र फिरेगा तो नीचे जरूर उतरेंगे। हर चीज़ नई से फिर पुरानी जरूर होती है। इस समय माया ने सबको अप्रैल फूल बनाया है, बाप आकर गुल–गुल बनाते हैं।”
10. “बाबा से मीठी–मीठी बातें करते इसी फीलिंग में रहना है कि ओहो बाबा, आपने हमें क्या से क्या बना दिया! आपने हमें कितना सुख दिया है! बाबा, आप क्षीर सागर में ले चलते हो……. सारा दिन बाबा–बाबा याद रहे।”
11. “जोश में आना भी मन का रोना है – अब रोने का फाइल खत्म करो।”