Key Points From Daily Murli – 27th December 2024
2. “जानते हो बाप ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल है तो कहाँ से नॉलेज सुनाते हैं? ब्रह्मा के तन से सुनाते हैं। कई कहते हैं हम ब्रह्मा को नहीं मानते, परन्तु शिवबाबा कहते हैं मैं इस मुख द्वारा ही तुम्हें कहता हूँ, मुझे याद करो। यह समझ की बात है ना। ब्रह्मा तो खुद कहते हैं – शिवबाबा को याद करो। यह कहाँ कहते मुझे याद करो? इनके द्वारा शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करो। यह मंत्र मैं इनके मुख से देता हूँ। ब्रह्मा नहीं होता तो मैं मंत्र कैसे देता? ब्रह्मा नहीं होता तो तुम शिवबाबा से कैसे मिलते? कैसे मेरे पास बैठते? अच्छे–अच्छे महारथियों को भी ऐसे–ऐसे ख्यालात आ जाते हैं जो माया मेरे से मुख मोड़ देती है। कहते हैं हम ब्रह्मा को नहीं मानते तो उनकी क्या गति होगी? माया कितनी बड़ी जबरदस्त है जो एकदम मुँह ही फिरा देती है। अभी तुम्हारा मुँह शिवबाबा ने सामने किया है। तुम सम्मुख बैठे हो। फिर जो ऐसे समझते हैं ब्रह्मा तो कुछ नहीं, तो उनकी क्या गति होगी? दुर्गति को पा लेते हैं। मनुष्य तो पुकारते हैं – ओ गॉड फादर! फिर गॉड फादर सुनता है क्या? कहते हैं – ओ लिबरेटर आओ। क्या वहाँ से ही लिबरेट करेंगे? कल्प–कल्प के पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही बाप आते हैं। जिसमें आते हैं उनको ही उड़ा दें तो क्या कहेंगे? माया में इतना बल है जो नम्बरवन वर्थ नाट ए पेनी बना देती है। ऐसे–ऐसे भी कोई–कोई सेन्टर्स पर हैं, तब तो बाप कहते हैं खबरदार रहना। भल बाबा के सुनाये हुए ज्ञान को दूसरों को सुनाते भी रहते हैं परन्तु जैसे पण्डित मिसल। जैसे बाबा पण्डित की कहानी सुनाते हैं… इस समय तुम बाप की याद से विषय सागर को पार कर क्षीरसागर में जाते हो ना! भक्ति मार्ग में ढेर कथायें बना दी हैं। पण्डित औरों को कहता था राम नाम कहने से पार हो जायेंगे, लेकिन खुद बिल्कुल चट खाते में था। खुद विकारों में जाते रहना और दूसरों को कहना निर्विकारी बनो। उनका क्या असर होगा? यहाँ भी कहाँ–कहाँ सुनाने वालों से सुनने वाले तीखे चले जाते हैं। जो बहुतों की सेवा करते हैं वह जरूर सबको प्यारे लगते हैं। पण्डित झूठा निकल पड़ा तो उसे कौन प्यार करेगा? फिर प्यार उन पर चला जायेगा जो प्रैक्टिकल में याद करते हैं। अच्छे–अच्छे महारथियों को भी माया हप कर जाती है।”
3. “बाबा समझाते हैं – अभी तो कर्मातीत अवस्था नहीं बनी है, जब तक लड़ाई की तैयारी न हो। एक तरफ लड़ाई की तैयारी होगी, दूसरे तरफ कर्मातीत अवस्था होगी। पूरा कनेक्शन है फिर लड़ाई पूरी हो जाती है, ट्रांसफर हो जायेंगे। पहले रूद्र माला बनती है।”
4. “अभी तो कर्मातीत अवस्था हो न सके। कड़ी–कड़ी भूलें होना भी सम्भव है, महारथियों से भी होती हैं। बात–चीत, चाल–चलन आदि सभी प्रसिद्ध हो जाती है। अभी तो दैवी चलन बनानी है। देवता, सर्वगुण सम्पन्न हैं ना। अभी तुमको ऐसा बनना है। परन्तु माया किसको भी नहीं छोड़ती। छुईमुई बना देती है। 5 सीढ़ी हैं ना। देह–अभिमान आने से ऊपर से एकदम गिरते हैं। गिरा और मरा। आजकल अपने को मारने लिए कैसे–कैसे उपाय करते हैं! 20 मंजिल से गिरकर एकदम खत्म हो जाते हैं। ऐसे भी न हो कि हॉस्पिटल में पड़े रहें, दु:ख भोगें। फिर कोई अपने को आग लगा देते हैं, किसने बचा लिया तो कितना दु:ख भोगते हैं। जल जायें तो आत्मा भाग जाए इसलिए जीवघात करते हैं। समझते हैं जीवघात करने से दु:ख से छूट जायेंगे। जोश आता है तो बस।”
5. “शान्ति–शान्ति करते रहते हैं। शान्ति तो शान्तिधाम में होगी। परन्तु इस दुनिया में शान्ति कैसे हो? जब तक कि इतने ढेर मनुष्य हैं। सतयुग में तो सुख–शान्ति थी। अभी तो कलियुग में अनेक धर्म हैं। वह जब खत्म हों, एक धर्म की स्थापना हो, तब तो सुख–शान्ति हो।”
6. “बाप समझाते हैं तुम बच्चे सुख–शान्ति के टॉवर हो। तुम बहुत रॉयल हो। तुमसे रॉयल इस समय कोई होता नहीं। बेहद के बाप के बच्चे हो तो कितना मीठा होकर चलना चाहिए। किसको दु:ख नहीं देना है। नहीं तो वह अन्त में याद आयेगा। फिर सजायें खानी होंगी। बाप कहते हैं अभी तो घर चलना है। सूक्ष्मवतन में बच्चों को ब्रह्मा का साक्षात्कार होता है इसलिए तुम भी ऐसे सूक्ष्मवतनवासी बनो। मूवी की प्रैक्टिस करनी है। बहुत कम बोलना है, मीठा बोलना है। ऐसा पुरुषार्थ करते–करते तुम शान्ति के टॉवर बन जायेंगे। तुमको सिखलाने वाला बाप है। फिर तुम्हें औरों को सिखलाना है। भक्ति मार्ग टॉकी मार्ग है। अभी तुमको बनना है साइलेन्स।”
7. “स्वयं की दैवी चलन बनानी है। छुईमुई नहीं बनना है। लड़ाई के पहले कर्मातीत अवस्था तक पहुँचना है। निर्विकारी बन निर्विकारी बनाने की सेवा करनी है।”
8. “जब स्नेह के सागर और स्नेह सम्पन्न नदियों का मेल होता है तो नदी भी बाप समान मास्टर स्नेह का सागर बन जाती है। इसलिए विश्व की आत्मायें स्नेह के अनुभव से स्वत: समीप आती हैं। पवित्र प्यार वा ईश्वरीय परिवार की पालना, चुम्बक के समान स्वत: ही हर एक को समीप ले आता है। यह ईश्वरीय स्नेह सबको सहयोगी बनाए आगे बढ़ने के सूत्र में बांध देता है।”