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Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 24th February 2025

 “प्रश्नः

धन्धा आदि करते भी कौनसा डायरेक्शन बुद्धि में याद रहना चाहिए?

उत्तर:-
बाप का डायरेक्शन है तुम किसी साकार वा आकार को याद नहीं करो, एक बाप की याद रहे तो विकर्म विनाश हों। इसमें कोई ये नहीं कह सकता कि फुर्सत नहीं। सब कुछ करते भी याद में रह सकते हो।”

 

1.     “तुम जानते हो बाप का परिचय दुनिया में कोई को भी नहीं है। देह का परिचय तो सबको है। बड़ी चीज़ का परिचय झट हो जाता है। आत्मा का परिचय तो जब बाप आये तब समझाये। आत्मा और शरीर दो चीज़ें हैं। आत्मा एक स्टॉर है और बहुत सूक्ष्म है। उनको कोई देख नहीं सकते। तो यहाँ जब आकर बैठते हैं तो देहीअभिमानी होकर बैठना है। यह भी एक हॉस्पिटल है नाआधाकल्प के लिए एवरहेल्दी होने की। आत्मा तो है अविनाशी, कभी विनाश नहीं होती। आत्मा का ही सारा पार्ट है। आत्मा कहती है मैं कभी विनाश को नहीं पाती हूँ। इतनी सब आत्मायें अविनाशी हैं। शरीर है विनाशी। अब तुम्हारी बुद्धि में यह बैठा हुआ है कि हम आत्मा अविनाशी हैं।”

 

2.    “अब तुम समझा सकते हो सबसे ऊंचे ते ऊंच है भगवान, वह है मूलवतन वासी। सूक्ष्मवतन में हैं देवतायें। यहाँ रहते हैं मनुष्य। तो ऊंच ते ऊंच भगवान वह निराकार ठहरा।”

 

3.    “भगवान कहा ही जाता है निराकार को। वह आकर शरीर धारण करते हैं। एक भगवान के बच्चे सब आत्मायें भाईभाई हैं। अभी इस शरीर में विराजमान हैं। सभी अकालमूर्त हैं। यह अकालमूर्त (आत्मा) का तख्त है। अकालतख्त और कोई खास चीज़ नहीं है। यह तख्त है अकालमूर्त का। भृकुटी के बीच में आत्मा विराजमान होती है, इसको कहा जाता है अकालतख्त। अकालतख्त, अकालमूर्त का। आत्मायें सब अकाल हैं, कितनी अति सूक्ष्म हैं। बाप तो है निराकार। वह अपना तख्त कहाँ से लाये। बाप कहते हैं मेरा भी यह तख्त है। मैं आकर इस तख्त का लोन लेता हूँ। ब्रह्मा के साधारण बूढ़े तन में अकाल तख्त पर आकर बैठता हूँ। अभी तुम जान गये हो सब आत्माओं का यह तख्त है।”

 

4.    “बाप बच्चों को कितना प्यार से समझाते हैंबच्चे, बहुतबहुत मीठे बनो। मुख से सदैव रत्न निकलते रहें। तुम हो रूपबसन्त। तुम्हारे मुख से पत्थर नहीं निकलने चाहिए। आत्मा की ही महिमा होती है। आत्मा कहती हैमैं प्रेजीडेण्ट हूँ, फलाना हूँ……. मेरे शरीर का नाम यह है। अच्छा, आत्मायें किसके बच्चे हैं? एक परमात्मा के। तो जरूर उनसे वर्सा मिलता होगा।”

 

5.    “कई तो अन्धों की लाठी बनने के बदले अन्धे बन जाते हैं।”

 

6.    “अपनी सद्गति करने का पुरूषार्थ तो करना चाहिए। देहीअभिमानी बनना है। बाप कितना ऊंच ते ऊंच है और आते देखो कैसे पतित दुनिया, पतित शरीर में हैं। उनको बुलाते ही पतित दुनिया में हैं। जब रावण दु: देते हैं तो बिल्कुल ही भ्रष्ट कर देते हैं, तब बाप आकर श्रेष्ठ बनाते हैं। जो अच्छा पुरूषार्थ करते हैं वह राजारानी बन जाते हैं, जो पुरूषार्थ नहीं करते वह गरीब बन जाते हैं। तकदीर में नहीं है तो तदबीर कर नहीं सकते। कोई तो बहुत अच्छी तकदीर बना लेते हैं। हर एक अपने को देख सकते हैं कि हम क्या सर्विस करते हैं।”

 

7.     “ज्ञान और योग में तीखा बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है। अपनी ऊंच तकदीर बनाने का पुरूषार्थ करना है। अन्धों की लाठी बनना है।”

 

8.    “सन्तुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता दिखाई देगी और जो सदा सन्तुष्ट वा प्रसन्न रहते हैं उनकी हर एक प्रशन्सा अवश्य करते हैं। तो प्रशन्सा, प्रसन्नता से ही प्राप्त कर सकते हो इसलिए सदा सन्तुष्ट और प्रसन्न रहने का विशेष वरदान स्वयं भी लो और औरों को भी दो क्योंकि इस यज्ञ की अन्तिम आहुतिसर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता है। जब सभी सदा प्रसन्न रहेंगे तब प्रत्यक्षता का आवाज गूंजेगा अर्थात् विजय का झण्डा लहरायेगा।”

 

9.    “एकान्तवासी बनना अर्थात् चारों ओर के वायब्रेशन से परे चले जाना। कई ऐसे होते हैं जिन्हें एकान्त पसन्द नहीं आता, संगठन में रहना, हंसना, बोलना ज्यादा पसन्द आता, लेकिन यह हुआ बाहरमुखता में आना। अभी अपने को एकान्तवासी बनाओ अर्थात् सर्व आकर्षण के वायब्रेशन से अन्तर्मुख बनो। अब समय ऐसा रहा है जो यही अभ्यास काम में आयेगा। अगर बाहर की आकर्षण के वशीभूत होने का अभ्यास होगा तो समय पर धोखा दे देगा।”

 


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