Key Points From Daily Murli – 26th February 2025
ड्रामा का कौन–सा राज़ अति सूक्ष्म समझने का है?
उत्तर:-
यह ड्रामा जूँ मिसल चलता रहता है, टिक–टिक होती रहती है। जिसकी जो एक्ट चली वह फिर हूबहू 5 हज़ार वर्ष के बाद रिपीट होगी, यह राज़ बहुत सूक्ष्म समझने का है। जो बच्चे इस राज़ को यथार्थ नहीं समझते तो कह देते ड्रामा में होगा तो पुरूषार्थ कर लेंगे, वह ऊंच पद नहीं पा सकते।”
1. “आत्मा अन्दर समझती है कि अब रावण राज्य है।”
2. “नये मकान में 6 मास बैठो तो कुछ न कुछ दाग़ आदि हो जाते हैं ना। थोड़ा फर्क पड़ जाता है। तो वहाँ नई दुनिया में भी कोई तो पहले आयेंगे, कोई थोड़ा देरी से आयेंगे। पहले जो आयेंगे उनको कहेंगे सतोप्रधान फिर आहिस्ते–आहिस्ते कला कम होती जाती है। यह ड्रामा का चक्र जूँ मिसल चलता रहता है। टिक–टिक होती रहती है। तुम जानते हो सारी दुनिया में जिसकी जो भी एक्ट चलती है, यह चक्र फिरता रहता है। यह बड़ी सूक्ष्म बातें हैं समझने की। बाप अनुभव से सुनाते हैं।”
3. “हम आत्मा हैं। देही–अभिमानी बनें तब खुशी का पारा चढ़े। वह है हद का नाटक, यह है बेहद का। बाबा हम आत्माओं को पढ़ा रहे हैं, यह नहीं बतायेंगे कि फलाने समय यह होगा। बाबा से कोई भी बात पूछते हैं तो कहते हैं ड्रामा में जो कुछ बताने का है वह बता देते हैं, ड्रामा अनुसार जो उत्तर मिलना था सो मिल गया, बस उस पर चल पड़ना है। ड्रामा बिगर बाप कुछ भी नहीं कर सकते हैं। कई बच्चे कहते हैं ड्रामा में होगा तो पुरूषार्थ कर लेंगे, वह कभी ऊंच पद पा नहीं सकते। बाप कहते हैं पुरूषार्थ तुमको करना है। ड्रामा तुमको पुरूषार्थ कराता है कल्प पहले मुआफिक। कोई ड्रामा पर ठहर जाते हैं कि जो ड्रामा में होगा, तो समझा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है। अब तुमको स्मृति आई है – हम आत्मा हैं, हम यह पार्ट बजाने आये हैं। आत्मा भी अविनाशी है, पार्ट भी अविनाशी है। 84 जन्मों का पार्ट आत्मा में नूँधा हुआ है फिर वही पार्ट बजायेंगे। इसको कहा जाता है कुदरत। कुदरत का और क्या विस्तार करेंगे। अब मुख्य बात है – पावन जरूर बनना है। यही फिकरात है। कर्म करते हुए बाप की याद में रहना है।”
4. “शास्त्रों में यह भूल कर दी है। यह भी भूल जब हो तब तो हम आकर अभुल बनायें ना। यह भूलें भी ड्रामा में हैं, फिर भी होंगी। अब तुमको समझाया है, शिव भगवानुवाच। भगवान् कहते भी शिव को हैं। भगवान् तो एक ही होता है। सब भक्तों को फल देने वाला एक भगवान्।”
5. “तुम आत्मा निराकार थी फिर सो देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनी। अभी सो ब्राह्मण वर्ण में आई हो। आत्मा पहले सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो में आती है।”
6. “बाप ने दिव्य दृष्टि दे यह घड़ी बनवाई है। जैसे वह घड़ी तुम घड़ी–घड़ी देखते हो, अब यह बेहद की घड़ी याद पड़ती है।”
7. “तुमको मुक्ति में जाकर फिर जीवन–मुक्ति में आना है फिर जीवनबंध में।”
8. “मुझे बुलाते ही हैं पतित से पावन बनाओ तो मैं आकर तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ। ड्रामा में विनाश की भी नूँध है, सो फिर भी होगा। मैं कोई फूंक नहीं देता हूँ कि विनाश हो जाए। यह मूसल आदि बने हैं – यह भी ड्रामा में नूध है। मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ। मेरा पार्ट सबसे बड़ा है – सृष्टि को बदलना, पतित से पावन बनाना। अब समर्थ कौन? मैं या ड्रामा? रावण को भी ड्रामा अनुसार आना ही है। जो नॉलेज मेरे में है, वह आकर देता हूँ। तुम शिवबाबा की सेना हो। रावण पर जीत पाते हो।”
9. “बन्धनों का बीज है सम्बन्ध। जब बाप के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ लिए तो और किसी में मोह कैसे हो सकता। बिना सम्बन्ध के मोह नहीं होता और मोह नहीं तो बंधन नहीं। जब बीज को ही खत्म कर दिया तो बिना बीज के वृक्ष कैसे पैदा होगा। यदि अभी तक बंधन है तो सिद्ध है कि कुछ तोड़ा है, कुछ जोड़ा है इसलिए मनमनाभव की विधि से मन के बन्धनों से भी मुक्त नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनो फिर यह शिकायतें समाप्त हो जायेंगी कि क्या करें बंधन है, कटता नहीं।”
10. “जितना सेवा की हलचल में आते हो उतना बिल्कुल अण्डरग्राउण्ड चले जाओ। कोई भी नई इन्वेंशन और शक्तिशाली इन्वेंशन अन्डरग्राउण्ड ही करते हैं तो एकान्तवासी बनना ही अन्डरग्राउण्ड है। जो भी समय मिले, इकट्ठा एक घण्टा वा आधा घण्टा समय नहीं मिलेगा लेकिन बीच में 5 मिनट भी मिले तो सागर के तले में चले जाओ। इससे संकल्पों पर ब्रेक लग सकेगी फिर वाणी में आना चाहेंगे तो भी नहीं आ सकेंगे।”