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Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 28th November 2024

 1.     “ओम् शान्ति। ओम् शान्ति अक्सर करके क्यों कहा जाता है? यह है परिचय देनाआत्मा का परिचय आत्मा ही देती है। बातचीत आत्मा ही करती है शरीर द्वारा। आत्मा बिगर तो शरीर कुछ कर नहीं सकता। तो यह आत्मा अपना परिचय देती है। हम आत्मा हैं परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं।”

 

2.    “बाप समझाते हैं पहलेपहले है ज्ञान फिर है भक्ति। ऐसे नहीं कि पहले भक्ति, पीछे ज्ञान है। पहले है ज्ञान दिन, भक्ति है रात। फिर पीछे दिन कब आये? जब भक्ति का वैराग्य हो। तुम्हारी बुद्धि में यह रहना चाहिए।”

 

3.    “तुम समझते हो हम आत्मायें स्प्रीचुअल फादर के स्प्रीचुअल बच्चे हैं। रूहानी बच्चों को जरूर रूहानी बाप चाहिए। रूहानी बाप और रूहानी बच्चे। रूहानी बच्चों का एक ही रूहानी बाप है। वह आकर नॉलेज देते हैं।”

 

4.    “बाप कैसे आते हैंवह भी समझाया है। बाप कहते हैं मुझे भी प्रकृति धारण करनी पड़ती है।”

 

5.    “अभी तुमको बाप से सुनना ही सुनना है। सिवाए बाप के और कोई से सुनना नहीं है। बच्चे सुनकर फिर और भाईयों को सुनाते हैं। कुछ कुछ सुनाते जरूर हैं। अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो क्योंकि वही पतितपावन है। बुद्धि वहाँ चली जाती है। बच्चों को समझाने से समझ जाते हैं क्योंकि पहले बेसमझ थे।”

 

6.    “सब आत्मायें शरीर धारण कर पार्ट बजाती हैं। तो शिवबाबा भी जरूर शरीर द्वारा पार्ट बजायेंगे ना। शिवबाबा पार्ट बजावे फिर तो कोई काम का रहा। वैल्यु ही नहीं होती। उनकी वैल्यु ही तब होती है जबकि सारी दुनिया को सद्गति में पहुँचाते हैं तब उनकी महिमा भक्तिमार्ग में गाते हैं। सद्गति हो जाती है फिर पीछे तो बाप को याद करने की दरकार ही नहीं रहती।”

 

7.     “समझते हो भक्ति की रात अलग है, ज्ञान दिन अलग है। दिन का भी टाइम होता है। भक्ति का भी टाइम होता है। यह बेहद की बात है। तुम बच्चों को नॉलेज मिली है बेहद की। आधाकल्प है दिन, आधाकल्प है रात। बाप कहते हैं मैं भी आता हूँ रात को दिन बनाने।”

 

8.    “तुम जानते हो आधाकल्प है रावण का राज्य, उसमें अनेक प्रकार के दु: हैं फिर बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं तो उसमें सुख ही सुख मिलता है। कहा भी जाता है यह सुख और दु: का खेल है। सुख माना राम, दु: माना रावण। रावण पर जीत पाते हो तो फिर रामराज्य आता है, फिर आधाकल्प बाद रावण, रामराज्य पर जीत पहन राज्य करते हैं। तुम अभी माया पर जीत पाते हो। अक्षर बाई अक्षर तुम अर्थ सहित कहते हो। यह तुम्हारी है ईश्वरीय भाषा।”

 

9.    “भारतवासी वास्तव में हैं ही देवीदेवता घराने के। नहीं तो किस घराने के गिने जाएं। परन्तु भारतवासियों को अपने घराने का मालूम होने कारण हिन्दू कह देते हैं।”

 

10. “सब आत्माओं का बाप एक ही है, सभी उनको याद करते हैं। अब बाप कहते हैं इन आंखों से तुम जो कुछ देखते हो उनको भूल जाना है। यह है बेहद का वैराग्य, उनका है हद का। सिर्फ घरबार से वैराग्य जाता है। तुमको तो इस सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य है। भक्ति के बाद है वैराग्य पुरानी दुनिया का। फिर हम नई दुनिया में जायेंगे वाया शान्तिधाम। बाप भी कहते हैं यह पुरानी दुनिया भस्म होनी है। इस पुरानी दुनिया से अब दिल नहीं लगानी है। रहना तो यहाँ ही है, जब तक लायक बन जायें। हिसाबकिताब सब चुक्तू करना है।”

 

11.  “बाबा ने कहा है बड़ेबड़े अच्छे महारथियों को भी माया जोर से फथकायेगी। जैसे तुम माया को फथकाकर जीत पहनते हो, माया भी ऐसे करेगी। बाप ने कितने अच्छेअच्छे फर्स्टक्लास, रमणीक नाम भी रखे। परन्तु अहो माया, आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, फिर भागन्ती….. गिरन्ती हो गये। माया कितनी जबरदस्त है इसलिए बच्चों को बहुत खबरदार रहना है। युद्ध का मैदान है ना। माया के साथ तुम्हारी कितनी बड़ी युद्ध है।”

 

12.         “यहाँ ही सब हिसाबकिताब चुक्तू कर आधाकल्प के लिए सुख जमा करना है। इस पुरानी दुनिया से अब दिल नहीं लगानी है। इन आंखों से जो कुछ दिखाई देता है, उसे भूल जाना है।”


13. “जब आपकी सूरत से बाप की सीरत दिखाई देगी तब समाप्ति होगी।”

 

14. नुभव चेहरे और चलन से कराओ।”


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